रामायण की अनसुनी कथा
दोस्तों! मार्कण्डेय पुराण में एक कथा आती है, जो हमें यह सिखाती है कि भूमि और वातावरण का प्रभाव हमारे मन और विचारों पर कैसे पड़ता है।
रामायण की अनसुनी कथा
यह कथा भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के वनवास के समय की है। एक दिन तीनों जंगल में यात्रा कर रहे थे। यात्रा करते हुए वे एक ऐसे स्थान पर पहुंचे, जहां का वातावरण लक्ष्मण के मन पर बुरा प्रभाव डालने लगा। लक्ष्मण का स्वभाव, जो कि हमेशा राम और सीता के प्रति भक्ति और सेवाभाव से भरा रहता था, अचानक बदलने लगा।
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लक्ष्मण के मन में विचार आया, “कैकेयी ने वनवास राम को दिया है, मुझे नहीं। मैं क्यों कष्ट झेल रहा हूँ? क्यों राम और सीता की सेवा करूँ?” यह विचार उनके मन को विचलित करने लगे। उनके व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन आने लगा। राम ने लक्ष्मण की मनःस्थिति को भांप लिया लेकिन उन्होंने इस पर कुछ नहीं कहा।
थोड़ी देर बाद राम ने लक्ष्मण से कहा, *”लक्ष्मण, यह स्थान मुझे बड़ा अद्भुत लग रहा है। यहाँ की मिट्टी बहुत अच्छी प्रतीत होती है। जरा इस मिट्टी को अपने साथ ले चलो।”* लक्ष्मण ने तुरंत आदेश का पालन किया और मिट्टी को एक पोटली में बाँध लिया।
यात्रा जारी रही, लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने उस मिट्टी को साथ रखा, उनके मन में द्वेष और क्रोध के भाव बढ़ते गए। वे मन ही मन राम और सीता के प्रति आक्रोश महसूस करने लगे। लेकिन जब रात को विश्राम के समय लक्ष्मण ने उस मिट्टी की पोटली को जमीन पर रख दिया, तो उनका मन तुरंत शांत हो गया। उनके हृदय में फिर से राम और सीता के प्रति भक्ति और प्रेम के भाव उमड़ने लगे। यह क्रम लगातार दो-तीन दिन चलता रहा।
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लक्ष्मण के लिए यह स्थिति बड़ी विचित्र और असमंजसपूर्ण थी। आखिरकार उन्होंने राम से इसका कारण पूछा। राम ने मुस्कुराते हुए कहा, *”लक्ष्मण, तुम्हारे मन में हो रहे इस परिवर्तन का कारण तुम नहीं हो। यह उस मिट्टी का प्रभाव है, जिसे तुम अपने साथ लेकर चल रहे हो।”
लक्ष्मण ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “प्रभु, ऐसा कैसे संभव है?”
राम ने समझाते हुए कहा, “यह मिट्टी उस स्थान की है, जहां सुंद और उपसुंद नामक दो राक्षस रहते थे। उन्होंने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और अमरता का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया, लेकिन यह शर्त भी रखी कि उनकी मृत्यु केवल आपसी झगड़े से हो सकेगी। सुंद और उपसुंद में बड़ा प्रेम था, इसलिए उन्होंने सोचा कि हम कभी आपस में झगड़ेंगे ही नहीं। लेकिन अहंकारवश वे देवताओं को सताने लगे। देवताओं ने ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। ब्रह्मा जी ने तिलोत्तमा नामक सुंदर अप्सरा को उत्पन्न कर उनके पास भेजा।
जब सुंद और उपसुंद ने तिलोत्तमा को देखा, तो वे कामांध हो गए और कहने लगे, ‘तुम मेरी हो।’ तिलोत्तमा ने कहा, ‘मैं उसी से विवाह करूँगी, जो विजेता होगा।’ यह सुनकर दोनों आपस में भयंकर युद्ध करने लगे और अंततः दोनों की मृत्यु हो गई। जिस स्थान पर यह घटना घटी, वहाँ की भूमि द्वेष, वैर और क्रोध के संस्कारों से भर गई। यही मिट्टी तुम्हारे मन पर प्रभाव डाल रही है।”
राम ने आगे कहा, “जिस भूमि पर जैसे कर्म किए जाते हैं, वहाँ के परमाणु उस भूमि और वातावरण में समा जाते हैं। इसीलिए हमें अपने घर और आस-पास की जगह को हमेशा पवित्र रखना चाहिए।”
लक्ष्मण ने राम के चरणों में प्रणाम किया और उनके ज्ञान से प्रेरित होकर उस मिट्टी को वहीं छोड़ दिया।
।। जय सियाराम।।
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