मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ | Munshi Premchand ki 5 Chotti Kahaniyaa

मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ- मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के महानतम लेखकों में से एक हैं। उनकी कहानियाँ न केवल मनोरंजक होती हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर भी गहरी दृष्टि प्रदान करती हैं। यहाँ उनकी पांच प्रसिद्ध छोटी कहानियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है:

मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ-

ईदगाह

मुंशी प्रेमचंद की कहानी “ईदगाह” भारतीय समाज की एक अद्भुत और प्रेरणादायक कहानी है। यह कहानी एक छोटे से बच्चे, हामिद, की मासूमियत और उसकी सामाजिक परिस्थितियों को उजागर करती है। यह कहानी त्यौहार के मौके पर मानवता, रिश्तों और गरीबी के मुद्दों को बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती है।

कहानी का आरंभ

कहानी की शुरुआत एक छोटे से गाँव से होती है जहाँ हामिद अपने दादा के साथ रहता है। हामिद की उम्र केवल छह साल है और वह अपने दादा के साथ बड़े प्रेम से रहता है। उसका परिवार गरीब है, लेकिन उसके दादा हमेशा उसे प्यार और देखभाल से रखते हैं। गाँव में ईद का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं। हामिद भी इस उत्सव का हिस्सा बनने के लिए उत्सुक है, लेकिन उसके पास नए कपड़े या मिठाइयाँ खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।

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हामिद की मासूमियत

हामिद का स्वभाव बेहद मासूम और सरल है। वह अपने दादा के साथ गाँव के मेले में जाने की योजना बनाता है। जब हामिद अपने दोस्तों को नए कपड़े पहनकर और मिठाइयाँ खाते हुए देखता है, तो वह थोड़ी सी ईर्ष्या महसूस करता है, लेकिन वह अपनी गरीबी को लेकर कभी भी दुखी नहीं होता। उसके दादा उसकी हर इच्छा को समझते हैं और उसे हौसला देते हैं।

ईदगाह जाने का दिन आता है। हामिद अपने दादा के साथ एक पुराने कपड़े में जाता है। जब वह ईदगाह पहुँचता है, तो वहाँ की रौनक देखकर उसकी आँखें चमक उठती हैं। लोग एकत्रित होते हैं, नमाज पढ़ते हैं, और एक-दूसरे को गले लगाते हैं। हामिद का मन भी खुशी से भर जाता है।

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हामिद की इच्छा

ईदगाह में, हामिद अपने दोस्तों को देखता है जो मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते हैं। उसका मन भी चाहता है कि वह भी कुछ खरीदे। लेकिन उसके पास केवल कुछ पैसे हैं। हामिद सोचता है कि वह अपनी माँ के लिए कुछ खरीदना चाहता है। उसकी मासूमियत यहाँ प्रकट होती है जब वह अपनी इच्छाओं को परिवार के प्रति प्रेम के लिए बलिदान करता है।

वह वहाँ एक चिमटा देखता है और उसे समझ आता है कि यह उसकी माँ के लिए उपयोगी होगा। हामिद अपने थोड़े से पैसे में से चिमटा खरीदता है। यह निर्णय उसके चरित्र की गहराई को दर्शाता है और हमें यह सिखाता है कि सच्ची खुशी अपने प्रियजनों की खुशी में है।

त्यौहार का महत्व

ईदगाह पर हामिद की खुशी केवल खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए है। वह जानता है कि उसका परिवार गरीब है और उसकी माँ को घर में काम करने में मदद की जरूरत है। इसलिए वह चिमटा खरीदता है। इस निर्णय में उसकी समझदारी और परिपक्वता दिखाई देती है।

जब वह अपने दोस्तों को मिठाइयाँ खाते हुए देखता है, तो उसे थोड़ी सी निराशा होती है, लेकिन वह फिर भी संतोषी रहता है। उसकी सोच में यह बात साफ नजर आती है कि भौतिक चीज़ों से ज्यादा महत्वपूर्ण उसके परिवार की खुशियाँ हैं।

कहानी का अंत

कहानी का अंत हामिद की दादी के साथ लौटने के दृश्य के साथ होता है। हामिद अपने दादा के साथ घर लौटता है, और उसके मन में संतोष होता है कि उसने अपनी माँ के लिए कुछ किया है। उसकी यह सोच हमें यह सिखाती है कि सच्ची खुशी कभी भी पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।

ईद के इस त्यौहार में हामिद का अनुभव हमें यह याद दिलाता है कि असली सुख परिवार, रिश्तों और सच्चे प्रेम में है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से दिखाया है कि एक साधारण बच्चा भी अपने छोटे-से निर्णयों के द्वारा बड़ी बातें सिखा सकता है।

निष्कर्ष-“ईदगाह” केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि यह एक जीवन-दर्शन है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से हमें यह बताया है कि मानवता की सच्ची पहचान रिश्तों में निहित है। हामिद की मासूमियत और परिवार के प्रति उसके प्रेम को देखकर हम यह समझते हैं कि धन और भौतिक वस्तुओं से अधिक महत्वपूर्ण हैं परिवार और मानवीय रिश्ते।

यह कहानी हर बार हमें यह याद दिलाती है कि सच्ची खुशी का स्रोत केवल हमारे प्रियजनों की खुशी में है। इस प्रकार, “ईदगाह” एक अमूल्य कृति है जो प्रेमचंद की गहरी सोच और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण को उजागर करती है।

कफन

मुंशी प्रेमचंद की कहानी “कफन” भारतीय समाज की एक यथार्थवादी और सामाजिक समस्याओं को उजागर करने वाली कहानी है। यह कहानी गरीबी, मानवता, और मनुष्य के संवेदनहीनता की ओर इशारा करती है।

कहानी का परिचय

कहानी की शुरुआत दो पात्रों, नाथु और उसकी पत्नी, और उनकी स्थिति का वर्णन करते हुए होती है। नाथु एक गरीब किसान है, जो अपने परिवार की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसकी पत्नी, जो उसे प्यार करती है, एक दिन बीमार पड़ जाती है। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वे उपचार के लिए भी पैसे नहीं जुटा पाते हैं।

पत्नी की बीमारी

जब नाथु की पत्नी बीमार पड़ती है, तो उसकी स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। नाथु अपनी पत्नी को अस्पताल ले जाने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी गरीबी उसे ऐसा करने से रोकती है। उसकी पत्नी की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जाती है। नाथु उसके लिए दवाई खरीदने की कोशिश करता है, लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं। इस बीच, उसकी पत्नी को यह समझ आ जाता है कि उसकी बीमारी गंभीर है और वह मर सकती है।

पत्नी की मृत्यु

अंततः नाथु की पत्नी की मृत्यु हो जाती है। नाथु अपने जीवनसाथी को खोने के दुख में है, लेकिन उसे अब एक और गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है – अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए कफन का प्रबंध करना। वह सोचता है कि उसकी पत्नी को अंतिम विदाई देने के लिए उसे कफन खरीदना होगा। लेकिन उसकी गरीबी उसे कफन खरीदने से रोकती है।

कफन की खोज

नाथु को अपने दोस्त से सलाह मिलती है कि वह कफन के लिए पैसे उधार ले। लेकिन नाथु उस पर विचार करता है कि वह इस मुश्किल समय में कफन खरीदने के लिए पैसे उधार लेने में संकोच कर रहा है। वह सोचता है कि अगर वह पैसे उधार लेता है, तो उसे उन पैसों को लौटाना होगा, जिससे उसकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी।

कफन का निर्णय

आखिरकार, नाथु अपनी पत्नी के शरीर को एक पुरानी चादर में लपेटता है। वह कफन नहीं खरीद पाता और अपनी पत्नी को पुरानी चादर में लपेटकर ही अंतिम संस्कार के लिए ले जाता है। यह नाथु की मानसिकता और गरीबी को दर्शाता है कि वह अपनी पत्नी को कफन नहीं दे सकता।

सामाजिक यथार्थ

कहानी का अंत नाथु की पत्नी के अंतिम संस्कार के दृश्य के साथ होता है। नाथु अपनी पत्नी की अंतिम विदाई देते हुए भी यह सोचता है कि वह कफन नहीं खरीद सका। यह न केवल उसकी व्यक्तिगत दुर्दशा है, बल्कि यह समाज की वास्तविकता को भी दर्शाता है, जहां गरीबी और बुनियादी जरूरतों की कमी के कारण व्यक्ति अपनी मानवीय गरिमा को भी खो देता है।

निष्कर्ष-“कफन” कहानी केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह समाज की व्यापक समस्याओं को उजागर करती है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया है कि गरीब और जरूरतमंद लोगों की समस्याओं को समझने की आवश्यकता है। यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि एक समाज में जब गरीबी और बेबसी का सामना करते हुए इंसान अपनी मानवीयता को खो देता है, तो उस समाज की दिशा और दशा का क्या होगा।

यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि मानवता का मूल्य केवल धन और संपत्ति में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहायता में है। “कफन” एक अमूल्य कृति है जो मुंशी प्रेमचंद की गहरी सोच और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

ठाकुर का कुआँ

एक छोटे से गाँव में, सूरज की तपिश से झुलसती धरती पर, जोखू नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसकी पत्नी गंगी थी। दोनों का जीवन कठिन था, भरपूर मेहनत और कंगाली से भरा हुआ। गाँव छोटा था, लेकिन दो हिस्सों में बँटा हुआ था – एक थाकुर साहब का, और दूसरा गरीबों का। गाँव का एकमात्र कुआँ थाकुर साहब के पास था। यह कुआँ जीवन का स्रोत था, लेकिन गरीबों के लिए यह प्रतिबंधित था।

जोखू की तबीयत बिगड़ती जा रही थी। उसे पानी पीने की सख्त जरूरत थी। गंगी बेबस थी। वह अपने पति को देखकर बेचैन हो उठी। उसे कुछ करना था, कुछ भी। रात के अंधेरे में, वह चुपके से कुएँ की तरफ निकल पड़ी। चाँद की रोशनी में कुआँ चमक रहा था। उसका मन डर से काँप रहा था, लेकिन जोखू की पीड़ा ने उसे हिम्मत दी। वह कुएँ के पास पहुँची और पानी भरने लगी। तभी, अचानक, एक नौकर की आवाज़ सुनाई दी। गंगी डर गई और जल्दी से घर की तरफ भागी।

घर पहुँचकर उसने जोखू को देखा। उसकी हालत और भी खराब हो चुकी थी। गंगी खुद भी ठंड और डर से काँप रही थी। कुछ ही देर बाद, वह भी जोखू के पास जा मिली।

निष्कर्ष-यह कहानी एक कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। यह सामाजिक असमानता की कहानी है, जिसमें गरीबों को उनके अधिकार से वंचित रखा जाता है। यह एक ऐसी दुनिया की कहानी है, जहाँ गरीबों की पीड़ा को अनदेखा किया जाता है।

ठाकुर का कुआँ सिर्फ एक कुआँ नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय और मानवता की कमी का प्रतीक था। गंगी की कहानी हमें याद दिलाती है कि हमें समाज में व्याप्त अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए। हमें हर व्यक्ति को समानता और सम्मान के साथ देखना चाहिए।

आज भी, हमारे समाज में ऐसे कई लोग हैं, जो गरीबी और असमानता से जूझ रहे हैं। हमें उनकी मदद करनी चाहिए, उनकी आवाज़ बननी चाहिए। हमें एक ऐसा समाज बनाना चाहिए, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले, जहाँ हर व्यक्ति का सम्मान हो।

ठाकुर का कुआँ हमें सिखाता है कि हम सब एक हैं, चाहे हमारी जाति, धर्म या समाजिक स्थिति कुछ भी हो। हमें एक-दूसरे के साथ सहानुभूति और करुणा के साथ पेश आना चाहिए। हमें मानवता के मूल्यों को अपनाना चाहिए और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।

आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाने की कोशिश करें, जहाँ गरीबी, असमानता और अन्याय का कोई स्थान न हो। एक ऐसा समाज, जहाँ हर व्यक्ति खुशहाल और सम्मानित हो।

सौदागर: एक कठोर सच्चाई

मुंशी प्रेमचंद की कहानी “सौदागर” एक ऐसी कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, जो सदियों से समाज में व्याप्त है। यह कहानी एक सौदागर के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो धन-दौलत से भरा हुआ है, लेकिन उसके दिल में मानवता की कमी है।

सौदागर अपने धन का अहंकार में चूर रहता है। वह गरीबों की पीड़ा को अनदेखा करता है और उनके दुखों से बेखबर रहता है। वह अपने धन का उपयोग दूसरों की मदद करने के बजाय, अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए करता है।

एक दिन, सौदागर एक यात्रा पर निकलता है। रास्ते में उसे एक गरीब परिवार मिलता है, जो भूख और ठंड से बेहाल है। सौदागर उनके दुख को देखता है, लेकिन उसकी मदद करने की कोई इच्छा नहीं होती। वह अपने रास्ते चला जाता है, बिना किसी मदद के।

कुछ समय बाद, सौदागर एक और गरीब परिवार से मिलता है। इस परिवार की हालत भी बहुत खराब है। लेकिन सौदागर फिर से उनकी मदद करने से इनकार कर देता है। वह अपने धन का अहंकार में डूबा रहता है और गरीबों की पीड़ा को अनदेखा करता है।

रात के समय, सौदागर एक जंगल से गुजर रहा होता है। अचानक, एक डाकू उस पर हमला कर देता है। डाकू सौदागर के सारे धन को लूट लेता है और उसे घायल कर देता है। सौदागर को अपनी गलतियों का एहसास होता है। वह समझ जाता है कि धन-दौलत से ज़िंदगी नहीं चलती, बल्कि मानवता से चलती है।

निष्कर्ष-यह कहानी हमें सिखाती है कि धन-दौलत से ज़िंदगी नहीं चलती, बल्कि मानवता से चलती है। हमें गरीबों की मदद करनी चाहिए, उनकी पीड़ा को समझना चाहिए। हमें अपने धन का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए, न कि अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए।

“सौदागर” एक ऐसी कहानी है, जो हमें सोचने पर मजबूर करती है। यह हमें सिखाती है कि हम सब एक हैं, चाहे हमारी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। हमें एक-दूसरे के साथ सहानुभूति और करुणा के साथ पेश आना चाहिए। हमें मानवता के मूल्यों को अपनाना चाहिए और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।

आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाने की कोशिश करें, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले, जहाँ हर व्यक्ति का सम्मान हो। एक ऐसा समाज, जहाँ गरीबी, असमानता और अन्याय का कोई स्थान न हो।

दुःख का आधिक्य: एक मार्मिक कहानी

मुंशी प्रेमचंद की कहानी “दुःख का आधिक्य” एक मार्मिक कृति है जो मानव जीवन की पीड़ा और संघर्ष को उजागर करती है। कहानी एक गरीब किसान परिवार के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो कठोर परिस्थितियों में संघर्ष करता है।

कहानी का मुख्य पात्र, एक गरीब किसान है, जिसका जीवन दुखों से भरा हुआ है। वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक छोटे से झोपड़ी में रहता है। उनकी रोज़ी-रोटी का मुख्य साधन खेती है, लेकिन अक्सर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ उनकी फसलों को तबाह कर देती हैं।

इसके अलावा, साहूकारों का शोषण भी उनके जीवन को कठिन बनाता है। साहूकार उन्हें उच्च ब्याज दर पर कर्ज देते हैं, जिससे वे कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं। वे दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी कर्ज से मुक्ति नहीं पा पाते।

कहानी में एक और महत्वपूर्ण पात्र है, एक गरीब कारीगर। वह भी कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन करता है। उसकी मेहनत का फल उसे नहीं मिल पाता, क्योंकि दलाल और व्यापारी उसका शोषण करते हैं। वह भी कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है और अपनी रोज़ी-रोटी के लिए संघर्ष करता रहता है।

कहानी के अंत में, दोनों पात्रों की दुर्दशा का वर्णन किया जाता है। वे दोनों ही कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं और अपनी जिंदगी से हताश हैं। वे अपने दुखों को किसी से कह नहीं पाते, क्योंकि उन्हें पता है कि कोई उनकी मदद नहीं करेगा।

निष्कर्ष-“दुःख का आधिक्य” एक ऐसी कहानी है, जो हमें मानव जीवन की कठोर सच्चाई से रूबरू कराती है। यह हमें सिखाती है कि गरीबी और शोषण कितने बड़े दुख हैं। यह हमें याद दिलाती है कि हमें गरीबों की मदद करनी चाहिए, उनकी पीड़ा को समझना चाहिए।

यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने जीवन में कितने भाग्यशाली हैं। हमें अपने दुखों को छोटा समझना चाहिए और दूसरों की मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए, जहाँ गरीबी, शोषण और अन्याय का कोई स्थान न हो।

आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाने की कोशिश करें, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले, जहाँ हर व्यक्ति का सम्मान हो। एक ऐसा समाज, जहाँ गरीबी, असमानता और अन्याय का कोई स्थान न हो।

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