Hanuman ji ka bal- संकट मोचन के नाम से प्रसिद्ध, हनुमान जी सबसे लोकप्रिय देवता हैं। उन्हें उनके साहस शक्ति और उनकी सुरक्षा की दिव्यता के लिए माना जाता है। सिर्फ रामायण ही नहीं बल्कि महाभारत और अन्य पुराणों में भी हनुमान जी की शिव भक्ति का वर्णन किया गया है। अगर आप भी मेरी तरह हनुमान जी के सच्चे भक्त हैं तो आपको भी उनकी कहानी मंत्र मुक्त कर देगी। इस ब्लॉक में हम आपको अंजनी पुत्र हनुमान जी की कुछ ऐसी ही रहस्यमई शक्तियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे ज्यादातर लोग आज भी अनजान है।
Hanuman ji aur Brahmastra : ब्रह्मास्त्र भी बेअसर
रामायण और महाभारत में कई अस्त्र शस्त्रों का जिक्र है। ऐसा ही एक शस्त्र था ब्रह्मास्त्र। ब्रह्मा जी के वरदान से ही यह प्राप्त होता था। और इससे बचना ना मुमकिन था। रामायण में कई बार इसका इस्तेमाल किया गया है। परंतु हनुमान जी पर इसका कोई असर नहीं था। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने उन्हें तीन वरदान दिए थे। जिसमें से एक था कि उन पर किसी भी प्रकार के ब्रह्मास्त्र का कोई भी असर नहीं होगा। और किसी भी युद्ध में उनसे जीत पाना असंभव होगा। यह वरदान अशोक वाटिका में हनुमान जी के काम आया।
जब हनुमान जी देवी सीता की खोज में लंका पहुंचे तो उन्होंने देवी सीता को बहुत ढूंढा। जब सफलता नहीं मिली, तो वह निराश हो गए। तब विभीषण ने पवन पुत्र को माता-सीता के बारे में बताया और वह अशोक वाटिका पहुंचे। उन्होंने प्रभु श्री राम का संदेश, देवी सीता को सुनाया। उन्होंने अशोक वाटिका को तहस-नहस भी कर दिया। जब रावण को इस बात का पता चला तो वह गुस्से में भर गया उसने अपने पुत्र अक्षय कुमार को बजरंगबली को बंदी बनाने के लिए भेजा।
Hanuman ji ka bal | Hanuman ji Inspirational story
लेकिन हनुमान जी को भला कौन रोक सकता था। उन्होंने रावण पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। फिर रावण का दूसरा पुत्र मेघनाथ हनुमान जी को पकड़ने आया। मेघनाथ मायावी था और उसे तंत्र विद्या का भी ज्ञान था। लेकिन जब उनके बीच युद्ध शुरू हुआ। तब उसने अपनी सारी शक्तियां, सारी माया, सारी तांत्रिक विद्या, सारे अस्त्र-शस्त्र प्रयोग करके देख लिए। परंतु हनुमान जी के आगे वह सब के सब बेकार हो गए।
आखिर में मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। वरदान के कारण हनुमान जी को कुछ नहीं हो सकता था। लेकिन ब्रह्म का अस्त्र होने के कारण उन्होंने सोचा, यदि मैं इस ब्रह्मास्त्र का अपने ऊपर कोई असर नहीं पड़ने दूंगा, तो यह ब्रह्मास्त्र का अपमान होगा। जिससे संसार में इसका गौरव घट जाएगा। ब्रह्मास्त्र के छूते ही हनुमान जी बेहोश होकर गिर पड़े।
तभी मेघनाथ के संकेत पर राक्षसों ने हनुमान जी को रस्सी से बांध लिया। पर वह मूर्ख यह नहीं जानते थे कि दूसरी रस्सी के छूने से ही ब्रह्मास्त्र का असर समाप्त हो गया था। इसका मतलब हनुमान जी को होश आ गया था। वह चाहते तो उन राक्षसों को मार सकते थे। परंतु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने अपने आप को बंध जाने दिया क्योंकि वह रावण और उसकी राज्यसभा को देखना चाहते थे।
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Hnuman ji ki shaktiyaa : प्राकाम्य में सिद्धि
उनकी आठ सिद्धियों में एक सिद्धि थी प्राकाम्य। जिसका अर्थ है- जो भी इच्छा हो उसे प्राप्त कर लेना। इसी सिद्धि के बल पर पृथ्वी की गहराइयों में पाताल तक जाया जा सकता है। और आकाश में कितनी ही ऊंचाइयों पर उड़ा जा सकता है। यही नहीं मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रहा जा सकता है। रामचरितमानस के अनुसार- प्रभु श्री राम के साथ युद्ध के दौरान जब रावण का बेटा मेघनाथ मार दिया गया तब रावण ने अपने भाई अहिरावण से मदद मांगी।
वह पाताल का राजा था और जैसा चाहे वैसा रूप ले सकता था। उसने श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करने की साजिश रची थी। और इसके लिए अहिरावण ने रात का वक्त चुना। जब पूरी वानर सेना सो रही थी। तब उसने विभीषण का रूप लेकर श्री राम और लक्ष्मण को अगवा कर लिया। अहिरावण ने मायावी शक्तियों का इस्तेमाल कर किसी को भी भनक नहीं लगने दी। श्री राम और लक्ष्मण जी को पाताल लोक में ले गया।
जब विभीषण को पता चला कि श्री राम और लक्ष्मण उनके बीच नहीं है तो विभीषण तुरंत समझ गए कि यह सब जरूर ही अहिरावण का किया धरा है। जिसके बाद श्री राम भक्त हनुमान ने एक बार फिर से वचन दिया कि उनके रहते श्री राम और लक्ष्मण को किसी भी तरह की चोट नहीं पहुंच सकती है। हनुमान जब श्री राम और लक्ष्मण को लेने के लिए निकले तो रास्ते में उनकी मुलाकात मकरध्वज से हुई। जो बंदर और मछली की तरह दिखता था।
पूछताछ करने पर मकरध्वज ने कहा कि वह हनुमान का पुत्र है। और वह तब पैदा हुआ था जब हनुमान जी ने लंका जाने के लिए समुद्र पार किया था। तभी हनुमान जी का पसीना पानी में गिरकर एक मछली के गर्भ में चला गया। जिससे मकरध्वज का जन्म हुआ। मकरध्वज पाताल लोक का स्वामी था और पिता को सामने देखकर भी उसने अपने स्वामी अहिरावण की भक्ति नहीं छोड़ी। तब दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ और आखिर में मकरध्वज को हार माननी पड़ी।
हनुमान जी ने उसे वही बंदी बना लिया और पाताल लोक के अंदर चले गए। अंदर पहुंचकर हनुमान जी ने देखा कि श्री राम तथा लक्ष्मण बेहोशी की हालत में मायावी देवी के सामने पड़े हैं ।और अहिरावण उनकी बलि की तैयारी कर रहा है। अहिरावण ने मायावी देवी की मूर्ति के सामने 5 दिशा में पांच दिए जला रखे हैं।
जिनको एक साथ एक ही समय में बुझाने पर ही अहिरावण की मौत हो सकती थी। इसलिए हनुमान जी ने अपना पंचमुखी रूप लेकर एक साथ पांचो दीप बुझा दिए। जिनके बुझाते ही अहिरावण की मौत हो गई। इसके बाद हनुमान जी ने श्री राम और लक्ष्मण को स्वतंत्र किया और वापस पृथ्वी लोक चले गए। जाने से पहले श्री राम ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बना दिया।
Hanuman ji ki takat : अणिमा और महिमा सिद्धियां
हनुमान जी आठ सिद्धियों के स्वामी थे। उन्हें में से दो सिद्धियां थी- अणिमा और महिमा। जिससे बजरंगबली अपना आकार एक मच्छर से भी छोटा और हिमालय से भी बड़ा कर सकते थे। जब पवन पुत्र हनुमान उड़ कर माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे। तब अनेक राक्षस उनके सामने आए। जिनका एकमात्र मकसद हनुमान जी को लंका जाने से रोकना था। परंतु क्या आपको पता है उन सभी राक्षसों में से, एक को स्वयं देवताओं ने हनुमान जी की परीक्षा लेने के लिए भेजा था।
लंका पति रावण के डर से सभी देवता पाताल में चले गए थे। हनुमान जी को लंका जाता देकर देवताओं को लगा कि वह रावण का सामना कर भी पाएंगे या नहीं। इसी कारण उन्होंने हनुमान जी की बल बुद्धि की परीक्षा लेना जरूरी समझा। और नागों की माता सुरसा को आदेश देकर, उनके पास भेजा। सुरसा राक्षसी का रूप बनाकर हनुमान जी के सामने आई और उनका रास्ता रोकते हुए बोली कि देवताओं ने आज तुम्हें मेरा भोजन बनने के लिए भेजा है।
मैं तुम्हें खाकर अपनी भूख शांत करूंगी। जिस पर हनुमान जी बोले- देवी एक बार मैं प्रभु श्री राम का काम पूरा करके वापस आऊंगा, फिर आप मुझे खा लेना। लेकिन अभी मुझे जाने दीजिए। पर जब वह बहुत मनाने पर भी नहीं मानी तो, हनुमान जी ने कहा अच्छा ठीक है। हनुमान जी की बात सुनते ही सुरसा ने हनुमान जी की और अपना मुंह खोलना शुरू किया।यह देखकर हनुमान जी ने खुद को उसके मुंह का पूरा दुगना कर दिया।
इस तरह सुरसा और हनुमान जी दोनों अपना-अपना आकार बहुत विशाल कर लिया। तभी हनुमान जी ने अचानक से छोटा सा रूप धारण कर लिया और सुरसा के मुंह में घुसकर तुरंत बाहर निकल आए। उन्होंने आकाश में खड़े होकर सुरसा से कहा माता, देवताओं ने जिस काम के लिए आपको भेजा था, वह पूरा हो गया है। अब मैं भगवान श्री राम के कार्य के लिए, अपनी यात्रा पर आगे बढ़ता हूं।
सुरसा हनुमान जी की चतुराई से प्रसन्न हुई और उनके सामने अपने असली रूप में आकर कहा- महावीर हनुमान, देवताओं ने मुझे तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही यहां भेजा था। तुम्हारी बल बुद्धि की बराबरी करने वाला तीनों लोको में कोई नहीं है। तुम जल्द ही भगवान श्री राम के सारे कार्य पूरे करोगे। इसमें कोई शक नहीं है। ऐसा मेरा आशीर्वाद है। जिसके बाद सुरसा रास्ते से हट गई और हनुमान जी अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ चले।
Vajra sa kathor shrir : हनुमान जी का वज्र सा कठोर शरीर
जब सूर्य को फल समझ कर निगलने पर इंद्रदेव ने हनुमान जी पर वज्र से प्रहार किया। तब पवन देव ने क्रोधित होकर धरती की सारी हवा बंद कर दी। तब इंद्रदेव ने हनुमान जी को वज्र के जैसा कठोर होने का वरदान दिया और तभी से हनुमान जी बजरंगबली कहलाने लगे।
यह घटना हनुमान जी की बाल्यावस्था में घटी। एक दिन वह अपनी नींद से जागे और उन्हें बहुत तेज भूख लगी थी। तभी उन्होंने पास की एक वृक्ष पर लाल पका फल दिखा। और वह उसे खाने के लिए निकल पड़े। हनुमान जी जिसे लाल पका हुआ, फल समझ रहे थे। वह सूर्य देव थे। पवन पुत्र होने के कारण हनुमान जी के पास उड़ने की शक्ति पहले से ही थी। इसलिए वह अपनी भूख मिटाने हवा की रफ्तार से सूरज की ओर बढ़ने लगे।
उस रोज अमावस्या का दिन था। और राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे। लेकिन वह सूर्य को ग्रहण लगा पाए, उससे पहले ही हनुमान जी सूर्य को निगल गए। राहु कुछ समझ नहीं पाए कि हो क्या रहा है। उन्होंने इंद्र से सहायता मांगी। इंद्रदेव की बार-बार समझाने पर भी, जब हनुमान जी ने सूर्य देव को मुक्त नहीं किया। तब इंद्र ने वज्र से उनके मुंह पर प्रहार किया। जिससे सूर्य देव आजाद हुए। वही चोट लगने से, मारुति बेहोश होकर, आकाश से धरती की तरफ गिरने लगे।
जब पवन देव को इस घटना की खबर मिली। तब वह क्रोधित होकर हनुमान जी को अपने साथ लेकर एक गुफा में बंद हो गए। और उन्होंने पूरे संसार की वायु रोक दी। इसके बाद पृथ्वी पर जीवों में हाहाकार मच गया। इस विनाश को रोकने के लिए सारे देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर, पवन देव को समझाने की विनती करते हैं। फिर ब्रह्मा जी गुफा में जाकर हनुमान जी को अपने हाथों से छूकर होश में लाते हैं। और पवन देव से कहते हैं कि वह अपने गुस्से को शांत करें। और पृथ्वी पर जीवन को दोबारा चलने दे।
अपने पुत्र को ठीक होता देख, पवन देव वायु का प्रवाह फिर से शुरू कर देते हैं। इसके बाद ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा- यह कोई साधारण बालक नहीं है। इस बालक का जन्म देवताओं के कार्य पूर्ण करने के लिए हुआ है। इसलिए यही उचित होगा कि सभी देवता इसे वरदान दें। ब्रह्मा जी की आज्ञा मानकर, इंद्र आगे बढ़े और उन्होंने कहा- इसकी हनु यानी की ठोड़ी मेरे वज्र से टूट गई है। इसलिए आज से इस बालक का नाम हनुमान भी होगा। और मैं वरदान देता हूं कि मेरा वज्र इस पर बेअसर होगा और इसी तरह हनुमान जी का शरीर इंद्रदेव के सबसे शक्तिशाली अस्त्र से भी कठोर बन गया।
Hanuman ji ko Agni dev ka vardaan : अग्नि नहीं जला सकती
पवन देव के क्रोध के बाद,अग्नि देव ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि उन पर आग का कोई असर नहीं होगा। यही कारण है कि इतनी बड़ी लंका में आग लगाने के बाद भी उनकी पूछ नहीं जली और वह सही सलामत वापस आ गए। अशोक वाटिका में मेघनाथ ने हनुमान जी को ब्रह्मास्त्र से बंदी बना लिया था और रावण के सामने लाकर खड़ा कर दिया था। हनुमान जी ने देखा की राक्षसों का राजा रावण बहुत ही ऊंची सोने के सिंहासन पर बैठा हुआ है उसके आसपास बहुत से शक्तिशाली योद्धा और मंत्री भी बैठे हुए हैं। लेकिन इन सब का, हनुमान जी पर कोई असर नहीं हुआ।
वह वैसे ही बिना डरे खड़े रहे। यह देखकर रावण ने पूछा- वानर तू कौन है और तेरी हिम्मत कैसे हुई, मेरी ही लंका में घुसकर राक्षसों को मारने और मेरी वाटिका को बर्बाद करने की। जिस पर हनुमान जी ने कहा- जो पूरे ब्रह्मांड के स्वामी है। मैं उन भगवान श्री राम जी का दूत हूं। तुम छल से उनकी पत्नी का हरण कर ले आए हो। उन्हें सम्मान सहित वापस कर दो। इसी में तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की भलाई है।
यह सुनकर रावण को बहुत ही गुस्सा आया। उसने राक्षसों को हनुमान जी को मार डालने का आदेश दिया। राक्षस उन्हें मारने। दौड़े। लेकिन तब तक विभीषण वहां पहुंच गए और कहा कि यह तो बस एक दूत है। इनका काम अपने स्वामी का संदेश पहुंचाना है इनको मारना सही नहीं होगा। इन्हें कोई दूसरी सजा देनी चाहिए। यह सुझाव रावण को पसंद आया उसने कहा- ठीक है बंदरों को अपनी पूछ से बड़ा लगाव होता है। इसकी पूछ में आग लगा दो।
जब यह बिना पूछ का होकर अपने स्वामी के पास जाएगा, तब फिर उसे भी साथ लेकर लौटेगा। यह कहकर वह जोर-जोर से हंसने लगे। रावण के आदेश पर राक्षसों ने हनुमान जी की पूंछ पर तेल से भिगो-भिगो कर कपड़े लपेटने लगे। तभी हनुमान जी ने अपनी सिद्धि का इस्तेमाल किया ,और वह धीरे-धीरे अपनी पूंछ बढ़ने लगे। और अंत में ऐसा हुआ की पूरी लंका में कपड़े, तेल, देसी घी खत्म हो गए। तब राक्षसों ने बिना देर किए उनकी पूंछ में आग लगा दी।
पूछ में आग लगते ही हनुमान जी फुर्ती से उछलकर, एक ऊंची जगह पर पहुंच गए। वहां से चारों ओर कूद-कूद कर, वह लंका को जलाने लगे। देखते ही देखते पूरी नगरी आग की लपटों में घिर गई। सभी राक्षस यह देखकर रोने और चिल्लाने लगे और रावण को कोसने लगे। रावण को आग बुझाने का कोई तरीका समझ नहीं आ रहा था। वही हनुमान जी की मदद करने के लिए, पवन देव ने हवा को और तेज कर दिया। विभीषण के घर को छोड़कर, थोड़ी ही देर में ,पूरी लंका जलकर भस्म हो गई।
हनुमान जी को Amar hone ka vardaan : अमरत्व का वरदान
हनुमान जी को चिरंजीवी भी कहा जाता है। चिरंजीव यानी की अजर ,अमर। ऐसा माना जाता है कि वह आज भी जीवित है। और कलयुग के अंत तक, अपने इस रूप में इस धरती पर रहेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बजरंगबली को चिरंजीव होने का वरदान किसने और क्यों दिया?
बाल्मीकि रामायण के अनुसार- हनुमान जी श्री राम के सबसे बड़े भक्त थे। और प्रभु श्री राम की पीड़ा उनसे देखी नहीं गई। इसके बाद वह माता-सीता को ढूंढने निकल पड़े। जब हनुमान जी समुद्र पार करके लंका पहुंचे। तब वहां पर अशोक वाटिका में उनकी माता सीता से मुलाकात हुई। माता सीता को हनुमान जी ने श्री राम की अंगूठी दी और उन्हें सारी बातें बताई। सब कुछ जान लेने के बाद माता सीता की आंख में आंसू आ गए।
तब हनुमान जी ने एक पुत्र की तरह माता सीता को शांत किया और उन्हें विश्वास दिया कि जल्द ही श्री राम उन्हें वहां से छुड़ा लेंगे। तब माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति से खुश होकर, उन्हें अमर होने का वरदान दिया था और कहा कि ,कभी भी किसी भी अस्त्र-शस्त्र से, हनुमान जी को कोई नुकसान नहीं होगा और उनका बल कभी कम नहीं होगा। इसके बाद रावण के खिलाफ युद्ध में, वह प्रभु श्री राम के सबसे बड़े सहयोगी की रूप में लड़े थे। पर पूरे युद्ध के दौरान उन्हें किसी भी तरह की चोट नहीं आई थी।
अयोध्या लौटने के बाद ,उन्होंने श्री राम की पूरी भक्ति से हर दिन सेवा की। लेकिन जब एक दिन भगवान श्री राम ने स्वर्ग लौटने की बात कही ।तब यह सुनकर हनुमान जी बहुत दुखी हो गए, और तब माता सीता के पास अपनी बात लेकर पहुंचे। हनुमान जी ने माता सीता से कहा कि आपने अमर होने का वरदान तो दिया, पर यह तो बताया नहीं कि जब मेरी प्रभु श्री राम धरती से चले जाएंगे, तब मैं क्या करूंगा। और यह कहते हुए हनुमान जी वरदान वापस लेने की ज़िद करने लगे।
तब माता सीता ने श्री राम का ध्यान किया और प्रभु राम वहां प्रकट हो गए। भगवान श्री राम ने हनुमान जी को गले लगाते हुए कहा कि हनुमान मुझे पता था कि तुम सीता के पास आकर यही पूछोगे। धरती पर आने वाला कोई भी जीव अमर नहीं है। लेकिन तुम्हें यह वरदान इसलिए मिला है क्योंकि एक समय धरती पर आएगा, जब धरती पर कोई देव अवतार नहीं होगा। पापी लोगों की संख्या अधिक होगी और जब तक इस धरती पर राम का नाम लिया जाएगा, तब तक राम भक्तों का उद्धार तुम ही करोगे।
अपने प्रभु की बात सुनकर हनुमान जी ने अपनी जिद को छोड़ दिया। और इस वरदान को प्रभु श्री राम की आज्ञा मानकर स्वीकार कर लिया। यही कारण है कि हनुमान जी आज भी धरती पर मौजूद है और भगवान श्री राम के भक्तों की तकलीफों को सुनते हैं और उन्हें दूर करते हैं।
Hanuman ji ka bal | Hanuman ji Inspirational story
हनुमान जी एक ऐसे देवता है जिनकी भक्ति आपको निडर और कर्मशील बना देती है। आप जीवन के किसी भी मोड़ पर उन्हें याद कर सकते हैं। वह आपकी मदद करने जरूर आएंगे। इस ब्लॉग में हमने हनुमान जी की उन शक्तियों के बारे में बात की जो उन्हें इतना लोकप्रिय और खास बनाती है। ऐसा माना जाता है कि जहां भी प्रभु श्री राम और हनुमान जी की कथा का गुणगान होता है वह वहां जरूर मौजूद रहते हैं और हमारे विचारों को पवित्र बना देते हैं। उम्मीद है आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी। जय श्री राम!
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