10 मजेदार कहानियां | Interesting Stories in Hindi | मजेदार कहानियां

10 मजेदार कहानियां-ऐसी कहानी जो सुनने या पढ़ने में मज़ा दे और साथ ही आपको हंसी, खुशी या गुदगुदी का अनुभव कराए। ये कहानियां अक्सर हल्के-फुल्के अंदाज में लिखी जाती हैं और इनमें हास्य, मनोरंजन या मजाकिया घटनाएं शामिल होती हैं। आइए आनंद लेते हैं ऐसी ही 10 मजेदार कहानियां का-

एक बालक का बलिदान

एक समय की बात है। एक बार देश में भयंकर अकाल पड़ा। बारिश न होने के कारण अन्न नहीं उगा। तालाब, नदियाँ और कुएँ सूख गए। पशुओं के लिए चारा खत्म हो गया। पहले साल की यह स्थिति दूसरे साल और भी ज्यादा खराब हो गई। धीरे-धीरे लोग भूख-प्यास से मरने लगे।

बारह साल तक बारिश नहीं हुई। हर तरफ गर्मी का कहर था। धरती पर धूल उड़ रही थी, और तेज लू चल रही थी। न तो कोई पक्षी नजर आता, न ही कोई हरियाली। लोग और जानवर तड़प-तड़पकर मर रहे थे। छोटे बच्चे भूख से दम तोड़ रहे थे। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था।

हँसाने मजेदार चुटकुले | Jokes | Funny Jokes in Hindi | मजेदार चुटकुले

हँसाने मजेदार चुटकुले
हँसाने मजेदार चुटकुले

इस भयंकर स्थिति से बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। किसी ने सलाह दी कि एक इंसान की बलि करने से देवता प्रसन्न होंगे और बारिश होगी। यह सुनकर लोग चुप हो गए। किसी को भी अपनी जान देने का साहस नहीं था।

एक दिन बहुत से लोग इस समस्या पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए। अचानक, एक बारह साल का सुंदर और मासूम बालक सबके बीच खड़ा हो गया। उसका नाम शतमन्यु था। उसने बड़ी गंभीरता से कहा, “मेरे प्यारे देशवासियों! अगर मेरे प्राण देने से देश की रक्षा हो सकती है, तो मैं खुशी-खुशी अपनी जान देने को तैयार हूँ। मेरे जीवन का इससे बड़ा उपयोग और क्या होगा?”

शतमन्यु के ये शब्द सुनकर उसकी माँ और पिता के आँखों से आँसू बहने लगे। उसके पिता ने उसे गले से लगाते हुए कहा, “बेटा, तूने अपने परिवार और पूर्वजों का मान बढ़ा दिया।” उसकी माँ ने उसे अपनी छाती से लगा लिया, लेकिन अपने बेटे के त्याग को स्वीकार कर लिया।

फिर, यज्ञ की तैयारी शुरू हुई। शतमन्यु को पवित्र जल से स्नान कराया गया। उसे नए कपड़े और गहने पहनाए गए। उसके माथे पर चंदन लगाया गया और फूलों की मालाएँ पहनाई गईं।

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यज्ञ के दिन शतमन्यु शांत मन से बलि के लिए तैयार होकर यज्ञ-मंडप में पहुँचा। वहां सन्नाटा छा गया। वह सिर झुकाकर देवताओं का स्मरण कर रहा था। उसी समय आकाश में दिव्य संगीत गूंज उठा। अचानक, शतमन्यु पर स्वर्ग के पारिजात फूलों की वर्षा होने लगी।

सभी लोग चकित होकर आकाश की ओर देखने लगे। तभी देवराज इंद्र प्रकट हुए। उन्होंने शतमन्यु के सिर पर अपना वरदहस्त रखते हुए कहा, “वत्स! मैं तेरे त्याग और देशभक्ति से प्रसन्न हूँ। जिस देश के बच्चे देश की भलाई के लिए अपने प्राण देने को तैयार रहते हैं, वह देश कभी विनाश का सामना नहीं करता। मैं बलि के बिना ही तुम्हारे यज्ञ को स्वीकार करता हूँ। अब तुम्हारे देश में सुख-समृद्धि लौटेगी।”

देवेंद्र के ऐसा कहते ही वे अंतर्धान हो गए। अगले ही दिन आकाश में काले बादल छा गए और मूसलधार बारिश होने लगी। तालाब और नदियाँ भर गईं। खेतों में हरियाली लौट आई। फल-फूल और अन्न से धरती भर गई।

शतमन्यु के त्याग और देश के प्रति उसकी निःस्वार्थ भावना ने पूरे देश को एक नया जीवन दे दिया। उसके बलिदान ने लोगों के दिलों में सच्चे देशप्रेम और सेवा की भावना जगा दी।

शिक्षा-सच्चे त्याग और निस्वार्थ भावना से हर कठिनाई को दूर किया जा सकता है। जो अपने देश और समाज के लिए त्याग करता है, उसका नाम हमेशा अमर रहता है।

सच्चा मन : Sachcha Mann

एक बाल ग्वाल रोजाना अपनी गायों को जंगल में नदी किनारे चराने के लिए ले जाता था ।

जंगल में वह नित्य – प्रतिदिन एक संत के यौगिक क्रियाकलाप देखता था । संत आंखें और नाक बंद कर कुछ यौगिक क्रियाएं करते थे । ग्वाला संत के क्रियाकलाप बड़े गौर से देखता था । एक दिन उससे रहा नहीं गया । उत्सुकतावश उसने संत से यौगिक क्रियाओं के बारे में पूछ लिया ।

बाल ग्वाल के सवाल पर संत ने जवाब दिया कि वह इस तरह से भगवान से साक्षात्कार करते हैं । संत के प्रस्थान करने के बाद ग्वाला भी यौगिक क्रियाओं को दोहराने लगा और इस बात का संकल्प ले लिया कि आज वह भगवान के दर्शन साक्षात करके ही रहेगा । ग्वाले ने अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं और नाक को जोर से दबा लिया । श्वास प्रवाह बंद होने से उसके प्राण निकलने की नौबत आ गई उधर कैलाश पर्वत पर महादेव का आसन डोलने लगा ।

शिव ने देखा कि एक बाल ग्वाल उनसे साक्षात्कार करने के लिए कठोर तप कर रहा है । उसके हठ को देखकर शिव प्रगट हुए और बोले, ‘वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं और तुमको दर्शन देने आया हूं ।’ ग्वाले ने बंद आंखों से इशारा कर पूछा, ‘आप कौन हो ?’ भोलेनाथ ने कहा ‘मैं वही भगवान हूं, जिसके लिए तुम इतना कठोर तप कर रहे हो ।’ ग्वाले ने आंखें खोलीं और सबसे पहले एक रस्सी लेकर आया ।

चूंकि उसने कभी भगवान को देखा नहीं था, इसलिए उसके सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया । उसने भगवान को पेड़ के साथ रस्सी से बांध दिया और साधु को बुलाने के लिए भागकर गया । संत तुरंत उसकी बातों पर यकीन करते हुए दौड़े हुए आये लेकिन संत को कहीं पर भी भगवान नजर नहीं आए संत ने बाल ग्वाल से कहा – ‘मुझे तो कहीं नहीं दिख रहे ।’

तब ग्वाले ने भगवान से पूछा प्रभु, “आप यदि सही में भगवान हो तो साधु महाराज को दिख क्यों नहीं रहे हो ।” तब भगवान ने कहा -‘जो भक्त छल कपट रहित, सच्चे मन से मुझे याद करता है, मैं उसको दर्शन देने के लिए दौड़ा चला आता हूं । तुमने निश्छल मन से मेरी आराधना की, अपने प्राण दांव पर लगाए और मेरे दर्शन का दृढ़ संकल्प लिया इसलिए मुझे कैलाश से मृत्युलोक में तुमको दर्शन देने के लिए आना ही पड़ा ।

जबकि साधु के आचरण में इन सभी बातों का अभी अभाव है । वह रोजाना के क्रियाकलाप करते हैं लेकिन उनके मन में अभी भटकाव है । इसलिए मैं तुमको तो दिखाई दे रहा हूं, लेकिन संत को नहीं ।’

शेखचिल्ली और कुएं की परियां

एक गांव में एक सुस्त और कामचोर आदमी रहता था। काम – धाम तो वह कोई करता न था, हां बातें बनाने में बड़ा माहिर था। इसलिए लोग उसे शेखचिल्ली कहकर पुकारते थे। शेखचिल्ली के घर की हालत इतनी खराब थी कि महीने में बीस दिन चूल्हा नहीं जल पाता था। शेखचिल्ली की बेवकूफी और सुस्ती की सजा उसकी बीवी को भी भुगतनी पड़ती और भूखे रहना पड़ता। एक दिन शेखचिल्ली की बीवी को बड़ा गुस्सा आया।

वह बहुत बिगड़ी और कहा,”अब मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती। चाहे जो कुछ करो, लेकिन मुझे तो पैसा चाहिए। जब तक तुम कोई कमाई करके नहीं लाओगे, मैं घर में नहीं, घुसने दूंगी।”यह कहकर बीवी ने शेखचिल्ली को नौकरी की खोज में जाने को मजबूर कर दिया। साथ में, रास्ते के लिए चार रूखी – सूखी रोटियां भी बांध दीं। साग – सालन कोई था ही नहीं, देती कहाँ से? इस प्रकार शेखचिल्ली को न चाहते हुए भी नौकरी की खोज में निकलना पड़ा।

शेखचिल्ली सबसे पहले अपने गांव के साहूकार के यहाँ गए। सोचा कि शायद साहूकार कोई छोटी – मोटी नौकरी दे दे। लेकिन निराश होना पड़ा। साहूकार के कारिन्दों ने ड्योढ़ी पर से ही डांट – डपटकर भगा दिया। अब शेखचिल्ली के सामने कोई रास्ता नहीं था। फिर भी एक गांव से दूसरे गांव तक दिन भर भटकते रहे। घर लौट नहीं सकते थे, क्योंकि बीवी ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक नौकरी न मिल जाए, घर में पैर न रखना।

दिन भर चलते – चलते जब शेखचिल्ली थककर चूर हो गए तो सोचा कि कुछ देर सुस्ता लिया जाए। भूख भी जोरों की लगी थी, इसलिए खाना खाने की बात भी उनके मन में थी। तभी कुछ दूर पर एक कुआं दिखाई दिया। शेखचिल्ली को हिम्मत बंधी और उसी की ओर बढ़ चले। कुएं के चबूतरे पर बैठकर शेखचिल्ली ने बीवी की दी हुई रोटियों की पोटली खोली। उसमें चार रूखी – सूखी रोटियां थीं। भूख तो इतनी जोर की लगी थी कि उन चारों से भी पूरी तरह न बुझ पाती।

लेकिन समस्या यह भी थी कि अगर चारों रोटियों आज ही खा डालीं तो कल – परसों या उससे अगले दिन क्या करूंगा, क्योंकि नौकरी खोजे बिना घर घुसना नामुमकिन था। इसी सोच-विचार में शेखचिल्ली बार – बार रोटियां गिनते और बारबार रख देते। समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए। जब शेखचिल्ली से अपने आप कोई फैसला न हो पाया तो कुएं के देव की मदद लेनी चाही। वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले,”हे बाबा, अब तुम्हीं हमें आगे रास्ता दिखाओ। दिन भर कुछ भी नहीं खाया है।

भूख तो इतनी लगी है कि चारों को खा जाने के बाद भी शायद ही मिट पाए। लेकिन अगर चारों को खा लेता हूँ तो आगे क्या करूंगा? मुझे अभी कई दिनों यहीं आसपास भटकना है। इसलिए हे कुआं बाबा, अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं! एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं चारों खा जाऊं?”लेकिन कुएं की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। वह बोल तो सकता नहीं था, इसलिए कैसे जवाब देता!

उस कुएं के अन्दर चार परियां रहती थीं। उन्होंने जब शेखचिल्ली की बात सुनी तो सोचा कि कोई दानव आया है जो उन्हीं चारों को खाने की बात सोच रहा है। इसलिए तय किया कि चारों को कुएं से बाहर निकालकर उस दानव की विनती करनी चाहिए, ताकि वह उन्हें न खाए। यह सोचकर चारों परियां कुएं से बाहर निकल आई। हाथ जोड़कर वे शेखचिल्ली से बोलीं,”हे दानवराज, आप तो बड़े बलशाली हैं! आप व्यर्थ ही हम चारों को खाने की बात सोच रहे हैं।

अगर आप हमें छोड़ दें तो हम कुछ ऐसी चीजें आपको दे सकती हैं जो आपके बड़े काम आएंगी।”परियों को देखकर व उनकी बातें सुनकर शेखचिल्ली हक्के – बक्के रह गए। समझ में न आया कि क्या जवाब दे। लेकिन परियों ने इस चुप्पी का यह मतलब निकाला कि उनकी बात मान ली गई। इसलिए उन्होंने एक कठपुतला व एक कटोरा शेखचिल्ली को देते हुए कहा-

“हे दानवराज, आप ने हमारी बात मान ली, इसलिए हम सब आपका बहुत – बहुत उपकार मानती हैं। साथ ही अपनी यह दो तुच्छ भेंटें आपको दे रही हैं। यह कठपुतला हर समय आपकी नौकरी बजाएगा। आप जो कुछ कहेंगे, करेगा। और यह कटोरा वह हर एक खाने की चीज आपके सामने पेश करेगा, जो आप इससे मांगेंगे।”इसके बाद परियां फिर कुएं के अन्दर चली गई।

इस सबसे शेखचिल्ली की खुशी की सीमा न रही। उसने सोचा कि अब घर लौट चलना चाहिए। क्योंकि बीवी जब इन दोनों चीजों के करतब देखेगी तो फूली न समाएगी। लेकिन सूरज डूब चुका था और रात घिर आई थी, इसलिए शेखचिल्ली पास के एक गांव में चले गए और एक आदमी से रात भर के लिए अपने यहाँ ठहरा लेने को कहा। यह भी वादा किया कि इसके बदले में वह घर के सारे लोगों को अच्छे – अच्छे पकवान व मिठाइयां खिलाएंगे।

वह आदमी तैयार हो गया और शेखचिल्ली को अपनी बैठक में ठहरा लिया। शेखचिल्ली ने भी अपने कटोरे को निकाला और उसने अपने करतब दिखाने को कहा। बात की बात में खाने की अच्छी – अच्छी चीजों के ढेर लग गए। जब सारे लोग खा – पी चुके तो उस आदमी की घरवाली जूठे बरतनों को लेकर नाली की ओर चली। यह देखकर शेखचिल्ली ने उसे रोक दिया और कहा कि मेरा कठपुतला बर्तन साफ कर देगा। शेखचिल्ली के कहने भर की देर थी

कि कठपुतले ने सारे के सारे बर्तन पल भर में निपटा डाले। शेखचिल्ली के कठपुतले और कटोरे के यह अजीबोगरीब करतब देखकर गांव के उस आदमी और उसकी बीवी के मन में लालच आ गया शेखचिल्ली जब सो गए तो वह दोनों चुपके से उठे और शेखचिल्ली के कटोरे व कठपुतले को चुराकर उनकी जगह एक नकली कठपुतला और नकली ही कटोरा रख दिया। शेखचिल्ली को यह बात पता न चली। सबेरे उठकर उन्होंने हाथ – मुंह धोया और दोनों नकली चीजें लेकर घर की ओर चल दिए।

घर पहुंचकर उन्होंने बड़ी डींगें हांकी और बीवी से कहा,”भागवान, अब तुझे कभी किसी बात के लिए झींकना नहीं पड़ेगा। न घर में खाने को किसी चीज की कमी रहेगी और न ही कोई काम हमें – तुम्हें करना पड़ेगा। तुम जो चीज खाना चाहोगी, मेरा यह कटोरा तुम्हें खिलाएगा और जो काम करवाना चाहोगी मेरा यह कठपुतला कर डालेगा।”लेकिन शेखचिल्ली की बीवी को इन बातों पर विश्वास न हुआ।

उसने कहा,”तुम तो ऐसी डींगे रोज ही मारा करते हो। कुछ करके दिखाओ तो जानूं।”हां, क्यों नहीं?”शेखचिल्ली ने तपाक से जबाव दिया और कटोरा व कठपुतलें में अपने – अपने करतब दिखाने को कहा। लेकिन वह दोनों चीजें तो नकली थीं, अत: शेखचिल्ली की बात झूठी निकली। नतीजा यह हुआ कि उनकी बीवी पहले से ज्यादा नाराज हो उठी। कहा,”तुम मुझे इस तरह धोखा देने की कोशिश करते हो। जब से तुम घर से गए हो, घर में चूल्हा नहीं जला है। कहीं जाकर मन लगाकर काम करो तो कुछ तनखा मिले और हम दोनों को दो जून खाना नसीब हो। इन जादुई चीजों से कुछ नहीं होने का।”

बेबस शेखचिल्ली खिसियाए हुए – से फिर चल दिए। वह फिर उसी कुएं के चबूतरे पर जाकर बैठ गए। समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। जब सोचते – सोचते वह हार गए और कुछ भी समझ में न आया तो उनकी आंखें छलछला आई और रोने लगे। यह देखकर कुएं की चारों परियां फिर बाहर आयी और शेखचिल्ली से उनके रोने का कारण पूछा।

शेखचिल्ली ने सारी आपबीती कह सुनाई। परियों को हंसी आ गई। वे बोलीं,”हमने तो तुमको कोई भयानक दानव समझा था। और इसलिए खुश करने के लिए वे चीजें दी थीं। लेकिन तुम तो बड़े ही भोले – भाले और सीधे आदमी निकले। खैर, घबराने की जरूरत नहीं। हम तुम्हारी मदद करेंगी। तुम्हारा कठपुतला और कटोरा उन्हीं लोगों ने चुराया है, जिनके यहाँ रात को तुम रुके थे। इस बार तुम्हें एक रस्सी व डंडा दे रही हैं। इनकी मदद से तुम उन दोनों को बांध व मारकर अपनी दोनों चीजें वापस पा सकते हो।”इसके बाद परियां फिर कुएं में चली गयीं।

जादुई रस्सी – डंडा लेकर शेखचिल्ली फिर उसी आदमी के यहाँ पहुंचे और कहा,”इस बार मैं तुम्हें कुछ और नये करतब दिखाऊंगा।”वह आदमी भी लालच का मारा था। उसने समझा कि इस बार कुछ और जादुई चीजें हाथ लगेंगी। इसलिए उसमें खुशीखुशी शेखचिल्ली को अपने यहाँ टिका लिया। लेकिन इस बार उल्टा ही हुआ। शेखचिल्ली ने जैसे ही हुक्म दिया वैसे ही उस घरवाले व उसकी बीवी को जादुई रस्सी ने कस कर बांध लिया और जादुई डंडा दनादन पिटाई करने लगा।

अब तो वे दोनों चीखने – चिल्लाने और माफी मांगने लगे। शेखचिल्ली ने कहा,”तुम दोनों ने मुझे धोखा दिया है। मैंने तो यह सोचा था कि तुमने मुझे रहने को जगह दी है, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ कोई भलाई कर दूं। लेकिन तुमने मेरे साथ उल्टा बर्ताव किया! मेरे कठपुतले और कटोरे को ही चुरा लिया। अब जब वे दोनों चीजें तुम मुझे वापस कर दोगे, तभी मैं अपनी रस्सी व डंडे को रुकने का हुक्म दूंगा।”उन दोनों ने झटपट दोनों चुराई हुई चीजें शेखचिल्ली को वापस कर दीं। यह देखकर शेखचिल्ली ने भी अपनी रस्सी व डंडे को रुक जाने का हुक्म दे दिया।

अब अपनी चारों जादुई चीजें लेकर शेखचिल्ली प्रसन्न मन से घर को वापस लौट पड़े। जब बीवी ने फिर देखा कि शेखचिल्ली वापस आ गए हैं तो उसे बड़ा गुस्सा आया। उसे तो कई दिनों से खाने को कुछ मिला नहीं था, इसलिए वह भी झुंझलाई हुई थी। दूर से ही देखकर वह चीखी,”कामचोर तुम फिर लौट आए! खबरदार, घर के अंदर पैर न रखना! वरना तुम्हारे लिए बेलन रखा है।”यह सुनकर शेखचिल्ली दरवाजे पर ही रुक गए! मन ही मन उन्होंने रस्सी व डंडे को हुक्म दिया कि वे उसे काबू में करें।

रस्सी और डंडे ने अपना काम शुरू कर दिया। रस्सी ने कसकर बांध लिया और डंडे ने पिटाई शुरू कर दी। यह जादुई करतब देखकर बीवी ने भी अपने सारे हथियार डाल दिए और कभी वैसा बुरा बर्ताव न करने का वादा किया। तभी उसे भी रस्सी व डंडे से छुटकारा मिला। अब शेखचिल्ली ने अपने कठपुतले व कटोरे को हुक्म देना शुरू किया। बस, फिर क्या था! कठपुतला बर्तन – भाड़े व जिन – जिन चीजों की कमी थी झटपट ले आया और कटोरे ने बात की बात में नाना प्रकार के व्यंजन तैयार कर दिए।

धैर्य और सूझ-बूझ की कहानी

एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोड़ा रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहने लगा। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौक़ा पाकर उनके घोंसले में जाकर अंडे खा जाता। एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अपने घोंसले में रखे अंडों पर झपटते देखा। अंडे खाकर सर्प चला गया

कौए ने कव्वी को ढाडस बंधाया ‘प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।’ कौए ने काफ़ी सोचा विचारा और पहले वाले घोंसले को छोड़ उससे काफ़ी ऊपर टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा ‘यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड़ की चोटी के किनारे निकट हैं और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।’

कौवे की बात मानकर कौव्वी ने नए घोंसले में अंडे दिए जिसमे अंडे सुरक्षित रहे और उनमें से बच्चे भी निकल आए। उधर सर्प उनका घोंसला ख़ाली देखकर यह समझा कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से चले गए हैं पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड़ से उड़ते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला उसी पेड़ पर ऊपर बना रखा हैं।

एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया। घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा। कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला ख़ाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख से फटने लगी। कव्वी बिलख उठी ‘तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे?’

कौआ बोला ‘नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या हैं पर यहां से भागना ही उसका हल नहीं हैं। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें लोमड़ी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।’दोनों तुरंत ही लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने अपने मित्रों की दुख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू पोंछे। लोमड़ी ने काफ़ी सोचने के बाद कहा ‘मित्रो! तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की जरुरत नहीं हैं। मेरे दिमाग में एक तरकीब हैं, जिससे उस दुष्टसर्प से छुटकारा पाया जा सकता हैं।’ लोमड़ी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई।

लोमड़ी की तरकीब सुनकर कौआ-कव्वी खुशी से उछल पड़ें। उन्होंने लोमड़ी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आएं।
अगले ही दिन योजना अमल में लानी थी। उसी वन में बहुत बड़ा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे।इस बार राजकुमारी आई और सरोवर में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उड़ता हुआ वहां आया। उसने सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपड़ों व आभूषणों पर नजर डाली।

कपड़े के ऊपर राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार रखा था कौव्वी ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया। जब सबकी नजर उसकी ओर घूमी तो कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड़ गया। सभी सहेलियां चीखी ‘देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा हैं।’ सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था। सैनिक उसी दिशा में दौड़ने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीछे लगाकर धीरे-धीरे उड़ता हुआ उसी पेड़ की ओर ले आया।

जब सैनिक कुछ ही दूर रह गए तो कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा। सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका। उसने वहां हार और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुडंली मारे देखा।वह चिल्लाया ‘पीछे हटो! अंदर एक नाग है।’ सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।
सीख : सूझ बूझ का उपयोग कर हम बड़ी से बड़ी ताकत और दुश्मन को हरा सकते हैं, बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता है।

 

बुद्धि का चमत्कार : Buddhi Ka Chamatkar

आज से कई साल पूर्व की बात है। एक गांव में रामसिंह नामक एक किसान अपनी पत्नी व बच्चे के साथ रहता था। रामसिंह अनपढ़ व गरीब था। मगर अपने बेटे सुन्दर को वह पढ़ा-लिखाकर किसी योग्य बनाना चाहता था ताकि उसका बेटा भी उसकी भाँति उम्र भर मेहनत-मजदूरी न करता रहे। अपने पुत्र से उसे बड़ी आशाएं थीं। लाखों सपने उसने अपने पुत्र को लेकर संजो डाले थे। वही उसके बुढ़ापे की लाठी था।

उसका बेटा सुन्दर भी काफी बुद्धिमान था। वह गांव के पण्डित कस्तूरीलाल के पास जाकर शिक्षा ग्रहण कर रहा था। उसने भी अपने मन में यही सोचा हुआ था कि वह भी पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा और अपने मां-बाप के कदमों में दुनिया भर की सारी खुशियां और सारे सुख लाकर डाल देगा। इंसान यदि किसी लक्ष्य को निर्धारित कर ले और सच्चे मन से उसे पाने का प्रयास करे तो वह उसमें सफलता प्राप्त कर ही लेता है। ऐसा ही सुन्दर के साथ भी हुआ। वह अपनी कक्षा में अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण हुआ। सारे गांव में उसकी खूब वाहवाही हुई। अपने बेटे की इस सफलता पर रामसिंह का मस्तक भी गर्व से ऊंचा हो उठा।

100 मजेदार पहेलियाँ उत्तर सहित | 100 fun riddles with answers | मजेदार पहेलियाँ

एक रात रामसिंह ने अपनी पत्नी से कहा-‘‘सुन्दर की मां ! मेरे मन में सुन्दर को लेकर काफी दिनों से एक विचार उठा रहा है।’’

‘‘कहो जी।’’ रामसिंह की पत्नी ने कहा-‘‘ऐसी क्या बात है ? क्या सुन्दर की शादी-ब्याह का विचार बनाया है ?’’

‘‘अरी भागवान ! शादी ब्याह तो समय आने पर हम उसका करेंगे ही, मगर अभी उसे अपने पैरों पर तो खड़ा होने दें। मेरा तो यह विचार है कि क्यों न हम उसे शहर भेज दें ताकि वहां जाकर कोई अच्छा-सा काम-धंधा सीखकर कुछ बनकर दिखाए। यहां गांव में तो बस मेहनत-मजदूरी का ही धंधा है। पढ़ने-लिखने के बाद भी यदि उसे यही धंधा करना है तो पढ़ाई-लिखाई का लाभ ही क्या है ? हमारा तो अपना कोई खेत भी नहीं है जिसमें मेहनत करके वह कोई तरक्की कर सके।’’

हँसाने मजेदार चुटकुले | Jokes | Funny Jokes in Hindi | मजेदार चुटकुले

‘‘मगर सुन्दर के बापू ! सुन्दर ने तो आज तक शहर देखा ही नहीं है, हम किसके भरोसे उसे शहर भेज दें ?’’ सुन्दर की मां कमला ने कहा-‘‘माना कि हमारा सुन्दर समझदार और सूझबूझ वाला है और शहर में वह कोई अच्छा-सा काम-धंधा तलाश भी लेगा, मगर शहर में टिकने का कोई ठिकाना भी तो चाहिए।’’

‘‘सुनो सुन्दर की मां ! शहर में मेरा एक मित्र है, हालांकि हम दोनों वर्षों से एक-दूसरे से नहीं मिले, मगर फिर भी मुझे उम्मीद है कि यदि मैं सुन्दर को उसका पता-ठिकाना समझाकर भेजूं तो वह अवश्य ही उसे शरण देगा और रोजी-रोजगार ढूढ़ने में वह सुन्दर की सहायता भी करेगा।’’

‘‘बात तो आपकी ठीक है सुन्दर के बापू, लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा कि मैं अपने लाल को अपनी आंखों से दूर करूं।’’

वास्तु दोष: घर की 10 चीज़ें जो आपकी दौलत को कर रही हैं कम

‘‘ऐसा तुम अपनी ममता के हाथों मजबूर होकर कह रही हो, मगर दिल से तो तुम भी यही चाहती हो कि हमारा बेटा तरक्की करे। इसलिए दिल को मजबूत बनाओ। सुन्दर शहर जाकर कुछ बन गया तो हमारा बुढ़ापा भी सुख से गुजरेगा।’

और इस प्रकार रामसिंह ने अपनी पत्नी को समझा-बुझाकर सुन्दर को शहर भेजने के लिए राजी कर लिया।

उसी शाम सुन्दर जब अपने यार-दोस्तों के साथ खेल-कूदकर घर वापस आया तो रामसिंह ने बड़े प्यार से अपने पास बैठाया और अपने मन की बात बता दी।

सुन्दर यह जानकर बहुत खुश हुआ कि उसका बापू उसे शहर भेजना चाहता है।

वास्तव में सुन्दर भी यही चाहता था कि वह किसी प्रकार शहर चला जाए और वहां कोई ऐसा काम-धंधा करे जिससे उसका परिवार सदा-सदा के लिए गरीबी से छुटकारा पाकर सुख भोगे।

अतः पिता का प्रस्ताव पाकर वह बड़ा खुश हुआ और बोला-‘‘पिताजी ! चाहता तो मैं भी यही था कि पढ़-लिखकर शहर जाऊँ और अच्छी-सी नौकरी करके घर की कमाई में आपका हाथ बटाऊं, मगर कहीं आप मुझे शहर भेजने से इनकार न कर दें, यही सोचकर मैंने आपसे अपने मन की बात नहीं कही। मगर अब जब आप स्वयं ही मुझे शहर भेजने के इच्छुक हैं तो इससे अधिक खुशी की बात मेरे लिए भला और क्या हो सकती है। मैं अवश्य ही शहर जाऊंगा।’’

और प्रकार दूसरे ही दिन रामसिंह ने उसे दीन-दुनिया की ऊंच-नीच समझाई और अपने मित्र का पता देकर शहर के लिए विदा कर दिया।

सुन्दर काफी सूझबूझ वाला समझदार युवक था।

अपने माता-पिता के दुख-दर्द को वह भली-भांति समझता था। वह यह भी जानता था कि गांव में रहकर तो उसका भविष्य अंधकार में ही डूबा रहेगा जबकि उसकी इच्छा बड़ा आदमी बनकर अपने माता-पिता को भरपूर सुख देना था।

अतः खुशी-खुशी वह शहर के लिए रवाना हो गया।

शहर आकर सुन्दर की आंखें चुंधिया गईं।

खूब भीड़-भड़क्का।

सजी-संवरी दुकानें।

तागें-इक्कों का आवागमन।

खैर, आश्चर्य से वह सब देखता सुन्दर अपने पिता के कथित दोस्त से मिलने चल दिया।

लेकिन जब वह पता के बताए स्थान पर पहुंचा तो पता चला कि उसके पिता का दोस्त रामचन्द्र तो न जाने कब का मर-खप गया और अब तो उसके परिवार का भी कोई अता-पता नहीं था। यह जानकर सुन्दर बहुत निराश हुआ और सोचने लगा कि अब क्या होगा ?

आशा-निराशा तो जीवन में चलती ही रहती है, लेकिन सुन्दर उन युवकों में से नहीं था जो हताश होकर बैठ जाते हैं। उसमें हिम्मत और आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा था।

उसने अपने आपको दिलासा दिया और बोला-‘बेटे सुन्दर ! निराश होने से कुछ नहीं होगा। अब शहर आ ही गए हैं तो कुछ करके ही लौटेंगे। मां और बापू ने मुझसे बड़ी उम्मीदें लगा रखी हैं, मैं ही उनके बुढ़ापे की लाठी हूं। अब शहर आ ही गया हूं तो कुछ बनकर ही लौटूंगा। तुझे याद नहीं, गांव में मास्टर जी कहा करते थे-हिम्मत-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा। यानी जो लोग हिम्मत करते हैं…उनकी मदद खुद भगवान करते हैं।’

अपने आपको इसी प्रकार हौसला बंधाता हुआ सुन्दर पूछता-पूछता एक सराय में आकर ठहर गया।

उसने स्नान आदि से निवृत्त होकर थोड़ा आराम किया, फिर किसी नौकरी की तलाश में निकल पड़ा।

वह जहां भी नौकरी मांगने जाता, दुकानदार उसके बातचीत करने के ढंग और उसकी सूझ-बूझ से प्रभावित तो होता किन्तु कोई जान-पहचान न होने के कारण उसे नौकरी नहीं मिल पाती थी।

इसी प्रकार कई दिन गुजर गए।

सुन्दर गांव से अपने साथ जो रुपया-पैसा लेकर आया था, वह भी लगभग समाप्त होने को था।

अब तो सचमुच सुन्दर को चिन्ताओं ने आ घेरा।

वह सोचने लगा कि काश ! शहर में उसकी कोई जानकारी होती तो अवश्य ही उसे कोई नौकरी मिल जाती। एक दिन की बात है, सुन्दर थक-हारकर एक पेड़ के नीचे बैठा मौजूदा स्थिति के विषय में सोच रहा था। उससे कुछ ही दूरी पर राज कर्मचारी पेड़ की ठंडी छांव में बैठे गपशप कर रहे थे। अनमना-सा सुन्दर उनकी बातें सुनने लगा। एक दूसरे से कह रहा था-‘‘कुछ भी कह भाई रामवीर ! तू है बड़ा नसीब वाला। हम दोनों साथ-साथ ही राजदरबार की सेवा में आए थे, मगर तू तरक्की करके राजाजी का खजांची बन गया और मैं रहा सिपाही का सिपाही। इसे कहते हैं तकदीर।’’

‘‘तकदीर भी उन्हीं का साथ देती है गंगाराम, जो सूझबूझ और हिम्मत से काम लेते हैं। मैंने अपनी सूझबूझ से कुछ ऐसे काम किए कि महाराज का विश्वासपात्र बन गया और उन्होंने मेरी ईमानदारी देखकर मुझे खजांची बना दिया।’’

‘‘न-न भाई, तू जरूर किसी साधु या फकीर से कोई मन्तर-वन्तर पढ़वाकर लाया होगा जो इतनी जल्दी इतनी तरक्की कर ली। वरना मैं क्यों न किसी ऊंचे पद पर पहुंच गया ? भइया, तू मुझे भी अपनी कामयाबी का राज बता।’’

‘‘तेरे जैसे लोग इसी चक्कर में रहते हैं कि पकी-पकाई मिल जाए और खा लें। अरे भाई मेरे, अगर इन्सान में हिम्मत हौसला, ईमानदारी साहस और सूझबूझ हो तो वह पहाड़ को खोदकर नदी बहा दे। देख, तू वह मरा हुआ चूहा देख रहा है ना !’’ रामवीर ने सड़क के किनारे पड़े एक मरे हुए चूहे की ओर इशारा किया।

‘‘हां-देख रहा हूं।’’

‘‘आने-जाने वाले लोग भी उसे देख रहे हैं और घृणा से थूककर दूसरी ओर मुंह फेरकर निकल रहे हैं।’’

‘‘रामवीर भाई ! मैं तुझसे तेरी कामयाबी का रहस्य पूछ रहा था और तू मुझे मरा हुआ चूहा दिखा रहा है। ये क्या बात हुई ?’’

‘‘गंगाराम ! मैं तुझे कामयाबी की बाबत ही बता रहा हूं। सुन, लोग उस मरे हुए चूहे पर थूककर जा रहे हैं। मगर कोई सूझबूझ वाला इंसान इस मरे हुए चूहे से भी चार पैसे कमा लेगा। भइया मेरे, अक्ल का इस्तेमाल करने से ही इन्सान कामयाबी हासिल करता है। जन्तर-मन्तर से कुछ नहीं होता। ’’

‘‘मैं समझ गया भाई रामवीर।’’ निराश-सा होकर गंगाराम बोला-‘‘तू मुझे अपनी कामयाबी का राज बताना ही नहीं चाहता। खैर, कभी तो मेरे भी दिन बदलेंगे। आ, अब चलते हैं।’’

इस प्रकार वे दोनों राज कर्मचारी उठकर चले गए।

वे तो चले गए। मगर खजांची रामवीर की चूहे वाली बात ने सुन्दर के दिमाग में खलबली-सी मचा दी। उसके दिमाग में रामवीर की कही बात बार-बार गूंज रही थी-‘लोग उस मरे हुए चूहे पर थूक-थूककर जा रहे हैं, मगर कोई सूझबूझ वाला इंसान इस मरे हुए चूहे से भी चार पैसे कमा लेगा…चार पैसा कमा लेगा…चार पैसे कमा लेगा।’

सुन्दर सोचने लगा-‘खजांची की बात में दम है। जिस देश में मिट्टी भी बिकती हो, वहां कोई चीज बेचना मुश्किल नहीं-मगर इस मरे हुए चूहे को खरीदेगा कौन ? कैसे कमाएगा कोई इससे चार पैसे ?’

चूहे को घूरते हुए सुन्दर यही सोच रहा था, लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था।

तभी सड़क पर उसे एक तांगा आता दिखाई दिया। तांगे में एक सेठ बैठा था जिसने एक बिल्ली को अपनी गोद में दबोचा हुआ था। बिल्ली बार-बार उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी।

अभी घोड़ा गाड़ी सुन्दर के आगे से गुजरी ही थी कि बिल्ली सेठ की गोद से कूदी और सड़के के किनारे की झाड़ियों में जा घुसी।

‘‘अरे…अरे तांगे वाले, तांगा रोको। मेरी बिल्ली कूद गई।’’ सेठ चिल्लाया।

तांगा रुका और सेठ उतरकर तेजी से झाड़ियों की तरफ लपका।

‘‘अरे भाई तांगे वाले, देखो ! मेरी बिल्ली उन झाड़ियों में जा घुसी है। उसे पकड़ने में मेरी मदद करो।’’ सेठ झाड़ियों के पास जाकर बिल्ली को बुलाने लगा-‘‘आ…आ…पूसी..पूसी आओ।’’

इसी बीच तांगे वाला और सुन्दर सहित कुछ अन्य लोग भी वहां जमा हो गए थे।

‘‘अरे भाई ! मैं किसी खास प्रयोजन से इस बिल्ली को खरीदकर लाया हूं। कोई इसे बाहर निकालने में सहायता करो।’’ सेठ बेताब होकर एकत्रित हो गए लोगों से गुहार कर रहा था।

जबकि झाड़ियों में घुसी बिल्ली पंजे झाड़-झाड़कर गुर्रा रही थी।

‘‘देख नहीं रहे हो सेठजी कि बिल्ली किस प्रकार गुर्रा रही है।’’ एक व्यक्ति बोला-‘‘हाथ आगे बढ़ाते ही झपट पड़ेगी।’’

यह सब देखकर सुन्दर के मस्तिष्क में राजा के खजांची की बात गूंज गई-‘कोई सूझ-बूझ वाला इंसान इस मरे हुए चूहे से भी चार पैसे कमा लेगा।’

सुन्दर के मस्तिष्क में धमाका-सा हुआ और तुरन्त उसके मस्तिष्क में एक युक्ति आ गई। वह सेठ से बोला-‘‘सेठ जी ! अगर मैं आपकी बिल्ली को काबू करके दूं तो आप मुझे क्या देंगे ?’’

‘‘आएं’’ सेठ जी ने तुरन्त सुन्दर की ओर देखा और बोला-‘‘भाई ! तू मेरी बिल्ली को काबू करके देगा तो मैं तुझे चांदी का एक सिक्का दूंगा।’’

‘‘चांदी का सिक्का।’’ सुन्दर के मुंह में पानी भर आया-‘‘ठीक है, आप यहीं रुकिए, मैं अभी आपकी बिल्ली काबू करके आपको देता हूं।’’

कहकर सुन्दर दौड़ा-दौड़ा उसी दिशा में गया जिधर मरा हुआ चूहा पड़ा था।

‘वाह बेटा सुन्दर ! बन गया काम। उस खजांची ने ठीक ही कहा था कि यदि सूझबूझ से काम लिया जाए तो इस मरे हुए चूहे से भी चार पैसे कमाए जा सकते हैं।

सुन्दर ने मन-ही-मन खुश होते हुए एक रस्सी तलाश की और चूह की गरदन में फंदा डालकर झाड़ियों की ओर चल दिया।

‘‘हटो-हटो-सब पीछे हटो।’’भीड़ को एक ओर हटाता हुआ सुन्दर बोला-‘‘बिल्ली अभी बाहर आती है।’’

‘‘अरे ! मरा हुआ चूहा-यह तो वहां पड़ा था’’ किसी ने कहा।

दूसरा बोला-‘‘भई वाह ! इस लड़के ने तो मौके का फायदा उठाकर एक सिक्का कमा लिया।’’

‘‘इसे कहते हैं, बुद्धि का करिश्मा।’’

‘‘यह लड़का अवश्य ही एक दिन बड़ा आदमी बनेगा।’’

लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगे।

सुन्दर झाड़ियों के करीब बैठ गया और रस्सी से बंधे चूहे को बिल्ली के सामने लहराने लगा।

मोटे-चूहे को देखकर बिल्ली के मुंह में पानी भर आया, एक नजर उसने मैत्री भाव से सुन्दर की ओर देखा, फिर दुम हिलाती हुई धीरे-धीरे सुन्दर के करीब आने लगी।

सभी लोग उस्सुकता से यह तमाशा देख रहे थे।

और फिर कुछ ही पलों बाद चूहे के लालच में जैसे ही बिल्ली बाहर आई, सुन्दर ने उसकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरा और उसे गोद में उठा लिया।

उल्लू का राज्याभिषेक : Coronation of Owls

कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है । जैसे मनुष्यों ने एक सर्वगुण-सम्पन्न पुरुष को अपना अधिपति बनाते हैं; जानवरों ने सिंह को ; तथा मछलियों ने एक विशाल मत्स्य को । इससे प्रेरित हो कर पंछियों ने भी एक सभा की और उल्लू को भारी मत से राजा बनाने का प्रस्ताव रखा ।

राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पंछियों ने दो बार घोषणा भी की कि उल्लू उनका राजा है किन्तु अभिषेक के ठीक पूर्व जब वे तीसरी बार घोषणा करने जा रहे थे तो कौवे ने काँव-काँव कर उनकी घोषणा का विरोध किया और कहा क्यों ऐसे पक्षी को राजा बनाया जा रहा था जो देखने से क्रोधी प्रकृति का है और जिसकी एक वक्र दृष्टि से ही लोग गर्म हांडी में रखे तिल की तरह फूटने लगते हैं ।

कौवे के इस विरोध को उल्लू सहन न कर सका और उसी समय वह उसे मारने के लिए झपटा और उसके पीछे-पीछे भागने लगा। तब पंछियों ने भी सोचा की उल्लू राजा बनने के योग्य नहीं था क्योंकि वह अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकता था। अत: उन्होंने हंस को अपना राजा बनाया।

किन्तु उल्लू और कौवों की शत्रुता तभी से आज तक चलती आ रही है

मूर्ख बातूनी कछुआ | Silly Talking Turtle

किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। तालाब के किनारे रहने वाले संकट और विकट नामक हंस से उसकी गहरी दोस्ती थी। तालाब के किनारे तीनों हर रोज खूब बातें करते और शाम होने पर अपने-अपने घरों को चल देते। एक वर्ष उस प्रदेश में जरा भी बारिश नहीं हुई। धीरे-धीरे वह तालाब भी सूखने लगा।

अब हंसों को कछुए की चिंता होने लगी। जब उन्होंने अपनी चिंता कछुए से कही तो कछुए ने उन्हें चिंता न करने को कहा। उसने हंसों को एक युक्ति बताई। उसने उनसे कहा कि सबसे पहले किसी पानी से लबालब तालाब की खोज करें फिर एक लकड़ी के टुकड़े से लटकाकर उसे उस तालाब में ले चलें।

उसकी बात सुनकर हंसों ने कहा कि वह तो ठीक है पर उड़ान के दौरान उसे अपना मुंह बंद रखना होगा। कछुए ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोलेगा।कछुए ने लकड़ी के टुकड़े को अपने दांत से पकड़ा फिर दोनो हंस उसे लेकर उड़ चले।

रास्ते में नगर के लोगों ने जब देखा कि एक कछुआ आकाश में उड़ा जा रहा है तो वे आश्चर्य से चिल्लाने लगे।
लोगों को अपनी तरफ चिल्लाते हुए देखकर कछुए से रहा नहीं गया। वह अपना वादा भूल गया। उसने जैसे ही कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला कि आकाश से गिर पड़ा। ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण वह चोट झेल नहीं पाया और अपना दम तोड़ दिया।

सीख :बिना सोचे-समझे अपनी जिद और भावनाओं में बहकर किसी वादे को तोड़ने का परिणाम घातक हो सकता है।

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