कर्म का चक्र | Cycle of Karma | ज्ञानवर्धक लघु कहानी

कर्म का चक्र | Cycle of Karma

राधे राधे 🙏🙏

दोस्तों! आज की कहानी में एक राजा ने ब्राह्मणों के लिए भंडारा कराया, लेकिन अनजाने में भोजन में साँप का विष मिल गया, जिससे सभी ब्राह्मणों की मृत्यु हो गई। यमराज असमंजस में थे कि इस पाप का भागीदार कौन बने—राजा, रसोईया, चील या साँप?

ईश्वर के संकेत
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कर्म का चक्र | Cycle Of Karma

बहुत समय पहले की बात है। एक परोपकारी और धर्मपरायण राजा अपने महल में भव्य यज्ञ और भंडारे का आयोजन कर रहा था। इस आयोजन में दूर-दूर से ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया था ताकि वे पवित्र भोजन ग्रहण करें और राजा को आशीर्वाद दें। राजा स्वयं इस आयोजन को लेकर अत्यंत उत्साहित था क्योंकि वह धर्म-कर्म में अटूट आस्था रखता था। महल के आँगन में एक विशाल रसोईघर बनाया गया, जहाँ राजा के विशेष रसोइए विभिन्न पकवानों को तैयार कर रहे थे। भोजन की सुगंध चारों ओर फैल रही थी, और वातावरण अत्यंत पवित्र प्रतीत हो रहा था। उसी समय, आकाश में एक चील अपने पंजों में एक जिंदा साँप को पकड़े हुए उड़ रही थी।

वह चील भोजन की तलाश में थी, और संयोग से उसने एक जहरीले साँप को पकड़ लिया था। जब चील राजा के महल के ऊपर से गुजरी, तो पकड़े जाने के डर से साँप छटपटाने लगा। अपनी आत्म-रक्षा के लिए उसने अपने फन से जहर निकाला, और दुर्भाग्यवश उस विष की कुछ बूँदें खुले रसोईघर में पक रहे भोजन में गिर गईं। रसोईया अपने काम में इतना व्यस्त था कि उसे इस घटना का बिल्कुल भी आभास नहीं हुआ। उसने भोजन को ब्राह्मणों के लिए परोस दिया। जैसे ही ब्राह्मणों ने भोजन ग्रहण किया, जहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते, सभी ब्राह्मणों की मृत्यु हो गई।

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जब यह दुखद समाचार राजा तक पहुँचा, तो वह अत्यंत व्यथित हो गया। वह अपने महल में ब्राह्मणों को भोजन कराने के उद्देश्य से पुण्य कमाना चाहता था, लेकिन इसके स्थान पर वह अनजाने में ब्रह्म-हत्या का दोषी बन गया था।

राजा बहुत दुखी था, परन्तु वह यह नहीं समझ पा रहा था कि इस अनजाने अपराध का दंड किसे मिलेगा। उधर, यमराज के दरबार में भी यह प्रश्न एक उलझन बन गया था। यमराज के सेवकों ने इस पाप के लिए कई संभावनाओं पर विचार किया—क्या दोष राजा का था, जिसने भोजन का आयोजन किया था? क्या दोष रसोईये का था, जिसने भोजन बनाया था? या फिर चील और साँप का था, जिनकी वजह से जहर भोजन में मिला था?

यमराज इस निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहे थे कि इस पाप का फल किसके हिस्से में डाला जाए। कुछ दिनों के बाद, कुछ ब्राह्मण उसी राज्य में आए और उन्हें राजा के महल जाने का रास्ता नहीं पता था। उन्होंने रास्ते में खड़ी एक महिला से महल जाने का मार्ग पूछा। उस महिला ने न केवल उन्हें रास्ता बताया बल्कि व्यंग्यपूर्वक यह भी कहा— “देखो भाई! जरा ध्यान रखना, यह वही राजा है जो ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है।” महिला के इन शब्दों में व्यंग्य और कटाक्ष था। वह घटना को बढ़ा-चढ़ाकर कह रही थी और राजा की छवि को नष्ट करने के लिए ऐसा कह रही थी।

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जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी क्षण यमराज ने निर्णय ले लिया। उनके दूतों ने जिज्ञासावश पूछा—“प्रभु, इस महिला ने तो किसी की हत्या नहीं की, फिर आप इसे दंड क्यों दे रहे हैं?” यमराज ने उत्तर दिया—“जब भी कोई व्यक्ति पाप करता है, तो उसे उसमें आनंद नहीं आता। इस घटना में न तो राजा को कोई सुख मिला, न ही रसोईये को, न चील को और न ही साँप को। लेकिन इस महिला ने इस घटना का बखान करने में आनंद लिया। उसने इसे निंदा और कटाक्ष के रूप में कहा, और इसलिए यह पाप अब उसके खाते में जाएगा।”

यमराज के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब कोई व्यक्ति किसी के पाप-कर्म का प्रचार निंदा और बुराई के साथ करता है, तो उस पाप का एक अंश उसके खाते में चला जाता है। इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी की भी बुराई या चुगली करने से बचना चाहिए। हम अक्सर सोचते हैं कि हमने कोई गलत कार्य नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में परेशानियाँ क्यों आती हैं। वास्तव में, जब हम दूसरों की गलतियों का आनंद लेते हैं और उनकी निंदा करते हैं, तो उनके पापों का एक हिस्सा हमारे खाते में भी आ जाता है।

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इसलिए, हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हम दूसरों के दोषों को उजागर करने के बजाय अपने कर्मों को सुधारने पर ध्यान दें। यदि हम किसी की गलती के बारे में बोल भी रहे हैं, तो उसका उद्देश्य सीख देना होना चाहिए, न कि आनंद लेना। अन्यथा, हमें भी उस पाप का फल भोगना पड़ेगा।

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राधे राधे 🙏🙏 एक सच्ची कहानी। एक बार अवश्य पढ़े 🙏

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