शंकर जी पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है ? भगवान शिव को दूध चढ़ाना एक पुण्य का काम माना जाता है। शिवलिंग का जलाभिषेक करने के साथ ही दूध से अभिषेक करने की परम्परा का देश भर में पूरी आस्था से पालन किया जाता है। सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाना तो जैसे अनिवार्य ही समझा जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है?
इसका वैज्ञानिक तर्क है। भगवान शंकर जी पर दूध सावन के महीने में चढ़ाया जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में 12 जून तक मानसून आ जाता है, और 25 जून तक मानसून लगभग पूरे भारत में फैल जाता है। आषाढ़ में पहली बारिश होती है, और उसके बाद सब तरफ हरियाली हो जाती है। हरियाली होते-होते सावन लग जाता है और जमीन में घास उग जाती है। जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि बारिश का पहला पानी नुकसानदायक होता है क्योंकि नीचे से प्रदूषण ऊपर जाता है, और बारिश के रूप में वापस धरती पर बरसता है।
आषाढ़ में जब पहली बारिश होती है तो उसके साथ ही सारा प्रदूषण भी नीचे आता है। उसी प्रदूषित पानी से घास उग जाती है। प्रदूषित पानी से उगी घास भी जहरीली ही होती है, और जब गाय और भैंस इस घास को खाएंगे तो उनका दूध भी उतना ही जहरीला होगा ,और इस जहरीली दूध का सेवन करना सेहत के लिए हानिकारक होगा। क्योंकि दूध को हमारे सनातन धर्म में गौरस बोला जाता है, और इसे फेक भी नहीं सकते,तो हमारे बड़े बुजुर्गों ने यह तर्क निकाला कि क्यों ना इसे शिवलिंग पर चढ़ा दिया जाए।
इसलिए शुरुआत के एक हफ्ते का दूध, क्योंकि गाय के जहरीली घास का सेवन करने से बहुत ही जहरीला हो गया, इसलिए दूध शिवलिंग पर चढ़ाने की प्रथा की शुरुआत हुई। शंकर जी के मंदिर, झरने और तालाब के किनारे होते थे और यह दूध बहकर नदी , झरने और तलाब में मिल जाता था।
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