जगन्नाथ जी की भक्त कर्मा बाई की कथा |

जगन्नाथ जी की भक्त कर्मा बाई की कथा

कर्माबाई श्री कृष्ण की परम भक्त थीं। वह बचपन से ही श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा करती थी। वह हर रोज उनको फल और मेवे का भोग लगाती थी। एक दिन उनके मन में इच्छा जाग्रत हुई कि मैं अपने हाथ से कुछ बना कर भगवान को भोग लगाऊं। उन्होंने भगवान के लिए खिचड़ी बनाई और भगवान को भोग लगाया। भगवान ने बड़े चाव से उनका भोग स्वीकार किया।

एक बार जब कर्माबाई ने खिचड़ी बनाई तो जगन्नाथ जी बालक रूप में कर्मा बाई के घर पर गए और कर्मा बाई उनको खिचड़ी खाने को दी। भगवान बड़े भाव से खिचड़ी खाने लगे और कर्मा बाई उनको पंखा करने लगी। ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌

ठाकुर जी कहने लगे कि,” मां मुझे तेरी खिचड़ी बहुत अच्छी लगी। तुम कल भी मेरे लिए खिचड़ी बनाना मैं कल भी खिचड़ी खाने आऊंगा। कर्मा बाई बोली कि कल ही क्यों मैं हर रोज़ तुम्हारे लिए खिचड़ी बनाऊंगी। अब प्रतिदिन जगन्नाथ जी कर्मा बाई के घर पर खिचड़ी खाने आने लगे। कर्मा बाई सुबह उठकर सबसे पहले खिचड़ी बनाती और उसके पश्चात अन्य काम करती।

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जगन्नाथ जी द्वार पर आवाज लगाते जल्दी कर मां, जल्दी कर‌ मां और कर्मा बाई जल्दी से उनको खिचड़ी परोस देती। जगन्नाथ जी चाव से खिचड़ी खाते और कर्माबाई उनका हाथ मुंह धुलवाती। यह हर रोज़ का नियम बन गया था।

एक बार एक महात्मा कर्मा बाई के घर पर आए और उन्होने सुबह-सुबह बिना नहाए कर्मा बाई को खिचड़ी बनाते देखा। महात्मा जी कहने लगे कि, तुम बिना नहाए धोए ही भोजन पकाने लगती हो। कर्मा बाई कहने लगी कि ठाकुर जी को सुबह सुबह बहुत भूख लगी होती है। उन्हें मेरे हाथ की खिचड़ी बहुत पसंद हैं इसलिए मैं सुबह सुबह उनके लिए खिचड़ी बनाई देती हूं।

महात्मा जी सोचने लगे कि, जगन्नाथ जी को तो 56 भोग लगते हैं वह कहां इसकी खिचड़ी खाने आते होंगे। यह कर्माबाई भाव वश‌ ऐसा कह रही होगी कि वह इसकी खिचड़ी खाने आते हैं।   महात्मा जी कहने लगे कि, तू पहले नहा धोकर ,पूजा पाठ करके, चूल्हा चौका साफ करने के पश्चात ही ठाकुर जी का भोग बनाया करो।

कर्माबाई ने संत की बात को मान लिया और अगले दिन कर्मा भाई ने उठते ही खिचड़ी नहीं बनाई। ठाकुर जी के द्वार पर आ गए और कहने लगे जल्दी कर मां जल्दी से खिचड़ी परोस दे।

कर्मा बाई कहने लगी कि,” पहले मैं स्नान कर लूं।”

उसके फिर से ठाकुर जी ने आवाज लगाई तो कर्मा बाई कहने लगी मैं पूजा पाठ कर लूं।

फिर ठाकुर जी ने आवाज लगाई तो कहने लगी कि,” मैं पहले चूल्हा चौका साफ कर लूं। उसके पश्चात कर्मा बाई ने खिचड़ी बनाई और ठाकुर जी को भोग लगाया।

ठाकुर जी सोचने लगे कि,”आज मां को क्या हो गया है? भगवान ने झटपट खिचड़ी खाई। आज खिचड़ी में वैसा भाव नहीं आया जैसा वात्सल्य भाव उनको पहले खिचड़ी खाने से आता था। जगन्नाथ जी जल्दी-जल्दी खिचड़ी खाकर चले गए क्योंकि मंदिर के कपाट खुलने का समय हो गया था। घर के बाहर जब उन्होंने महात्मा को देखा तो समझ गए कि इस महात्मा नहीं मेरी मैया को पट्टी पढ़ाई है।

उधर जब मंदिर में जो पुजारी जी ने मंदिर के पट खोले तो भगवान के मुख पर खिचड़ी लगी हुई थी। पुजारी सोचने लगे कि खिचड़ी भगवान के मुख पर कैसे लग गई?

जगन्नाथ जी ने पुजारी जी को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि हर रोज मैं कर्माबाई के घर पर खिचड़ी खाने जाता हूं। कर्मा बाई को एक महात्मा ने पट्टी पढ़ा दी है। तुम जाकर महात्मा को समझाओं कि वह कर्माबाई से कहें कि तुम जैसे पहले भाव से मेरे लिए खिचड़ी बनाती थी वैसे ही खिचड़ी बनाया करो। आज उसके कारण ही मां को खिचड़ी बनाने में देरी हो गई और  जल्दी जल्दी खाने के चक्कर में खिचड़ी मेरे मुंह पर लगी यह गई।

पुजारी जी महात्मा के पास गए और सारी बात उनको बताई। पुजारी जी ने जल्दी से कर्मा बाई के पास जाकर कहा कि माता आप मुझे क्षमा करें और यह धर्म नियम तो केवल संतों के लिए हैं आप जैसे पहले भाव से ठाकुर जी की खिचड़ी बनाती थी वैसे ही खिचड़ी बनाकर प्रभु जी को भोग लगाया करो।

अब ठाकुर जी हर रोज कर्मा बाई के घर पर खिचड़ी खाने आते और बड़े चाव से खिचड़ी खाकर लौट जाते। एक दिन जब पुजारी जी ने मंदिर के कपाट खोले तो देखा कि ठाकुर जी की आंखों से आंसू आ रहे थे। जब पुजारी जी को उनके रोने का कारण समझ नहीं आ रहा था। जगन्नाथ जी पुजारी जी के स्वप्न में आकर कहने लगे कि मेरी कर्माबाई देव लोक को छोड़कर चली गई हैं। अब मेरे लिए खिचड़ी कौन बनाएगा?

उस दिन निश्चय किया गया कि जगन्नाथ जी को रोज बाल भोग खिचड़ी का ही लगाया जाएगा।

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