Biography of gautam buddha | भगवान बुद्ध का जीवन परिचय

Biography of gautam buddha-गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व के आसपास, हिमालय की गोद में बसे, नेपाल के लुंबिनी, नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोदन था। शुद्धोदन एक राजा थे। बुद्ध की मां का नाम महामाया था। बुद्ध के जन्म से अनेकों कहानी जुड़ी हुई है। उनकी कथाओं को जातक कथाओं के नाम से जाना जाता है। बुद्ध की सभी जातक कथाओं का उद्देश्य समाज को नैतिकता का जीवन देना है।

जातक कथाओं के अनुसार, भगवान के अनेक अवतारों में से एक अवतार, गौतम बुद्ध भी थे। यह कथाएं बताती है कि किस प्रकार बुद्ध ने एक अवतार से दूसरे अवतार में जन्म लिया और अधिक से अधिक सिद्धियां को हासिल किया। जातक कथाओं के अनुसार, उनके जन्म से पहले, उनकी मां ने एक सपना देखा था। एक सुंदर सफेद हाथी ने, रानी को एक कमल का फूल अर्पित किया और फिर उसके शरीर में प्रवेश किया।

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जब ऋषियों को, सपने की व्याख्या करने के लिए कहा गया तो, उन्होंने एक भविष्यवाणी की, कि रानी एक पुत्र को जन्म देगी, जो या तो एक महान शासक बनेगा, या फिर एक महान संयासी बनने के लिए नियत होगा। उन्होंने कहा वह या तो दुनिया को जीत लेगा या एक प्रबुद्ध व्यक्ति बन जाएगा। कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार, बुद्ध का जब जन्म हुआ तो, इस अवसर पर राजा शुद्धोदन ने, एक समारोह का आयोजन किया। समारोह के दौरान, शुद्धोदन ने राज्य के प्रतिष्ठित, प्रमुख ज्योतिषियों को निमंत्रण दिया।

ज्योतिष बुद्ध के इस शिशु रूप को देखकर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। जब एक सबसे अनुभवी ज्योतिष ने बुद्ध के ग्रह नक्षत्र देखें, तो उन्हें गणना करके बताया कि महाराज इस राजकुमार की दो ही गति है, या तो वह एक महान शासक बनेगा, या फिर एक महान सन्यासी। वहां उपस्थित सभी ज्योतिषियों ने, इसी बात को दोहराया, कि राजकुमार की एक ही गति है। यह निश्चित ही एक महान सन्यासी बनेगा। धर्म विजय करेगा। नामकरण समारोह में, शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। जिसका अर्थ है, वह जिसने सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्म लिया हो।

ऐसा जानकर राजा तो बहुत डर गए। उनका राजकुमार भला क्यों बनेगा एक सन्यासी, राजा का पुत्र है, राज करेगा, पूरे ब्रह्मांड में अपनी पताका फहराएगा आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि राजा का बेटा संयासी बन गया हो, राजमहल छोड़कर सन्यासी बनने की कल्पना ने उन्हें डरा दिया था इसलिए राजा शुद्धोदन ने, बचपन से ही सिद्धार्थ के रहने के लिए, भोग विलास, आनंद से भरे महलों का निर्माण कर दिया था जिससे कि उसका ध्यान सन्यास की तरफ कभी न जाए

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कहानियों के अनुसार उनके रहने के लिए तीन अलग-अलग महलों का निर्माण किया गया था एक महल गर्मियों के मौसम के लिए था। जिसमें सफेद कमल से भरा हुआ तालाब था और सिद्धार्थ वहां गर्मियों के मौसम में रहा करते थे। सर्दियों के मौसम के लिए लाल कमल से भरा हुआ तालाब था, और तीसरा महल बरसात के मौसम के लिए था। जिसमें नीले कमल खिले रहते थे। राजकुमार के लिए ऐसी-ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया गया, जिससे उस पर बाहरी जीवन की परछाई तक ना पड़े, और हो भी क्यों ना, क्योंकि शुद्धोदन जानते थे ,कि महलों में रहकर और भोग विलास में पड़कर कोई राजकुमार सन्यासी नहीं बन पाया था।

सिद्धार्थ के पैदा होने के 7 दिन बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उसका लालन पोषण महामाया की बहन महा प्रजापति गौतमी ने किया था। सिद्धार्थ राजश्री विलासिता में पले-बड़े, बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ, ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा दी गई और तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती, तैराकी और दौड़ने में प्रशिक्षित किए गए। जब सिद्धार्थ बड़े हुए तो, उनका विवाह यशोधरा के साथ हुआ। सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम राहुल रखा गया।

विवाह के बाद, सिद्धार्थ बाहरी दुनिया से बहुत अधिक ही दूर हो गए और राजा शुद्धोदन अब इस बात से स्पष्ट हो गए कि अब सिद्धार्थ का सन्यासी बनना असंभव है। राजकुमार सिद्धार्थ के पास सब कुछ था, जिसके कारण उसका ध्यान बाहर की दुनिया में नहीं जाता। राजा शुद्धोदन उसके हर कार्य की जानकारी लिया करते, और समाज की परछाई तक उस पर ना पढ़ने देते।

अब तो उनको भी यकीन हो गया था कि ऐसे आनंद में जीवन बिताने के बाद उसे छोड़ना, किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता है यह सब राजा के मन के अनुसार तो अच्छा था राजर्षि परिवार के हिसाब से सब कुछ ठीक चल रहा था, पर उस समय के सबसे महान व्यक्तियों में से एक सिद्धार्थ, अब समय के अनुसार नहीं थे, क्योंकि उनकी नियति में तो बुद्ध बनना था, जो कि अभी तक नहीं हो पाया था

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