अद्भुत पौराणिक कथाएं | भगवान की पौराणिक कथाएं | पौराणिक कथाएं इन हिंदी | 6 Mythological stories in hindi

अद्भुत पौराणिक कथाएं-प्रिय पाठको हम आपके लिए कुछ अद्भुत पौराणिक कहानियाँ संग्रह लाए हैं। यह वे कहानियां होती हैं जो प्राचीन काल से हमारे धर्म, संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी हुई हैं। इन कहानियों में देवताओं, दानवों, वीरों और अन्य काल्पनिक पात्रों के साहसिक और असाधारण कारनामों का वर्णन होता है। ये कहानियां आमतौर पर हमारी धार्मिक ग्रंथों, जैसे कि वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि में मिलती हैं। आप भी इनको पढ़े और आनंद ले।

हरिकृपा प्रभु की गोद

जन्म से ठीक पहले एक बालक भगवान से कहता है, प्रभु आप मुझे नया जन्म मत दीजिये, मुझे पता है पृथ्वी पर बहुत बुरे लोग रहते है… मैं वहाँ नहीं जाना चाहता… और ऐसा कह कर वह उदास होकर बैठ जाता है।

भगवान् स्नेह पूर्वक उसके सर पर हाथ फेरते हैं और सृष्टि के नियमानुसार उसे जन्म लेने की महत्ता समझाते हैं, बालक कुछ देर हठ करता है पर भगवान् के बहुत मनाने पर वह नया जन्म लेने को तैयार हो जाता है।

ठीक है प्रभु, अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं मृत लोक में जाऊं तो वही सही, पर जाने से पहले आपको मुझे एक वचन देना होगा। बालक भगवान् से कहता है।

भगवान्: बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो?

बालक: आप वचन दीजिये कि जब तक मैं पृथ्वी पर हूँ तब तक हर एक क्षण आप भी मेरे साथ होंगे।

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अद्भुत पौराणिक कथाएं

 

भगवान्: अवश्य, ऐसा ही होगा।

बालक: पर पृथ्वी पर तो आप अदृश्य हो जाते हैं, भला मैं कैसे जानूंगा कि आप मेरे साथ हैं कि नहीं?

भगवान्: जब भी तुम आँखें बंद करोगे तो तुम्हे दो जोड़ी पैरों के चिन्ह दिखाइये देंगे, उन्हें देखकर समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।

फिर कुछ ही क्षणो में बालक का जन्म हो जाता है।…

जन्म के बाद वह संसारिक बातों में पड़कर भगवान् से हुए वार्तालाप को भूल जाता है| पर मरते समय उसे इस बात की याद आती है तो वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता है।

वह आखें बंद कर अपना जीवन याद करने लगता है। वह देखता है कि उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिख रहे हैं। परंतु जिस समय वह अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रहा था उस समय केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखाइये दे रहे थे, यह देख वह बहुत दुखी हो जाता है कि भगवान ने अपना वचन नही निभाया और उसे तब अकेला छोड़ दिया जब उनकी सबसे अधिक ज़रुरत थी।

मरने के बाद वह भगवान् के समक्ष पहुंचा और रूठते हुए बोला: प्रभु ! आपने तो कहा था कि आप हर समय मेरे साथ रहेंगे, पर मुसीबत के समय मुझे दो की जगह एक जोड़ी ही पैर ही दिखाई दिए, बताइये आपने उस समय मेरा साथ क्यों छोड़ दिया ?

भगवान् मुस्कुराये और बोले: पुत्र! जब तुम घोर विपत्ति से गुजर रहे थे तब मेरा ह्रदय द्रवित हो उठा और मैंने तुम्हे अपनी गोद में उठा लिया, इसलिए उस समय तुम्हे सिर्फ मेरे पैरों के चिन्ह दिखायी पड़ रहे थे।

बहुत बार हमारे जीवन में बुरा वक़्त आता है, कई बार लगता है कि हमारे साथ बहुत बुरा होने वाला है, पर जब बाद में हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जितना सोचा था उतना बुरा नहीं हुआ,क्योंकि शायद यही वो समय होता है जब ईश्वर हम पर सबसे ज्यादा कृपा करते है। अनजाने में हम सोचते हैं को वो हमारा साथ नहीं दे रहे पर हकीकत में वो हमें अपनी गोद में उठाये होते है।

कहां है भगवान

अद्भुत पौराणिक कथाएं-बहुत से लोग तो कहते हैं कि भगवान है ही नहीं लोग कहते हैं यदि वो है तो उनको दिखाओ कि वो कहाँ हैं ? भगवान को देखा तो जा सकता है लेकिन भगवान को दिखाया नहीं जा सकता है।

एक बार किसी सन्त के पास कोई जिज्ञासु आया और उस सन्त को कहा कि महाराज तुम भगवान की बात करते हो तो मुझे दिखाओ कहाँ है तुम्हारा भगवान ? मुझे नजर क्यों नहीं आता ?

सन्त ने कहा कि भइया सन्त तो अनुभव की चीज है मैं तुम्हें कैसे दिखाऊँ ? मैं अनुभव कर सकता हूँ मैं उनको देख सकता हूँ मेरे भजन से प्रसन्न होकर वो मुझे अपनी झलक दिखाते हैं पर मैं तुझे कैसे दिखाऊँ ?

उस जिज्ञासु को ये सब बातें अच्छी नहीं लगी उसने हठ करते हुए सन्त को कहा कि मुझे ये सब मत बोलो ये ज्ञान की बातें मुझे नहीं सुननी। तुम दिखा सकते हो तो दिखाओ कहाँ है तुम्हारा भगवान ?

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सन्त ने उसे बहुत समझाया भजन की साधना की बात बताई पर उसको कुछ समझ ही नहीं आता वो बार बार कहता कि तुम मुझे अपना भगवान दिखाओ, कहाँ है तुम्हारा भगवान, मुझे दिखाओ।

जब वह किसी तरह नहीं माना तो सन्त ने तुरन्त पास में पड़ी अपनी लाठी उठाई और उसके पैर पर जोर से  दे मारी। जितनी जोर से लाठी पड़ी उतने ही जोर से वह दर्द से तड़प उठा। चीखने लग गया हाय मैं मर गया हाय मेरे चोट लग गई बड़ी तकलीफ होती है बड़ा दर्द होता है।

जब उसने ये बात कही तो सन्त ने उसको हँसते हुए पूछा कि दिखा कहाँ है तेरा दर्द ? दिखा मुझे कहाँ है ?

वो रोता-रोता तड़पता-तड़पता पीड़ा में बोला अरे महाराज ! दर्द को तो महसूस किया जा सकता है, कोई दिखाया थोड़ी जा सकता है मैं दिखाऊँ कैसे कि कहाँ है मेरा दर्द।

सन्त ने हंसकर कहा पागल इसी तरह से परमात्मा को दिखाया नहीं जा सकता,पर उसको देखा जा सकता है उसका दर्शन किया जा सकता है। जिस पर वो कृपा कर दें उसको  उनका दर्शन हो जाता है..!!

  *जय श्री कृष्णा*

पुण्य का दान

अद्भुत पौराणिक कथाएं-भगवान श्री हरि मूर दैत्य का नाश करने के बाद बैकुंठ लोक में शेष शय्या पर आंखें मूंदे लेटे मन ही मन मुस्कुरा रहे थे !

देवी लक्ष्मी उनकी चरण सेवा कर रही थीं ! भगवान को मन में ही मुस्काता देख देवी को कौतूहल हुआ !

देवी लक्ष्मी ने उनसे प्रश्न किया :-भगवन आप संपूर्ण जगत का पालन करते हुए भी अपने ऐश्वर्य के प्रति उदासीन से होकर इस क्षीर सागर में नींद ले रहे हैं ! इसका क्या कारण है ?

श्री हरि पुनः मुस्कुराए और अपनी मोहक मुस्कान बिखेरते हुए बोले :-हे प्रिये मैं नींद नहीं ले रहा बल्कि अपनी अंतर्दृष्टि से अपने उस तेज का साक्षात्कार कर रहा हूं , देवी जिसका योगी अपनी दृष्टि से दर्शन कर लेते हैं !

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जिस शक्ति के अधीन यह समस्त संसार है ! मैं जब भी उसका मन में दर्शन करता हूं ! तब आपको ऐसा प्रतीत होता है कि मैं नींद में डूबा हूं परंतु ऐसा है ,नहीं !

भगवान ने इतनी रहस्यमय तरीके से बात कही कि लक्ष्मी जी को कुछ बातें समझ में आईं कुछ नहीं आईं !

उन्होंने पुनः प्रश्न किया :-हे नाथ आपके अतिरिक्त भी कोई शक्ति है ,जिसका ध्यान स्वयं आप करते हों ! यह बात तो मुझे घोर विस्मय में डालती है

श्री हरि ने कहा :-देवी इस बात को अच्छी प्रकार से समझने के लिए आपको गीता के रहस्य समझने होंगे ! आप सेवा करती हैं !

गीता के आरंभ के पांच अध्यायों को मेरे पांच मुख जानें !

छठे से पंद्रहवें अध्याय को मेरी दस भुजाएं समझिए !

सोलहवां अध्याय तो मेरा उदर है जहां क्षुधा शांत होती है !

अंतिम के दो अध्यायों को मेरे चरण कमल समझिए !

भगवान ने गीता के अध्यायों की इस प्रकार व्याख्या कर दी ! लक्ष्मी जी की उलझन घटने की बजाय और बढ़ने लगी ! भगवान ने भांप लिया कि देवी के मन में क्या चल रहा है ?

श्री हरि ने पुनः कहा :-देवी जो व्यक्ति गीता के एक भी अध्याय अथवा एक श्लोक का भी प्रतिदिन पाठ करता है ! वह सुशर्मा की तरह सभी पापों से मुक्त हो जाता है !

अब तो देवी लक्ष्मी और उलझ गईं ! उन्होंने संयत भाव में अपनी अधीरता व्यक्त करते हुए :-

हे नाथ यह आपकी क्या लीला है एक के बाद एक आप पहेलियां ही कहते जा रहे हैं ! कृपया आप मेरी जिज्ञासा शांत करें !

भगवान पुनः मुस्कुराने लगे और उन्होंने लक्ष्मीदेवी को सुशर्मा की कथा सुनानी शुरू की !

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सुशर्मा एक घोर पापी व्यक्ति था वह हमेशा भोग-विलास में डूबा रहता ! मदिरा और मांसाहार इसी में जीवन बिताता ! एक दिन सांप काटने से उसकी मृत्यु हो गई !

उसे नरक में यातनाएं झेलीं और फिर से पृथ्वी पर एक बैल के रूप में जन्म लिया !

अपने मालिक की सेवा करते बैल को आठ साल गुजर गए ! उसे भोजन कम मिलता लेकिन परिश्रम जरूरत से ज्यादा करनी पड़ती !

एक दिन बैल मूर्च्छित हो कर बाजार में गिर पड़ा ! बहुत से लोग जमा हो गए ! वहां उपस्थित लोगों में से कुछ ने बैल का अगला जीवन सुधारने के लिए अपने-अपने हिस्से का कुछ पुण्यदान करना शुरू किया !

उस भीड़ में एक वेश्या भी खड़ी थी ! उसे अपने पुण्य का पता नहीं था ! फिर भी उसने कहा उसके जीवन में जो भी पुण्य रहा हो उसका अंश बैल को मिल जाए !

बैल मर कर यमलोक पहुंचा ! हिसाब-किताब हुआ और वेश्या के दिए पुण्यदान के कारण वह नर्कलोक से मुक्त हो गया ! उसे मानव रूप में जन्म मिला !

उसने ईश्वर से कहा कि :-मानवरूप में पृथ्वी पर भेजने से पहले उसे वह क्षमता दें कि उसे पूर्वजन्म की बातें याद रहेंगी ! ईश्वर ने वह योग्यता दे दी !

पृथ्वी पर आकर उसे उस वैश्या को तलाशा जिसके पुण्य से उसे मुक्ति मिली थी ! उसने वेश्या से पूछा कि उसने कौन सा पुण्य दान किया था ?

वेश्या ने एक तोते की ओर इशारा करके कहा :-वह तोता प्रतिदिन कुछ पढ़ता है उसे सुनकर मेरा मन पवित्र हो गया ! वही पुण्य मैंने दान कर दिया !

सुशर्मा ने तोते से उसके ज्ञान का रहस्य पूछा ! तब तोते ने अपने पूर्वजन्म की कथा सुनाई !

पूर्वजन्म में मैं विद्वान होने के बावजूद अभिमानी था और सभी विद्वानों के प्रति ईर्ष्या रखता था उनका अपमान और अहित करता था !

मरने के बाद मैं अनेक लोकों में भटकता रहा ! फिर मुझे तोते के रूप में जन्म मिला लेकिन पुराने पाप के कारण बचपन में ही मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई !

मैं रास्ते में कहीं अचेत पड़ा था, तो कुछ मुनि मुझे उठा लाए ! एक पिंजरे में वहां रख दिया जहां विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी ! मैंने वहां गीता का पूरा ज्ञान सीखा !

सुनते-सुनते गीता का प्रथम अध्याय मुझे कंठस्थ हो गया ! इससे पहले कि मैं अन्य अध्याय सीख पाता एक बहेलिये ने वहां से चुराकर इन देवी को बेच दिया

मैं अपने स्वभाव-वश इनको प्रतिदिन गीता के श्लोक सुनाता रहता हूं ! वही पुण्य इन्होंने आपको दान किया और आप मानवरूप में आए !

श्री हरि ने लक्ष्मीजी से कहा :-देवी जो गीता का प्रथम अध्याय पढ़ता या सुनता है ! उसे भव-सागर पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती !

तो इस प्रकार भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता के विभिन्न अध्यायों को अपने शरीर का अंग मानते हुए बताया है ! कि गीता में साक्षात उनका वास है !

गीता को स्पर्श करने का अर्थ है , आप श्री नारायण के अंगों का स्पर्श कर रहे हैं ! भगवान का स्पर्श करके सौंगंध लेने के बाद कोई असत्य नहीं कहेगा ! इसी विश्वास के साथ गीता की सौगंध दी जाती है !

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जय जय श्री राधे 

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नारायण के ये 8 ‘छल

अद्भुत पौराणिक कथाएं
अद्भुत पौराणिक कथाएं

अद्भुत पौराणिक कथाएं-हिन्दू धर्म में कहते हैं कि ब्रह्माजी जन्म देने वाले, विष्णु पालने वाले और शिव वापस ले जाने वाले देवता हैं. भगवान विष्णु तो जगत के पालनहार हैं.

धरती पर किसी भी तरह का संकट खड़ा हो गया हो, तो विष्णु ही उसका समाधान खोजकर उसे हल करते हैं. भगवान विष्णु को संसार को सुरक्षित रखने के लिए कई बार धर्म की मर्यादा का भी उल्लंघन करना पड़ा.

आइए आपको बताते हैं भगवान विष्णु की ऐसी 8 घटनाएं जिनमें सृष्टि के कल्‍याण के लिए उन्‍हें छल का सहारा लेना पड़ा था.

मधु-कैटभ का वध

मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली दैत्‍य थे, जो ब्रह्माजी को मारना चाहते थे. स्‍वभाव से तपस्‍वी ब्रह्माजी भगवान विष्‍णु की शरण में आए और बोले कि प्रभु आप हमारी इन दैत्‍यों से रक्षा करें. मगर इन दोनों दैत्‍यों को इच्‍छामृत्‍यु का वरदान प्राप्‍त था. भगवान विष्‍णु ने छल से कुछ ऐसी सम्‍मोहन विद्या अपनाई कि दोनों दैत्‍यों ने प्रसन्‍न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा. भगवान विष्‍णु ने वरदान मांगा कि मेरे हाथों से मृत्‍यु स्‍वीकार करो. उनके तथास्‍तु बोलते ही भगवान विष्‍णु ने अपनी जांघ पर दोनों का सिर रखकर सुदर्शन चक्र से काट डाला.

शिव-पार्वती से छीना बद्रीनाथ धाम

भगवान विष्‍णु को तपस्‍या के लिए एकांतवास की आवश्‍यकता थी तो उन्‍हें भगवान शिव और पार्वती का निवास स्‍थान ब्रदीनाथ धाम सर्वाध‍िक उपयुक्‍त लगा. तब विष्‍णु ने शिशु अवतार लिया और बद्रीनाथ स्थित शिव की कुटिया के बाहर आकर रोने लगे. बच्‍चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती आईं और उसे दूध पिलाया और कुटिया के अंदर ले जाकर सुला दिया और शिवजी के साथ स्‍नान करने चली गईं. वापस आने पर देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था.

पार्वतीजी ने बच्‍चे को जगाने का प्रयास किया तो बच्‍चा नहीं जगा. तब शिवजी ने कहा कि अब उनके पास दो ही विकल्‍प है या तो यहां कि हर चीज को वो जला दें या फिर यहां से कहीं और चले जाएं. बच्‍चे के अंदर सोने के कारण वह उस कुटिया को नहीं जला सकते थे. अंत में उन्‍हें बदरीनाथ छोड़कर केदारनाथ में अपना निवास स्‍थापित करना पड़ा.

राजा बलि से छीना राजपाट

त्रेतायुग में बलि नाम का दैत्य भगवान विष्‍णु का परमभक्त था. वह बड़ा दानी, सत्यवादी और धर्मपरायण था. आकाश, पाताल और पृथ्वी तीनों लोक उसके अधीन थे जिससे दुखी होकर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति की. भगवान ने सभी को राजा बलि से मुक्ति दिलवाने के लिए वामन अवतार लिया और एक छोटे से ब्राह्मण का वेश बनाकर उन्होंने राजा बलि से तीन पग पृथ्वी मांगी. राजा बलि के संकल्प करने के पश्चात भगवान ने विराट रूप धारण करके अपने तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया तथा राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया.

शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी

राजा बलि जब वामन अवतार को तीन पग धरती दान करने का संकल्‍प ले रहे थे तब दैत्‍यों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को आगाह किया कि ये वामन अवतार कोई और नहीं भगवान विष्‍णु हैं जो छल से आपका सारा राज-पाट छीन लेंगे. बलि तब भी नहीं माने. उन्‍होंने कहा कि वह दान करने के अपने धर्म से पीछे नहीं हट सकते. जैसे ही राजा बलि संकल्‍प करने के लिए अपने कमंडल से जल लेने चले, शुक्राचार्य उनके कमंडल की टोंटी में जाकर बैठ गए, ताकि जल न निकल सके. वामन के रूप में भगवान विष्‍णु शुक्राचार्य की चाल समझ गए और उन्‍होंने टोंटी में सींक डाली तो उसमें बैठे शुक्राचार्य की आंख फूट गई.

मोहिनी बनकर देवताओं को पिलाया अमृत

दैत्‍यों के राजा बलि से युद्ध में हार जाने के बाद इंद्र अन्‍य देवताओं के साथ अपना स्‍वर्गलोक वापस पाने के लिए भगवान श्रीहरि की शरण में गए. श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें. समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर-अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता, दैत्यों का विनाश करके दोबारा स्वर्ग का आधिपत्य पा सकेंगे.

अमृत के लालच में आकर दैत्‍य समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए. फिर समुद्र मंथन करने पर अमृत निकला तो सुर और असुरों में उसको लेकर झगड़ा होने लगा. तब भगवान विष्‍णु ने मोहिनी रूप धरकर छल से केवल देवताओं को ही अमृतपान कराया.

देवी वृंदा का सतीत्व भंग किया

जलंधर नाम के एक राक्षस के आतंक से तीनों लोक तंग आ चुके थे. यहां तक कि एक बार युद्ध में भगवान शिव को भी उसने पराजित कर दिया था. उसकी अपार शक्तियों का कारण थी उसकी पत्‍नी वृंदा. वृंदा के पतिव्रता धर्म के चलते जलंधर इतना शक्तिशाली था. एक बार भगवान विष्‍णु समूचे विश्‍व की रक्षा के लिए जलंधर का रूप धरकर वृंदा के करीब आए और उसका सतीत्‍व भंग कर दिया. ऐसा होते ही जलंधर की शक्तियां क्षीण होने लगीं और वह देवताओं से युद्ध में हार गया.

विष्णु छल से बचे शिव के प्राण

भस्मासुर एक महापापी असुर था. उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए. भगवान शंकर ने कहा- तथास्तु. ऐसा होते ही भस्‍मासुर भगवान शिव के ऊपर ही हाथ रखकर उन्‍हें भस्‍म करने के लिए दौड़ने लगा. तब शिवजी को बचाने के लिए भगवान विष्‍णु ने सुंदर स्‍त्री का रूप धरा और भस्‍मासुर को अपने मोहपाश में फंसाकर उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया, जिससे वह तत्‍काल भस्‍म हो गया और शिवजी की जान बच गई.

नारद को बनाया वानर, लिया राम अवतार

भगवान विष्‍णु ने एक बार नारद मुनि के घमंड को दूर करने के लिए लीला रची. राह चलते नारदजी को सुंदर कन्‍या मिली और उसने उन्‍हें अपने स्‍वयंवर में आने का निमंत्रण भेजा. अब नारदजी भगवान विष्‍णु के पास गए और बोले- मुझे अपने जैसा सुंदर बनाते हुए हरि का रूप प्रदान कीजिए. भगवान ने ऐसा न करते हुए उन्‍हें वानर का रूप दे दिया. जैसे ही वह स्‍वयंवर में पहुंचे, सभी लोग उन्‍हें देखकर हंसने लगे. नारदजी को कुछ समझ नहीं आ रहा था.

जब शिवगणों ने उन्‍हें आईना दिखाया तो उन्‍हें भगवान विष्‍णु पर बहुत क्रोध आया. उन्‍होंने श्रीहरि को शाप दे डाला कि जिस प्रकार उन्‍हें स्‍त्री वियोग हुआ है उसी प्रकार अपने अवतारों में वह भी स्‍त्री वियोग झेलेंगे. तभी राम का अवतार लेने पर विष्‍णु भगवान को सीता का वियोग झेलना पड़ा और कृष्‍ण के रूप में राधा से वियोग झेलना पड़ा.

!! ॐ नमो श्री हरि !!

आपका दिन शुभ और मंगलमय हो।

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