दयालुता एक सुखद भावना है | अनमोल कहानियाँ | आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियाँ | Short story in hindi

दयालुता-लोग सोचते हैं कि दयालुता एक सुखद भावना है। यह वास्तव में बहुत अच्छी और दिल को छू लेनेवाली भावना है किंतु शायद यह उतनी गहन नहीं है। जब आप पर दबाव पड़ता है और आपके लिए किसी भी तरह काम करवाना ज़रूरी होता है तब आप हमेशा दयालु नहीं बने रह पाते हैं। क्या दयालुता वास्तव में संसार को किसी प्रकार प्रभावित कर सकती है या बदल सकती है? आइए पढ़ते और सुनते हैं एक प्रेरक कहानी।

दयालुता एक सुखद भावना है | अनमोल कहानियाँ | आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियाँ

लाला विश्वनाथ शहर में एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। एक दिन वे ट्रेन से अपने घर जा रहे थे। वे उस स्टेशन से एक स्टेशन पहले उतर गए जहाँ वे रोज़ उतरा करते थे। वे घर जाने से पहले भोजन करने वाले थे।

जब वे स्टेशन से बाहर निकलने के रास्ते की ओर जा रहे थे, एक किशोर युवक ने उन्हें चाकू दिखाते हुए कहा, “मुझे अपना बटुआ दे दो।”

विश्वनाथ जी रुके, उन्होंने अपना बटुआ निकाला और उसे दे दिया। जब वह किशोर उसे लेकर भागने लगा, विश्वनाथ जी ने उसे आवाज़ देकर रोका और कहा, “बहुत ठंडी रात है। क्या तुम्हें मेरी जैकेट भी चाहिए?”

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किशोर यह सोचते हुए रुक गया कि किसी को लूटने के बाद अगर वह आपको कुछ और भी देना चाहे तो क्या किया जाए, यह तो किसी ने सिखाया ही नहीं! वह मुड़ा और बोला “हाँ, मैं वह जैकेट भी लूँगा!”

विश्वनाथ जी ने अपनी जैकेट उतार कर उसे देते हुए कहा, “मैं असल में भोजन करने जा रहा हूँ। क्या तुम भी मेरे साथ चलोगे?” मैं इस भोजनालय में ही जा रहा हूँ। वह किशोर अवाक् रह गया। फिर उसने सोचा, “यह व्यक्ति अच्छा लगता है। मैं इसके साथ जाकर देखता हूँ कि यह कहाँ जाता है।” वे दोनों भोजनालय में गए। विश्वनाथ जी उस जगह अक्सर जाया करते थे। उस जगह का मालिक, कर्मचारी व भोजन बनानेवाले सभी उनको जानते थे। जैसे ही वे वहाँ पहुँचे, वे कहने लगे, “नमस्ते, विश्वनाथ जी, आप कैसे हैं?”

जब वे बैठ गए तब उस किशोर ने विश्वनाथ जी से पूछा, “यहाँ के सब लोग आपको कैसे जानते हैं? आप कौन हैं?”

विश्वनाथ जी ने कहा, “मैं अक्सर यहाँ आता हूँ।” उन्होंने भोजन मँगाया और अच्छे से खाया। भोजन करने के बाद जब बिल आया तो ह्यूगो ने कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम्हें अपनी ओर से भोजन कराऊँ किंतु मेरा बटुआ तो तुम्हारे पास है।” किशोर ने उनका बटुआ निकाला और मेज़ पर उनकी ओर सरका दिया।

तब विश्वनाथ जी ने कहा, “मुझे अच्छा लगेगा यदि तुम मुझे कुछ और चीज़ भी दे दोगे। यदि तुम अपना चाकू मुझे दे दो तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”

उस किशोर ने अपना चाकू निकाला और उसे भी मेज़ पर विश्वनाथ जी की ओर सरका दिया।

इस कहानी में जिस बात ने मुझे वास्तव में प्रभावित किया वह, यह नहीं थी कि उस पल उन्होंने किस प्रकार व्यवहार किया अपितु वह थी कि किसी एक पल में हमारा व्यवहार उससे पहले के सभी पलों के कार्यों से निर्धारित होता है। विश्वनाथ जी एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। इसीलिए सम्भवतः उनका ऐसे बहुत से युवाओं से सामना हुआ होगा जो कठिन परिस्थितियों में रहते हैं। जिस प्रकार उस भोजनालय के लोगों ने उनका स्वागत किया, उससे यह लगता है कि वे एक अच्छे इंसान हैं।

हम सोचते हैं कि संसार को कैसे बदला जाए, कैसे सुधार किया जाए, गरीबी को कैसे समाप्त किया जाए, शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को किस प्रकार हल किया जाए, संसार में साम्यता कैसे लाई जाए। ये बड़े-बड़ेप्रश्न हैं।

लेकिन कुछ तो है जो ऐसे क्षण में उभर आता है जब एक किशोर मेज़ पर चाकू रखकर उसे दूसरी ओर यह कहते हुए सरका देता है, *”मैं ऐसा व्यक्ति नहीं बनना चाहता जिसे लोगों को लूटना पड़े। मैं ऐसा व्यक्ति बनना चाहता हूँ जो दूसरों को भोजन करा सके।”*

हम ऐसी बातों के लिए पूर्व योजना नहीं बना सकते हैं। मेरे विचार से हम ऐसी आदतें विकसित करते हैं जिससे हमारी ऐसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक बन जाती है। ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति हिंसा, बल या शक्ति के साथ चाकू लेकर हमारे सामने आता है तो हमारा स्नायु तंत्र इस तरह का हो जाता है

कि हम यह सोचते हैं, “ओह, इस बच्चे को ठंड लग रही है। मुझे अपनी जैकेट भी इसे दे देनी चाहिए।” ऐसे कृत्य की शक्ति का अनुमान लगाना कठिन है किंतु यदि हम सभी इन छोटे-छोटे कार्यों और अभ्यासों को करें तथा इस रास्ते पर चलते हुए स्वयं को रूपांतरित करें तो सोच सकते हैं कि बड़े पैमाने पर होने से इसका असर कितना गहरा होगा!

हम सभी वास्तव में एक सौम्य संसार चाहते हैं। हम सब अपने अंदर सौम्यता लाने के लिए अपने-अपने ढंग से अभ्यास कर रहे हैं। यदि यह बाहर की ओर फैल जाए और एक स्तर तक सौम्यता विकसित हो जाए तो कैसा होगा? तब संसार कैसा दिखेगा?”️

*”स्वभाव में अत्यधिक विनम्रता पैदा करना कोमलता विकसित करने की तकनीक है, ताकि यह प्रेम की ऐसी भावना से भर उठे कि किसी के भी दिल को ठेस पहुंचाने की वजह न बने, शब्द भी ऐसे हों कि किसी के भी दिल को चोट न पहुंचे। एक नेक दिल उदार भावनाएँ और संतुलित मन ‘चरित्र’ की बुनियाद होते हैं।”*

*🕉️🙏 जय सिया राम 🌞 राधे राधे 🙏🕉️*

*🚩 सुप्रभात । स्वस्थ रहें । प्रसन्न रहें । 🚩*

 

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