Hanuman ji in mahabharat | हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा | Hanuman aur Arjun

Hanuman ji in mahabharat-हिन्दू धर्म में महाभारत को सिर्फ एक पवित्र ग्रंथ के रूप में ही नहीं, बल्कि जीवन से जुड़ी अनेक परिस्थितियों से निकलने के लिए भी एक प्रेरणादायक महाकाव्य माना जाता है। महाभारत के युद्ध में पांडवों को श्री कृष्ण के कारण विजय प्राप्त हुई थी, यह तो माना जाता है, लेकिन हमारे शास्त्रो ने हमें इस विषय में एक और पहलू बताया है, जिसे आप में से बहुत से लोगों को शायद ही पता हो।

हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड कैसे तोड़ा

Hanuman ji ki rochak kahaniyan- एक बार की बात है। महाभारत युद्ध से पहले एक बार श्री कृष्ण ने हनुमान जी और अर्जुन दोनों को द्वारका नगरी बुलाया। श्री कृष्ण ध्यान मग्न थे तो अर्जुन और हनुमान जी महल के बाहर समुद्र के किनारे उनके ध्यान से बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगे।

इतने में अर्जुन ने हनुमान जी को अपने दुनिया में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने की बात कह डाली जिसके बाद हनुमान जी को इस बात का आभास हुआ कि अर्जुन को उनकी धनुर्विद्या पर घमंड हो गया है। अर्जुन ने प्रभु श्री राम का उपहास उड़ाते हुए, ये तक कह दिया कि यही उनकी ताकत है कि वह छोटे-छोटे भालूओ से पुल बनवा रहे हैं। अगर इतने ही ताकतवर है, तो उन्होंने बाण से पुल क्यों नहीं बना दिया ? हनुमान जी ने कहा -क्या तुम बाण का पुल बना सकते हो?

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हां बिल्कुल बन सकता हूं। हनुमान जी ने कहा- देख लो लेकिन ध्यान रखना, जो पुल भगवान ने बनाया था ,वह बहुत शक्तिशाली था। उस पर उनकी पूरी वानर सेना लंका पार कर गई थी। तुम्हारे बनाए पुल से उनका एक वानर ही निकल जाए ,तो हम तुमको शक्तिशाली मान लेंगे ।अर्जुन बोले हां बिल्कुल बना सकता हूं। हनुमान जी ने कहा अगर टूट गया तो ,अर्जुन बोल नहीं टूटेगा। हनुमान जी बोले फिर भी अगर टूट गया तो, अर्जुन बोले अगर मेरा बनाया पुल टूट गया, तो मैं अपने आप को आग में भस्म कर लूंगा। क्षत्रिय हूं ,वादा करता हूं।

अर्जुन ने बाण की वर्षा की, और एक शक्तिशाली पुल का निर्माण कर दिया। अर्जुन बोले पूल तैयार है। हनुमान जी बोले- राम जी का वानर भी तैयार है। हनुमान जी ने अपना विशाल रूप दिखाया। हनुमान जी ने जैसे ही उस पर अपना पहला कदम रखा। पुल पाताल लोक चला गया। हार की शर्म से, अर्जुन अपने आप को भस्म करने के लिए तैयार थे। अर्जुन ने तीन बार बाण का सेतु बनाया और तीनों बार सेतु टूट गया। सेतु टूटने के साथ ही अर्जुन का घमंड भी चूर चूर हो गया।

शिक्षा-:जीवन में सदैव याद रखिए, चाहे जितनी भी संप्रदा बना ले, खूब धन कमा ले, कभी भी अहंकार की भावना अपने अंदर मत आने देना अहंकार ने बड़े-बड़े लोगों को डुबो दिया है।

अहंकार एक ऐसी चीज़ है जो हमें अपनी असली खोज में रोकती है, और हमें अपनी सच्ची शक्ति और सामर्थ्य से दूर ले जाती है। यह हमें दूसरों से ऊंचा दिखने की भावना दिलाती है, परंतु असल में हमारी अंतरात्मा को कमजोर बनाती है। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, परंतु अहंकार के बिना।

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महाभारत में हनुमान जी | Hanuman ji in mahabharat

कहते हैं जब महाभारत का युद्ध होने लगा, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा अब हमें हनुमान की जरूरत है। अर्जुन बड़े ही घमंड से बोले- मैं तो नर हूं मुझे उस वानर की क्या आवश्यकता है? श्री कृष्णा बोले -हे अर्जुन तुम तो नर हो ,परंतु खुद नारायण को भी हनुमान जी की मदद लेनी पड़ी थी।

स्वयं वासुदेव अर्जुन के साथ गए और हनुमान जी से मदद मांगी। हनुमान जी ने शर्त रखी कि वह बिना भक्ति के नहीं रह सकते। स्वयं प्रभु श्री राम युद्ध के दौरान भी अनंत ज्ञान की बातें बताते थे। वासुदेव बोले वहां तो युद्ध होगा। तुम भक्ति कैसे कर पाओगे? कहते हैं हनुमान जी स्वयं ध्वज के रूप में अर्जुन के रथ पर सवार थे इसीलिए अर्जुन के रथ का नाम कपि ध्वज रखा गया।

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हमारे एक्सपर्ट द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजय हनुमान जी के कारण मिली थी। श्री कृष्ण के कहने पर हनुमान जी ने महाभारत युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय लिया था। हालांकि पवनपुत्र ने युद्ध में भाग लेने से पूर्व श्री कृष्ण के सामने एक शर्त रखी थी और माना जाता है कि इसी शर्त को पूरा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सार अर्जुन को समझाया था। शास्त्र कहते हैं, अर्जुन का तो बहाना था। भगवान श्री कृष्ण ने गीता तो हनुमान को सुनना था।

हनुमान जी ने जिताया महाभारत का युद्ध | Hanuman ji in mahabharat

महाभारत युद्ध के दौरान हनुमान जी पूरे 18 दिनों तक ध्वजा के रूप में अर्जुन के रथ पर विराजमान थे। महाभारत ग्रन्थ के अनुसार, अर्जुन और उनके रथ की रक्षा हनुमान जी ने की थी।

महाभारत में कर्ण और अर्जुन के रथ में टकराव होता था। कर्ण जब तीर चलाता था, तो अर्जुन का रथ हिलता नहीं था। लेकिन जब अर्जुन तीर चलाता था, तो कर्ण का रथ तीन-चार कदम पीछे चला जाता था।

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अर्जुन बोलते थे,, नीचे देखो प्रभु हमारा रथ नहीं हिल रहा है। भगवान कहते थे, नीचे नहीं ऊपर देखो। प्रभु बोले तुम ऊपर इसलिए हो , क्योंकि तुम्हारे साथ स्वयं हनुमान जी की शक्तियां है। जब युद्ध खत्म हो गया तो, श्री कृष्ण ने अर्जुन को रथ से उतरा और फिर स्वयं उतारे, फिर उन्होंने हनुमान जी को इशारा किया, और जैसे ही हनुमान जी रथ से उतरे, अर्जुन का रथ धू-धू कर चलने लगा, और जलकर भस्म हो गया अर्जुन को बहुत आश्चर्य हुआ उन्होंने पूछा यह रथ कैसे भस्म हो गया। कृष्ण जी बोले रथ तो बहुत पहले ही भस्म हो चुका था। यह तो हनुमान जी की कृपा थी, जो उन्होंने रथ को बचाए रखा था।

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