Bhakti ki Kahani | आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियां | निस्वार्थ भाव से भक्ति

Bhakti ki Kahani-एक गांव में एक ग्वाला रहता था। वह हर दिन अपनी गाय को चराने जंगल में ले जाया करता था। जंगल में एक संत का आश्रम था। वहां संत हर रोज ध्यान करते थे ,और उसे समझ नहीं आता कि यह संत क्या कर रहे हैं। एक दिन उसने संत के पास जाकर के पूछा आप यह क्या कर रहे हैं? संत ने कहा मैं प्रभु के दर्शन पाने के लिए ध्यान कर रहा हूं। ग्वाले की उम्र बहुत कम थी। उसे संत की बात समझ नहीं आई। उसने सोचा चलो मुझे भी प्रभु के दर्शन करने चाहिए।

एक दिन सुबह जंगल पहुंचकर एक पैर पर खड़े होकर ध्यान करने लगा। कुछ देर बाद उसने सांस लेना भी बंद कर दिया। उसने सोचा जब तक भगवान दर्शन नहीं देंगे, तब तक यूं ही करता रहूंगा। छोटे से बालक की इतनी कठिन तपस्या देखकर भगवान बहुत जल्द प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा- पुत्र आंखें खोलो उसने जैसे ही आंखें खोली और पूछा आप कौन हैं? प्रभु बोले मैं ही ईश्वर हूं।

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जिसके दर्शन के लिए तुम तप कर रहे हो लड़के ने कभी ईश्वर को देखा नहीं था। उसने सोचा मैं कैसे मान लूं, सच जानने के लिए उसने भगवान को वहीं पेड़ में रस्सी से बांध दिया ।भगवान भी भक्तों के हाथों खुशी-खुशी पेड़ में रस्सी से बंध गए। बालक जल्दी से दौड़कर आश्रम की ओर भागा, और संत को सारी बात बता दी, और बोला जल्दी चलिए,ने भगवान को  पेड़ में रस्सी से बांध रखा है।

संत पेड़ के पास पहुंचे तो उन्हें वहां कुछ दिखाई नहीं दिया। सिर्फ पेड़ से बंधी एक रस्सी दिखाई दी। ग्वाले ने भगवान से इसकी वजह पूछी-
भगवान ने कहा मैं सिर्फ उन्हीं लोगों को दिखाई देता हूं, जो निस्वार्थ भाव से मेरी पूजा करते हैं। जिन लोगों के मन में छल कपट लालच और स्वार्थ होता है मैं उन्हें दिखाई नहीं देता।

शिक्षा:- निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति ही सफल होती है। जो लोग निजी स्वार्थ से ईश्वर की भक्ति करते हैं ,ईश्वर उन्हें कभी दर्शन नहीं देते। भगवान की कृपा उन पर कभी नहीं होती।

 

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