मुरुदेश्वर मंदिर | ॐ नमः शिवाय | शिव चालीसा | Shiv Chalisa

मुरुदेश्वर मंदिर: भगवान शिव का पवित्र धाम

मुरुदेश्वर मंदिर एक ऐसा प्राचीन स्थल है, जो सदियों से भगवान शिव की महिमा को समर्पित है। यह कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल कस्बे में स्थित है। अरब सागर के तट पर बसे इस मंदिर की खासियत यह है कि यह तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। इस मंदिर की दिव्यता और इतिहास आपको भगवान राम और रावण के समय तक लेकर जाती है।  

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मंदिर की प्राचीनता  

मुरुदेश्वर मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका निर्माण किस वर्ष हुआ, यह कोई नहीं जानता। यह मंदिर इतना पुराना है कि इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और शिव पुराण में मिलता है।  
मंदिर की ऊंचाई 249 फीट है, जो इसे सदियों तक दुनिया का सबसे ऊंचा भवन बनाती थी। परंतु इतिहास की किताबों में इस मंदिर का कोई जिक्र नहीं मिलता। दूसरी ओर, कुतुब मीनार, जिसकी ऊंचाई 238 फीट है, का महिमामंडन हर जगह किया गया। यह सवाल उठता है कि हमारे गौरवशाली मंदिरों और धरोहरों की उपेक्षा क्यों की गई।  

रामायण और मुरुदेश्वर का संबंध  

मुरुदेश्वर मंदिर के निर्माण की कथा भगवान राम और रावण से जुड़ी है। कहा जाता है कि रावण ने अमरता पाने के लिए भगवान शिव से उनका आत्मलिंग मांगा। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर आत्मलिंग रावण को दे दिया, लेकिन एक शर्त रखी कि इसे रास्ते में कहीं रखा नहीं जा सकता।  
रावण आत्मलिंग लेकर लंका की ओर जा रहा था। रास्ते में जब वह इस स्थान पर पहुंचा, तो उसे अपने संध्यावंदन के लिए इसे कुछ समय के लिए रखना पड़ा। उसने पास ही खड़े एक बालक (जो वास्तव में भगवान गणेश थे) से इसे थामने को कहा। गणेश जी ने चालाकी से आत्मलिंग को धरती पर रख दिया, और वह वहीं स्थापित हो गया।  
गुस्से में रावण ने इसे नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। आत्मलिंग वहीं स्थापित रह गया और वह स्थान मुरुदेश्वर के नाम से जाना जाने लगा। 

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 मुरुदेश्वर नाम का अर्थ  

मुरुदेश्वर नाम भगवान शिव का ही एक रूप है। यह नाम इस स्थान से जुड़ी घटना को दर्शाता है। शिव पुराण के अनुसार, रावण द्वारा आत्मलिंग को नष्ट करने की कोशिश में जिस वस्त्र से लिंग ढका था, वह यहां गिरा और इस स्थान को “म्रिदेश्वर” कहा गया, जिसे समय के साथ “मुरुदेश्वर” कहा जाने लगा।  

शिव की अद्भुत मूर्ति  

मुरुदेश्वर मंदिर की सबसे खास बात है भगवान शिव की विशाल मूर्ति, जो विश्व में दूसरी सबसे ऊंची शिव मूर्ति है। इसकी ऊंचाई 123 फीट है। अरब सागर के किनारे स्थित यह मूर्ति इतनी विशाल और भव्य है कि इसे समुद्र के काफी दूर से भी देखा जा सकता है।  
इस मूर्ति का निर्माण शिवमोग्गा के काशीनाथ और अन्य मूर्तिकारों ने किया था। इसे बनाने में करीब दो साल का समय और 5 करोड़ रुपए की लागत लगी थी। इस मूर्ति को इस तरह बनाया गया है कि सूरज की किरणें इस पर पड़ती रहें और यह हमेशा चमकती रहे। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इसका दृश्य अद्भुत और दिव्य हो जाता है।  

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मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य  

मुरुदेश्वर मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसे “कंदुका पहाड़ी” कहा जाता है। यह पहाड़ी तीन ओर से पानी से घिरी हुई है, जिससे यहां का नज़ारा बेहद मनमोहक लगता है।  
मंदिर के पास का समुद्र तट भी बहुत सुंदर और शांत है। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों और भक्तों दोनों के लिए एक आदर्श स्थल है।  

हमारे इतिहास और संस्कृति का गौरव  

आज के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से हमारी प्राचीन धरोहरों और संस्कृति के बारे में जानकारी फैलने लगी है। मुरुदेश्वर मंदिर भी हमारी संस्कृति और इतिहास का एक अनमोल रत्न है। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की कला, वास्तुकला और समर्पण का प्रतीक है।  

शिव चालीसा (Shiv Chalisa)


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॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥

आज के युग में शिव चालीसा पाठ व्यक्ति के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिव चालीसा लिरिक्स की सरल भाषा के मध्यम भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।

भक्त अपने जीवन में पैदा हुई कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने के लिए श्री शिव चालीसा का नियमित पाठ करते हैं। श्री शिव चालीसा के पाठ से आप अपने दुखों को दूर कर भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं। शिव चालीसा का पाठ हमेशा सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद करना चाहिए। भक्त प्रायः सोमवार, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, त्रयोदशी व्रत एवं सावन के पवित्र महीने के दौरान शिव चालीस का पाठ खूब करते हैं।

हर हर महादेव  

मुरुदेश्वर मंदिर भगवान शिव के प्रति हमारी भक्ति का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी समृद्ध और गौरवशाली है। जब भी आप इस मंदिर को देखेंगे, तो भगवान शिव की शक्ति और महिमा का अनुभव करेंगे।  
तो अगर आप कभी कर्नाटक जाएं, तो मुरुदेश्वर मंदिर की यात्रा जरूर करें। यहां का वातावरण, मंदिर की भव्यता, और समुद्र का शांत दृश्य आपको अद्भुत शांति और दिव्यता का अनुभव कराएंगे। हर हर महादेव!

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