काशी विश्वनाथ | kashi Vishwanath

रांझणा मूवी के कुंदन-जोया की लव स्टोरी हो या मसान मूवी का दीपक-शालू की कहानी, बॉलीवुड काशी की गलियों में लव स्टोरी से तो वाकिफ करता ही है लेकिन काशी में सिर्फ लव स्टोरी ही नहीं ,काशी में बसता है- सुकून ,शांति, आस्था और ज्ञान। कहते हैं भारत में आस्था और इतिहास का असली रंग सिर्फ काशी में देखने को मिलता है।

आस्था की नगरी काशी:-

भगवान शिव कहते हैं तीनों लोकों में मेरा समाहित एक नगर है। जिसमें मेरा निवास होता है। वह  काशी है। ऋग्वेद में इसका वर्णन मिलता है बनारस इतिहास से भी प्राचीन नगर है वाराणसी साहित्यिक, धार्मिक ,संस्कृत और सौंदर्य का अनोखा नगर है। जिसकी महानता को सभी मानते हैं। यहां का संगीत यहां के भजन काशी की प्राचीन धरोहर है। तभी तो  उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई गंगा की लहरों के साथ जुगलबंदी करके मानो सूर्य देवता की सराहना करती रही। यहां रामचरितमानस का ओरिजिनल डॉक्यूमेंट भी संग्रह किया गया है। यहां चार विश्वविद्यालय हैं। यही गौतम बुद्ध का पहला प्रवचन सारनाथ में हुआ।

काशी विश्वनाथ के दर्शन :-

काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में तो सभी जानते हैं।

एक गंगा मैया का तट, दूसरा काशी विश्वनाथ का पट।

उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे बसा एक बहुत पुराना शहर हैं।जो कभी काशी के नाम से जाना जाता था लेकिन अब इसे वाराणसी कहते हैं। आप चाहे तो बनारस भी कह सकते हैं।

कहते हैं कुछ साल पहले कुछ सिक्के मिले।जब उन सिक्कों पर रिसर्च की गई तो, उन पर शिवजी और पास बैठे हुए नंदी का चित्र था। उससे पता चला कि यह सिक्का 12400 साल पुराना है। अब आप समझ सकते हैं कि बनारस शहर कितना पुराना है। यहां की सभ्यता कितनी पुरानी होगी। यह शहर 5000 साल से भी पुराना शहर है। और इसी शहर में है बाबा विश्वनाथ का मंदिर। जिसे देखने पूरे देश विदेश से लोग आस्था के साथ यहां दर्शन करने के लिए आते हैं।

काशी विश्वनाथ का मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इन्हें भगवान विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथो में काशी विश्वनाथ की पूजा का बहुत महत्व समझाया गया है। लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया। उसके अलावा अलग-अलग समय में कई मुगल बादशाहों ने इसे नष्ट करने की कोशिश की।

ऐसा माना जाता है औरंगजेब इस मंदिर को तोड़कर बची हुई दीवारों पर ज्ञानव्यापी मस्जिद बनवाना चाहता था। यह मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के बिल्कुल बगल में बनी हुई है। यह बात कागजों में भी लिखी हुई पाई गई। 1780 इंदौर की मराठा शासक रानी अहिल्याबाई ने बनवाया था। एक और खास बात की महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को 1000 किलो सोना दान किया। जिसे मंदिर के शिखर पर लगाया गया। मंदिर का शिखर सोने का होने के कारण काशी विश्वनाथ मंदिर को लोग स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं।

मुख्य मंदिर आसपास के कई छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर तीन भागों में है। बीच के गुंबद को छोड़कर बाकी दो गुंबद सोने के बने हैं। तीसरे गुंबद के ऊपर एक झंडा और त्रिशूल लगा हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 15.5 मीटर है। हर साल मार्च में काशी विश्वनाथ मंदिर में रंग भरी एकादशी का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के दिन इस मंदिर से भगवान शिव के भक्त बाराती बनकर शामिल होते हैं। इस बारात में ढोल,शंख, नगाड़े बजाते हुए, अबीर गुलाल के रंग उड़ते हुए, नाचते हुए, गाते हुए, माता पार्वती के घर पहुंचते हैं।

Kashi Vishwanath Temple Aarti & Darshan Timings - Entry Fee

मंदिर के पूर्व की तरफ एक महंत के घर को उनका मायका माना जाता है। रंग भरी एकादशी का त्योहार पिछले 300 सालों से मनाया जाता है। बाबा का दरबार भक्तों के लिए पूरे साल खुला रहता है। लेकिन अक्टूबर से मार्च तक का समय मौसम के हिसाब से और त्योहारों के हिसाब से अनुकूल माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर आप आरती के समय दर्शन जरूर करिए। मंगल आरती, मध्य दिवस, भोग आरती,सप्त ऋषि आरती और श्रृंगार आरती मुख्य है।काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और आरती के लिए किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं है। सभी भक्तों के लिए इस मंदिर का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।

काशी बनारस या वाराणसी:-

काशी नगरी भगवान की नगरी है। यह कल भी थी, और आज भी है। लेकिन इस नगर के नाम में समय-समय पर थोड़ा परिवर्तन होता रहा है। लेकिन पुराने नाम साथ-साथ चलते रहे। जिन्हें लोग कभी नहीं भूले। गंगा किनारे बसे इस शहर को काशी कहा जाता था, फिर बनारस और अब वाराणसी। काशी को सबसे पुराना और जिंदा दिल शहर माना जाता है। 3000 साल से इस शहर का नाम काशी था। कहते हैं 5000 साल पहले इस शहर को भगवान शिव ने बसाया।

स्कंद पुराण, रामायण, महाभारत जैसे अपने धार्मिक ग्रंथो में इस नगर का नाम काशी ही होता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव की नगरी होने के कारण यह शहर हमेशा चमकता रहा है। काशी शब्द का अर्थ है, प्रकाश देने वाली नगरी।

एक कहानी यह भी है कि यहां पर बनार नामक एक राजा राज्य करते थे। जो मोहम्मद गौरी के हमले के दौरान मारे गए। उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम बनारस रखा गया। ऐसा भी कहा जाता है यहां पर जीवन के रंगों को देखकर मुगलों ने इसका नाम बनारस रखा। बनारस नाम मुगलों के समय का नाम है। काशी का नया नाम वाराणसी है।

काशी के मंदिर मोक्ष दिलाते हैं:-

वहां के मंदिर न केवल आध्यात्मिक सन्तोष और शांति का स्थान होते हैं, बल्कि वे विशेष रूप से हिन्दू धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। यहाँ के धार्मिक आस्था और प्राचीनता का माहौल मोक्ष की दिशा में लोगों को प्रेरित करता है।हमारी आस्थाएं हमारे पूजा स्थलों में मजबूत होती है। गंगा की धाराएं सिर्फ जलधारा नहीं है बल्कि हमारे और आपके मन में बहती अनंत आस्था का प्रतीक है।

यह अनमोल धरती है गंगा, हिमालय से निकलकर अपनी गंगा सागर की यात्रा में जिन-जिन गांवों और शहरों से गुजरी है, वह अपने किनारो को सिचती और उपजाऊ बनती और अपने किनारो पर बसे शहरों को पवित्र पावन बनती आगे बढ़ती है। इसी पवित्रता के प्रतीक के रूप में गंगा के किनारे बहुत सारे मंदिरों कानिर्माण हुआ। गंगा जब अपने पुण्य प्रवाह के साथ काशी नगर पहुंचती है तब यह शहर भी धन्य हो जाता है।

बाबा विश्वनाथ एक नाम दो रूप:-

बाबा विश्वनाथ एक नाम दो रूप” इस वाक्य से दर्शाया जाता है कि शिवजी के यहाँ दो रूप हैं – एक मानवीय रूप में जो भक्तों के बाबा के रूप में माने जाते हैं, और दूसरा दिव्य रूप में जो आध्यात्मिकता और मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूजे जाते हैं।

काशी में विश्वनाथ मंदिर मान्यताओं और धार्मिक अनुष्ठानों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। जहाँ शिवजी की पूजा-अर्चना विशेष ध्यान दिया जाता है। यहाँ पर भक्त आकर अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने की कामना करते हैं। और शिवजी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। विश्वनाथ मंदिर काशी के भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है, जो मोक्ष की प्राप्ति में सहायता करता है।

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भगवान शिव की नगरी काशी में महादेव साक्षात निवास करते हैं। यहां बाबा के दो मंदिर खास है। बड़ी श्रद्धा के साथ हम बाबा विश्वनाथ का नाम लेते हैं, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से नवां स्थान पर है। बाबा विश्वनाथ का दूसरा मंदिर है, जो इसके प्रतीक के रूप में काशी विश्वा विद्यालय के अंदर बनाया गया है। वह भी बाबा विश्वनाथ का मंदिर है शिव के भक्त अपनी अटूट आस्था के चलते ऐसा मानते हैं कि काशी नगरी महादेव के त्रिशूल पर बसी है वैसे भी यह गंगा नदी के तट पर बसी है पुराणों में इसे मोक्ष की नगरी कहा गया है।

 

काशी के घाट:-

वाराणसी की वो सजीव धारा हैं जो शहर की प्राचीनता, धार्मिकता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इन घाटों की बात करें, तो मन में वह अनोखी भावना उत्पन्न होती है, जो केवल इस जगह में ही महसूस होती है।

हर घाट अपनी कहानी सुनाता है, हर एक की धार्मिकता, सांस्कृतिक विरासत बताती है। मानो जैसे घाटों के पवित्र जल में नहाने से ही मनुष्य के सभी पाप धो जाते हैं। जैसे ही घाट पर आते है, मन ही मन उसकी आत्मा में शांति बसती है।

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हर घाट अपनी विशेषता लेकर आता है। असी घाट का माहौल जोर-शोर से हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित करता है, मनिकर्णिका घाट की प्राचीनता और शांति भरें वातावरण, और दशाश्वमेध घाट की पवित्रता और महात्म्य की कथाएँ।

हर घाट एक नया दृष्टिकोण और एक नया संदेश लेकर आता है। यहाँ की धरोहर, प्राचीनता और भारतीय संस्कृति का जादू मनुष्य की भावनाओं को छू जाता है। घाटों की गहरी गंगा की लहरों में बसी वो विशेषता, जो हर दर्शन करने वाले को अपनी भावनाओं के साथ संबोधित करती है।

ये घाट नहीं, एक अनूठा संसार है, जहाँ इंसान की आत्मा अपनी सच्ची पहचान पा लेती है, जहाँ शांति और मोक्ष की तलाश में वह अपने मन की गहराइयों में खो जाता है।

काशी का स्वाद:-

काशी के डॉक्टर की एक कहावत है कि जो दिल्ली की दवा से ठीक नहीं हो पाते हैं वह काशी की हवा से ठीक हो जाते हैं। काशी में क्या है, कुछ तो खास है जो हमें खींचता है। काशी का स्वाद, काशी का जाएका, बेमिसाल है। काशी की पुरानी सकरी गलियों में देर रात से ही खाने पीने की तैयारी शुरू हो जाती है। बनारसी पान हो या टमाटर चाट, भांग वाली ठंडाई या बाटी चोखा, मिठाई जिसने भी एक बार यहां के स्वादिष्ट खाने का स्वाद चखा वह कभी भूल नहीं पता है।

वाराणसी में मिलने वाली मिठाईयाँ भी अद्भुत होती हैं। यहाँ की मलाईयाँ और लस्सी बहुत ही प्रसिद्ध होती हैं और इनका स्वाद कोई और जगह पर नहीं मिलता।

इस तरह का खाना और खाने का तरीका वाराणसी की जड़ों से जुड़ा होता है। और इसे “काशी का स्वाद” कहा जाता है। जो खासतौर से इस शहर की धार्मिकता, संस्कृति और लोक संस्कृति को दर्शाता है।

बनारस का पान:-

बनारस की बात करें और बनारस के पान का जिक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। यहां की शान और पहचान दोनों है बनारसी पान। बनारस का नाम लेते ही सबसे पहले बनारसी पान की तस्वीर सामने आती है।

बनारस का पान एक विशेष तरह के पान मिश्रण होता है, जो खासतौर से पान की पत्ती, गुलकंद, कत्था, सुपारी, तंबाखू, तीनी, इलायची, चूना और अन्य सामग्रियों से तैयार किया जाता है।

बनारस के पान का स्वाद अनूठा और विशेष होता है। इसमें विविधता और मिलावट का अलग अहसास होता है। यहाँ के पान को खाने का अनुभव अलग होता है, जो अन्यत्र नहीं मिलता।

बनारस का पान वहाँ की संस्कृति, धार्मिकता, और त्यौहारों का एक हिस्सा होता है। यहाँ के लोग विशेष मौकों और धार्मिक उत्सवों में पान का सेवन करते हैं।

 

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