योग दर्शन | Yog darshan in hindi

योग दर्शन : Yog darshan

योग शब्द का अर्थ है जोड़ना। परमात्मा से जोड़ने वाला दर्शन, योग दर्शन है। इसको पतंजलि योग दर्शन भी कहते हैं। इस योग को साक्षात्कार करने के बाद पतंजलि ऋषि ने इसको लिखा। यह नियम यम, नियम आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इसके आठ अंक है इसलिए इसको अष्टांग योग भी कहते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में भी भगवान ने इसका बहुत महत्व बताया है।

योग दर्शन (yog darshan) क्या है? सांख्य का नाम लेते ही एक दर्शन, जिसका नाम है योग। जो स्थान सांख्य से प्राप्त होता है, वही स्थान योग से प्राप्त होता है। ऐसा भी कहते हैं सांख्य और योग, एक सिक्के के दो पहलू है। आज हम योग दिवस मनाते हैं। हमें लगता है कि योग हम जान गए हैं, लेकिन ऐसा कहना बिल्कुल ही गलत होगा, क्योंकि योग दर्शन उससे बिल्कुल अलग है। योग दर्शन के रचयिता पतंजलि मुनि है। उन्होंने योग दर्शन को पूरा सूत्र के रूप में लिखा है, जिसको पतंजलि योग दर्शन कहते हैं।

उसमें लगभग 200 सूत्र है। पतंजलि मुनि ने साक्षात्कार की अवस्था के बाद, उन्होंने उसमें उल्लेख किया कि किस तरह हम समाधि तक पहुंच सकते हैं। योग दर्शन को चार पदों में विभाजित किया गया है। पतंजलि मुनि ने उसमें आठ अंगों का निरूपण किया। यह नियम यम, नियम आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इसके आठ अंक है इसलिए इसको अष्टांग योग भी कहते हैं।

हम आसन को ही योग समझते हैं। आसन, योग का एक छोटा सा अंग है। यह योग नहीं है। पतंजलि मुनि ने सिर्फ स्थिरता से बैठने वाले ही आसनों का जिक्र किया है। सबसे महत्वपूर्ण आसनों में से, एक आसान है यम। यह क्या है ओम, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, यह पांच यम के नियम है।

अगर हम यह नहीं कर पाते हैं, तो हमारे प्राणायाम करने का कोई अर्थ नहीं होता है। प्रत्याहार तो होगा ही नहीं, साधना तो होगी ही नहीं, तो उसके लिए हमें सबसे पहले यम और नियम, इन दोनों का ही पालन करना होगा।

अहिंसा का मतलब- हिंसा न करना, चोरी ना करना।

ब्रह्मचर्य मतलब -संयम करना।

यह नियम को ध्यान में रखकर, पतंजलि मुनि ने पूरा मार्गदर्शन किया है कि किस तरह से हम योग का पालन करके समाधि तक पहुंच सकते हैं।

योग दर्शन, सांख्य दर्शन के पूरक दर्शन के नाम से जाना जाता है। यह एक अत्यंत व्यावहारिक दर्शन है। या भारतीय दर्शन के वैदिक दर्शन की श्रेणी में के अंतर्गत आता है। यह वेदों को मानने वाला दर्शन है। वेदों को मानने के कारण, इस दर्शन को हम आस्तिक दर्शन भी कहते हैं।

योग दर्शन के सिद्धांत : principle of yog darshan

योग दर्शन के सिद्धांत

1- योग दर्शन में प्रमाण
2- चित्त की वृत्तियां
3- पंच क्लेश
4- योग दर्शन में अष्टांग योग
5-योग दर्शन में ईश्वर

समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद, कैवल्य पाद इन चार भागों में योग के गुण पढ़कर, मानव जाति को, अमूल्य धरोहर से प्रेरणा लेनी चाहिए।
समाधि पद- योग संबंधी शिक्षा देने वाला ग्रंथ।

योग चित्त की वृत्तियों के रुक जाने को कहते हैं। तब दस्त की अपने रूप में स्थित होती है। दृष्टा जब चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाता है। तब पुरुष की स्थिति स्वयं में स्थित हो जाती है। दूसरे समय में दृष्टा (पुरुष) का स्वरूप वृत्ति के जैसा होता है। जब चित्त की वृत्तियों का निरोध नहीं होता है, तो जिस प्रकार की वृत्ति होती है पुरुष स्वयं को वैसा ही मान लेता है।

वृत्तीय पांच प्रकार की होती है तथा सभी के क्लिष्ट और अक्लिष्ट दो भेद होते हैं।

क्लिष्ट – क्लेशों को बढ़ाने वाली अर्थात योग में बाधा।

अक्लिष्ट -क्लेशों का नाश करने वाली, अर्थात

योग में सहायक प्रमाण, विप्रर्यय, विकल्प, निद्रा, स्मृति वृत्तीय यह पांच प्रकार की होती है।

प्रमाण वृत्ति की तीन प्रकार है- प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम।

1-प्रत्यक्ष प्रमाण:-प्रमाण इंद्रियों आदि के द्वारा होने वाले ज्ञान की वृत्ति, प्रत्यक्ष प्रमाण वृत्ति है- जैसे देखकर या सुनकर।
2-अनुमान प्रमाण:- अनुमान के आधार पर अप्रत्यक्ष का ज्ञान, अनुमान प्रमाण वृति है, जैसे धुएं को देखकर अग्नि का अनुमान।
3-आगम प्रमाण:- शास्त्र या विद्वान पुरुषों के वचन पर आधारित ज्ञान को आगम प्रमाण वृति कहते हैं।

विप्रर्यय:-उस मिथ्या ज्ञान को कहते हैं जो पदार्थ या वस्तु के स्वरूप में प्रतिष्ठित नहीं है।

वास्तु जो वास्तव में है, उसे उस रूप की जगह, कुछ अन्य रूप में समझ लेना विप्रर्यय है- जैसे रस्सी को सांप समझ लेना।
शब्द के कारण उत्पन्न ज्ञान, जो वास्तव में ज्ञान है ही नहीं, उसे विकल्प कहते हैं
अभाव के ज्ञान को ग्रहण करने वाली वृति को निद्रा कहते हैं।
निद्रा वृति में विषय का ज्ञान नहीं रहता और उस सभाओं की अभाव की प्रतीति होती है।

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