मृत्यु का भय और समाधान
राधे राधे 🙏🙏
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Toggleमेरे पास समय बहुत कम है, बच्चों और परिवार का पोषण कैसे होगा?
मृत्यु का भय और समाधान
महाराज जी, इस शरीर को किडनी की गंभीर बीमारी है और अब समय भी बहुत कम रह गया है। आपकी प्रेरणा से मैं लगातार नाम जप कर रहा हूँ, परंतु मेरी एकमात्र चिंता यही है कि मेरे परिवार और बच्चों का पालन-पोषण आगे कैसे होगा।
इस पर महाराज जी कहते हैं कि भगवान विश्वंभर हैं, वे ही सम्पूर्ण जगत का भरण-पोषण करते हैं। हर श्वास के साथ नाम जप करते रहो, उसमें ही समाधान है। चाहे किडनी में क्रॉनिक बीमारी हो, चाहे वह किसी भी कारण से हुई हो — जैसे हाई बीपी या अन्य वजहों से — चिंता मत कीजिए। यह शरीर नश्वर है और मृत्यु तो एक दिन सभी को आनी है, वह सौ बार थोड़ी न होगी!
मृत्यु की चिंता छोड़ दीजिए। कभी-कभी नाम जप करते समय बेटी का ध्यान आ जाता है, यह स्वाभाविक है, परन्तु शरीर की और परिवार की चिंता मत कीजिए। जिस भगवान ने इस समस्त सृष्टि को संभाला है, वह आपके परिवार को भी संभालेंगे। वह एक चींटी तक को भूखा नहीं रखता, तो आपके बच्चों का पालन-पोषण भी अवश्य करेगा।

वह परमात्मा, वह विश्वंभर, सबका पालन करने वाला है। इसलिए बिल्कुल चिंता न करें, आनंद में रहें, नाम जप में लीन रहें और प्रसन्न चित्त बने रहें।
पूरे प्रयास के बाद भी मरीज़ का सफल ऑपरेशन नहीं हो पाता।
राधे-राधे गुरु जी, राधे-राधे महाराज जी। महाराज जी, मैं नेत्र शल्य चिकित्सक हूं। कभी-कभी सर्जरी के दौरान पूरी सावधानी और निष्ठा के बावजूद कुछ ऐसी जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं जो हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं, जिससे रोगियों को हानि पहुंचती है।
हां, इसका कारण उनके पाप कर्म होते हैं। कहा गया है कि उनके पाप कर्मों के अनुसार ही उन्हें नेत्र सुख नहीं मिल रहा है। आप लाख प्रयास कर लीजिए, लेकिन यदि उसके कर्म में नेत्र का सुख नहीं लिखा है, तो वह नहीं बचेगा। डॉक्टर भगवान का पार्षद होता है, वह प्रयास कर सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय तो परमात्मा के द्वारा ही होता है।
यदि निर्णय डॉक्टर के हाथ में होता, तो कोई भी व्यक्ति अंधा नहीं रहता, कोई मरता नहीं। लेकिन हमने देखा है कि बहुत अच्छे सर्जनों द्वारा किए गए ऑपरेशन भी विफल हो जाते हैं और मरीज की मृत्यु हो जाती है। इसका कारण उसके पाप कर्म होते हैं, जिन्हें उसे भोगना ही पड़ता है।
जब हमारा कर्म बिगड़ जाता है, तो बहुत सावधानी और प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती। “जो अवश्यं भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्”, अर्थात जो शुभ या अशुभ कर्म शरीर के माध्यम से भोगने योग्य हैं, उन्हें भोगना ही पड़ेगा। इसलिए आप बिल्कुल प्रसन्न रहिए, निश्चिंत रहिए, और अपना प्रयास पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करते रहिए। सफलता भगवान के हाथ में है, और जो उसके कर्म के अनुसार है, वही उसे प्राप्त होगा।

मुझे लगता है कि मैं अगले जन्म में कछुआ बनूँगा अब क्या करूँ?
अभी सुधार लो, शौक है क्या कछुआ बनने का? अब सुधार लो, नाम जप करो और भगवान से क्षमा मांगो। भगवान सर्वलोक महेश्वर हैं। वे कहते हैं — “अहम् त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः” अर्थात् मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा और पवित्र कर दूंगा। भगवान कहते हैं, “कोटि विप्र बद लागे जाहु आए शरण तजो”, उन्होंने बहुत करुणा दिखाई है, बस उनसे क्षमा मांगो और नाम जप में लग जाओ। अगर मन में ये सोचते रहोगे कि मैं तो कछुआ ही बनूंगा, तो सच में कछुआ ही बन जाओगे।
नाम जप करो, भगवान से जो हुआ है, उसकी क्षमा मांगो। हाँ, नाम संकीर्तन — “हरि नाम संकीर्तनम यस्य पाप प्रणाशनम” — यह सब पापों को नष्ट कर देता है। एक घंटा रोज नाम संकीर्तन किया करो। मंजीरा ले लो, एकांत में बैठो और एक घंटा “राधा राधा राधा राधा राधा” जपो। बिल्कुल भी कछुआ नहीं बनोगे, बल्कि ठाकुर जी की कृपा के पात्र बन जाओगे। ठीक है, हाँ, राधे राधे, राधे राधे।
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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।