Manthra aur bhagwan vishnu | मंथरा और भगवान विष्णु में युद्ध क्यों हुआ

-मंथरा पूर्व जन्म में कौन थी?

Manthra aur bhagwan vishnu-दोस्तों! इस कथा का वर्णन तेलुगु भाषा में रामायण रंगनाथन रामायण से लिया गया है। रंगनाथन रामायण पृष्ठ संख्या 454 में यह लिखा है। दानव राज हरिणय कश्यप के पुत्र का नाम प्रहलाद था। प्रह्लाद का एक पुत्र था ।जिसका नाम विलोचन था। पूर्व जन्म में मंथरा विलोचन की पुत्री थी। जिसका नाम विलोचना था। राजकुमारी विलोचना अस्त्र शस्त्र विद्या में बहुत ही निपूर्ण थी। प्रहलद महान व्यक्ति थे। वैसे ही उनका पुत्र भी महान था। जब प्रहलाद अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बने, उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति के साथ-साथ अपने राज्य पर राज किया और परंपराओं के साथ रहने लगे। राक्षस जाति विष्णु और शिव को अपना आराध्य मानने लगे थे,और वहीं से उन्हें शिव और भगवान विष्णु की दोनों की कृपा प्राप्त होने लगी थी।

किंतु राक्षस होने के कारण, वैष्णव बनने से उनके अंदर सद्गुण आ गए थे। ज्यादातर लोग शाकाहारी और नियमित संध्या भोजन करने वाले थे। धर्म की वृद्धि हो रही थी। अधर्म समाप्त हो रहा था। भक्त प्रहलाद जब बूढ़े हो गए और उनका पुत्र विलोचन बड़ा हो गया प्रहलाद ने विलोचन को राजा बना दिया और खुद प्रहलाद संन्यास लेकर पूरी तरह से प्रभु की भक्ति में लीन हो गए।

एक बार महाराज विलोचन,दिग्विजय के लिए निकले। उन्होंने पृथ्वी लोक ही नहीं स्वर्ग को भी जीत लिया और इंद्र को स्वर्ग से निकाल दिया। इधर देवराज इंद्र अपना सिंहासन छिन जाने के बाद, भगवान विष्णु के पास आए और उनसे रक्षा करने की गुहार की। भगवान विष्णु ने कहा- विलोचन एक धर्म परायण राजा है, मैं उसका वध नहीं कर सकता। वह एक बहुत बड़ा दानी होने के साथ-साथ, वह मेरे भक्त प्रहलाद का पुत्र भी है। अतः मैं उसका कभी भी अनिष्ट नहीं कर सकता, परंतु मैं तुम्हें एक उपाय अवश्य बता सकता हूं।

महाराज विलोचन हर दिन सुबह दान देते हैं, और उनके दरबार से कभी कोई खाली हाथ वापस नहीं लौटता। अगर तुम दान स्वरूप उनसे अपना स्वर्ग मांग लो तो, वह तुम्हें खाली हाथ नहीं जाने देंगे। इंद्र प्रातः काल उठे और ब्राह्मण का वेश बनाकर, विलोचन के पास पहुंचे। फिर इंद्र के मन में कपट की भावना आ गई। उसने सोचा कि स्वर्ग तो दान में ही मिल जाएगा। लेकिन मुझे पूछेगा कौन, मेरी पूजा कौन करेगा। अगर मैं स्वर्ग को दान में मांग लूंगा तो लोग मुझे दान में मिला हुआ, स्वर्ग की उलाहना देंगे। अतः में स्वर्ग ना मांग कर, राजा की मृत्यु मांग लेता हूं।

इंद्र राजा के पास पहुंचे और उन्होंने राजा से संकल्प लेने के लिए कहा कि वह जो मांगेंगे, आप उन्हें मना नहीं करेंगे। राजा भी दानी था। उसने हंसकर संकल्प ले लिया और कहा कि तुम जो मांगोगे, वह मैं तुम्हें अवश्य दूंगा। इंद्र ने कहा- आप अपना सर मुझे दान में दे दीजिए और राजा विलोचन वचन से बंधे हुए थे, यानी संकल्प कर चुके थे। विलोचन ने कहा- आप ब्राह्मण तो नहीं हो सकते, किंतु मुझे अपनी पहचान बताओ, तब इंद्र ने टालमटोल किया।

विलोचन ने कहा- हे भगवान अगर मैंने आपकी पूजा सच्ची श्रद्धा से की है, और जीवन में कोई पाप नहीं किया है, तो इस ब्राह्मण बने व्यक्ति का असली रूप मेरे सामने लाएं। विलोचन के ऐसा कहते ही इंद्र का डरा हुआ, सहमा हुआ चेहरा सामने आ गया और तब दिग्विजय करने वाले महाराज विलोचन हंस पड़े। हे इंद्र तुम छल से मेरे शीश को मांग रहे हो और तुम्हारी वजह से मेरी मृत्यु हो रही है, तुम ज्यादा दिनों तक राज नहीं भोग पाओगे क्योंकि मेरी संतान तुम्हारे इस कपट का बदला जरूर लेगी।

ऐसा कहकर महाराज विलोचन ने अपने शीश को काटकर इंद्र को दे दिया और इस तरह इंद्र के छल के कारण विलोचन मरा गया था यह दृश्य देखकर महाराज के दोनों पुत्र और पुत्री विलोचना बहुत दुखी हुए बूढ़े भक्त पहलाद और विलोचन की संतानों ने इंद्र से बहुत प्रार्थना की, कि वह उन्हें अपने पिता का शीश वापस देदें, लेकिन इंद्र ने शीश नहीं दिया इस वजह से विलोचन का दाह संस्कार बिना शीश के ही करना पड़ा इंद्र अपने स्वर्ग को चले गए

-क्यों मंथरा और भगवान विष्णु से युद्ध हुआ |Manthra aur bhagwan vishnu

राजकुमारी और उसके भाइयों को बहुत ही क्रोध आया। राजकुमारी ने अपने भाइयों के साथ मिलकर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया राजकुमारी विलोचना सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित थीवह बहुत ही शक्तिशाली थी और उसे सारी विद्याएं भी आती थी राजकुमारी ने नागपाश का प्रहार करके सभी देवताओं को उसमें बांध दिया देवताओं ने राजकुमारी से प्रार्थना की, कि वह उन्हें छोड़ दें, किंतु राजकुमारी देवताओं से बदला लेना चाहती थी, और वह किसी भी कीमत पर उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं हुई इंद्र किसी प्रकार जान बचाकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे

भगवान विष्णु ने राजकुमारी से सभी देवताओं को छोड़ने का आग्रह किया राजकुमारी ने अपने विद्या के अहंकार में भगवान विष्णु का तिरस्कार और अपमान किया तब भगवान विष्णु ने गरुड़का आवाहन करते हुए कहा- इसके नागपाश को यहीं पर समाप्त कर दो, और हजारों गरुड़ एक साथ प्रकट हो गए और एक-एक करके वह सारे नागों को खाने लगे देवताओं के प्राण बच गए, किंतु राजकुमारी अपने साथ कपट होने से क्रोधित थी अतः वह गरुड़ सेना पर आक्रमण करने लगी, तलवार लेकर उनके पंखों को कटने लगी

यह देखकर गरुड़ क्रोधित होकर राजकुमारी पर सेना के साथ टूट पड़े इतने सारे पक्षी और अकेली राजकुमारी गरुड़ से कैसे बचती, गरुड़ सेना की चोंच के प्रहार के कारण राजकुमारी के शरीर का अंग भंग हो गया और उसका चेहरा कुरूप हो गया सभी पक्षियों ने मिलकर राजकुमारी की पीठ को नोच डाला जिसके कारण उसकी पीठ पर भयानक घाव हो गया इसी कारण से उसकी कमर झुक गई और उसकी पीठ पर कूबड़ निकल आया

देवता और दानव का युद्ध समाप्त हो चुका था देवता स्वर्ग को लौट गए दानव, पृथ्वी और पाताल को लौट चुके थे इन सबसे क्रोधित राजकुमारी, दिन रात भगवान विष्णु को अपशब्द कहती रहती ,और जब कालांतर में मृत्यु के समय भी वह अपने कुरूप स्वरूप और कूबड़ को याद करती रहती, इस दशा में उसकी मृत्यु हो गई। दूसरे जन्म में वह कैकई की दासी बन गई, परंतु इस जन्म में वह कुबड़ी ही पैदा हुई। पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण ,उसके मन में भगवान विष्णु के प्रति शत्रुता बनी रही।

-क्यों करती थी मंथरा राम से बैर?

इसी कारण से उसके द्वारा ऐसा कार्य किया गया ,कि राम जो कि भगवान विष्णु के अवतार थे। उन्हें वनवास हुआ और वनवास के दौरान उन्होंने असुरों और राक्षसों का नाश किया। इस तरह मंथरा ने उन असुरों से भी बदला ले लिया। जिन्होंने उसका अपमान किया था और भगवान विष्णु से भी शत्रुता निभाई, जिनकी वजह से उसकी यह दशा हुई थी।

दोस्तों! हमारे धर्म ग्रंथ उपनिषद और वेदों में भी इसका वर्णन है, और उसका प्रमाण भी है, कि मनुष्य के मरते वक्त, उसकी स्मृति जिस भी चीज के बारे में सोचती है, वैसा ही उसको नया जन्म मिलता है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है अगर वह भगवान को स्मृति करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है

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