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आज का दु:ख कल का सौभाग्य-

-समझिये कैसे आज का दु:ख कल का सौभाग्य बनता है…..

महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे…पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से होंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था,,

मजे की बात ये कि इस होंसले की वजह किसी ऋषि-मुनि या देवता का वरदान नहीं बल्कि श्रवण के पिता का श्राप था।

दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था।

(कालिदास ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है)

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श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था कि ”जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा…..”

दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा।(तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा)

यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया….

ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई….

सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग – अलग दिशाओं में भेज रहे थे,, तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें क्या मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये।

प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे…

उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता…?

तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि…”मैं बाली के भय से जब मारा-मारा फिर रहा था तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली… और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया….”

सोचिये अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता…

इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है :-

“अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें…. वही पुरुषार्थी है।”

ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है…….तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझो।

मतलब…..अगर आज मिले सुख से आप खुश हो…तो कभी अगर कोई दुख,विपदा,अड़चन आ जाये,तो घबराना नहीं…. क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो….

सदैव सकारात्मक रहें……

भक्ति बिना पूरा जीवन व्यर्थ हैं-

एक ज्ञानी नाव में बैठकर नदी पार करते वक्त नाविक से अपना ज्ञान बखान कर रहा था । ज्ञानी नाविक से कह रहा था कि तुमनें पढ़ा नही, अनपढ़ हो इसलिए तुम्हारा चौथाई जीवन बेकार हो गया। तुम्हें अमुक बात का ज्ञान नही इसलिए आधा जीवन बेकार हो गया, तुम्हें अमुक बात का भी भान नही इसलिए पौना जीवन बेकार हो गया । इतने मे भयंकर वर्षा होने लगी, वर्षा का जल नाव में भर गया और नदी में भी भयंकर उफान उठा।

अब तक नाविक चुप बैठा था और सुन रहा था। अब नाविक के बोलने की बारी थी, उसने ज्ञानी से पुछा कि आपको तैरने का ज्ञान है क्या ? ज्ञानी ने कहा – नही, तो नाविक बोला – अब तो आपका पूरा जीवन ही बेकार हो गया। यह कह कर नाविक डुबती नाव से तैर कर अपनी जान बचाने के लिए कूद पडा । ज्ञानी को तैरना नही आता था इसलिए नाव के साथ ही डूब गया।

आध्यात्मिक तौर पर इस कथा को ऐसे समझना चाहिए । एक आधुनिक दौर का मौज मस्ती करने वाला मौजी नामक व्यक्ति एक सरलहृदय प्रभु भक्ति में रमने वाले भक्त से पुछता है कि क्या तुमने विदेश में सैर सपाटा किया । भक्त कहता है – नहीं, तो मौजी कहता है कि चौथाई जीवन व्यर्थ कर दिया । मौजी दुसरा प्रश्न पुछता है भक्त से कि क्या तुमने जीवन में मौज-मस्ती, ऐशो-आराम किया । भक्त कहता है – नहीं, तो मौजी कहता है कि तुमने अपना आधा जीवन ही व्यर्थ कर दिया ।

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मौजी तीसरा प्रश्न पुछता है भक्त से कि क्या तुमने अपनी आने वाली पीढियों के लिए धन-संपति की व्यवस्था की। भक्त कहता है – नही, तो मौजी कहता है कि पौना जीवन व्यर्थ कर लिया । मौजी भक्त के लिए अफसोस करता है कि भक्ति में रम के क्या जीवन जिया, न सैर-सपाटा किया, न ऐशो-आराम किया और न ही आने वाली पीढी के लिए धन-संपति की व्यवस्था की ।

क्योंकि मौजी ने यह सब कुछ भरपूर मात्रा में किया था, इसलिए उसे अपने आप पर गर्व अनुभव होने लगता है। इतने में मौजी के दरवाजे मृत्यु ने दस्तक दी। वह भयंकर रूप से बिमार हुआ और मृत्यु शय्या पर आ गया। भक्त मौजी के पास खडा था पर उसे कुछ पुछने की जरूरत ही नही पडी। मौजी की अंतरआत्मा ने ही मौजी से पुछ लिया कि क्या तुमने प्रभु भक्ति करके भवसागर पार करने का उपाय किया। मौजी ने काँपते हुये स्वर से कहा – ” नही किया ” । अंतरआत्मा ने धिक्कारते हुये कहा कि तुमने अपना पूरा मानव जीवन ही व्यर्थ कर लिया ।

जैसे ज्ञानी का नदी पार नहीं कर पाने के कारण अंत भयंकर हुआ, वैसे ही मौजी का भवसागर पार नहीं कर पाने के कारण अंत भयंकर हुआ। दोनों ही डूब गए, एक नदी में, दूसरा भवसागर में । अधिकत्तर मनुष्यों की विडंबना भी यही है कि मानव जीवन जीने की कला तो बहुत अच्छी तरह से सीख ली और उसे प्रभावी अंजाम देने में लगे हुये हैं । पर मानव जीवन के बाद उनका क्या हश्र होगा यह पहलु उनसे अछुता रह गया क्योंकि उसके लिए तैयारी करना शायद वे भुल गये ।

वर्तमान जीवन जीने की कला तो जानवर भी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।पर मृत्यु उपरान्त की व्यवस्था जैसे आवागमन से मुक्ति, श्रीकमलचरणों में सदैव के लिए आश्रय और परमानंद की प्राप्ति तो सिर्फ और सिर्फ मानव जीवन में किये प्रयासो से ही संभव हो सकता है। यह प्रयास भक्ति का है, यह प्रयास प्रभु से जुडने का है, यह प्रयास प्रभु के बनने का है, यह प्रयास प्रभु को अपना बनाने का है।

वर्तमान जीवन में ऐशो-आराम, सैर-सपाटा, अगली पीढी हेतु संग्रह के प्रयास बहुत तुच्छ और गौण हैं। श्रेष्ठत्तम प्रयास निश्चल भक्ति द्वारा प्रभु प्रिय बनकर मृत्यु उपरान्त सदैव के लिए निश्चिंत होने का है। यह स्वर्णिम अवसर प्रभु ने हमें मानव जीवन देकर दिया है , इसे गँवाना नही चाहिए। अगर गँवा दिया तो कितनी योनियों के बाद, इन योनियों के कर्मफल के कारण कितनी यातनाओ को भोगने के बाद, यह मानवजीवनरूपी अवसर दोबारा कब मिलेगा – यह सोचकर अविलम्ब इस वर्तमान मानव जीवन रूपी अवसर का प्रभु भक्ति में डुबकर श्रेष्ठत्तम उपयोग करना चाहिए।

🚩🚩 जय जय श्रीहरि 🚩🚩

 

मुक्ति की कहानी-

एक बार एक कौआ, मांस के एक टुकड़े को पकड़े हुए शांत जगह की तलाश मे उड़ रहा था।

पास में उड़ रहे बाजों के झुंड ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया। कौआ डर कर घबरा गया। वह ऊंची, और ऊंची उड़ान भरने लगा, फिर भी बेचारे कौआ उन ताकतवर बाजों से पीछा नहीं छुड़ा पाया।

तभी वहाँ से गुजर रहे गरुड़ ने कौए की आँखों की दुर्दशा और पीड़ा देखी। कौए के करीब आकर उसने पूछा, “क्या हुआ, मित्र? तुम बहुत परेशान और अत्यधिक तनाव में लग रहे हो?”

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कौआ रोते हुए बोला, “इन बाजों को देखो! वे मुझे मारने के लिए मेरे पीछे पड़े हैं”।

ज्ञान का पक्षी होने के नाते गरुड़ बोला, “मेरे दोस्त! वे तुम्हें मारने के लिए तुम्हारे पीछे नहीं हैं! वास्तव में, वे मांस के उस टुकड़े के पीछे हैं जिसे तुम अपनी चोंच में कसकर पकड़े हुए हो। बस इसे छोड़ दो और देखो क्या होता है।

कौए ने गरुड़ की सलाह मानकर मांस का टुकड़ा गिरा दिया और चमत्कारी तरीके से बाज का पूरा झुंड, गिरते हुए मांस की ओर उड़ गया।

गरुड़ मुस्कुराया और बोला, “दर्द केवल तब तक रहता है जब तक तुम इसे पकड़े रहते हो। बस इसे छोड़ दो और दर्द से मुक्ति।”

कौआ नतमस्तक हो बोला, “आपकी बुद्धिमानी भरी सलाह के लिए धन्यवाद। मैंने मांस का यह टुकड़ा गिरा दिया और अब मैं बिना तनाव के और भी ऊंची उड़ान भर सकता हूँ।”

इस कहानी में हम सभी के लिए ये संदेश हैं:-

हम ‘अहंकार’ नाम का एक बहुत बड़ा बोझ ढोते हैं, जो अपने बारे में एक झूठी पहचान बनाता है, जैसे – “मैं ऐसा हूं और इसलिए, मुझे प्यार किया जाना चाहिए, मुझे सम्मान मिलना चाहिए, और तवज्जो मिलनी चाहिए, आदि।”

आइये मुक्त हो जाएं इस मूर्खतापूर्ण ‘अहंकार’ और ‘ स्वयं के प्रति मिथ्या धारणाओं’ से’, फिर देखें कि क्या होता है!

हम मिट्टी में से उठे हैं और मिट्टी में मिल कर फिर से लौटेंगे।

खुश रहिए और मुस्कुराइए।

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है!!🌹🙏🙏🕉️

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