सत्संग में नींद आ जाती है | आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियाँ | ज्ञानवर्धक कहानियाँ

सत्संग में नींद आ जाती है-सत्संग का प्रोग्राम खत्म हो चुका था। सिर्फ वहां नाम की बख्शीश वाली संगत ही रुकी हुई थी।  कैंटीन एक ही खोलने का हुक्म था।  तभी वहां कैंटीन में एक नवविवाहिता बिटिया आई और फ्रूटी पर उंगली रख कर इशारा किया, फिर एक बिस्किट के पैकेट पर हाथ रख कर इशारे से कीमत पूछी ?  इशारे से ही मैंने कीमत बता दी। 

उसने दूर खड़े अपने पति को ताली बजाकर बुलाना चाहा, पर असफल रही।  मुस्कुरा कर उसने मेरी ओर देखा। उसकी मुस्कान और असफल प्रयास से थोड़ा मन भर आया।  फिर मैंने किसी को आवाज देकर उसके पति को इधर बुलवाया। पता चला कि वह भी बोल और सुन नहीं सकता था !

     उस समय मुझे यह सब देख कर बड़ा अचंभा हुआ। थोड़ी ही देर में मैं उनकी इशारों की भाषा समझने लगा, फिर लड़की ने एक पेपर पर लिखकर पूछा कि आज का सत्संग सुना था ? मालिक कितना अच्छा समझा रहे थे !  मैंने उसको लिख कर दिया कि “मैंने पूरा नहीं सुना  सिर्फ 20: मिनट का ही सत्संग सुन सका हूं। उसने फिर लिख कर पूछा  “क्यों ?  मैंने शर्म से लिख कर जवाब दिया, नींद आ जाती है।

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अभी यह बात  लिख ही रहा था कि एकदम दिमाग कौंध गया !  मैंने लिख कर पूछा कि आप दोनों तो बोल और सुन नहीं सकते, तो फिर तुमने सत्संग कैसे सुना ?

      उन दोनों ने एक दूसरे की तरह मुस्कुराते हुए देखा, फिर पेपर पर लिखा कि होंठ पढ़ना ( Lip Reading)

यानी होंठों के हिलने से शब्द समझ लेते हैं !

  ओ मेरे सद्गुरु ! !!!!!

मेरे बदन पर रोंगटे खड़े हो गए।

“हे सच्चे पातशाह” मुझ जैसे नाशुक्रे को जिसके सारे अंग सही सलामत बक्शे हैं, सत्संग में नींद आ जाती है ?

और यह दोनों लगभग 50 मिनट का सत्संग बिना ध्यान भटकाए, बिना पलके झपकाए, सिर्फ आपके होठों को ही  देखते रहते हैं।  और उसका अर्थ लगाकर सत्संग समझ जाते हैं।

मेरे मन को जैसे कोई जोर से चाबुक मार रहा था।  सिर्फ उन दो प्यारी सी रूहों को देखता रह गया, जो बिना एक लफ्ज़ बोले ही इतनी बड़ी सीख दे गए।

और आपस में नोक झोंक करते हुए वे मेरी आंखों से धीरे-धीरे ओझल हो गए।

बड़ी कृपा है उस मालिक की हम जीवो पर की हमें सत्संग की अनमोल घड़ियां रोज़ नसीब होती है!

जय गुरु जी शुकराना गुरुजी

 

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श्री रामकृष्ण परमहंस

 

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