राधा रानी की कहानी-भक्ति का फल | radha rani ki kahani Bhakti ka Phal

Radha rani-राधे राधे दोस्तों! आज मैं आपको वृंदावन ले चलती हूं। बहुत समय पहले की बात है एक संत थे जो वृन्दावन में रहा करते थे। श्रीमद भागवत महापुराण में उनकी बड़ी निष्ठा थी। उनका नियम था कि वह रोज एक अध्याय का पाठ करते और राधारानी जी को अर्पण करते। वो संत कहीं आते जाते भी नहीं थे। लोग भक्ति भाव में उनको कुछ खाना पीना भी उनकी कुटिया पर ही दे जाते थे। वो संत भी अपनी कुटिया में बैठे बैठे या तो राधा रानी के नाम का जाप करते रहते या श्रीमद भागवत का पाठ करते रहते।

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ऐसा करते करते उन्हें सालों बीत गए पर एक दिन भी ऐसा नहीं था जब उन्होंने राधा रानी जी को भागवत का अध्याय न सुनाया हो। अब उनकी कुछ उम्र भी हो चली थी। एक रोज जब वो भागवत का पाठ करने बैठे तो उन्हें अक्षर बहुत धुंधले से दिखाई दे रहे थे। थोड़ी देर बाद तो दिखना और भी कम हो गया। अब उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनके ये आंसू इसलिए नहीं थे कि आंखे जा रही है बल्कि इसलिए थे कि अब पाठ कैसे करेंगे।

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उनके मन में भारी दुख हो रहा था कि अब राधा रानी को भागवत कैसे सुना पाएंगे। वो मन में श्री कृष्ण का ध्यान कर रहे थे कि हे प्रभु हे दीनानाथ!

मैं इतने दिनों से पाठ कर रहा हूँ। आपने आज ऐसा क्यूँ किया है? अब मैं कैसे राधारानी जी को पाठ सुनाऊँगा। रोते रोते सारा दिन ढल गया और शाम हो गई। उस दिन उन्होंने कुछ भी खाया पिया नहीं क्योंकि उनका नियम था कि वो पाठ राधा रानी को सुनाकर उन्हें समर्पित कर कर ही खाना खाया करते थे। तभी उनके दरवाजे पर एक दस्तक हुई वैसे ही उन्हें धुंधला दिख रहा था। वो बड़ी मुश्किल से दरवाजे तक पहुँचे और बोले कौन है? एक बालक की आवाज आई। वो बोला बाबा माँ ने खाने का सामान भेजा है।

वो संत बोले खाना नहीं चाहिए। जब तक नियम पूरा नहीं होगा खाना नहीं खाउंगा। वो बालक बोला कौन सा नियम बाबा अब जैसे उस संत को अपना दुख बांटने वाला कोई मिल गया हो। वो बोले मैं रोज राधा प्यारी को भागवत का पाठ सुनाता हूँ और फिर ही कुछ खाता हूँ। पर आज मेरी आँखे चली गई। यह कह कर वह रोने लगी। बालक उन्हें रोता देखकर बोला अच्छा आंखें चली गई इसलिए आप दुखी हैं। वो संत बोले अरे ये आखिर किसको चाहिए?

 

मैं तो इसलिए दुखी हूँ कि अब किशोरी जी को पाठ कैसे सुनाऊंगा। उनकी बात सुनकर वो लड़का बोला बाबा रुको मैं थोड़ी देर में आता हूँ। बाबा वहां खड़े ही रह गए। इतने में बालक दौड़ता हुआ आया और बोला ये पट्टी अपनी आखों पर बाँध लो। अब हाथ में पट्टी पकड़ाकर वो लड़का भाग गया। बाबा अपने दुखी मन से अंदर आकर जमीन पर लेट गए। बाबा ने सोचा लगता है किसी वैद्य का लड़का होगा। कुछ इलाज मिला जानता होगा। अब उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधी और सो गए। जब बाबा उठे तो उन्हें सब साफ साफ दिख रहा था। बाबा बड़े प्रसन्न हुए।

बाबा ने सोचा देखता हूँ उस लड़के ने पट्टी में क्या औषधि मिलाई है। बाबा ने देखा उस पट्टी में राधा रानी जी का नाम लिखा हुआ था। यह देखकर बाबा फूट फूट कर रोने लगी और कहने लगी आपके नाम की भी कितनी महिमा है। बाबा बोले मुझसे श्लोक सुनने में आपको भी कितना आनंद आता है। बाबा बहुत खुश थे। पूरे उत्साह के साथ वो जल्दी से उठे और स्नान आदि करकर पाठ करने बैठ गए। आज उनकी आवाज में एक अलग ही खनक थी

और होती भी क्यों ना, स्वयं किशोरी जी और बांके बिहारी जी ने उन पर इतनी कृपा की थी। बोलो राधे रानी की जय, श्याम प्यारे की जय।

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निस्वार्थ भाव से भक्ति!

 

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