प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक | Inspired Sanskrit Shloks | 25 संस्कृत श्लोक

 प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक (Inspirational Sanskrit Shlokas)-यहाँ कुछ प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक दिए जा रहे हैं जो जीवन में सकारात्मकता, उत्साह और उच्च विचारों को अपनाने में सहायता करते हैं। प्रत्येक श्लोक के साथ उसका हिंदी अर्थ भी प्रस्तुत किया गया है ताकि इसे आसानी से समझा जा सके।


Contents

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

1. विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम्।

पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥**

अर्थ:
विद्या से विनम्रता आती है, विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है। योग्यता से धन प्राप्त होता है, धन से धर्म का पालन होता है और अंततः धर्म से सुख मिलता है।

प्रेरणा:
यह श्लोक शिक्षा और विनम्रता के महत्व को उजागर करता है। यह हमें सिखाता है कि विद्या का असली उद्देश्य जीवन को मूल्यवान बनाना है।


जीवन पर सर्वश्रेष्ठ सुविचार
जीवन पर सर्वश्रेष्ठ सुविचार

2. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया।**

अर्थ:
उठो, जागो और श्रेष्ठ प्राप्त करने के लिए प्रयास करो। जीवन के मार्ग में कठिनाइयाँ होंगी, लेकिन उन्हें पार करना ही उद्देश्य है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें आलस्य छोड़कर सतत प्रयास करने की प्रेरणा देता है। यह स्वामी विवेकानंद के द्वारा अक्सर उद्धृत किया गया श्लोक है।


3. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥**

अर्थ:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की इच्छा करने में नहीं। इसलिए फल की चिंता छोड़कर अपने कर्म में लगे रहो।

प्रेरणा:
यह श्लोक गीता का प्रसिद्ध उपदेश है, जो हमें सिखाता है कि कर्म करते रहना ही जीवन का धर्म है।


 

मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ
मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ-

4. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।

तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति॥**

अर्थ:
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र कोई वस्तु नहीं है। जो व्यक्ति योग द्वारा सिद्ध हो जाता है, वह समय के साथ इसे आत्मा में प्राप्त करता है।

प्रेरणा:
यह श्लोक ज्ञान और योग के महत्व को बताता है। यह हमें स्वयं के विकास और आत्मसाक्षात्कार की ओर प्रेरित करता है।


कहानियां इन हिंदी
                     कहानियां इन हिंदी

5. सहनाववतु। सहनौ भुनक्तु।

सहवीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥**

अर्थ:
हम दोनों की रक्षा हो, हम दोनों का पोषण हो, हम दोनों मिलकर परिश्रम करें। हमारा अध्ययन तेजस्वी हो और हम एक-दूसरे से द्वेष न करें।

प्रेरणा:
यह श्लोक गुरु और शिष्य के बीच आदर्श संबंध की प्रेरणा देता है। यह सहकार, सामंजस्य और ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना को उजागर करता है।


6. यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥**

अर्थ:
जहाँ भगवान श्रीकृष्ण जैसे योगेश्वर हैं और अर्जुन जैसे धनुर्धर हैं, वहाँ निश्चित रूप से विजय, समृद्धि और नीति रहती है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जब ज्ञान और परिश्रम का साथ हो, तो सफलता निश्चित है।


7. उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥**

अर्थ:
कार्य केवल प्रयास से सिद्ध होते हैं, केवल इच्छाओं से नहीं। जैसे सोते हुए सिंह के मुँह में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते।

प्रेरणा:
यह श्लोक परिश्रम और सक्रियता का महत्व बताता है। यह सिखाता है कि सफलता के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक है।


8. सत्यमेव जयते नानृतं।

अर्थ:
सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं।

प्रेरणा:
यह श्लोक सत्य के महत्व को बताता है। यह हमें सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।


9. क्षमा वीरस्य भूषणम्।

अर्थ:
क्षमा वीर पुरुष का आभूषण है।

प्रेरणा:
यह श्लोक क्षमा और सहनशीलता के महत्व को बताता है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची वीरता दूसरों को क्षमा करने में है।


10. न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्या धनं सर्वधनप्रधानम्॥**

अर्थ:
विद्या एक ऐसा धन है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न इसे भाइयों में बाँटा जा सकता है और न ही यह भार स्वरूप है। खर्च करने पर यह और बढ़ती है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें शिक्षा के महत्व को बताता है। यह सिखाता है कि विद्या से बढ़कर कोई धन नहीं।

13. न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।

कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥**

अर्थ:
कोई भी व्यक्ति क्षणभर भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता, क्योंकि प्रकृति के गुण सभी को कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्रेरणा:
यह श्लोक गीता से लिया गया है और हमें सिखाता है कि कर्म करना जीवन का मूल स्वभाव है। इसलिए हमें सदा अच्छे कर्म करते रहना चाहिए।


14. वयं अमृतस्य पुत्राः।

अर्थ:
हम अमृत के पुत्र हैं।

प्रेरणा:
यह उपनिषदों का वाक्य है जो हमें हमारी दिव्यता और उच्च उद्देश्य का स्मरण कराता है। यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम असीम संभावनाओं के स्वामी हैं।


15. यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः।

चित्ते वाचि क्रियायां च साधूनामेकरूपता॥**

अर्थ:
जैसे मन में विचार होते हैं, वैसी ही वाणी होती है, और जैसे वाणी होती है, वैसे ही कर्म होते हैं। सज्जन व्यक्तियों में मन, वाणी और कर्म की एकरूपता होती है।

प्रेरणा:
यह श्लोक सच्चाई और ईमानदारी का महत्व बताता है। यह हमें आचरण में शुद्धता अपनाने की प्रेरणा देता है।


16. यस्य ऋते न सिद्ध्यति यज्ञो विपश्चितो ध्रुवम्।

स पर्जन्य इव स्थाणुः सदा वर्षाय कल्पते॥**

अर्थ:
जिस व्यक्ति के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता, वह विद्वान व्यक्ति स्थिर और अनवरत लाभ प्रदान करने वाले पर्जन्य (मेघ) के समान होता है।

प्रेरणा:
यह श्लोक विद्वानों और अनुभवी व्यक्तियों के महत्व को बताता है। यह हमें उनकी संगति में रहकर मार्गदर्शन लेने की प्रेरणा देता है।


17. स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा।

सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम्॥**

अर्थ:
स्वभाव को उपदेश देकर बदला नहीं जा सकता, जैसे उबला हुआ पानी ठंडा होकर अपनी पूर्व अवस्था में लौट आता है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि स्वभाविक गुणों को पहचानें और उन्हें सही दिशा दें।


18. न चोरं न च राजं, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्या धनं सर्वधनप्रधानम्॥**

अर्थ:
विद्या ऐसा धन है जिसे कोई चोर चुरा नहीं सकता, न राजा इसे छीन सकता है, और न ही इसे भाइयों में बाँटा जा सकता है। विद्या खर्च करने पर और बढ़ती है।

प्रेरणा:
यह श्लोक शिक्षा के अमूल्य महत्व को दर्शाता है और हमें प्रेरित करता है कि इसे हर स्थिति में प्राथमिकता दें।


19. नमन्ति फलिनो वृक्षा, नमन्ति गुणिनो जनाः।

शुष्ककाष्ठं च मूर्खश्च न नमन्ति कदाचन॥**

अर्थ:
फल देने वाले वृक्ष झुकते हैं, गुणी व्यक्ति भी विनम्र होते हैं। लेकिन सूखी लकड़ी और मूर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें विनम्रता का महत्व समझाता है। यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान और सफलता विनम्रता से ही प्राप्त होती है।


20. न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।

कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥**

अर्थ:
मैं राज्य, स्वर्ग या पुनर्जन्म की इच्छा नहीं करता। मैं केवल यह चाहता हूँ कि दुःख से तप्त प्राणियों की पीड़ा को दूर कर सकूँ।

प्रेरणा:
यह श्लोक करुणा और परोपकार की भावना को व्यक्त करता है। यह हमें दूसरों के कष्टों को दूर करने की प्रेरणा देता है।


21. धैर्यम् सर्वत्र साधनम्।

अर्थ:
धैर्य हर कार्य में सफलता का साधन है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें धैर्य रखने की प्रेरणा देता है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।


22. क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।

क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्॥**

अर्थ:
क्षण-क्षण और कण-कण को बचाकर ही विद्या और धन को प्राप्त किया जा सकता है। यदि एक क्षण व्यर्थ गया तो विद्या नहीं मिल सकती और एक कण व्यर्थ गया तो धन नहीं मिल सकता।

प्रेरणा:
यह श्लोक समय के सदुपयोग और परिश्रम का महत्व बताता है।


23. परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥**

अर्थ:
दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई धर्म नहीं है, और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई पाप नहीं है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें परोपकार और दया की भावना को अपनाने की प्रेरणा देता है।


24. अनन्तश्रीरनन्ताय धन्यायानन्तकीर्तये।

नमः सम्पूर्णकामाय रमायाः पतये नमः॥**

अर्थ:
मैं अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त यश और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूँ।

प्रेरणा:
यह श्लोक श्रद्धा और समर्पण का महत्व सिखाता है। यह हमें विश्वास दिलाता है कि दिव्य शक्तियों में आस्था रखनी चाहिए।


25. या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥**

अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति के रूप में स्थित हैं, उन्हें बार-बार नमन।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें स्त्रियों और शक्ति के प्रति आदर और सम्मान का संदेश देता है।


26. विवेकः परमं धनम्।

अर्थ:
विवेक सबसे बड़ा धन है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि सही निर्णय लेने की क्षमता और विवेक का उपयोग जीवन में सफलता के लिए सबसे जरूरी है।

27. अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥**

अर्थ:
हे लक्ष्मण! यह स्वर्णमयी लंका भी मुझे प्रिय नहीं है। क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं।

प्रेरणा:
यह श्लोक देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति प्रेम की प्रेरणा देता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमारी मातृभूमि का सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।


28. विना विहाय पण्येन तन्दुलाः प्राप्यन्ते न हि।

विना परिश्रमेणैव धनं प्राप्यते क्वचित्॥**

अर्थ:
जैसे बिना व्यापार किए तिलहन से चावल प्राप्त नहीं हो सकते, उसी प्रकार बिना परिश्रम किए धन की प्राप्ति असंभव है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें मेहनत और परिश्रम का महत्व सिखाता है।


29. सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।

प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥**

अर्थ:
हमेशा सत्य बोलो और ऐसा सत्य बोलो जो प्रिय हो। ऐसा सत्य मत बोलो जो अप्रिय हो। प्रिय होने के बावजूद असत्य भी मत बोलो। यही सनातन धर्म है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि सत्य के साथ मधुरता का होना कितना महत्वपूर्ण है।


30. आरभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः।

प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः।
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः।
प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति॥**

अर्थ:
निम्न स्तर के लोग विघ्नों के डर से कार्य ही प्रारंभ नहीं करते। मध्यम वर्ग के लोग कार्य प्रारंभ करते हैं, लेकिन विघ्न आने पर छोड़ देते हैं। उत्तम लोग बार-बार विघ्न आने पर भी अपने कार्य को कभी नहीं छोड़ते।

प्रेरणा:
यह श्लोक धैर्य और दृढ़ता के महत्व को सिखाता है।


31. उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।

षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत्॥**

अर्थ:
जहाँ परिश्रम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम होते हैं, वहाँ भगवान भी सहायक होते हैं।

प्रेरणा:
यह श्लोक सिखाता है कि भगवान उन्हीं की सहायता करते हैं जो आत्मविश्वास और परिश्रम के साथ कार्य करते हैं।


32. आरोग्यम् परमं भाग्यम्।

अर्थ:
स्वास्थ्य सबसे बड़ा सौभाग्य है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमारे जीवन में स्वास्थ्य का सबसे अधिक महत्व है।


33. विद्या विनयेन शोभते।

अर्थ:
विद्या विनम्रता से शोभित होती है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें विनम्रता और ज्ञान का सही उपयोग करने की प्रेरणा देता है।


34. न चोरं न च राजं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्या धनं सर्वधनप्रधानम्॥**

अर्थ:
विद्या ऐसा धन है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, और न ही इसे बाटा जा सकता है। विद्या खर्च करने पर और बढ़ती है।

प्रेरणा:
यह श्लोक शिक्षा के महत्व को दर्शाता है और जीवन में इसके स्थायित्व की महत्ता बताता है।


35. बाल्ये क्रीडासक्तः तरुणत्वे विषयसक्तः।

वृद्धे चिन्तासक्तः परमे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥**

अर्थ:
बाल्यावस्था में खेल-कूद में मन लगता है, तरुणावस्था में विषय-भोग में, वृद्धावस्था में चिंताओं में, लेकिन परमात्मा में किसी का मन नहीं लगता।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें आत्मचिंतन और ईश्वर के प्रति समर्पण का महत्व सिखाता है।


36. सन्तोषः परमो लाभः।

अर्थ:
संतोष सबसे बड़ा लाभ है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि संतोष ही सच्चा सुख है।


37. श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन।

दानं धनैर्नैव न तण्डुलेन।
मूर्खः परार्थेन न हेतुभिर्वा।
सर्वं परार्थं विदुषा न वेद॥**

अर्थ:
श्रवण शक्ति श्रवण से बढ़ती है, गहनों से नहीं। दान संपत्ति से होता है, केवल धन संग्रह से नहीं। मूर्ख परोपकार नहीं करता, जबकि ज्ञानी सभी कार्य परोपकार के लिए करता है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान, दान और श्रवण आत्मा के विकास में सहायक हैं।


38. यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।

एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति॥**

अर्थ:
जैसे एक पहिये से रथ नहीं चलता, वैसे ही पुरुषार्थ के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होता।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें मेहनत और पुरुषार्थ का महत्व सिखाता है।


39. धर्मेण हीनः पशुभिः समानः।

अर्थ:
जो व्यक्ति धर्म से रहित है, वह पशु के समान है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें धर्म, कर्तव्य और नैतिकता का महत्व समझाता है।


40. संकल्पो हि बलं परम।

अर्थ:
संकल्प सबसे बड़ी शक्ति है।

प्रेरणा:
यह श्लोक हमें आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय का महत्व बताता है।


इन श्लोकों के अध्ययन से जीवन के हर पहलू में प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है। ये न केवल भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाते हैं, बल्कि हमारे जीवन को दिशा देने वाले अमूल्य मार्गदर्शक भी हैं।


इन श्लोकों के माध्यम से हमें न केवल भारतीय संस्कृति और दर्शन का गहराई से परिचय मिलता है, बल्कि ये हमारे जीवन को भी नई दिशा देते हैं।

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