कोई छोटा या बड़ा नहीं होता-किसी नगर में एक सेठ रहता था। जो गांव का मुखिया भी था। सेठ समाजसेवी और अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था। दीन दुखियों से उसे सहानुभूति थी। यही कारण था, कि राजा और जनता दोनों की दृष्टि में वह अच्छा था। जो राज हित में होता, वह प्रजा की दृष्टि में कभी अच्छा नहीं होता। और जो प्रजा के हित में रहता है, वह राजा को अच्छा नहीं लगता। दोनों पक्षों की दृष्टि में शायद ही कोई स्वयं को अच्छा सिद्ध कर पता है।
सेठ का विवाह हुआ तो उसने नगर के सभी बड़े सेठ जमीदार और राज के कर्मचारियों को भोजन पर आमंत्रित किया। विवाह के अवसर पर उसने राजा को परिवार सहित घर में बुलाया, भोजन कराया । उस अवसर पर आए हुए, राजगृह की सफाई करने वाले एक नौकर गोवर्धन को अनुचित स्थान पर बैठे होने के कारण धक्के देकर निकाल दिया गया।
गोवर्धन को बहुत अपमान महसूस हुआ और वह बदले की भावना से भर सोच रहा था कि राजा और सेठ से कैसे अपने अपमान का बदला ले सकू। जितना जल्दी हो सके मुझे बदला लेना है। किसी ने ठीक कहा है कि जो किसी का कुछ बिगाडने में असमर्थ हो वह निर्लज क्यों क्रोध करता है। उछल कूद से चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। उसने मन ही मन योजना बना ली।
कोई भी काम छोटा नहीं होता | Jaya Kishori Motivation | Inspirational story
एक रात राजा पलंग पर लेटे हुए थे कि गोवर्धन ने अपनी सोची हुई योजना के अनुसार कहा-उसे सेठ की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि रानी का आलिंगन किया। राजा पलंग पर लेटा हुआ था। गोवर्धन के मुख से यह शब्द सुनकर उसके कान खड़े हो गए। उसने बैठते हुए पूछा गोवर्धन क्या तुम यह सच बोलते हो। गोवर्धन ने कहा- महाराज नींद ना आने के कारण, मैं रात भर भजन करता रहा। आंखों में नींद भर रही है। अब सफाई करते-करते शायद मेरी आंखें लग गई थी। और मुख से कुछ निकल गया, राजा को संदेह हो गया क्योंकि गोवर्धन ही महल में खुले आम आता जाता था इसी प्रकार सेठ भी आ जाता है।
गोवर्धन ने सेठ से रानी के आलिंगन की बात कही है। यह किसी सीमा तक सच भी हो सकता है क्योंकि बात तभी चलती है जब उसमें कोई सच्चाई होती है और फिर एक दिन में सोची हुई बातें नींद में या नशे में अपने आप बाहर आ जाती है रही रानी की बात तो स्त्रियों का क्या है।
इनकी विषय में कहते हैं लकड़ी से आग की, नदियों से सागर की , पुरुषों से स्त्रियों की कभी भी तृप्ति नहीं होती है। जो मूर्ख पुरुष या सोचता या मानता है कि उसकी स्त्री उससे प्रेम करती है। वह उसकी फंदे में सदा पक्षी की भांति फसा रहता है। जो व्यक्ति औरतों के सभी तरह के वचनों और कार्यों को मानता है। वह उनके द्वारा लघुता को प्राप्त होता है। जो स्त्रियों की सेवा में संलग्न होता है। उसके पास रहता है। स्त्रियां उसी से प्रेम करने लगती है। पुरुषों के द्वारा ना चाहे जाने पर परिवार वालों के भय से मर्यादा में ना रहने वाली स्त्री भी सती धर्म में स्थिर नहीं रहती है।
ऐसा सोचते सोचते राजा शंका के सागर में डूबता रहा और उदासियों से घिर गया। उसकी रुचि राजकाज में भी ना रही। सेठ ने भी राजा को उदास और स्वयं से ना खुश देखा तो सोचने लगा धन पाकर कौन गर्व नहीं करता।
विषयों के भोग से किसके दुख दूर हुए, धरती पर स्त्रियों ने किसका दिल नहीं तोड़ा। कल की दृष्टि किस पर नहीं पड़ी। राजा का प्यारा कौन है। कोई भी तो नहीं मैंने आज तक इस राजा या इसके किसी संबंधी का अपमान नहीं किया। फिर भी यह मुझसे क्यों खुश नहीं है, ना आता है, ना बुलवाता है।
दुखी सेठ एक दिन राज दरबार की और चल ही पड़ा। द्वारपाल के पास खड़े सेठ को देखकर गोवर्धन हंस कर कहने लगा। कृपा पात्र सेठ आपके पास खड़े हैं। यह जिसे चाहे जेल भिजवा दें। जिसे चाहे भरी महफिल में से धक्के देखकर निकलवा दें। जरा इनसे बचकर रहना कहीं आपको भी ना निकलवा दे। गोवर्धन के मुख से उपरोक्त वचनों को सुनकर सेठ ने सोचा कहीं यह इसी की बदमाशी तो नहीं है। कहा गया है मूर्ख और छोटा भी राजा की सेवा में है तो वह बड़ा ही माना जाएगा।
सेठ सब बात समझ गया मन ही मन पश्चाताप करता वह अपने घर आ गया। और उसने गोवर्धन को अपने घर बुलाकर कुछ रुपए और कपड़े इनाम में दिए और कहा- गोवर्धन उस दिन जो मैंने तुम्हें धक्का दिया था। उसकी क्षमा चाहता हूं। अब हम दोनों मित्र हैं।
गोवर्धन इससे प्रसन्न हुआ वह सोचने लगा वह सेठ से जीत गया है। गोवर्धन के जाने के बाद सेठ सोचने लगा तराजू की डंडी और दुष्ट की चेष्टा एक सी होती है। जो जरा सी ऊपर और जरा से नीचे चली जाती है। गोवर्धन सेठ के इनाम से खुश था और पश्चाताप कर रहा था। उसने राजा और सेठ का फिर से मेल कराने का निश्चय किया। गोवर्धन राजा के महल में झाड़ू लगाने गया तो बड़बड़ाने लगा। वह रे! राजा कितना मूर्ख है। जो मल त्याग करते समय ककड़ी खाता है। क्या बकता है महाराज क्षमा करें। मैं रात भर भजन कीर्तन करता रहा इसलिए नींद के कारण झाड़ू लगाते लगाते झपकी आ गई। मैं शायद कुछ बक गया।
राजा उसकी बात सुनकर विचार करने लगा कि इसने उस दिन भी इसी तरह कहा था। यह आज जो कुछ कह रहा है, सरासर झूठ है। उसे दिन रानी के बारे में इसने झूठा ही कह होगा। वह भी नींद में कहा है। वह सारी बात समझ गया। अपनी भूल पर वह पश्चाताप करने लगा वहम दूर हो गए। अगले दिन उसने सेठ को बुलवाया और गले से लगा लिया दोनों मित्र पुनः मिल गए।
सीख:- कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। उसे छोटा या बड़ा उसके कर्म बनाते हैं। मनुष्य को अपने कर्मों से बड़ा होना चाहिए, ना कि धन दौलत से। प्रत्येक मनुष्य को सम्मान दें।
1 thought on “कोई छोटा या बड़ा नहीं होता | Koi Chotta Ya Bada Nahi Hota | Inspirational story”