जगन्नाथ स्वामी की अदभुत कथा हिंदी में | जगन्नाथ पुरी | उडिशा

जगन्नाथ पुरी । जगन्नाथ स्वामी की अदभुत कथा हिंदी में

राधे राधे! 🙏🙏 दोस्तों भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ी तो उनका अंतिम संस्कार किया गया, उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया, लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है, जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है, ये बात बहुत कम लोगो को पता है!

God's glory and man's pride in hindi
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महाप्रभु का महा रहस्य -: सोने की झाड़ू से होती है सफाई। महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है। पुरी (उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है, मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया।

हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है, यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है,लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है,उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता।

कृष्ण ज्ञान की बातें
कृष्ण ज्ञान की बातें

 

मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है, पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है, पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है वो पुरानी मूर्ती से “ब्रह्म पदार्थ” निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है, ये ब्रह्म पदार्थ क्या है

आजतक किसी को नही पता इसे आजतक किसी ने नही देखा हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है, ये एक अलौकिक पदार्थ है।

जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए, इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है, मगर ये क्या है, कोई नही जानता,भगवान जगन्नाथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं, जब साल में आसाढ़ के दो महीने आते हैं।

इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ?? कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था, आंखों में पट्टी थी हाथ में दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए।

आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है। भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी।

आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता,झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है, दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।

भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है और भी कितनी ही आश्चर्यजनक चीजें हैं,हमारे सनातन धर्म की।

जगन्नाथ जी की कथा हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का ही रूप हैं, जिन्हें उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ पूजा जाता है। उनकी कथा ओडिशा के पुरी में स्थित प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी हुई है। यहां जगन्नाथ जी की रथयात्रा और उनके भव्य स्वरूप की पूजा विशेष महत्व रखती है।

जगन्नाथ स्वामी की अदभुत कथा हिंदी में:

एक बार राजा इंद्रद्युम्न, जो मालवा के एक धर्मपरायण राजा थे, को भगवान विष्णु के विशेष रूप में श्री जगन्नाथ के दर्शन करने की इच्छा हुई। उन्होंने अनेक ऋषियों और विद्वानों से परामर्श किया और पता चला कि श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा का विग्रह समुद्र किनारे नीलाचल पर्वत (वर्तमान पुरी) में मिलता है।

राजा इंद्रद्युम्न ने तुरंत वहाँ एक मंदिर बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और मंदिर निर्माण शुरू कर दिया। लेकिन भगवान के विग्रह का स्वरूप तैयार नहीं हो पा रहा था। तब भगवान स्वयं प्रकट हुए और राजा को आदेश दिया कि वे एक विशेष लकड़ी (दिव्य नीम की लकड़ी) का उपयोग करके विग्रह तैयार करें।

भगवान विश्वकर्मा (देवताओं के शिल्पकार) वृद्ध ब्राह्मण के रूप में वहाँ आए और कहा कि वे इस कार्य को करेंगे, लेकिन शर्त यह है कि जब तक मूर्ति तैयार न हो जाए, तब तक कोई भी दरवाजा नहीं खोलेगा। राजा ने उनकी शर्त मान ली।

जब मूर्ति निर्माण का कार्य कई दिनों तक चलता रहा और भीतर से कोई आवाज आनी बंद हो गई, तो रानी गोंडिचा की चिंता बढ़ गई। उन्होंने राजा से कहा कि दरवाजा खोलें। जब दरवाजा खोला गया, तो मूर्तियाँ अधूरी थीं। भगवान के हाथ और पैर पूरे नहीं बने थे। तब ब्राह्मण ने कहा कि यह भगवान की ही इच्छा है कि वे इसी रूप में पूजे जाएं।

इस प्रकार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ पुरी मंदिर में स्थापित की गईं।

रथयात्रा की कथा:

रथयात्रा का आयोजन भगवान जगन्नाथ की वार्षिक यात्रा के रूप में होता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाते हैं। यह यात्रा भक्तों को यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए स्वयं उनके पास आते हैं।

इस कथा का संदेश यह है कि भगवान सदा अपने भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं और उन्हें अपनी कृपा प्रदान करते हैं। जगन्नाथ जी का यह स्वरूप अनन्य भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।

जय हो सनातन धर्म की 🙏 श्री जय जगन्नाथ स्वामी की जय 🚩

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