राजा दशरथ का मुकुट | Raja Dashrath ka mukut का एक अनोखा राज
अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका सामना बाली से हो गया. राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी.राजा दशरथ की तीनों रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी. अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी.
जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी. युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पड़ जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी. अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हार राजा दशरथ की ही होगी.
इसे भी जरूर पढ़े-पवित्र रामायण से 10 सीख
राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए. तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा.
रानी कैकयी को यह बात बहुत दुखी, आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को अपने सामने कैसे सह सकती थी. यह बात उन्हें हर पल काटे की तरह चुभने लगी की उनके कारण राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा.
वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं. जब श्री रामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई. यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे!
इसे भी जरूर पढ़े-माया मिली न राम | Maya mili na Ram
कैकेयी ने जब श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया था और श्री राम को वन भिजवाया तथा. तब रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है.
श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया. उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा. प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था.
तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था. जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया. प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें. वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा.
जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए. वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी, रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया.
जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया. अंगद वह मुकुट लेकर वापस श्री राम के पास चले आये.
यह महिमा थी रघुकुल के राज मुकुट की.
राजा दशरथ के पास से मुकुट गया तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी. बाली से जब रावण वह मुकुट लेकर गया तो बाली को अपने प्राणों को आहूत देनी पड़ी. इसके बाद जब अंगद रावण से वह मुकुट लेकर गया तो रावण के भी प्राण गए.
तथा कैकयी के कारण ही रघुकुल के लाज बच सकी यदि कैकयी श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल सम्मान वापस नहीं लौट पाता. कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सभी कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए, इसीलिए श्री राम अपनी माताओं में सबसे ज्यादा प्रेम कैकयी को करते थे।
श्रीराम कैकई माता को इसलिए भी बहुत प्रेम व आदर करते थे, क्योंकि कैकई के द्वारा ही उनका अवतार लेना सार्थक होना था।।
जय श्रीराम🙏🏻🌹
रामायण से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां | Inspirational story
Manthra aur bhagwan vishnu | मंथरा और भगवान विष्णु में युद्ध क्यों हुआ
पवित्र रामायण से 10 सीख | Pavitra Ramayan Se Seekh
जाने शबरी को मोक्ष कैसे प्राप्त हुआ? शबरी की कहानी।
राजा दशरथ को मिला श्राप, जो श्रीराम के वनवास का कारण बना ?
Ram setu nirmaan | राम सेतु निर्माण में गिलहरी का क्या योगदान था?