Spiritual story in hindi – आजकल के समय में प्रत्येक व्यक्ति धन कमाने के लिए बहुत संघर्ष करता है। लोगों को लूटता है।तमाम झूठ बोलता है। चोरी रिश्वतखोरी आदि करता है। उसे यह तक नहीं पता होता कि इन विकारों को करने से व्यक्ति महापाप का भागी बनता है। जिस प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता है ठीक उसी प्रकार आत्मा को शुद्ध करने के लिए हमें अध्यात्म से जुड़ने की आवश्यकता है।
सर्वश्रेष्ठ साधना
मैं अपनी कुटी में गायत्री की साधना किया करता था, तब मुझे बड़े दिव्य अनुभव होते थे। एक रात्रि को मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि दक्षिण दिशा से कोई सितार पर गाता हुआ मेरी कुटी के निकट आया और कुछ देर ठहर कर उत्तर दिशा की ओर चला गया। उठकर देखना चाहा तो अपने को असमर्थ पाया। शरीर ऐसा जड़ हो गया था जैसे लोहे की जंजीरों से जकड़ा हुआ हो।
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ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
जब वह संगीत काफी दूर चला गया तब उठ सका वह उस समय प्रत्यक्ष दर्शन के लिए कुछ न था। उन दिनों मुझे और भी तरह-2 के अनुभव होते थे जैसे-अपने चारों ओर सिद्ध महात्मा घिरे दिखाई देना, उनके आदेश मिलना, शरीर पर बड़े सर्प चढ़ते उतरते दिखाई देना, भयंकर हिंसक पशुओं का आक्रमण होना। सुन्दरी स्त्रियों का दूषित हावभाव करते हुए मेरे निकट फिरना। इस प्रकार के विघ्नों से विचलित न होकर मैंने अपनी साधना की मंजिल पूरी कर ली।
साधना पूरी हो जाने पर अनेक प्रयोगों में मुझे आश्चर्यजनक सफलता दिखाई दी है। विषाक्त कीटाणुओं, रोग दर्द उन्माद आदि से पीड़ित व्यक्तियों को अच्छा कर देना, पथ भ्रष्टों में सुबुद्धि उत्पन्न होना, वस्तुओं का पारदर्शक दीखना आदि। मेरे लिए गायत्री की साधना सर्वश्रेष्ठ और सर्व सुलभ सिद्ध हुई है।
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पुरश्चरण से जीवनोत्थान | regeneration from purashcharan
दो वर्ष पूर्व मैंने गायत्री पुरश्चरण किया था। गायत्री मंत्र जपने में मुझे बड़ा आनन्द आता था चित भी उसमें मेरा खूब ही लगता। मैं इस कार्य को भार रूप नहीं समझता था। किन्तु मैंने गिनती से एक लक्ष सत्ताईस सहस्र जाप कर लिये थे।
गायत्री मंत्र पूर्ण रटा करता था। एक महीने के समय में मेरा चित बड़ा प्रसन्न रहा और अनेक रंग एवं प्रकाश नजर आये। जिस प्रकार अग्नि में स्फुल्लिंग उठते हैं वैसे नेत्रों के सन्मुख अनेक स्फुल्लिंग उठा करते थे और अब भी उठते हैं।
मैं यह नहीं लिखना चाहता कि गायत्री के साधन से मैंने क्या प्राप्त किया ? किन्तु मैं यह जरूर कहूँगा कि गायत्री पुरश्चरण मेरे जीवन के उत्थान का कारण अवश्य हुआ है।
स्त्री की रोग-मुक्ति और पुत्र-प्राप्ति
मेरी स्त्री संग्रहणी रोग से दो वर्ष से पीड़ित थी। अनेक औषधियों का प्रयोग किया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। दैवयोग से अखंडज्योति के किसी अंक में गायत्री की साधना का लेख छपा था उसी के अनुकूल मैंने सवा लक्ष गायत्री मंत्र का अनुष्ठान पन्द्रह दिन में पूरा करने का संकल्प किया और पंद्रहवें दिन गायत्री मंत्र से हवन कराके ब्राह्मण भोजन कराया। अब डेढ़ वर्ष हो चुका है मेरी स्त्री पूर्ण स्वस्थ रहती है। ईश्वर की कृपा से रोग के बाद एक बालक पैदा हुआ है और मैं अगर गायत्री मंत्र से किसी को झाड़ दूँ तो वह अच्छा हो जाता है।
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अखंड ज्योति जुलाई 1948
युग ऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य
सत्संग क्या है ? | सत्संग का क्या अर्थ है
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सत्संग का एक विशेष अर्थ भी है। सत्संग अर्थात् सत का संग। सत्य क्या है? संत कबीर के शब्दों में — “सत् सोई जो बिनसै नाहीं।” जिसका कभी विनाश नहीं होता, ऐसे त्रिकाल अबाधित तत्व को सत्य कहते हैं। वह अविनाशी तत्व क्या है? उत्तर होगा – परमात्मा। वस्तुतः परमात्मा का संग उत्तम कोटि का सत्संग है।
किन्तु यह सत्संग होना आसान नहीं है। इसके पहले हमें साधु-संतों का संग करना पड़ता है। वे हमारी वृत्ति को परमात्मा से जोड़ते हैं और परमात्मा को पाने का यत्न बतलाते हैं। इसलिए व्यवहारिक रूप में सत्संग का अर्थ है, साधु-संतों, महापुरुषों का संग।
यदि हम सत्संग शब्द के भाव को और भी सरल रूप में समझना चाहें तो कहना पड़ेगा कि ‘ऐसा संग जिससे हमारे मन के विचार पवित्र रहें, वह सत्संग है।’
मनुष्य जीवन को दिशा देने में विचार ही प्रधान है। मन के विचार एक दिन वाणी के द्वारा निःसृत होते हैं। वाणी एक दिन कर्म में परिणत हो जाती है। कर्म से आदतें बनती हैं। हमारी आदतें हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं और हमारा व्यक्तित्व ही हमारे भविष्य का जन्मदाता है। अच्छी संगति से हमारे विचार पवित्र होंगे। विचार पवित्र होने से वाणी पवित्र होगी।
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वाणी पवित्र होने से हमारे कर्म पवित्र होंगे। कर्म पवित्र होने से आदतें पवित्र होंगी। आदतें पवित्र होने से हमारा व्यक्तित्व पवित्र और उत्तम होगा और उत्तम व्यक्तित्व से ही हमारे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होगा। यही सत्संग का उद्देश्य है। इसके विपरीत यदि मन के विचार अपवित्र हों, दूषित हों तो वाणी, कर्म, आदतें, व्यक्तित्व; सभी प्रदूषित हो जाएँगे और भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
बात रही सत्संगी होने की तो जिन्होंने जीवन में सत्संग को अपना लिया है या जो सत्संग करते हैं वे सत्संगी कहलाते हैं।
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