शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां-शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां श्रेणी में हम उत्कृष्ट और मनोरंजक हास्य कहानियों का एक संग्रह प्रस्तुत करते हैं, जो शिक्षाप्रद और मनोरंजन से भरपूर हैं। ये कहानियाँ विद्यार्थियों को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर प्रेरित करती है।
शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां
मेरी बहू (Meri bahu)- Bhoot ki kahani in hindi
आज भी कुछ पिछड़े इलाकों में बहुओं को हद से ज़्यादा मर्यादा करना पड़ता है। **”मेरी बहू”** एक ऐसी कहानी है जो समाज में फैली कुरीतियों से पर्दा उठाएगी। एक बहुत ही प्राचीन गाँव था, जहाँ लोग पुराने रीति रिवाज़ों के तहत अपना जीवन व्यतीत किया करते थे। गाँव में किशोर अपने माता-पिता और पत्नी के साथ रहता था। किशोर की पत्नी शीतल शहर की पढ़ी-लिखी लड़की थी, इसलिए उसे गाँव के रीति-रिवाज़ों में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी।
फिर भी, उसे परंपराओं के अनुसार गाँव के लोगों के सामने सर ढककर रखना पड़ता था। कुछ दिनों तक तो शीतल ने बड़े-बुज़ुर्गों की मर्यादा रखते हुए यह बर्दाश्त किया, लेकिन जब उसे लगातार पर्दे में रहने से घुटन होने लगी, तो उसने अपने पति किशोर से शहर जाने की बात कही।
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किशोर गाँव में ही पला-बढ़ा था, इसलिए उसे शहर जाने में कोई रुचि नहीं थी। उसने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा, “यहाँ हमारा पूरा परिवार है और हम इसे छोड़कर नहीं जा सकते। तुम्हें यहाँ रहने में क्या परेशानी है?” शीतल ने किशोर से खुलकर अपने दिल की बात कह दी। बस फिर क्या था, वह अपनी पत्नी से नाराज़ हो गया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा।
किशोर की आवाज़ सुनकर उसके माता-पिता भी कमरे के अंदर आ गए और जैसे ही उन्हें सारा मामला पता चला, उन्होंने भी अपनी बहू को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया। सारे परिवार की बातें सुनकर शीतल की आँखों में आँसू आ गए। शीतल को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अपने पति को कैसे समझाए।
इस घटना के कुछ महीने गुज़रने के बाद, एक दिन शीतल सुबह होते ही बिना किसी से कुछ कहे घर से निकल गई। काफ़ी दूर पैदल चलने से उसे थकान महसूस होने लगी, इसलिए वह एक सुनसान जगह पर जाकर बैठ गई। घर पर जैसे ही किशोर को पता चला कि उसकी पत्नी कहीं चली गई है, वह सारे गाँव में शीतल को ढूँढने निकल गया। किशोर गाँव के चारों तरफ़ ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाते हुए अपनी पत्नी को खोज रहा था। जब वह कहीं दिखाई नहीं दी, तो सभी की चिंताएँ बढ़ने लगीं।
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इसी बीच एक बुजुर्ग व्यक्ति गाँव वालों से आकर बताता है, “इस गाँव की एक महिला रास्ते में एक सुनसान जगह पर अकेली बैठी है।” यह बात सुनते ही किशोर तुरंत उसी तरफ़ दौड़ लगा देता है। किशोर को भागता देख गाँव के लोग भी उसके पीछे भागने लगे।
जैसे ही किशोर शीतल के नज़दीक पहुँचा, उसे देखते ही उसके होश उड़ गए क्योंकि शीतल अपने बिखरे बालों के साथ मिट्टी से खेल रही थी। शीतल को ऐसी स्थिति में देख गाँव वालों को लगा, ज़रूर यह कोई भूत-बला है जो शीतल के पीछे पड़ गई है। सभी ने शीतल को क़ाबू में करने की बहुत कोशिश की, लेकिन शीतल सभी को धक्का मारते हुए ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
उसके रोने की आवाज़ किसी पुरुष की तरह लग रही थी। जैसे-तैसे करके शीतल को घर लाया गया। गाँव के सभी लोगों को शीतल की हरकतें भूतिया गतिविधि की ओर इशारा कर रही थीं, इसलिए सभी ने तांत्रिक बुलाने को कहा। किशोर ने अपने कुछ रिश्तेदारों की सलाह से एक जाने-माने तांत्रिक को बुलाया।
तांत्रिक ने आते ही चारों तरफ़ एक घेरा बनाया और ख़तरे से बचने के लिए सभी को उस घेरे के अंदर रहने को कहा और शीतल के कमरे में अकेले ही चला गया। अंदर पहुँचते ही उसने शीतल को चेतावनी देते हुए कहा, “साफ़-साफ़ बता दो, यह नाटक क्यों कर रही हो। नहीं तो तुम्हें बहुत तक़लीफ होगी।” शीतल तांत्रिक को देखते ही आक्रामक होने लगी।
तभी तांत्रिक ने शीतल के बाल पकड़कर दोबारा कहा, “मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, भूत-प्रेत नाम की कोई चीज़ नहीं होती। मैं कई वर्षों से इसी तरह लोगों के भ्रम दूर करता आया हूँ। तुम्हारे घर वालों को समझाना मुश्किल है, लेकिन तुम अच्छी तरह से जानती हो कि तुम यह नाटक कर रही हो।”
तांत्रिक की बात सुनते ही शीतल की आँखों में आँसू आ गए और उसने रोते हुए अपना झूठ क़बूल कर लिया। शीतल ने तांत्रिक को बताया, “वह शहर की पढ़ी-लिखी लड़की है। उसे ज़्यादा बंधनों में रहना पसंद नहीं। उसने कई बार अपने पति से यहाँ से दूर चलने को कहा, लेकिन जब वह नहीं माने तो मजबूरी में आकर उसने चुड़ैल चढ़ाने का नाटक किया ताकि वह अपने मनमुताबिक़ जी सके।” दरअसल, तांत्रिक एक वैज्ञानिक था,
जो कई सालों से भूतों के नाम पर फैली हुई अफ़वाहों की सच्चाई दिखाने के लिए रिसर्च कर रहा था और उसी वजह से उसने तांत्रिक वेशभूषा अपनाई थी। उसने शीतल को सबके सामने चुड़ैल की हक़ीक़त बताते हुए माफ़ी माँगने को कहा।
जैसे ही गाँव वालों को पता चला कि शीतल अपने परिवार के सामने सिर ढकने से बचने के लिए चुड़ैल का ड्रामा कर रही थी, तो उन्हें आज से पहले गाँव में हुई सभी भूतिया घटनाओं पर संदेह होने लगा। तांत्रिक के समझाने पर शीतल के घर वालों ने उसे उसके पति के साथ शहर जाने की इजाज़त दे दी। तांत्रिक की वैज्ञानिक सोच ने लोगों में भूतों के प्रति फैले अंधविश्वास को गहरी चोट दी, लेकिन यह तो सिर्फ़ एक शुरुआत थी। इसी के साथ यह कहानी ख़त्म हो जाती है।
ढोंगी से संत तक (Dhongi se Saint Tak)
एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था। राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बढ़ने लगीं, लेकिन चोर को पकड़ने की तमाम कोशिशों के बावजूद वह पकड़ा नहीं जा सका। हारकर राजा ने घोषणा करवा दी कि जो भी चोरी करते पकड़ा जाएगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। साथ ही सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए। घोषणा के बाद कुछ दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नहीं आई। राज्य में एक चोर था, जिसे चोरी के सिवा और कुछ नहीं आता था।
उसने सोचा, अगर वह डरता रहा तो भूखा मर जाएगा। चोरी करते पकड़ा गया तो भी मरूंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए। इस सोच के साथ वह एक रात चोरी करने निकला, लेकिन घर के लोग जाग गए और शोर मचाने लगे। चोर भागा, पर सैनिकों ने उसका पीछा किया। अपनी जान बचाने के लिए वह नगर के बाहर भागा।
तालाब किनारे पहुँचकर उसने अपने कपड़े उतारकर तालाब में फेंक दिए और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया। बरगद के पेड़ पर बगुले रहते थे और जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी। चोर ने बीट उठाकर तिलक लगा लिया और साधना में लीन होने का स्वांग रचकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद सैनिक वहाँ पहुँचे, लेकिन चोर नजर नहीं आया। अंधेरा छंटने पर सैनिकों की नजर समाधि में बैठे “बाबा” पर पड़ी। उन्होंने पूछा, “बाबा, इधर किसी को देखा है?” लेकिन चोर, जो अब ढोंगी बाबा बन चुका था, मौनी बाबा का स्वांग करता रहा।
सैनिकों को कुछ शक तो हुआ, पर वे कुछ कर नहीं सके। यदि सही में कोई संत निकला तो उनकी गलती हो जाएगी। उन्होंने छिपकर बाबा पर नजर रखनी शुरू कर दी। तीन दिन बीत गए, बाबा वैसे ही समाधि में बैठा रहा। नगर में चर्चा होने लगी कि कोई सिद्ध संत बिना खाए-पीए समाधि में बैठे हैं। राजा तक भी यह खबर पहुँच गई। राजा स्वयं दर्शन करने पहुँचे और बाबा से नगर में पधारने की विनती की।
चोर ने समझा कि यही उसका बचने का मौका है, और वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया। लोग जयघोष करते हुए उसे नगर ले गए और उसकी सेवा सत्कार करने लगे। लोगों का प्रेम और श्रद्धा देखकर चोर का मन बदलने लगा। उसे एहसास हुआ कि यदि नकली संत होने पर इतना मान-सम्मान मिल रहा है, तो सच्चे संत बनने पर कितना होगा। उसका मन पूरी तरह बदल गया और उसने चोरी छोड़कर संन्यासी का जीवन अपना लिया।
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