पवित्र रामायण से 10 सीख | Pavitra Ramayan Se Seekh | Inspirational speech

Pavitra Ramayan Se Seekh-जय श्री राम आज सत्र में आप आ चुके हैं श्री रामचरितमानस की वर्णन पर जहां पर आप वाल्मीकि द्वारा लिखी गई महाकाव्य पवित्र परम पूजनीय रामायण से जीने के 11 तरीके जानेंगे तो चलिए सब एक साथ मिलकर श्री पुरुषोत्तम राम भगवान के आदर्शों को सीखने की ओर अग्रसर होते हैं। राम कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें राम की तरह अपने माता-पिता, गुरुजनों की भावनाओं को पूरा-पूरा सम्मान करना चाहिए। इस कथा से हमें साहस और बुधि से प्रत्येक कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है।

Prabhu shri ram से सीखे विविधता में एकता –

विविधता में एकता यह सबसे बड़ा रामायण पाठ है। जब प्रभु श्री राम लंका पर मार्च कर रहे थे। तब सभी प्रकार के लोग उनकी सेना में थे। हर कोई मौजूद था। मनुष्यों से लेकर जानवरों और पक्षियों तक युद्ध के दौरान सभी ने प्रभु श्री राम का समर्थन किया। इसके अलावा राजा दशरथ के चार बेटे थे और उन सभी के चरित्र अलग थे।

लेकिन फिर भी उनमें एक विविधता थी और यही वह बात है। जो हर परिवार को दुख के समय से बाहर निकलने में मदद करती है। प्रभु श्री राम के सभी भाइयों में प्रेम था। इस तरह के प्यार में लालच गुस्सा या विश्वास घाट के लिए बहुत कम जगह थी।लक्ष्मण 14 साल तक अपने बड़े भाई प्रभु श्री राम के साथ निर्वासन में रहे, दूसरी ओर भारत ने अपने बड़े भाई के लिए सिंहासन पर बैठने का मौका ठुकरा दिया और सदैव उनके पादुकाओं को सिंहासन पर विराजमान कर प्रजा की सेवा की।

भाईचारे की प्यार का यह प्रथम पाठ हमें लालच और सांसारिक सुखों के बजाय रिश्तो को महत्व देने के लिए प्रेरित करता है। हमारा भारत देश विविधता में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण- कहीं उत्तर में पहाड़ों की ठंड, तो वहीं दक्षिण में समुद्र की उमस, पश्चिम में धार का रेगिस्तान,  बंगाल की खड़ी न जाने कितनी भाषाएं न जाने जीवन जीने के कितने रंग रूप कितनी सांप्रदायिकता और कितने खानपान के तरीके हमारा हिंदुस्तान अनगिनत विविधताओं का घर है। धर्म, जुबान, खानपान, पहनावा सब कुछ अलग होते हुए भी हम समान है।

हम एक नाम और एक कम से अपने आप को पहचान देते हैं और वह पहचान है भारतीय यह खूबसूरत है विविधता में एकता का परम उदाहरण है।

 

गंगा में बहाई अस्थियां आखिर जाती कहां है?

holy ganga

प्रभु श्री राम से सीखे बुराई पर अच्छाई की जीत:-

रामायण से दूसरी सीख, बुराई पर अच्छाई कीजिए। रामायण की सबसे बड़ी खोज यह है की बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा होती है। जिस तरह से रावण ने मां सीता पर बुरी नजर डाली और अंत में भगवान राम ने रावण को हराया और मां सीता को वापस पा लिया।

कहानी का सार यह है की बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली या महान क्यों ना हो, लेकिन अपने अच्छे सद्गुणों के कारण केवल सत्य की ही विजय होती है। चाहे कितना भी हम भूलने की कोशिश करें मगर 26/11/2008 कि वह खौफनाक रात हम सभी को याद है। एक दर्दनाक और कहर से भारी काली रात के रूप में जब  आतंकवादियों ने हिंदुस्तान को कहरमें डाल दिया। दो दिन तक ताज होटल पर कब्जा करने के बाद ,मासूम जानू की हत्या करने के बाद, हमें ऐसा लग रहा था कि शायद यह आतंक का आलम और डर का एहसास कभी खत्म ही नहीं होगा।

मगर हमारे कितने वीर जवानों ने मुंबई पुलिस कर्मियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर और अपने कर्म को अपने परिवार और खुद से भी आगे रखकर अपने प्राणों की आहुति दी और शहीद हुए।

हिंदुस्तान की गरिमा को बचाया और जब तीन दिन बाद कल आसमान से धुआं उठा और हवा में शांत खामोशी का एहसास हुआ तब आंखें नम थी, आंसू थे। इसलिए बुराई कितनी भी पड़ी और कितनी भी महान क्यों ना दिखे, मगर अच्छाई के सामने बड़ी छोटी होती है और जीत अंत में केवल अच्छाई की ही होती है।

 

प्रभु श्री राम से सीखे sachi bhakti और samarpan:-

रामायण से तीसरी सीख, हनुमान जी ने भगवान राम के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम।  भगवान राम के प्रति उनकी असीम लगन और निस्वार्थ सेवा हमें सिखाती है की जरूरत के समय दोस्त की मदद कैसे करें। यह बताता है कि हमें अपनी पूजा के चरणों में बिना किसी संदेह के खुद को आत्मसमर्पण करना चाहिए। जब हम सर्वव्यापी ईश्वर के चरणों में आत्मसमर्पण करते हैं तो हमें निर्वाण या मोक्ष प्राप्त होता है और जान और मृत्यु से छुटकारा मिलता है।

प्रभात फिल्म भारत की बहुत पुरानी प्रोडक्शन हाउस कंपनी जो पिक्चरें बनाया करती थी। यह पुणे में स्थित थी। उसे जमाने में तकरीबन 1940 और 50 के दशक में दो नौजवान लड़कों का वहां पर एक दूसरे से मिलने का सही योग बना। हुआ कुछ यह था कि धोबी ने दोनों की कमीज की अदला-बदली कर दी थी, तो अपनी अपनी कमीज ढूंढने के बहाने यह दो युवक मिल गए। दोनों भी कलाकार ही थे। एक थे अभिनेता देवानंद और दूसरे लेखक निर्देशक और हिंदुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की विरासत का सबसे बड़ा नगीना गुरुदत्त।

इन दोनों की यह मुलाकात वक्त के साथ-साथ बहुत गहरी दोस्ती में बदल गई। तब जाकर इन दोनों ने दूसरे से एक वादा किया। जिस किसी का भी सिक्का फिल्म इंडस्ट्री में चलता है, तो वह दोस्त दूसरे दोस्त को कम देगा, और अपने साथ आगे बढ़ाएगा। जब देवानंद बहुत बड़े सुपरस्टार बन गए तो उन्होंने अपनी इस वादे को भुला नहीं ,और गुरु दत्त को अपने प्रोडक्शन हाउस अपने बैनर नवकेतन फिल्म से निर्देशन करने का मौका दिया।

पिक्चर का नाम था बाजी ,देवानंद साहब अगर अपने इस वादे को नहीं निभाते और अपने दोस्त की जरूरत के वक्त मदद नहीं करते ,तो आज हिंदुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री को गुरुदत्त जैसा महान निर्देशक कभी मिलता।

मनुष्य को बदले का नहीं, क्षमा का भाव अपनाना चाहिए:-

पवित्र रामायण कहती है, मनुष्य में बदले का भाव नहीं बल्कि क्षमा का भाव होना चाहिए। भला क्यों और कैसे यह जानने के लिए चौथे अंश को जरूर सुनिएगा रामायण से चौथी सिख- बदला या प्रतिशोध की भावना के मुकाबले, क्षमा एक बेहतर चरित्र है। रावण एक विद्वान व्यक्ति था।  लेकिन मां सीता का अपहरण करने से उसका पतन हुआ।

इससे पता चलता है कि हम दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए बदले की आग में खुद को जला लेते हैं। रावण अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान के बदले के बारे में सोचता है, जो लक्ष्मण के हाथों हुआ था । इसी सब में क्रोध और प्रतिशोध की अपनी वेब में उलझे हुए, राम भगवान को भी सबक सिखाने की चेष्टा करता है। और बाकी का इतिहास तो सभी को पता ही है कि रावण का पतन स्वयं प्रभु श्री राम के हाथों हुआ।

इसलिए हमें प्रतिशोध अहंकार और क्रोध के बदले क्षमा का स्वभाव अपनाना चाहिए। कहा जाता है की, बदले की भावना किसी इंसान को कहीं भी नहीं ले जाती, क्षमा का भाव आपके चरित्र को दिखलाता है, और बदले का भाव आपके गुस्से को ,और आपकी नादानी को, उदाहरण काफी सिंपल सा है

हमारी ही पड़ोस में एक देश है नाम नहीं लेना चाहूंगा सभी जानते हैं ना जाने कौन सी घड़ी का बदला लेते आ रहा है लेकिन हम भी बड़े भाई की तरह हमेशा सही सबक देकर ,क्षमा का भाव व्यक्त रखते हैं। इसीलिए हमारा चरित्र उनसे कहीं ऊंचा है क्योंकि हमारा चरित्र क्षमा का है ना कि बदले का।

ईश्वर की सच्ची सेवा | Ishwer ki sachi sewa

रामायण से पांचवी सीख, राम के जंगल में जाने से पहले लक्ष्मण और उनकी मां सुमित्रा के बीच एक संवाद होता है। जहां वह लक्ष्मण को राम और सीता के साथ आचरण करना सिखाती है। फिर वह समझती है कि व्यक्ति को सच्चे मन से भगवान की सेवा करनी चाहिए क्योंकि यह मुक्ति का द्वार है।

सुमित्रा कहती है। लक्ष्मण तुम राम और सीता के साथ वन में रह सकते हो। लेकिन अगर राम है तो पूरी अयोध्या है। वह लक्ष्मण से कहती है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार प्रभु की सेवा करें क्योंकि यही सबसे बड़ा काम है और जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। हम जीवन में जिस चीज को भी श्रद्धा और सेवा भाव से करने में विश्वास रखते हैं। वही हमारी पूजा है और वही हमारी अर्चना। यदि हम अपने काम पर ध्यान देना चाहते हैं, तो अपने काम को पूजा की तरह करें।

अगर हम अपने मां-बाप की सेवा करना चाहते हैं तो उसे सेवा भाव में ईश्वर की पूजा का एहसास हो, और अगर हम अपने देश या समाज का उजागर करना चाहते हैं, तो हर करम में ईश्वर का कार्य कर रहे ऐसी भावना के साथ अग्रेसर होना चाहिए। इसीलिए ईश्वर आपके कर्म में है, आपके काम में है,और सच्ची श्रद्धा निष्ठा और सेवा भाव से उस कार्य को संपन्न करना चाहिए। तभी सही मायने में आपको इस जीवन में ईश्वर का सत्य प्राप्त होगा।

प्यार और दया : pyaar aur daya

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम दया और सकारात्मकता के प्रतीक है। यदि हम में से कोई भी इसका 10% भी अपने दैनिक जीवन में ले आता है। समाज की बुराइयों पर विजय पाने के लिए हमें आधुनिक समय में इस रामायण से सीखने की आवश्यकता है।

मदर टेरेसा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मदर टेरेसा जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, मरीज और ऐसे लोगों की सेवा में लगा दिया जिन पर दूसरों ने उम्मीद की थी। उन्होंने जीवन भर मरते दम तक गरीबों की सेवा की उनका इलाज किया और उन्हें अपनी क्रिश्चियन मनस्वी का हिस्सा बनते हुए एक परिवार का एहसास दिया। जहां पर सभी उन्हें प्यार से मां का दर्जा दिया करते थे। प्यार स्नेह और दया भाव का सबसे बड़ा उदाहरण मदर टेरेसा को वर्ल्ड लेवल पर नोबेल पीस प्राइज से भी सम्मानित किया गया।

लेकिन यह सम्मान भी उनकी सेवा भाव के आगे कुछ नहीं। वह दूसरों के दर्द को महसूस कर सकती थी। वह दूसरों के दुख को समझ सकती थी। इसीलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन यीशु की आराधना में और गरीबों, मरीज और जो दुख दर्द से भरे पड़े हैं उनकी सेवा में और उनके जीवन को बेहतर बनाने में लगा दिया। प्यार और स्नेह से बड़ा इस जीवन में कुछ भी नहीं और यही है परिभाषा इंसानियत की।

अभिमान और अहंकार मत करिए | Abhimaan aur ahankar

रामायण से सातवीं सीख,अभियान और अहंकार मत करिए। जब हनुमान जी मां सीता की खबर के साथ सुरक्षित रूप से वापस आए तो सभी ने उनकी प्रशंसा की। हनुमान जी चाहते तो अपनी ताकत का बखान कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, और भगवान श्री राम के आशीर्वाद को अपना सारा श्रेय दिया।

हनुमान जी इतने शक्तिशाली है लेकिन उनमें अहंकार नाम की चीज कारण मात्र भी नहीं है। वह अपने भगवान श्री राम के प्रति बहुत विनम्र और समर्पित है। इसके साथ एक मजबूत शरीर, उच्च मनोबल, भले ही कोई इंसान धन-धान्य से भरा हो विनम्रता हमेशा एक बहुत अच्छी गुणवत्ता है।हनुमान जी के इस गुण से हम यह जान सकते हैं कि जीवन में चाहे आप कितने भी सफल क्यों ना हो जाए चाहे आपका स्तर कितना भी ऊंचा क्यों ना हो आपको अपने दिल में अहंकार की भावना कभी नहीं लानी चाहिए।

यह आपका अहंकार नहीं बल्कि आपकी विनम्रता और करुणा है, जो लोगों के दिलों में रहती है। जिस पेड़ पर फल लगते हैं वह हमेशा नीचे झुका हुआ रहता है। ताकि वह सब को खुश रख सके।

कर्तव्य के प्रति समर्पण | kartawya aur samarpan

पवित्र रामायण से आठवीं सीख कर्तव्य के प्रति समर्पण, हनुमान जी को जो भी कार्य सोपा गया था। उन्होंने उसे हर हाल में पूरा किया।उन्होंने अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए कभी भी नकारात्मक सोच का इस्तेमाल नहीं किया। जैसे मैं नहीं कर पाऊंगा, मैं समझ नहीं पा रहा हूं, इसलिए नहीं कर पाऊंगा। जिस समय हनुमान जी की कर्तव्य के साथ हम सीख सकते हैं जिस समय भूमि की लड़ाई में लक्ष्मण मूर्छित हो गए।

उस समय हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने का काम सोपा गया। हनुमान जी पूरे पर्वत को ले आए क्योंकि वे संजीवनी बूटी को नहीं पहचानते थे। हनुमान जी की कर्तव्य के साथ हम सीख सकते हैं कि मनुष्य को अपनी जिम्मेदारियां पर संदेह नहीं करना चाहिए। बल्कि समाधान खोजने में सक्षम होना चाहिए। कार्य की प्रति समर्पित और ड्यूटी फर्स्ट का रुतबा रखने वालों का सबसे बड़ा उदाहरण है।

हमारे सैनिक हमारे सोल्जर हमारे फ्रंटलाइन वॉरियर्स में प्रथम स्थान पर सिर्फ एक ही चीज होती है, मेरा भारत देश। बॉर्डर पर तैनात किए गए हर सैनिक को सिर्फ एक ही चीज का पालन करना होता है और वह होते हैं आदेश ऑर्डर्स कमांड्स ऐसे कमांड्स जो हमारे देश की सुरक्षा के लिए लिए जाते हैं और कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इन ऑर्डर्स का पालन करते हुए उनकी जान ही क्यों ना चले जाए।

यह वीरगति को क्यों ही ना प्राप्त हो जाए। यह शरीर की क्यों ना हो जाए इन्हें पता होता है कि जब तक जिएंगे हंसकर मुस्कुराकर और जांबाज की तरह जियेंगे और जिस दिन देश की सेवा करते हुए उच्च बलिदान को प्राप्त हो गए तो तिरंगे में ही लिपटकर अपने घरों की तरफ रवाना होंगे। एक सैनिक का संपूर्ण जीवन सिर्फ अपने देश के लिए समर्पित होता है।

अच्छे काम में देरी नहीं:-

रामायण से नवी सीख, शुभ कार्यों के लिए जल्दी करें, और बुरी चीजों को स्थगित करें। पहली बात रावण ने लक्ष्मण से कहा कि यह आपकी जीवन में जो भी कार्य आपके लिए शुभ है आपको उसे जल्द से जल्द करना चाहिए। इसी तरह से अशुभ कार्यों से हमेशा बचना चाहिए।

रावण ने अपने जीवन का उदाहरण देते हुए कहा मैंने श्री राम को नहीं पहचाना और उनकी शरण में आने में बहुत देरी की, जो एक शुभ कार्य होता मैं युद्ध करने की जल्दी में था। जो एक अशुभ कार्य था। अगर मैं इसे बचता तो आज मेरे परिवार को ऐसी हालत का सामना नहीं करना पड़ता। इसलिए हमेशा याद रखना कि आपको जल्द से जल्द शुभ कार्य करना चाहिए और अशुभ कार्यों से बचना चाहिए।

अपने जीवन का रहस्य | jeevan ke rahasya

रामायण से दसवीं सीख अपने जीवन का रहस्य किसी को ना बताएं। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह आसानी से अपने जीवन का सबसे बड़ा रहस्य दूसरों को बता देता है। जो भविष्य में उनके लिए घातक हो जाता है। ऐसे रहस्य भविष्य में कई समस्याएं लेकर आते हैं। यदि रावण अपनी बात रखता है तो उसने जो सबसे बड़ी गलती की वह यह थी कि विभीषण उसकी मृत्यु का रहस्य जानता था।

अगर उसने यह बात विभीषण को नहीं बताई होती तो वह आज नहीं मारता और वह जिंदा होता यह उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। जिसे उनके जीवन को समाप्त कर दिया और इस मुहावरे को जन्म दिया कि घर का भेदी लंका ढाए और यही इस सीख का सबसे बड़ा उदाहरण भी है रावण का अपने रहस्य को विभीषण अपने अनुज को बताना जो उनकी मौत का कारण बना।

रामायण की कहानियां | Bhakti ki kahaniyaa | Inspirational story

लक्ष्मण जी नहीं सोए 14 साल

कुंभकरण की नींद/Kumbhkaran ki neend

कैसे हनुमान जी का शरीर पत्थर का हुआ ?

लक्ष्मण जी की मृत्यु की खबर सुनते ही माता सीता अशोक वाटिका में आखिर क्यों मुस्कुराने लगीं ?

 

 

 

 

 

2 thoughts on “पवित्र रामायण से 10 सीख | Pavitra Ramayan Se Seekh | Inspirational speech”

Leave a Comment

error: