गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु कब हुआ था | Gautam Buddha born and died in hindi

गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु:-गौतम बुद्ध, जिन्हें सिद्धार्थ गौतम के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। वे एक ऐतिहासिक और धार्मिक व्यक्तित्व थे जिनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। आइए पढ़ते हैं गौतम बुद्ध के जन्म और मृत्यु से जुड़ी हुई कुछ बातें।

गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व के आसपास, हिमालय की गोद में बसे, नेपाल के लुंबिनी, नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोदन था। शुद्धोदन एक राजा थे। बुद्ध की मां का नाम महामाया था। बुद्ध के जन्म से अनेकों कहानी जुड़ी हुई है। उनकी कथाओं को जातक कथाओं के नाम से जाना जाता है। बुद्ध की सभी जातक कथाओं का उद्देश्य समाज को नैतिकता का जीवन देना है।

जातक कथाओं के अनुसार, भगवान के अनेक अवतारों में से एक अवतार, गौतम बुद्ध भी थे। यह कथाएं बताती है कि किस प्रकार बुद्ध ने एक अवतार से दूसरे अवतार में जन्म लिया और अधिक से अधिक सिद्धियां को हासिल किया। जातक कथाओं के अनुसार, उनके जन्म से पहले, उनकी मां ने एक सपना देखा था। एक सुंदर सफेद हाथी ने, रानी को एक कमल का फूल अर्पित किया और फिर उसके शरीर में प्रवेश किया।

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जब ऋषियों को, सपने की व्याख्या करने के लिए कहा गया तो, उन्होंने एक भविष्यवाणी की, कि रानी एक पुत्र को जन्म देगी, जो या तो एक महान शासक बनेगा, या फिर एक महान संयासी बनने के लिए नियत होगा। उन्होंने कहा वह या तो दुनिया को जीत लेगा या एक प्रबुद्ध व्यक्ति बन जाएगा। कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार, बुद्ध का जब जन्म हुआ तो, इस अवसर पर राजा शुद्धोदन ने, एक समारोह का आयोजन किया। समारोह के दौरान, शुद्धोदन ने राज्य के प्रतिष्ठित, प्रमुख ज्योतिषियों को निमंत्रण दिया।

ज्योतिष बुद्ध के इस शिशु रूप को देखकर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। जब एक सबसे अनुभवी ज्योतिष ने बुद्ध के ग्रह नक्षत्र देखें, तो उन्हें गणना करके बताया कि महाराज इस राजकुमार की दो ही गति है, या तो वह एक महान शासक बनेगा, या फिर एक महान सन्यासी। वहां उपस्थित सभी ज्योतिषियों ने, इसी बात को दोहराया, कि राजकुमार की एक ही गति है। यह निश्चित ही एक महान सन्यासी बनेगा। धर्म विजय करेगा। नामकरण समारोह में, शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। जिसका अर्थ है, वह जिसने सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्म लिया हो।

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गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु

ऐसा जानकर राजा तो बहुत डर गए। उनका राजकुमार भला क्यों बनेगा एक सन्यासी, राजा का पुत्र है, राज करेगा, पूरे ब्रह्मांड में अपनी पताका फहराएगा आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि राजा का बेटा संयासी बन गया हो, राजमहल छोड़कर सन्यासी बनने की कल्पना ने उन्हें डरा दिया था इसलिए राजा शुद्धोदन ने, बचपन से ही सिद्धार्थ के रहने के लिए, भोग विलास, आनंद से भरे महलों का निर्माण कर दिया था जिससे कि उसका ध्यान सन्यास की तरफ कभी न जाए

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कहानियों के अनुसार उनके रहने के लिए तीन अलग-अलग महलों का निर्माण किया गया था एक महल गर्मियों के मौसम के लिए था। जिसमें सफेद कमल से भरा हुआ तालाब था और सिद्धार्थ वहां गर्मियों के मौसम में रहा करते थे। सर्दियों के मौसम के लिए लाल कमल से भरा हुआ तालाब था, और तीसरा महल बरसात के मौसम के लिए था। जिसमें नीले कमल खिले रहते थे। राजकुमार के लिए ऐसी-ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया गया, जिससे उस पर बाहरी जीवन की परछाई तक ना पड़े, और हो भी क्यों ना, क्योंकि शुद्धोदन जानते थे ,कि महलों में रहकर और भोग विलास में पड़कर कोई राजकुमार सन्यासी नहीं बन पाया था।

सिद्धार्थ के पैदा होने के 7 दिन बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उसका लालन पोषण महामाया की बहन महा प्रजापति गौतमी ने किया था। सिद्धार्थ राजश्री विलासिता में पले-बड़े, बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ, ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा दी गई और तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती, तैराकी और दौड़ने में प्रशिक्षित किए गए। जब सिद्धार्थ बड़े हुए तो, उनका विवाह यशोधरा के साथ हुआ। सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम राहुल रखा गया।

बुद्ध के प्रेरक विचार
गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु

विवाह के बाद, सिद्धार्थ बाहरी दुनिया से बहुत अधिक ही दूर हो गए और राजा शुद्धोदन अब इस बात से स्पष्ट हो गए कि अब सिद्धार्थ का सन्यासी बनना असंभव है। राजकुमार सिद्धार्थ के पास सब कुछ था, जिसके कारण उसका ध्यान बाहर की दुनिया में नहीं जाता। राजा शुद्धोदन उसके हर कार्य की जानकारी लिया करते, और समाज की परछाई तक उस पर ना पढ़ने देते।

अब तो उनको भी यकीन हो गया था कि ऐसे आनंद में जीवन बिताने के बाद उसे छोड़ना, किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता है यह सब राजा के मन के अनुसार तो अच्छा था राजर्षि परिवार के हिसाब से सब कुछ ठीक चल रहा था, पर उस समय के सबसे महान व्यक्तियों में से एक सिद्धार्थ, अब समय के अनुसार नहीं थे, क्योंकि उनकी नियति में तो बुद्ध बनना था, जो कि अभी तक नहीं हो पाया था

गौतम बुद्ध की मृत्यु कब हुई थी?

गौतम बुद्ध का निधन 483 ईसा पूर्व में हुआ था। उनकी मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा जाता है, और यह घटना उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुई थी।

गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। यह माना जाता है कि उनके अंतिम क्षणों में, बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया और उन्हें अपने विचारों और शिक्षाओं को फैलाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अंतिम उपदेश में कहा था कि सभी संयोगधर्मी वस्तुएँ नश्वर हैं और प्रत्येक व्यक्ति को अपने मुक्ति के मार्ग पर स्वयं चलना चाहिए।

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बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, उनके अवशेषों को उनके अनुयायियों ने संजोया और विभिन्न स्तूपों में स्थापित किया। ये स्तूप आज भी बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं। कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर और स्तूप उन स्थानों में से एक हैं जहां बुद्ध के अनुयायी उनके अंतिम उपदेशों को स्मरण करते हैं और ध्यान करते हैं।

महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के विचार और शिक्षाएँ कई शताब्दियों तक फैलती रहीं और उन्होंने एशिया और अन्य क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बौद्ध धर्म के अनुयायी आज भी बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हैं और उनके मार्गदर्शन का पालन करते हैं।

गौतम बुद्ध के उपदेश | अनमोल विचार

भगवान बुद्ध के कुछ अनमोल विचार इस प्रकार हैं—

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  1. जहां प्रेम है वहां जीवन है, जहां घृणा है वहां विनाश है।
  2. सबसे पहले अपने आप को ठीक मार्ग पर लगाओ और तब दूसरों को उपदेश दो।
  3. जिस प्रकार लोहे से उत्पन्न हुआ जंग लोहे को ही खा जाता है, उसी प्रकार पापी के अपने कर्म ही उसे दुर्गति तक ले जाते हैं।
  4. मनुष्य का जन्म पाना कठिन है, मनुष्य का जीवित रहना कठिन है, सद्धर्म श्रवण कठिन है और बुद्धों का उत्पन्न होना कठिन है।
  5. जो जीव-हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, पर-स्त्री गमन करता है, शराब-दारु पीता है; वह इस संसार में अपनी ही जड़ खोदता है।
  6. ऊंचा जीवन स्तर नहीं है, बल्कि ऊंचा आचरण सुख का मूल मंत्र है।
  7. दूसरों की कमियां मत देखो, उनके कृत-अकृत को मत देखो। अपनी ही कमियों या अपने ही कृत-अकृत को देखो।
  8. इस संसार में क्या हंसी है, क्या खुशी है? यहां लोग नित्य जल रहे हैं। अंधकार से घिरे हुए तुम प्रदीप (प्रकाश) की खोज क्यों नहीं करते?
  9. मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से, लोभ को दान से और मिथ्या-भाषण को सत्य से जीत सकता है।
  10. वह वीर नहीं है जो हजारों को जीतता है, पर वह वीर है जो एक मन को जीतता है।
  11. सब दानों में धर्म का दान उत्तम है, सारे रसों में धर्म का रस मीठा है, सारे आनंदों में धर्म का आनंद श्रेष्ठ है। तृष्णा को मारने से सब दुख नष्ट हो जाते हैं।
  12. ज्ञान- बिना ध्यान नहीं और ध्यान-बिना ज्ञान नहीं; जो ज्ञान-ध्यान दोनों रखता है, वह निर्वाण (मोक्ष) के समीप है।

     

एक सन्यासी, जो बचपन से ही सन्यासी था, हमेशा भ्रमणशील रहता था। जो भिक्षा से मिल जाता, उसे ग्रहण करता और मस्त रहता था। एक बार भ्रमण के दौरान उसने एक मिष्ठान्न की दुकान पर पानी मांगा और पीया। दुकान में कालाजामुन मिठाई बन रही थी। उस मिठाई को देखकर उसके मन में कालाजामुन खाने की इच्छा जाग गई। उसने दुकानदार से मिठाई मांगी।

दुकानदार ने पैसे मांगे, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। उसने दुकानदार से कहा कि मुझे श्रम करवा लो और पारिश्रमिक के बदले मिठाई दे दो।

दुकानदार ने कहा कि उसे पारिश्रमिक पर काम कराने की आवश्यकता नहीं है। उसने सुझाव दिया कि पारिश्रमिक चाहिए तो बगल में जो भवन निर्माण चल रहा है, वहां ईंट भट्ठे से ईंट ढोने का काम कर सकता है, जिसके बदले उसे गिनती के हिसाब से पारिश्रमिक के पैसे मिल सकते हैं।

वह सन्यासी वहां गया और ईंट ढोने का काम करने लगा। उसकी आदत कभी नहीं थी, इसलिए कभी ईंट गिराकर तोड़ दी और नियोक्ता की गाली सुनी, फिर पैर पर ईंट गिराकर चोटिल हो गया। अन्य मजदूर उसकी अनगढ़ता का मजाक उड़ाने लगे।

अंत में थक कर निढाल हो गया और हिसाब करके पारिश्रमिक के पैसे पाए। फिर उसने मिठाई वाले की दुकान से कालाजामुन खरीदा।

वहां से आगे बढ़ा तो एक नदी मिली। वह नदी किनारे बैठ गया। फिर एक कालाजामुन उठाया और कहा, “मिठाई खाने की इच्छा करो और ईंट ढुलाई करो,” और वह कालाजामुन नदी के जल में फेंक दिया। फिर उसने कहा, “मिठाई खाने की इच्छा करो और गाली सुनो, पैर जख्मी कराओ, मजदूरों से हंसी करवाओ,” और इसी तरह से सारे कालाजामुन नदी में प्रवाहित कर दिए।

फिर निष्काम होकर सुखी मन से वह आगे चल पड़ा।

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