मन का दीपक: दोस्तो! एक समय की बात है। एक महिला रोज मंदिर जाया करती थी। भगवान के दर्शन करना और पूजा-अर्चना करना उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था। एक दिन उसने पुजारी से कहा, “पंडितजी, मैंने सोच लिया है कि अब मैं मंदिर नहीं आया करूंगी।”
यह सुनकर पुजारी चौंक गए। उन्होंने पूछा, “लेकिन क्यों बेटी? ऐसा क्या हो गया कि तुमने मंदिर आना छोड़ने का निर्णय ले लिया?”
महिला ने थोड़ा दुखी होकर कहा, “पंडितजी, मैं देखती हूँ कि लोग यहाँ मंदिर परिसर में अपने फोन से व्यापार की बातें करते हैं। कुछ तो मंदिर को गपशप करने की जगह मानकर यहां हंसी-ठिठोली करते हैं। और कुछ लोग पूजा कम और पाखंड व दिखावा ज्यादा करते हैं। मुझे यह सब देखकर बहुत खराब लगता है। ऐसा लगता है जैसे लोगों ने भगवान के इस पवित्र स्थान का सम्मान करना ही छोड़ दिया है। इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि अब मैं मंदिर आना छोड़ दूंगी।
पुजारी ने महिला की बात को ध्यान से सुना और कुछ देर तक शांत रहे। फिर उन्होंने कहा, “बेटी, तुम्हारी बात में दम है। लेकिन मैं तुमसे एक निवेदन करना चाहता हूँ। अंतिम निर्णय लेने से पहले क्या तुम मेरे कहने से एक छोटा सा काम कर सकती हो?”
महिला ने सहमति में सिर हिलाया और कहा, “जी पंडितजी, बताइए मुझे क्या करना है।”
पुजारी मुस्कुराए और बोले, “तुम एक गिलास में पानी भर लो और उसे लेकर मंदिर के परिसर के चारों ओर दो बार परिक्रमा लगाओ। लेकिन ध्यान रहे, गिलास का पानी बिल्कुल भी गिरना नहीं चाहिए।”
महिला को यह बात थोड़ी अजीब लगी, लेकिन उसने सोचा कि यह कोई कठिन काम नहीं है। उसने एक गिलास पानी भरा और परिक्रमा शुरू की।
जब वह परिक्रमा कर रही थी, तो उसका पूरा ध्यान गिलास पर था। वह इस बात को सुनिश्चित कर रही थी कि पानी का एक भी बूंद बाहर न गिरे। बड़ी सावधानी से उसने मंदिर के चारों ओर दो बार परिक्रमा पूरी कर ली।
जब वह पुजारी के पास लौटी, तो उसने गर्व से कहा, “पंडितजी, मैंने आपका काम पूरा कर दिया। गिलास का पानी बिल्कुल भी नहीं गिरा।”
पुजारी ने मुस्कुराते हुए उससे तीन सवाल पूछे:
“पहला सवाल – परिक्रमा करते समय क्या तुमने किसी को फोन पर बात करते हुए देखा?”
महिला ने कहा, “नहीं, मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा।”
“दूसरा सवाल – क्या तुमने किसी को मंदिर में गपशप करते हुए देखा?”
महिला ने फिर से इंकार में सिर हिलाया, “नहीं, मैंने यह भी नहीं देखा।”
तीसरा सवाल – क्या तुमने किसी को पूजा करते समय पाखंड या दिखावा करते हुए देखा?”
महिला ने साफ-साफ कहा, “नहीं पंडितजी, मैंने ऐसा भी कुछ नहीं देखा। मेरा सारा ध्यान सिर्फ गिलास के पानी पर था कि कहीं पानी गिर न जाए।”
पुजारी ने गहरी सांस ली और गंभीर स्वर में कहा, “बेटी, यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था। जब तुम परिक्रमा कर रही थीं, तो तुम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ गिलास के पानी पर था। इसलिए तुमने किसी और चीज़ पर ध्यान नहीं दिया। ठीक इसी तरह, जब तुम मंदिर आओ, तो अपना पूरा ध्यान भगवान पर लगाओ। दूसरों की क्या गलती है, क्या सही है, इसे देखने-सोचने का समय ही नहीं बचेगा। तुम्हें हर जगह सिर्फ भगवान ही दिखेंगे।”
महिला यह सुनकर चुप हो गई। उसे पुजारी की बात समझ आ गई थी। उसने नम्रता से कहा, “पंडितजी, आपकी बात ने मेरी आँखें खोल दी हैं। अब मैं जब भी मंदिर आऊंगी, मेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ परमात्मा में रहेगा।”
पुजारी ने मुस्कुराकर कहा, “याद रखना बेटी, जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। भगवान हर जगह हैं, बस उन्हें देखने का भाव और दृष्टि चाहिए।”
महिला ने सिर झुकाकर पुजारी को प्रणाम किया और मन में यह निश्चय कर लिया कि अब वह अपनी भक्ति को और भी सच्चा और पवित्र बनाएगी।
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राधे राधे🙏🙏