स्वर्ग का सेब | प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए | छोटा सा प्रेरक प्रसंग

स्वर्ग का सेब

प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए:- एक बार स्वर्ग से घोषणा हुई कि भगवान सेब बाँटने आ रहे हैं, सभी लोग भगवान के प्रसाद के लिए तैयार हो कर लाइन लगाकर खड़े हो गए। एक छोटी बच्ची बहुत उत्सुक थी क्योंकि वह पहली बार भगवान को देखने जा रही थी। एक बड़े और सुंदर सेब के साथ साथ भगवान के दर्शन की कल्पना से ही खुश थी।

अंत में प्रतीक्षा समाप्त हुई। बहुत लंबी कतार में जब उसका नम्बर आया तो भगवान ने उसे एक बड़ा और लाल सेब दिया। लेकिन जैसे ही उसने सेब पकड़कर लाइन से बाहर निकली उसका सेब हाथ से छूटकर कीचड़ में गिर गया। बच्ची उदास हो गई। अब उसे दुबारा से लाइन में लगना पड़ेगा। दूसरी लाइन पहली से भी लंबी थी। लेकिन कोई और रास्ता नहीं था। सब लोग ईमानदारी से अपनी बारी-बारी से सेब लेकर जा रहे थे। प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए 

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अन्ततः वह बच्ची फिर से लाइन में लगी और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगी। आधी क़तार को सेब मिलने के बाद सेब ख़त्म होने लगे। अब तो बच्ची बहुत उदास हो गई। उसने सोचा कि उसकी बारी आने तक तो सब सेब खत्म हो जाएंगे। लेकिन वह ये नहीं जानती थी कि भगवान के भंडार कभी ख़ाली नही होते। जब तक उसकी बारी आई तो और भी नए सेब आ गए।

       भगवान तो अन्तर्यामी होते हैं। बच्ची के मन की बात जान गए। उन्होंने इस बार बच्ची को सेब देकर कहा कि पिछली बार वाला सेब एक तरफ से सड़ चुका था। तुम्हारे लिए सही नहीं था इसलिए मैने ही उसे तुम्हारे हाथों गिरवा दिया था। दूसरी तरफ लंबी कतार में तुम्हें इसलिए लगाया क्योंकि नए सेब अभी पेडों पर थे। उनके आने में समय बाकी था। इसलिए  तुम्हें अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी। ये सेब अधिक लाल, सुंदर और तुम्हारे लिए उपयुक्त है। भगवान की बात सुनकर बच्ची संतुष्ट हो कर गई।

    इसी प्रकार यदि आपके किसी काम में बिलम्ब हो रहा है तो उसे भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार करें। जिस प्रकार हम अपने बच्चों को उत्तम से उत्तम देने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार भगवान भी अपने बच्चों को वही देंगे जो उनके लिए उत्तम होगा। ईमानदारी से अपनी बारी की प्रतीक्षा करें, और उन परम पिता की कृपा के लिए हर पल हर क्षण उसका गुणगान करें।

संकल्प  से सिद्धि

        प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए- होटल में मेरे सामने एक पूरी फैमिली बैठी थी ! मम्मी, पापा, बेटा और बेटी । हमारी टेबल  उनकी टेबल के पास ही थी , हम अपनी बातें कर रहे थे,  वो अपनी । पापा खाने का ऑर्डर करने जा रहे थे ,वो सभी से पूछ रहे थे कि ~कौन क्या खाएगा ?

      बेटी ने कहा ~ बर्गर , मम्मी ने कहा ~ डोसा ,पापा खुद बिरयानी खाने के मूड में थे पर बेटा तय नहीं कर पा रहा था !

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वो कभी कहता ~ बर्गर, कभी कहता ~ पनीर रोल खाना है ।पापा कह रहे थे ~तुम ठीक से तय करो कि क्या लोगे ? अगर तुमने पनीर रोल मंगाया तो फिर दीदी के बर्गर में हाथ नहीं लगाओगे । बस  फाइनल तय करो कि तुम्हारा मन क्या खाने का है ?

      हमारे खाने का ऑर्डर आ चुका था ,पर मेरे बगल वाली फैमिली अभी भी उलझन में थी । बेटे ने कहा ~ वो तय नहीं कर पा रहा कि क्या खाए ! माँ बोल रही थी, कि तुम थोड़ा- थोड़ा सभी में से खा लेना औरअपने लिए कोई एक चीज़ मंगा लो ! लेकिन बेटा दुविधा में था । पापा समझा रहे थे, कि इतना सोचने वाली क्या बात है ? कोई एक चीज़ मंगा लो जो मन हो, वही ले लो ।

प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए
प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए

परंतु लड़का तय नहीं कर पा रहा था वो बार-बार बोर्ड पर बर्गर की ओर देखता ,फिर पनीर रोल की ओर ! मैं सोच रहा था, कि  उसके पापा  ऐसा क्यों नहीं कह देते, कि ~ ठीक है, एक बर्गर ले लो और एक पनीर रोल भी । उनके बीच चर्चा चल रही थी ।

     पापा बेटे को समझाने में लगे थे, कि कोई एक ही चीज़ आएगी , मन को पक्का करो । आखिर में बेटे ने भी बर्गर ही कह दिया । जब उनका खाना चल रहा था और हमारा खाना पूरा हो चुका था ,  कुर्सी से उठते हुए अचानक मेरी नज़र लड़के के पापा से मिली । उठते-उठते मैं उनके पास चला गया,

और हैलो करके अपना परिचय दिया । बात से बात निकली !

मैंने उनसे कहा ~मन में एक सवाल है अगर आप कहें , तो पूछूँ ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा ~ पूछिए !

       आपका बेटा तय नहीं कर पा रहा था, कि वो क्या खाए. वो बर्गर और पनीर रोल में उलझा था । मैंने बहुत देर तक देखा, कि आप न तो उस पर नाराज़ हुए, न आपने कोई जल्दी की ! न ही आपने ये कहा, कि तुम दोनों चीज़ ले सकते हो ।

मैं होता तो कह देता, कि दोनों चीज़ ले आता हूँ , जो मन हो खा लेना बाकी पैक करा कर ले जाता ।

     उन्होंने कहा ~ ये बच्चा है ! इसे अभी निर्णय लेना सीखना होगा । दो चीज़ लाना बड़ी बात नहीं थी , बड़ी बात है इसे समझना होगा, कि ज़िंदगी में दुविधा की गुंजाइश नहीं होती फैसला लेना पड़ता है । मन का क्या है, मन तो पता नहीं क्या- क्या करने को करता है. लेकिन कहीं तो मन को रोकना ही होगा । अभी नहीं सिखा पाया, तो  ये कभी नहीं सीख पाएगा ।

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इसे ये भी सिखाना है, कि~जो मिला है, उसे संतोष से स्वीकार करो। इसीलिए मैं बार-बार कह रहा था कि अपनी इच्छा बताओ ! इच्छा भी सीमित होनी चाहिए । एक बात, इसे और समझना है, कि जो एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते,

वो हर चीज़ के लिए मचलते हैं । और  सच ये है कि  हर चीज़

न किसी को मिलती है, न मिलेगी !

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