Hanuman ji ki rochak kahaniyan | Hanuman ji की रोचक कहानी
Hanuman ji ki rochak kahaniyan- एक बार की बात है। अर्जुन वन में फूल लेने गए। वहां हनुमान जी पहले से ही विराजमान थे। अर्जुन ने जैसे ही फूल तोड़े हनुमान जी की निद्रा टूट गई। हनुमान जी ने पूछा- कौन है वहां? अर्जुन बोल मैं हूं। हनुमान जी ने पूछा यहां क्या करने आए हो? वह बोले फूल लेने आया हूं। हनुमान जी बोले- फूल ले जाने से पहले काम से कम पूछ तो लो। वह बोले फूल ले जाने से पहले क्या पूछना। यह तो इतनी छोटी सी बात है।
हनुमान जी बोले -बात छोटी या बड़ी नहीं है, बात चोरी करने की है। किस लिए फूल ले जाने हैं? अर्जुन बोले -पूजा के लिए ले जाना ले जाना है। हनुमान जी ने कहा- पूजा,अच्छी बात है। लेकिन चोरी से फूल ले जाना ठीक नहीं। किसके लिए ले जाना है? अर्जुन ने कहा- भगवान कृष्ण की पूजा के लिए। हनुमान जी हंस कर बोले -फिर ले जाओ ,कोई बात नहीं ।अर्जुन ने पूछा -हंसते क्यों हो वह बोले जिसके भगवान ही चोर हो, उसकी पूजा के लिए चोरी से फूल जाए ठीक है, कोई बात नहीं।
अब अर्जुन को बहुत गुस्सा आई कि हमारे माधव को चोर बोल दिया अर्जुन ने क्रोध में आकर बोला हां तो मुझे आपके भगवान के बारे में भी पता है। उन्होंने वानर और भालूओ से पुल बनवा दिया। बहुत बड़े महारथी है, यही उनकी ताकत है कि वह छोटे-छोटे भालूओ से पुल बनवा रहे हैं। अगर इतने ही ताकतवर है, तो उन्होंने बाण से पुल क्यों नहीं बना दिया ? हनुमान जी ने कहा -क्या तुम बाण का पुल बना सकते हो?
हां बिल्कुल बन सकता हूं। हनुमान जी ने कहा- देख लो लेकिन ध्यान रखना, जो पुल भगवान ने बनाया था ,वह बहुत शक्तिशाली था। उस पर उनकी पूरी वानर सेना लंका पार कर गई थी। तुम्हारे बनाए पुल से उनका एक वानर ही निकल जाए ,तो हम तुमको शक्तिशाली मान लेंगे ।अर्जुन बोले हां बिल्कुल बना सकता हूं। हनुमान जी ने कहा अगर टूट गया तो ,अर्जुन बोल नहीं टूटेगा। हनुमान जी बोले फिर भी अगर टूट गया तो, अर्जुन बोले अगर मेरा बनाया पुल टूट गया, तो मैं अपने आप को आग में भस्म कर लूंगा। क्षत्रिय हूं ,वादा करता हूं।
अर्जुन ने बाण की वर्षा की, और एक शक्तिशाली पुल का निर्माण कर दिया। अर्जुन बोले पूल तैयार है। हनुमान जी बोले- राम जी का बंदर भी तैयार है। हनुमान जी ने अपना विशाल रूप दिखाया ।हनुमान जी ने जैसे ही उस पर अपना पहला कदम रखा। पूल पाताल लोक चला गया। हार की शर्म से, अर्जुन अपने आप को भस्म करने के लिए तैयार थे। तभी हनुमान जी ने समझाया, देखो यह जीवन बहुत अनमोल है यूं बर्बाद मत करो। यह बात सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगी, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा।
अर्जुन अपने क्षत्रिय धर्म का पालन कर रहे थे, और अपने वचन पर अड़े रहे। हनुमान जी ने अर्जुन को बहुत समझाया, लेकिन अर्जुन नहीं माने। हनुमान जी मन ही मन कृष्ण जी को याद करते हैं, और कहते हैं, हे प्रभु सहायता करें, यह तो समझने के लिए तैयार ही नहीं है, तो भगवान श्री कृष्णा स्वयं ब्राह्मण का रूप रख कर प्रकट हुए और बोले -हे भक्त राज यह क्या कर रहे हो ? यह आग क्यों जलाई है? अर्जुन ने सारा वृत्तांत कह सुनाया।
ब्राह्मण बोले- अच्छा यह बताओ, क्या जब तुम्हारी शर्त लगी तो यहां कोई तीसरा व्यक्ति भी था? निर्णय करने वाला कोई तीसरा भी होना चाहिए। क्या तुम दोबारा पुल बना सकते हो? मैं निर्णय करूंगा अर्जुन बोले हां बिल्कुल बना सकता हूं। अर्जुन ने पुनः पुल का निर्माण किया। हनुमान जी ने फिर से अपना विशाल रूप बनाया। भगवान ने कक्षप (कछुए) का रूप बनाया और पुल के नीचे जाकर बैठ गए।
इस बार पुल नहीं टूटा। हनुमान जी तुरंत प्रभु की लीला समझ गए, और मन ही मन मुस्कुराए और बोले मैं तो हार गया और अर्जुन जीत गए, बताओ अब मुझे क्या करना है। बोले प्रभु बोले अभी नहीं सही वक्त आने पर बताऊंगा। कहते हैं जब महाभारत का युद्ध होने लगा, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा अब हमें हनुमान की जरूरत है। अर्जुन बड़े ही घमंड से बोले- मैं तो नर हूं मुझे उस वानर की क्या आवश्यकता है? श्री कृष्णा बोले -हे अर्जुन तुम तो नर हो ,परंतु खुद नारायण को भी हनुमान जी की मदद लेनी पड़ी थी।
स्वयं वासुदेव अर्जुन के साथ गए और हनुमान जी से मदद मांगी। हनुमान जी ने शर्त रखी कि वह बिना भक्ति के नहीं रह सकते। स्वयं प्रभु श्री राम युद्ध के दौरान भी अनंत ज्ञान की बातें बताते थे। वासुदेव बोले वहां तो युद्ध होगा। तुम भक्ति कैसे कर पाओगे? कहते हैं हनुमान जी स्वयं ध्वज के रूप में अर्जुन के रथ पर सवार थे इसीलिए अर्जुन के रथ का नाम कपि ध्वज रखा गया।
शास्त्र कहते हैं अर्जुन का तो बहाना था। भगवान श्री कृष्ण ने गीता तो हनुमान को सुनना था। महाभारत में कर्ण और अर्जुन के रथ में टकराव होता था। कर्ण जब तीर चलाता था, तो अर्जुन का रथ हिलता नहीं था। लेकिन जब अर्जुन तीर चलाता था, तो कर्ण का रथ तीन-चार कदम पीछे चला जाता था।
अर्जुन बोलते थे,, नीचे देखो प्रभु हमारा रथ नहीं हिल रहा है। भगवान कहते थे, नीचे नहीं ऊपर देखो। प्रभु बोले तुम ऊपर इसलिए हो , क्योंकि तुम्हारे साथ स्वयं हनुमान जी की शक्तियां है। जब युद्ध खत्म हो गया तो, श्री कृष्ण ने अर्जुन को रथ से उतरा और फिर स्वयं उतारे, फिर उन्होंने हनुमान जी को इशारा किया, और जैसे ही हनुमान जी रथ से उतरे, अर्जुन का रथ धू-धू कर चलने लगा, और जलकर भस्म हो गया अर्जुन को बहुत आश्चर्य हुआ उन्होंने पूछा यह रथ कैसे भस्म हो गया। कृष्ण जी बोले रथ तो बहुत पहले ही भस्म हो चुका था। यह तो हनुमान जी की कृपा थी, जो उन्होंने रथ को बचाए रखा था।
शिक्षा-:जीवन में सदैव याद रखिए, चाहे जितनी भी संप्रदा बना ले, खूब धन कमा ले, कभी भी अहंकार की भावना अपने अंदर मत आने देना अहंकार ने बड़े-बड़े लोगों को डुबो दिया है।
I was reading some of your posts on this website and
I believe this website is real instructive! Continue putting up.Blog money