ईश्वर के संकेत | Signs of God | तुलसी दास जी की कहानी

ईश्वर के संकेत

राधे राधे 🙏🙏

दोस्तों! आज आपके लिए गोस्वामी तुलसीदास जी की  एक बहुत ही सुंदर प्रेणादायक कहानी लेकर आए । आइए उसका आनंद ले।

ईश्वर के संकेत | Sign Of God

बात उस समय की है जब गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस की रचना कर रहे थे। वे अपने लेखन में इतने तल्लीन थे कि संसार की अन्य बातों की ओर कम ही ध्यान देते थे। एक दिन वे अपने आश्रम से बाहर निकले और किसी कार्यवश यात्रा पर जाने लगे। वे पूर्णत: प्रभु श्रीराम की भक्ति में डूबे हुए थे और उनके हृदय में यही भाव था कि संसार के प्रत्येक जीव में भगवान श्रीराम का वास होता है।

सत्संग का अनसुना सत्य 
                सत्संग का अनसुना सत्य

रास्ते में जाते समय उन्हें एक बालक मिला, जो देखने में तो साधारण था, लेकिन उसकी आँखों में बुद्धिमत्ता झलक रही थी। बालक ने तुलसीदास जी को प्रणाम किया और बोला, “महात्मा जी! कृपया इस रास्ते से मत जाइए। आगे एक गुस्सैल बैल घूम रहा है, जो आने-जाने वाले लोगों को मार रहा है। आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं, जिससे बैल और अधिक क्रोधित हो सकता है। कृपया इस रास्ते से मत जाइए, कोई और मार्ग चुन लीजिए।”

बालक की बात सुनकर तुलसीदास जी मुस्कुराए। वे सोचने लगे, “यह नासमझ बालक मुझे सलाह दे रहा है! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि संसार में सब प्राणियों में राम का वास है। यदि बैल में राम हैं, तो वह मुझे कोई हानि नहीं पहुँचाएगा। मैं प्रेमपूर्वक उसे प्रणाम करूँगा और वह शांत हो जाएगा।”

कर्पूर गौरम करुणावतारं हिंदी में
कर्पूर गौरम करुणावतारं हिंदी में

उन्होंने बालक की बात को अनसुना कर दिया और अपनी यात्रा आगे बढ़ाई। लेकिन जैसे ही वे उस मार्ग पर कुछ दूर चले, अचानक सामने से एक बड़ा और गुस्सैल बैल उनकी ओर दौड़ पड़ा। तुलसीदास जी ने जैसे ही उसे प्रणाम करने के लिए हाथ जोड़े, उससे पहले ही बैल ने उन पर जोरदार टक्कर मार दी। वे संतुलन खो बैठे और ज़मीन पर गिर पड़े। उनका शरीर दर्द से कराह उठा और वे किसी तरह स्वयं को संभालकर खड़े हुए।

अब तुलसीदास जी को अपनी गलती का अहसास हुआ। वे सोचने लगे कि आखिर यह क्यों हुआ? वे तो भगवान राम की भक्ति में लीन थे, फिर भी बैल ने उन पर आक्रमण क्यों किया? इस उलझन में वे अपने आश्रम लौटने के बजाय सीधे उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ वे रामचरितमानस लिख रहे थे।

वे उस पन्ने को फाड़ने लगे, जिस पर यह चौपाई लिखी थी –

“सिया राममय सब जग जानी। करहु प्रणाम जोरि जुग पानी।।”

(अर्थात् – सम्पूर्ण जगत को श्रीराममय जानकर सभी को हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए।)

उन्हें लगने लगा कि यह चौपाई सत्य नहीं है, क्योंकि उन्होंने बैल में भगवान को देखा, उसे प्रणाम भी किया, फिर भी बैल ने उन पर आक्रमण कर दिया। यही सोचकर उन्होंने पन्ना फाड़ने का प्रयास किया।

Asthi visarjan
                   Asthi visarjan

तभी वहाँ *हनुमान जी प्रकट हुए*। वे तुलसीदास जी की ओर देखकर मुस्कुराए और बोले, “प्रभु! आप यह क्या कर रहे हैं?”

तुलसीदास जी अभी भी गुस्से में थे। उन्होंने हनुमान जी से कहा, “यह चौपाई गलत है। मैंने संसार को राममय समझा, उस बैल में भी श्रीराम को देखा और प्रणाम किया, फिर भी उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया। इसका अर्थ है कि यह चौपाई असत्य है।”

हनुमान जी मंद-मंद मुस्कुराए और बोले, “श्रीमान! यह चौपाई पूर्णत: सत्य है। आपने बैल में तो राम को देखा, लेकिन उस बालक में राम को नहीं देख पाए, जो आपको बचाने आया था। भगवान श्रीराम उस बालक के रूप में स्वयं आपके पास आए थे और आपको सचेत करने का प्रयास किया था, लेकिन आपने उनकी बात को अनसुना कर दिया।”

God's glory and man's pride in hindi
God’s glory and man’s pride in hindi

तुलसीदास जी का हृदय इस बात को सुनकर द्रवित हो गया। उन्होंने तुरंत अपने हृदय में झाँका और अपनी गलती स्वीकार की। उन्होंने समझ लिया कि **ईश्वर केवल मंदिरों में या मूर्तियों में ही नहीं, बल्कि हर जीव में विद्यमान हैं। वे जिस बालक की बात को अहंकारवश अनसुना कर रहे थे, वही स्वयं ईश्वर का संदेशवाहक था।

उन्होंने हनुमान जी को गले से लगा लिया और आँसुओं से उनकी चरणवंदना की। फिर उन्होंने निश्चय किया कि इस पंक्ति को यथावत् रहने देंगे, क्योंकि यह शत-प्रतिशत सत्य है।

इस घटना से हमें यह सीख मिलती है

कि ईश्वर केवल हमारी सोच के अनुसार प्रकट नहीं होते, वे किसी भी रूप में हमारी सहायता करने आ सकते हैं। कभी बालक के रूप में, कभी किसी मित्र के रूप में, और कभी किसी साधारण व्यक्ति के रूप में। यदि हम अपने अहंकार के कारण उनकी बात को अनसुना कर दें, तो बाद में हमें पछताना पड़ सकता है।

इसलिए हमें अपने मन, वचन और कर्म से सच्चे हृदय से हर जीव में भगवान का दर्शन करना चाहिए और उनके द्वारा दिए गए संकेतों को समझने का प्रयास करना चाहिए।  

 

“गंगा बड़ी न गोदावरी, न तीर्थ बड़े प्रयाग।  

सकल तीर्थ का पुण्य वहीं, जहाँ हृदय राम का वास।।”

जय श्रीराम! जय हनुमान!🙏🙏

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राधे राधे 🙏🙏 एक सच्ची कहानी। एक बार अवश्य पढ़े 🙏

1 thought on “ईश्वर के संकेत | Signs of God | तुलसी दास जी की कहानी”

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