Hanuman ji ki story- श्री हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार है। यानि भगवान शिव ने हीं हनुमान जी का रूप लेकर अवतार लिया था।
हनुमान जी, एक अत्यंत शक्तिशाली देवता माने जाते हैं। हनुमान जी, को बजरंगबली के नाम से भी पुकारा जाता है, जो कलयुग के जीवित देवता के रूप में स्थापित हैं। हनुमान जी का पूजन करने से गृह, व्यापार, और रोग-राहित जीवन प्राप्त होता है।
कहा जाता है कि हनुमान जी की आराधना से सभी बाधाएं तुरंत दूर हो जाती हैं और उनके भक्तों को शनि के द्रिष्टिग्रहण से मुक्ति मिलती है। इनके पूजन से भक्तों को आत्मा की शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है।
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हनुमान जी को ‘अंजनी पुत्र’ और ‘पवन पुत्र’ के रूप में भी जाना जाता है। इनकी आराधना से व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक संतुलन सुरक्षित रहता है।
हनुमान जी के नाम का उच्चारण करने से ही व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता की कड़ी से कड़ी राहें खुलती हैं। इनके समर्थन से संकटों का समाप्त होना और भक्तों को उच्च स्तर की आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। हनुमान को बजरंगबली, अंजनी पुत्र, पवन पुत्र, रामभक्त जैसे अनेकों नामों से जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मारुती नंदन का नाम हनुमान कैसे पड़ा…
Hanuman ji ki story | Motivational video
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जाने कैसे पड़ा! हनुमान जी का नाम | Hanuman ji ki story
हनुमान जी देखने में बहुत सुंदर और भोले थे। उनके चेहरे पर सूर्य जैसा तेज और आंखों में चंचलता थी। उनके बाल छोटे और घुंघराले थे।वह कानों में छोटे-छोटे कुंडल पहने करते थे। देखने में भले ही सीधे लगते थे। मगर उनमें बहुत ज्यादा ऊर्जा थी। इसीलिए वह आम बच्चों से बहुत ज्यादा शरारती थे।
हनुमान जी को, पवन देव ने ,अपने ही समान शक्तियां दी हुई थी। यानी वे हवा की गति से कहीं भी जा सकते थे। अपना शरीर बड़ा छोटा या हल्का कर सकते थे। लेकिन हनुमान जी थे तो बच्चे ही, ना उन्हें अपनी शक्तियों का अंदाजा था और ना ही इतनी समझ थी कि उन्हें कब और कैसे प्रयोग करना चाहिए।इसी कारण एक बार बड़ी समस्या हो गई थी। हुआ यू की बाल हनुमान को बड़ी भूख लग रही थी। माता अंजनी आसपास नहीं थी। तभी उनकी नजर उगते सूरज पर पड़ी। जो किसी लाल फल सा नजर आ रहा था। उसे देखकर वह सोचने लगे-
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अरे यह कितना सुंदर फल टंगा है! आसपास माता तो कहीं दिख नहीं रही, जब तक वह मुझे भोजन दे, तब तक मैं इसे ही खा लेता हूं। ऐसा सोचकर हनुमान जी ने सूरज की और हाथ बढ़ाया। सूरज उनकी पकड़ में नहीं आया। अपने आप तेजी से सूरज की ओर बढ़ने लगा ।जैसे-जैसे पास जाने पर सूरज बड़ा होने लगा। वैसे-वैसे बालक हनुमान का शरीर भी बड़ा होता जा रहा था। बाल हनुमान जल्दी ही सूरज तक पहुंच गए और उन्होंने सूरज को अपने मुंह में रख लिया।
ऐसा होते ही पूरे संसार में अंधेरा हो गया। सूरज के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की गति रुक गई। यह देख देवताओं में खलबली मच गई। इंद्रदेव तुरंत ऐरावत पर सवार होकर वज्र हाथ में लेकर देखने चले कि ऐसा क्यों हुआ है। वहां पर उन्होंने बाल हनुमान को देखा- तुम कौन हो? तुम्हारी सूर्य देव को निगलने की हिम्मत कैसे हुई? जानते भी हो, इसका परिणाम क्या होगा ?चलो जल्दी से उनको मुक्त करो।
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यह फल मैंने लिया है। अब यह मेरा है। मैं इसे खाऊंगा। यह कोई फल नहीं है, सूर्य देव है। जिनकी ऊर्जा और प्रकाश से सारा संसार चल रहा है। इंद्रदेव बहुत समझाने की कोशिश कर रहे थे। मगर हनुमान जी तो बच्चे ही थे। उन्हें इन सब बातों की कहां समझ थी। आखिर में इंद्रदेव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार कर दिया। जिससे वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर गए।
जब यह बात पवन देव को पता चली तो वह बुरी तरह क्रोधित हो गए। क्रोध में आकर पवन देव ने अपनी गति रोक ली। पशु, पक्षी, वनस्पतियों सभी का दम घुटने लगा। पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। सभी देवताओं को चिंता होने लगी ।इंद्रदेव जल्दी ही कुछ कीजिए। पवन देव का क्रोध शांत कीजिए, वरना पृथ्वी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इंद्रदेव सभी देवताओं को साथ लेकर पवन देव को मनाने चल दिए।
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शांत हो जाइए पवन देव। बालक हनुमान जल्दी ही पूरी तरह स्वस्थ हो जाएगा। आप चिंता ना करें। बाकी देवता भी बोले हां-हां पवन देव, हम सभी देवता बालक हनुमान को अपनी-अपनी शक्तियां देंगे। वह संसार का सबसे शक्तिशाली बालक होगा। इसके बाद हनुमान जी को सभी देवताओं से वरदान मिलने लगे।
मैं सूर्य देव- बाल हनुमान को अपनी तेज का सौवा भाग देता हूं। यह मेरे ही समान तेजस्वी होगा ताकि भविष्य में मैं इसे खुद ही शिक्षा दूंगा।
मैं न्याय का देवता यमराज- मैं बाल हनुमान को वरदान देता हूं कि वह हमेशा स्वस्थ और निरोगी रहेगा। इसका कोई भी वध नहीं कर पाएगा।
मैं देवराज इंद्र- बाल हनुमान को वरदान देता हूं कि यह बालक संसार में सबसे ज्यादा शक्तिशाली होगा। मेरे वज्र का भी इस पर कोई असर नहीं होगा।
मैं जल देवता- बाल हनुमान को वरदान देता हूं कि जल कभी हनुमान को डुबो नहीं पाएगा।
मैं कुबेर- बाल हनुमान को अपनी परम शक्ति वाली गदा देता हूं। जिसके बल पर कोई भी इस युद्ध में हरा नहीं पाएगा।
मैं विश्वकर्मा -बाल हनुमान को वरदान देता हूं कि मेरे बनाए हुए जितने भी अस्त्र-शस्त्र है वह सब हनुमान में बेअसर रहेंगे। वह सदैव हर युद्ध जीतेगा।
मैं ब्रह्मदेव-बाल हनुमान को वरदान देता हूं कि इसकी भक्ति भी प्रभावित होगी और शक्ति भी। यह इच्छा और जरूरत के अनुसार रूप, रंग और आकार बदल सकता होगा। जहां चाहेगा, वहां बहुत तेजी से पहुंच जाएगा। इस पर ब्रह्मास्त्र का भी कोई असर नहीं होगा। इस तरह सभी देवताओं ने हनुमान को कोई ना कोई वरदान दिया। जिससे पवन देव का क्रोध शांत हुआ।
देवताओं के वरदान से बालक हनुमान और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गए, लेकिन वज्र के चोट से उनकी ठुड्ढी टेढ़ी हो गई, जिसके कारण उनका एक नाम हनुमान पड़ा।
हनुमान जी के दर्शन कलयुग में कैसे होंगे?
कलियुग में हनुमान जी प्राचीन समय की तरह सशरीर प्रकट नहीं होते, लेकिन भक्तों की आस्था और श्रद्धा उन्हें महसूस कराती है। वे शक्ति, साहस और भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। लोग उनके नाम का जाप करते हैं और उनके महान कार्यों की कहानियाँ पढ़कर उनकी पूजा करते हैं। इसलिए, भले ही हम हनुमान जी को अपनी आँखों से नहीं देख पाते हैं,
हनुमान जी की उपस्थिति का अनुभव करने के लिए उनके भक्त नियमित रूप से उनकी आराधना करते हैं। वे मंगलवार और शनिवार के दिन विशेष रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और हनुमान मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। भक्तगण यह मानते हैं कि हनुमान जी की कृपा से उनके जीवन में सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं और वे निडर होकर जीवन के हर संघर्ष का सामना कर सकते हैं। लेकिन अपने प्रेम और भक्ति के माध्यम से हम अपने दिल में उनसे जुड़ सकते हैं।
आज भी, हनुमान जी को संकट मोचन के रूप में पूजा जाता है, जो सभी प्रकार की विपदाओं और कठिनाइयों से हमें बचाते हैं
हनुमान जी की अष्ट (आठ) सिद्धियाँ और नव (नौ) निधियाँ क्या हैं?
अष्ट सिद्धियाँ वे शक्तियाँ हैं, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति किसी भी रूप और आकार में परिवर्तित हो सकता है। वह अति सूक्ष्म से लेकर अति विशाल तक किसी भी स्वरूप में वास करने में सक्षम हो सकता है।
1-अणिमा: अष्ट सिद्धियों में पहली सिद्धि अणिमा है, जिसका अर्थ है अपने शरीर को एक अणु के समान सूक्ष्म कर लेने की क्षमता। जैसे हम नग्न आँखों से एक अणु को नहीं देख सकते, उसी प्रकार अणिमा सिद्धि प्राप्त व्यक्ति को भी कोई नहीं देख सकता। साधक जब चाहे, एक अणु के बराबर का सूक्ष्म रूप धारण कर सकता है।
2- महिमा: अणिमा के विपरीत, महिमा सिद्धि से साधक अपने शरीर को असीमित विशालता प्रदान कर सकता है। वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता है।
3-गरिमा: इस सिद्धि से साधक अपने शरीर के भार को असीमित रूप से बढ़ा सकता है। उसका आकार सीमित रहता है, लेकिन भार इतना बढ़ जाता है कि कोई भी शक्ति उसे हिला नहीं सकती।
4- लघिमा: इस सिद्धि से साधक का शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वह हवा से भी तेज गति से उड़ सकता है। उसका भार ना के बराबर हो जाता है।
5- प्राप्ति: इस सिद्धि से साधक बिना किसी बाधा के कहीं भी जा सकता है। अपनी इच्छानुसार अन्य लोगों के सामने अदृश्य होकर, साधक जहाँ चाहे वहाँ जा सकता है और उसे कोई देख नहीं सकता।
6- पराक्रम्य: इस सिद्धि से साधक किसी के भी मन की बात आसानी से समझ सकता है, चाहे सामने वाला व्यक्ति उसे व्यक्त करे या नहीं।
7- ईशित्व: यह सिद्धि साधक को भगवान के समान बना देती है, जिससे वह दुनिया पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकता है।
8- वशित्व: इस सिद्धि से साधक किसी भी व्यक्ति को अपना अधीन बना सकता है। वह जिसे चाहे अपने वश में कर सकता है और किसी की भी पराजय का कारण बन सकता है।
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