IC 814 The Kandahar Hijack in hindi | आईसी 814 कंधार अपहरण हिंदी में IC 814 सीरीज पर नेटफ्लिक्स ने सुधारी गलती |

IC 814 The Kandahar Hijack in hindi:-1999 में हुए कांधार हाईजैक की घटना, जिसमें यात्रियों और क्रू मेंबर्स को बंधक बना लिया गया था, आज भी भारतीय इतिहास के काले अध्यायों में से एक मानी जाती है। इस घटना के बाद, वाजपेई सरकार ने मसूद अजर समेत तीन कुख्यात और खतरनाक आतंकवादियों को रिहा कर दिया था ताकि बंधकों को सुरक्षित वापस लाया जा सके। हाल ही में रिलीज़ हुई एक वेब सीरीज इसी घटना पर आधारित है, जो विवादों में घिरी हुई है। IC 814 The Kandahar Hijack in hindi

IC 814 The Kandahar Hijack in hindi

आरोप है कि इस वेब सीरीज में आतंकवादियों की पहचान उनके असली नामों से नहीं बल्कि ‘भोला’ और ‘शंकर’ जैसे नामों से की गई है। इसके साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि इस सीरीज में आतंकवादियों को भारत सरकार और सुरक्षा तंत्र पर हावी होते हुए दिखाया गया है, जिससे दर्शकों में उनके प्रति हमदर्दी पैदा हो सके। आतंकवादियों के किरदारों को इस तरह से ग्लैमराइज किया गया है कि दर्शकों को लगे कि वे बहुत बुरे नहीं थे।

इसके अलावा, वाजपेई सरकार को भी कमजोर और कन्फ्यूज्ड दिखाया गया है, जिससे यह संदेश जाता है कि मुट्ठी भर आतंकवादी भारत जैसे बड़े देश की सरकार पर भारी पड़ गए थे। इस वेब सीरीज के निर्माता और निर्देशक पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि उन्होंने अपनी निजी विचारधारा को फिल्म में हावी कर दिया है। ऐसे विषयों पर जब रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर कहानी को घुमा दिया जाता है, तो लोगों की शिकायतें बढ़ जाती हैं। यह वेब सीरीज इस बात का एक और उदाहरण बन गई है कि कैसे क्रिएटिविटी और निजी विचारधारा के बीच एक महीन रेखा होती है, जिसे पार नहीं करना चाहिए।

IC 814 The Kandahar Hijack in hindi

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IC 814 The Kandahar Hijack in hindi

आज के समय में विचारधाराएं दो हिस्सों में बंट गई हैं, और इस पर जबरदस्त राजनीति भी हो रही है। ऐसा देखा गया है कि कई बार हमारे देश में या पूरी दुनिया में विवादों को सफलता का फार्मूला मान लिया जाता है। जब कोई वेब सीरीज या फिल्म विवादों में पड़ जाती है, तो अक्सर वह सफल हो जाती है। कई लोग जो पहले उस वेब सीरीज को नहीं देखते, विवाद सुनने के बाद उसे देखने की सोचने लगते हैं, ताकि वह जान सकें कि इस विवाद का कारण क्या है। और जैसे ही लोग इस वेब सीरीज को देखने लगते हैं, वे इसे सफल बना देते हैं।

इस वेब सीरीज के निर्माता और निर्देशक ने इसे केवल कहानी दिखाने के लिए नहीं बल्कि पैसा कमाने के लिए बनाया है। यह एक कमर्शियल वेंचर है, जिसे वित्तीय लाभ के लिए बनाया गया है। जब आप इसे देखते हैं, तो निर्देशक, लेखक, और पूरी टीम को फायदा होता है। इसलिए, अगर आप सच में विषय के बारे में जानना चाहते हैं, तो जरूर देखें। लेकिन अगर आप इसे केवल विवाद के कारण देखना चाहते हैं, तो आप वास्तव में इस पूरी टीम की मदद ही करेंगे।

ऐसे मामलों में, इस तरह के कंटेंट को बैन करने के बजाय या उस पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, इसे नजरअंदाज करना सबसे अच्छा होता है। इसे इग्नोर करना बेहतर होता है। आप अपना समय किसी और चीज पर लगाइए और इस पर ध्यान मत दीजिए। अगर हमारे देश के लोगों ने इसे इग्नोर कर दिया होता, तो यह वेब सीरीज कब आई और कब विलुप्त हो गई, किसी को पता ही नहीं चलता। लेकिन विवाद के कारण यह वेब सीरीज चल निकली।

IC 814 The Kandahar Hijack in hindi

इस वेब सीरीज के विवाद के चलते, 1999 में हुई वास्तविक घटनाओं पर भी लोग फिर से चर्चा करने लगे हैं। इसलिए, आज हम आपको एक असली किरदार का इंटरव्यू दिखाना चाहते हैं, जो उस समय की घटनाओं से जुड़ा हुआ था। यह इंटरव्यू जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी डॉक्टर एस.पी. वैद का है, जो उस समय डीआईजी के पद पर तैनात थे। उन्होंने बताया कि जब वह कुख्यात आतंकवादी मसूद अज़हर को जेल से हवाई अड्डे तक ले जा रहे थे, तो उसने अपना चेहरा ढकने से इंकार कर दिया था और उसे पहले से ही पता था कि उसे रिहा कराने की कोशिशें हो रही हैं।

उनका कहना है कि मसूद अज़हर की बॉडी लैंग्वेज से आत्मविश्वास और अहंकार झलक रहा था, जिससे यह साफ हो गया था कि वह जानता है कि उसके आतंकवादियों ने भारत सरकार को झुका दिया है।

डॉक्टर वैद का मानना है कि इस तरह के आतंकवादी को रिहा करना एक बहुत बड़ी चूक थी, और इससे बाद में हजारों लोगों की मौत हुई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवादियों के साथ कभी समझौता नहीं करना चाहिए, जैसा कि इज़राइल करता है। लेकिन उस समय की परिस्थितियों में, सरकार और जनता का समर्थन इस तरह के फैसले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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उस समय की परिस्थितियाँ इतनी संवेदनशील और तनावपूर्ण थीं कि सरकार पर असहनीय दबाव था। कांधार हाईजैक के दौरान, जब आतंकवादियों ने भारतीय हवाई जहाज को बंधक बना लिया, तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। लोगों के मन में अपने प्रियजनों की सुरक्षा को लेकर डर और चिंता थी। उस समय, जनता का मुख्य उद्देश्य अपने रिश्तेदारों को सुरक्षित वापस लाना था, चाहे इसके लिए सरकार को कोई भी कदम उठाना पड़े। इसी दबाव के कारण सरकार को तीन खतरनाक आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा, जिसमें मसूद अज़हर भी शामिल था।

डॉ. एस.पी. वैद, जो उस समय जम्मू-कश्मीर के डीआईजी थे, उन्हें इस आतंकवादी को जेल से हवाई अड्डे तक ले जाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने अपने इंटरव्यू में बताया कि उस समय उनके मन में भी यह विचार आया था कि ऐसे खतरनाक आतंकवादी को जाने नहीं देना चाहिए, और मन में यह ख्याल आया था कि उसे रास्ते में ही खत्म कर दिया जाए। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ऐसा करना संभव नहीं था, क्योंकि उन्हें सरकार के आदेश का पालन करना था। मसूद अज़हर की बॉडी लैंग्वेज से साफ झलकता था कि वह आत्मविश्वास से भरा हुआ था और उसे पता था कि उसकी रिहाई होनी तय है।

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इस घटना के बाद, देश में यह बहस छिड़ गई कि क्या आतंकवादियों के साथ कोई समझौता होना चाहिए या नहीं। डॉ. वैद ने भी इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद के मामले में भारत को इज़राइल जैसे देशों से सीखना चाहिए, जहां आतंकवादियों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाता। लेकिन उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या उस समय या आज भी देश की जनता और राजनीतिक दल इस तरह के कड़े फैसलों में सरकार का साथ देंगे।

1999 में हुए कंधार हाईजैक की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। उस समय की सरकार, विशेष रूप से वाजपेई सरकार, पर जबरदस्त दबाव था। यह पहली बार था जब भारत के लोगों ने एक ऐसी घटना को टीवी पर लाइव देखा, जिसमें बंधकों की जिंदगी दांव पर लगी थी। 24 घंटे के न्यूज़ चैनल्स ने इस घटना की हर छोटी-बड़ी जानकारी को जनता तक पहुँचाया, जिससे लोगों में गुस्सा और बेचैनी बढ़ती गई। इस गुस्से और डर का असर यह हुआ कि बंधकों के परिवारजन सड़कों पर उतर आए और सरकार से अपने प्रियजनों की सुरक्षा की गुहार लगाने लगे।

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इस बढ़ते दबाव के चलते सरकार को आतंकवादियों की शर्तें माननी पड़ीं और मसूद अज़हर समेत तीन खतरनाक आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा।

उस समय की मीडिया कवरेज पर भी सवाल उठे, क्योंकि यह माना गया कि मीडिया ने जनता के भावनाओं को भड़काया, जिससे सरकार पर समझौता करने का दबाव और बढ़ गया। कई लोग यह मानते हैं कि मीडिया ने इस घटना को जरूरत से ज्यादा सनसनीखेज बना दिया, जिससे सरकार के लिए स्थिति और भी मुश्किल हो गई।

आज जब हम इज़राइल की स्थिति देखते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि दबाव का सामना हर देश को करना पड़ता है, चाहे वह कितना ही मजबूत क्यों न हो। इज़राइल, जिसने हमेशा आतंकवादियों के साथ समझौता न करने की नीति अपनाई थी, आज उसी जनता के दबाव में आकर समझौते करने पर मजबूर हो गया है। जब जनता की भावनाएँ और दबाव बढ़ते हैं, तो सरकारें भी कठोर फैसले लेने से हिचकिचाती हैं।

भारत में, दुर्भाग्य से, इस घटना के बाद भी राजनीति नहीं रुकी। आईसी 814 की घटना को लेकर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे। विपक्षी दल इस घटना को याद दिलाकर बीजेपी सरकार की कमजोरी की ओर इशारा करने लगे, जबकि सरकार का पक्ष यह था कि उन्होंने बंधकों की जान बचाने के लिए जो भी करना पड़ा, वह किया।

ऐसे समय में, देश के राजनीतिक दलों को एकजुट होकर देशहित में काम करना चाहिए। राजनीति से ऊपर उठकर, देश की सुरक्षा और जनता के विश्वास को प्राथमिकता देना चाहिए। जब देश एकजुट होगा, तभी लोकतंत्र की असली जीत होगी और देश मजबूत बनेगा। IC 814 The Kandahar Hijack in hindi

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