पुनर्जन्म किसको कहते हैं | आत्मा क्या है | मोक्ष का अर्थ
यह लेख आपको आत्मा, पुनर्जन्म और मोक्ष से जुड़े उन सवालों के उत्तर देता है जो इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा सर्च किए जाते हैं। अगर आप जानना चाहते हैं “क्या आत्मा अमर होती है?” या “मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है?”, तो यह लेख आपके लिए है।
पुनर्जन्म किसको कहते हैं?
जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं। यह आत्मा की निरन्तर चलने वाली यात्रा है, जिसमें वह अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल भोगने के लिए बार-बार नया शरीर धारण करती है। जब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं कर लेती, तब तक यह चक्र चलता रहता है।
पुनर्जन्म क्यों होता है?
जब एक जन्म के अच्छे-बुरे कर्मों के फल अधूरे रह जाते हैं या किसी कारणवश वे इस जन्म में भोगे नहीं जा सकते, तो आत्मा को दूसरे जन्म में उन्हें भोगने का अवसर मिलता है। यह एक प्रकार से ईश्वरीय न्याय व्यवस्था है, जहाँ हर आत्मा को अपने कर्मों का पूरा फल मिलता है।
अच्छे-बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता?
ऐसा संभव नहीं क्योंकि एक जन्म की सीमित अवधि में आत्मा सभी कर्मों का फल नहीं भोग सकती। कई बार किसी व्यक्ति के जीवन में कुछ कर्मों का फल तत्काल मिलता है, कुछ का थोड़े समय बाद, और कुछ ऐसे होते हैं जिनका फल अगले जन्म तक स्थगित रहता है। यही कारण है कि पुनर्जन्म की आवश्यकता होती है।

पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है?
पुनर्जन्म को समझने के लिए सबसे पहले जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझना होगा। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि आत्मा, शरीर, और मन क्या हैं और उनका परस्पर संबंध क्या है। आत्मा शाश्वत और अमर है, जबकि शरीर नश्वर है। आत्मा शरीर बदलती है जैसे हम कपड़े बदलते हैं।
शरीर के बारे में समझाएँ?
हमारा शरीर प्रकृति से बना है। इसमें मूल प्रकृति के तीन गुण होते हैं – सत्व, रजस और तमस। इनसे बुद्धि का निर्माण होता है, फिर अहंकार उत्पन्न होता है, जिससे पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और मन की उत्पत्ति होती है। शरीर दो भागों में विभाजित होता है: स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर। स्थूल शरीर पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना है जबकि सूक्ष्म शरीर में मन, बुद्धि, अहंकार और ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं।
सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं?
सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन और ज्ञानेन्द्रियाँ सम्मिलित होती हैं। यह आत्मा के साथ जन्म-जन्मांतर तक बना रहता है जब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं कर लेती। यह शरीर आत्मा के लिए कारण शरीर की तरह कार्य करता है और इसी के आधार पर आत्मा नए शरीर का चयन करती है। यह सृष्टि के आरम्भ से लेकर अंत तक (4.32 अरब वर्षों की अवधि) एक ही आत्मा के साथ रहता है।

स्थूल शरीर किसको कहते हैं?
स्थूल शरीर वह भौतिक शरीर है जिसे हम देख और अनुभव कर सकते हैं। इसमें पंचकर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, वाणी, गुदा, लिंग), पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और अन्य सभी अंग सम्मिलित होते हैं। यह शरीर पंचमहाभूतों से बना होता है और मृत्यु के समय यह शरीर पंचतत्वों में विलीन हो जाता है।
जन्म क्या होता है?
जन्म वह स्थिति है जब आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ किसी पंचभौतिक स्थूल शरीर में प्रवेश करती है। यह आत्मा की नयी यात्रा की शुरुआत होती है, जिसमें वह पुराने जन्म के अधूरे कर्मों को पूरा करने तथा नए कर्म करने के लिए एक नया शरीर धारण करती है।
मृत्यु क्या होती है?
मृत्यु वह प्रक्रिया है जब आत्मा अपने स्थूल शरीर को त्याग देती है। मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, आत्मा और सूक्ष्म शरीर बने रहते हैं। मृत्यु आत्मा का शरीर बदलना मात्र है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़े उतारकर नए पहनता है। यदि सूक्ष्म शरीर भी नष्ट हो जाए, तभी मोक्ष होता है।
मृत्यु होती ही क्यों है?
जैसे कोई वस्तु निरन्तर उपयोग में लाने से क्षीण हो जाती है, उसी प्रकार शरीर भी समय के साथ क्षीण हो जाता है और इन्द्रियाँ दुर्बल हो जाती हैं। तब आत्मा उस शरीर को छोड़कर नया शरीर ग्रहण करती है ताकि वह कर्मों को भली प्रकार कर सके। इस प्रक्रिया को मृत्यु कहा जाता है।

मृत्यु न होती तो क्या होता?
यदि मृत्यु न होती तो पृथ्वी पर भारी अव्यवस्था फैल जाती। जनसंख्या अत्यधिक बढ़ जाती और धरती पर रहने की भी जगह न बचती। सभी लोग अमर होकर जिएं तो न कोई नया जन्म ले सके और न ही जीवन की प्रक्रिया आगे बढ़ सके। इसलिए मृत्यु प्रकृति द्वारा संतुलन बनाए रखने का एक आवश्यक साधन है।
क्या मृत्यु होना बुरी बात है?
नहीं, मृत्यु कोई बुरी बात नहीं है। यह तो शरीर परिवर्तन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जैसे हम पुराने कपड़े उतारकर नए पहनते हैं। यह आत्मा के लिए एक नया अवसर होता है — अपने अधूरे कर्मों को पूरा करने का, नये अनुभव लेने का और मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का।
लोग मृत्यु से डरते क्यों हैं?
क्योंकि उन्हें मृत्यु के वास्तविक स्वरूप की जानकारी नहीं होती। वे अज्ञानता के कारण मृत्यु को कष्टदायक और भयावह समझते हैं। यदि वे वेद, उपनिषद, दर्शन और योग के माध्यम से मृत्यु के पीछे छिपे ज्ञान को समझें तो उनका भय समाप्त हो जाए।
मृत्यु के समय कैसा लगता है?
मृत्यु के समय वह अनुभव वैसा ही होता है जैसा हमें गहरी नींद में जाने से पहले होता है। धीरे-धीरे चेतना लुप्त हो जाती है और आत्मा शरीर को त्याग देती है। यदि मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आत्मा मूर्छित अवस्था में चली जाती है जिससे उसे कोई पीड़ा न हो। यह ईश्वर की कृपा है कि मृत्यु के समय व्यक्ति ज्ञानशून्य होकर सुषुप्ति की अवस्था में पहुँच जाता है।
मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें?
मृत्यु के डर को दूर करने के लिए व्यक्ति को वैदिक ग्रंथों जैसे उपनिषद, गीता, दर्शन आदि का अध्ययन करना चाहिए। इसके साथ ही योगाभ्यास करें, ध्यान और आत्मचिंतन करें। जब आत्मा को यह समझ आ जाती है कि वह अमर है और मृत्यु केवल परिवर्तन है, तब यह भय समाप्त हो जाता है।
क्या मृत्यु के बाद आत्मा तुरंत नया जन्म ले लेती है?
नहीं, आत्मा तुरंत नया जन्म नहीं लेती। मृत्यु के बाद आत्मा कुछ समय तक सूक्ष्म लोकों में रहती है। वहाँ वह अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार विभिन्न अनुभव प्राप्त करती है और जब उसके अगले जन्म के लिए उपयुक्त वातावरण और परिस्थितियाँ बनती हैं, तब वह पुनः किसी शरीर में जन्म लेती है।
मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है?
मृत्यु के बाद आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ यमलोक या पितृलोक जैसी सूक्ष्म दुनिया में चली जाती है। वहाँ उसे उसके कर्मों के अनुसार स्थान और अनुभव मिलते हैं। अच्छे कर्मों वाले स्वर्ग जैसे स्थानों में जाते हैं, और बुरे कर्मों वाले निचले लोकों में। यह स्थिति स्थायी नहीं होती; आत्मा अंततः पुनर्जन्म के लिए वापस लौटती है।
क्या आत्मा को स्वर्ग या नरक मिलता है?
हाँ, लेकिन यह स्थायी नहीं होता। स्वर्ग और नरक आत्मा के कर्मों के आधार पर उसे मिलने वाले अस्थायी अनुभव हैं। जब आत्मा अपने अच्छे या बुरे कर्मों का फल भोग लेती है, तब उसे पुनः पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है। स्वर्ग और नरक को अनुभव करने का स्थान कहा जा सकता है, न कि अंतिम गंतव्य।
क्या आत्मा को अपने पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं?
आत्मा को सब कुछ याद होता है लेकिन नया शरीर और नया मस्तिष्क उस स्मृति को व्यक्त नहीं कर पाता। यह प्रकृति की व्यवस्था है ताकि व्यक्ति नया जीवन नए सिरे से शुरू कर सके। यदि हमें पूर्व जन्मों की सारी बातें याद रहतीं तो हम मानसिक रूप से अत्यधिक बोझिल और अशांत हो जाते।
क्या कुछ लोगों को अपने पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं?
हाँ, कुछ विशेष परिस्थितियों में या विशेष योग और साधना के माध्यम से कुछ लोगों को अपने पूर्व जन्म की स्मृति हो सकती है। कई बार छोटे बच्चे भी अपने पूर्व जन्म की बातें बताते हैं जो बाद में सत्य सिद्ध होती हैं। वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक भी अब इन घटनाओं की पुष्टि कर रहे हैं।
आत्मा को नया शरीर कैसे मिलता है?
आत्मा को नया शरीर उसके पूर्व जन्मों के संचित कर्मों और इच्छाओं के आधार पर मिलता है। मृत्यु के बाद जब आत्मा सूक्ष्म लोकों में रहती है, तब उसके कर्म और संस्कार यह तय करते हैं कि उसे किस योनि में, किस प्रकार का शरीर, किस परिवार में और किन परिस्थितियों में जन्म मिलेगा। ईश्वर और प्रकृति की अद्भुत व्यवस्था के अनुसार यह सब स्वतः संचालित होता है।
आत्मा को कौन नया शरीर देता है?
ईश्वर और प्रकृति की संयुक्त शक्ति आत्मा को नया शरीर प्रदान करती है। प्रकृति, आत्मा के कर्मों और इच्छाओं के अनुसार उपयुक्त वातावरण बनाती है और ईश्वर आत्मा को उस शरीर में प्रवेश कराता है। इसे ब्रह्मा की रचना प्रक्रिया भी कहा जाता है, जहाँ ब्रह्मा एक योनि का निर्माण करते हैं और आत्मा उसमें प्रवेश करती है।
क्या आत्मा को शरीर मिलने में गलती हो सकती है?
नहीं, प्रकृति और ईश्वर की व्यवस्था त्रुटिहीन है। आत्मा को वही शरीर मिलता है जो उसके कर्मों और संस्कारों के अनुसार उपयुक्त होता है। कभी-कभी हमें लगता है कि किसी को ऐसा शरीर क्यों मिला, लेकिन उसके पीछे गहरे कर्म बंधन और पिछले जन्मों की स्थितियाँ होती हैं। यह एक पूर्ण न्याय प्रक्रिया है।
आत्मा कौन-कौन से शरीर ले सकती है?
आत्मा अनंत प्रकार के शरीर धारण कर सकती है — जैसे मनुष्य, पशु, पक्षी, जलचर, कीट, पेड़-पौधे आदि। हिंदू धर्म के अनुसार 84 लाख योनियाँ होती हैं जिनमें आत्मा जन्म ले सकती है। मनुष्य योनि इन सभी में सर्वोत्तम मानी गई है क्योंकि इसमें आत्मबोध और मोक्ष का मार्ग खुला रहता है।
क्या आत्मा हमेशा मनुष्य शरीर में जन्म लेती है?
नहीं, आत्मा अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेती है। यदि कर्म अच्छे हों तो आत्मा पुनः मनुष्य जन्म प्राप्त कर सकती है या स्वर्ग में जा सकती है। यदि बुरे कर्म अधिक हों तो आत्मा पशु, पक्षी या अन्य निम्न योनियों में भी जन्म ले सकती है। यह क्रम तब तक चलता है जब तक आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।
क्या आत्मा पेड़-पौधों में भी जन्म लेती है?
हाँ, पेड़-पौधे भी जीवन के रूप हैं और आत्मा उनमें भी प्रवेश कर सकती है। यह विशेष रूप से तब होता है जब आत्मा को अत्यंत शांत और निष्क्रिय जीवन की आवश्यकता हो या जब उसके कर्म उसे इस स्थिति में लाने के लिए बाध्य करें। वृक्षों का जीवन दीर्घकालीन होता है और इसमें आत्मा लंबे समय तक विश्राम की स्थिति में रह सकती है।
क्या आत्मा जानवरों में भी जन्म लेती है?
हाँ, पशु-पक्षियों में भी आत्मा जन्म लेती है। जब आत्मा के बुरे कर्म अधिक होते हैं या वह केवल इन्द्रिय सुखों में लिप्त रहती है, तब उसे पशु योनि में जन्म लेना पड़ता है। यहाँ आत्मा केवल भोग करती है और कोई नया कर्म नहीं कर सकती। यह एक प्रकार की सजा या विश्राम की अवस्था मानी जाती है।
क्या आत्मा की उन्नति या अवनति होती है?
हाँ, आत्मा की उन्नति उसके अच्छे कर्मों, साधना, भक्ति और ज्ञान से होती है। यदि आत्मा बार-बार अच्छे कर्म करती है तो उसे उत्तम योनियाँ और अंततः मोक्ष प्राप्त होता है। यदि वह बुरे कर्म करती है तो उसे निम्न योनियों में जन्म लेना पड़ता है। यह क्रम पुनर्जन्म के चक्र में चलता रहता है।
क्या आत्मा को मोक्ष मिल सकता है?
हाँ, आत्मा को मोक्ष मिल सकता है जब वह सभी कर्म बंधनों से मुक्त हो जाती है। यह तभी संभव है जब आत्मा ईश्वर का साक्षात्कार कर ले, आत्मज्ञान प्राप्त कर ले और सभी इच्छाओं का त्याग कर दे। मोक्ष मिलने पर आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती है और परमशांति को प्राप्त करती है।
मोक्ष क्या होता है?
मोक्ष आत्मा की अंतिम अवस्था है जहाँ वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। यह ईश्वर की पूर्ण प्राप्ति और शाश्वत आनंद की अवस्था है। इसमें आत्मा स्वतंत्र, शांत और पूर्ण होती है। यह वैदिक धर्म का परम लक्ष्य है और सभी साधना, भक्ति, ज्ञान और योग का अंतिम उद्देश्य है।
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