चिंता छोड़ो सुख से जियो | Chintao per vijay | चिंताओं पर विजय

जय श्री कृष्णा! चिंताओं पर विजय- आज के समय में हर मनुष्य चिंताओं और परेशानियों से घिरा हुआ है आईए जानते हैं श्री कृष्ण वाणी से मनुष्य जीवन जीते हुए सारी परेशानियो और कठिनाइयो पर विजय किस तरह प्राप्त कर सकते हैं?

जीवन में धन और मानसिक संतुलन का महत्व-

कहते है इंसान का दिमाग मोह से हट भी जाता है पर माया को दिमाग से हटाने में पूरी उम्र गुजर जाती है। आज के समय में हर किसी के दिमाग में ज्यादातर समय बस एक ही चीज चलती है, और वह है पैसा। पैसा हो तो परेशानी, पैसा नहीं है तो उसे पाने की परेशानी, पर पैसा ,धन ,दौलत यह सब सिर्फ आज ही की समस्या नहीं रही है। यह पिछले कई हजार सालों से है। हमेशा कोई न कोई इसके जाल में फंस ही जाता है।

पैसा होना जरूरी है, पर हर वक्त पैसे के बारे में सोचना कितना खतरनाक और दिमाग के लिए बुरा हो सकता है, यह हम जानते तक नहीं है। ऐसे ही अर्जुन को एक बार  धन का मोह हो गया। कृष्ण ने तब अपने ज्ञान से न सिर्फ अर्जुन को इस माया से बचाया। बल्कि आज तक वह करोड़ों लोगों को अपने ज्ञान से बचाते रहे हैं। अर्जुन बहुत चिंता में थे और सामने कृष्ण विराजे थे। तुम्हारी शक्ल देखकर मालूम होता है कि तुम काफी चिंता में डूबे हो। क्या बात है ?मैं वाकई बहुत चिंता में हूं।

 

मैं राजघराने से संबंध रखता हूं और रिश्ते नातो से लेकर अपनी कमाई हुई संपत्ति तक को भी मुझे संजोना सिखाया गया है।

लेकिन अब यह सब कुछ करते हुए मैं जरा भी खुश नहीं हूं। मेरे पास पैसा है ,संपत्ति है, और हर वह चीज है, जो इंसान को खुशी देती है। खुशी क्यों नहीं है मेरे अंदर। यह सब होकर भी और पाने की इच्छा और इसे खोने का डर हर समय सताता रहता है। मैं क्या करूं?- कृष्ण ,अर्जुन की बातों को मुस्कान के साथ सुन रहे थे। उनके पास इस तरह के सवालों के कई तरह के उत्तर मौजूद थे।

देखो इस जीवन में धन संपत्ति बहुत जरूरी है। तुम्हें कोई नहीं कह रहा है कि तुम अपनी धन संपत्ति को त्याग कर दो। कोई अपनी मेहनत की कमाई को यूं ही नहीं जाने देता। लेकिन अपनी संपत्ति से अपनी खुशी को जोड़ना बंद कर दो। जिस दिन तुमने यह कर लिया ,उस दिन तुम्हें मालूम होगा, की खुशी का पैसे से कोई लेना देना ही नहीं होता। कई लोग निर्धन होकर भी खुश है।और कुछ लोग बहुत पैसे कमा कर भी दुखी है ।

तुम पैसे कमाने की और ध्यान लगा सकते हो, पर उसके बढ़ने या घटने से अच्छा या बुरा महसूस करना अच्छी आदत नहीं होगी। कृष्ण शायद अभी और भी बात कहते, पर अर्जुन इसी बीच कुछ विचलित हो गए। मैं आपकी बातों को पूरी तरह से समझता हूं, और यह बात मुझे पता भी है, पर इस पर मैं काम कैसे करूं ? यह मुझे समझ नहीं आ रहा है। मेरी खुशी अब मेरे घर का पैसा और लोग तय करने लगे हैं।

अगर मैं धन कमाना छोड़ दूंगा तो फिर मेरी जिम्मेदारियां का क्या होगा ,जो मेरे ऊपर है। कैसे मैं सब पर एक संतुलन बनाऊ ? अर्जुन बहुत ज्यादा चिंता में थे ।हर आदमी अपने जीवन में इस तरह की समस्या से रोज जूझता है। एक समय के बाद आदमी खुशी को ढूंढना ही बंद कर देता है। बस पैसे कमाने की दौड़ में लगा रहता है। इसी दौर से बचने के लिए कृष्ण ने अपनी बात आगे बताई।

संतुलन बनाने का मतलब यह नहीं कि तुम अपनी जिम्मेदारियां से मुंह मोड़ लो ,या फिर पैसे ही न कमाओ, या फिर लोगों और चीजों से अलगाव पैदा कर लो। संतुलन का मतलब है कि अपने कर्मों से अपनी खुशी को नापो ,ना कि उसके फल से। अगर तुम हर बार फल पाने की इच्छा से कर्म करोगे, और तुम्हें मन के हिसाब से वह नहीं मिलेगा ,तो तुम दुखी ही होंगे। इसीलिए अपना काम करो और खुश रहो। पैसे कमाओ पर उसके आने और जाने से अपने मन को दुखी मत करो।

अपने मन को अपने वश में रखो। अर्जुन कृष्ण की बातों को सुनकर उन्हें  समझने की कोशिश में थे उन्हें मानो कुछ तो समझ आ गया था। पर ऐसा बहुत कुछ था जो अभी भी उन्हें समझ नहीं आया था।

जीवन में आस्था विश्वास का महत्व | Aastha aur vishwas

अर्जुन ने कृष्ण की और देखा !और कृष्णा मानो उनके सवाल को समझ गए। अर्जुन ने फिर भी अपनी बात कह दी। वासुदेव मैं आपकी बातों को काफी हद तक समझ गया हूं। पर अपने मन को मैं कैसे वश में कर सकता हूं, और पैसा कमाता हुआ या फिर चीजों को खोते हुए भी मैं खुद को संतुलन में कैसे रख सकता हूं ?

क्या उसका कोई रास्ता है ? दुनियादारी से अगर मैं अलग हो जाऊं तो कैसे खुद को अच्छा और खुश रख सकता हूं ?

अर्जुन का सवाल जायज था। आखिर अगर आदमी पैसे का मोह खत्म कर देगा और हर चीज से उसका मन उत्साहित नहीं होगा तो फिर तो आदमी, आदमी रह ही नहीं जाएगा । उसका मोह ही तो उसे इंसान बनाता है। कृष्ण के पास इसका एक सुंदर जवाब था।

मैं जानता हूं कि मनुष्य अपनी भावनाओं से ही मनुष्य कहलाता है। पर अगर उसका मन उसके वश में नहीं है, तो वह अपने ही मन का गुलाम बनकर रह जाता है। अर्जुन हमेशा याद रखना जो इंसान अपने जीवन का काम भी करता है और मोह माया में नहीं पड़ता, उसके मन की चिंताएं खत्म हो जाती है। और वह लंबे समय तक इस जीवन को जी सकता है। और जो पैसे और दुनियादारी की चिंता में खोया रहता है, उसकी उम्र कम हो जाती है। और वह ढंग से अपना काम भी नहीं कर पता है।

अर्जुन अब काफी हद तक कृष्ण की बातों को समझ चुके थे। इन सब में आस्था और विश्वास हमारी कितनी मदद कर सकते हैं। कृष्णा- हमारे जीवन को आगे ले जाने के लिए आस्था और विश्वास दो रोशनी की तरह होते हैं अगर आपको अपने ऊपर विश्वास है, तो आप बिना किसी तरह की चिंता किए अपने काम को पूरा करेंगे, और इस प्रकृति के नियमों पर भरोसा होगा तो हर चीज आपके पक्ष में होगी। हमेशा इस बात पर विश्वास होना चाहिए, की जो होता है अच्छे के लिए होता है।

अर्जुन कृष्ण की बातों को सुनकर काफी हद तक हल्का महसूस कर रहे थे पर उनके मन में दुनियादारी को लेकर और भी कई गंभीर सवाल चल रहे थे। क्या थे वह बाकी सवाल ?

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