Shri Krishna aur Rukmani prem kahani | श्री कृष्ण और रुक्मणी प्रेमकथा | True story

Shri Krishna aur Rukmani-जब हम प्रेम की बात करते हैं, तो हमारे मन में सबसे पहले एक तस्वीर आती है – श्री राधा-कृष्ण की। उनका प्रेम किसी से कम नहीं है। इस प्रेम की गाथा में, श्री राधा-कृष्ण का प्रेम अद्वितीय है। हम सभी ने उनके प्रेम के किस्से सुने हैं और उनके प्रेम भरे लीलाओं को देखा है। मगर एक रहस्य बना हुआ है कि क्या राधा रानी भगवान कृष्ण की धर्मपत्नी थीं या नहीं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, ब्रह्म देव ने राधा-कृष्ण का विवाह कराया था। लेकिन इस बारे में और किसी वेद-पुराण में कुछ कहा गया नहीं है। लेकिन लोगों की आस्था में यह कहानी एक अद्वितीय स्थान रखती है। हमें इस प्रेम के महत्व को समझकर उनकी उपासना में भक्ति बनाए रखना चाहिए। यह कहानी एक रहस्य है जिसमें हम नहीं जान सकते कि यह सत्य है या केवल एक कथा। हमें इस पर विश्वास रखना चाहिए या नहीं, यह हमारी श्रद्धा पर निर्भर करता है।

वेद-पुराणों और किताबों में यह बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की 8 रानियां थीं, जिनके साथ उन्होंने विवाह किया था। इनमें सबसे पहली रानी रुक्मिणी देवी थीं। रुक्मिणी देवी और श्रीकृष्ण की शादी की कहानी बहुत ही रोचक है।

इस कहानी में, रुक्मिणी देवी भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, लेकिन उनके पिता ने उन्हें अन्य राजकुमारों के साथ विवाह कराने की कोशिश की। रुक्मिणी देवी ने अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए श्रीकृष्ण से मदद मांगी और उनकी सहायता से विवाह हुआ।

इस कथा में भगवान श्रीकृष्ण की चतुराई और रुक्मिणी देवी के साहस की कहानी है। इससे हमें प्रेम में विश्वास बनाएं रखने की सीख मिलती है।

 

देवी रुक्मिणी कौन थीं | Who is devi Rukmani

विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक का एक प्यारा परिवार था, राजा भीष्मक के एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्र का नाम रुक्‍मी और पुत्री का नाम रुक्मिणी था। राजा भीष्मक अपनी सुंदर पुत्री से बहुत प्रेम करते थे और उनके विवाह के लिए योग्य वर की तलाश में थे। इस विषय में राजा भीष्मक के सबसे करीबी मित्र एवं मगध राज्य के नरेश जरासंध को भी पता था। जरासंध को उस वक्त का शक्तिशाली राजा माना जाता था और ऐसा भी कहा जाता था कि जरासंध का वध कोई नहीं कर सकता है। जरासंध देवी रुक्मिणी को अपनी पुत्री जैसा ही मानते थे और इसलिए वह खुद भी रुक्मिणी के लिए योग्य वर की तलाश में थे।

मगर रुक्मिणी का मन श्रीकृष्ण पर ही लगा हुआ था। रुक्मिणी के मन में शुरू से ही भगवान श्रीकृष्ण की छवि बसी हुई थी। बड़े-बड़े महारथी को परास्त करने वाले श्रीकृष्ण की शौर्य गाथा रुक्मिणी कई लोगों के मुंह से सुन चुकी थीं और उनकी वीरता से प्रभावित हुई थी। देवी रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण के विषय में सुनकर ही यह तय कर लिया था कि वह उन्हीं से विवाह करेंगी।

मथुरा के राजा कंस का वध करने के बाद तो श्रीकृष्ण की ख्‍याती और भी बढ़ गई थी। उनकी वीरता के चर्चे चौतरफा गूंज रहे थे। मगर वहीं श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके बहुत से राज्यों को अपना दुश्मन भी बना लिया था, जिसमें से एक था मगध का राजा जरासंध। दरअसल, कंस जरासंध का दामाद था और इसलिए वह श्रीकृष्ण से घृणा करता था।

जब जरासंध को इस विषय में ज्ञात हुआ कि रुक्मिणी को श्रीकृष्ण से प्रेम है , तो देवी रुक्मिणी के भाई रुक्‍मी के साथ मिलकर जरासंध ने छेदी नरेश शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह तय कर दिया। मगर विधि को तो कुछ और ही मंजूर था, इसलिए यह विवाह कभी हो ही नहीं सका। रुक्मिणी ने इसे नहीं माना और उसने श्रीकृष्ण के साथ ही अपना विवाह करने का निर्णय किया।

श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की प्रेम कथा | Shri Krishna aur Rukmani premkatha

रुक्मिणी ने पिता को पहले ही बता दिया गया था कि उनकी बेटी विवाह केवल श्रीकृष्ण से ही करेगी। रुक्मिणी ने अपने मन में श्रीकृष्ण को पति के रूप में चुन लिया था, और उसने इस इच्छा को अपने पिता से साझा किया। पिता ने भी उसकी इस इच्छा को समझा और उसके साथ सहयोग करने का निर्णय किया।

हालांकि, जब इस बात की खबर जरासंध और रुक्मिणी के भाई तक पहुंची, तो उन्होंने तत्काल राजा भीष्मक और देवी रुक्मिणी को कारागार में बंद कर दिया।

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कारागार में बंदी बनी रुक्मिणी ने वहां अपने दुख भरे मन को श्रीकृष्ण की सखी, बरसाने की रानी देवी राधा को एक पत्र लिखकर सुनाया। उसने अपनी कड़ी मुश्किलें और कारागार में बंद होने की दुविधा को श्रीकृष्ण के सामने रखा और उससे आग्रह किया कि वह उसे बचाने के लिए विदर्भ राज्य में पहुंचें।

श्री राधा रानी को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ और उन्होंने स्वयं श्रीकृष्ण से बात की और रुक्मिणी की मदद करने का आग्रह किया। श्रीकृष्ण ने पहले ही समझ लिया था कि देवी रुक्मिणी को बचाने के लिए उससे विवाह करना होगा, लेकिन सखी राधा के आग्रह पर उसने विवशता से रुक्मिणी को बचाने के लिए रवाना किया।

श्रीकृष्ण ने विदर्भ देश पहुंचते ही देवी रुक्मिणी के स्वयंवर में पहुंचे , जहां एक भयानक द्वंद्व उत्पन्न हुआ। इस द्वंद्व के बीच, श्रीकृष्ण ने रुक्मी का वध करने की कोशिश की, लेकिन देवी रुक्मिणी के आग्रह पर उन्होंने रुक्मी को छोड़ दिया और देवी रुक्मिणी को अपने साथ ले गए।

रुक्मिणी ने पहले ही श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम किया था और मन ही मन उसे अपना पति मान चुकी थी। श्रीकृष्ण ने इस प्रेम को समझा और माध्वपुर गांव के ‘माधवराय जी मंदिर’ में रुक्मिणी के साथ विवाह किया। रुक्मिणी से विवाह के बाद, श्रीकृष्ण ने उसे द्वारका नगरी में ले जाकर अपने साथ बसाया, जहां उनका स्वागत धूमधाम से किया गया।

कृष्ण-रुक्मिणी से जुड़ी अन्य कथा

पद्म पुराण के अनुसार, देवी रुक्मिणी पूर्व जन्म में एक ब्राह्मणी थीं, जिनका बचपन में ही विवाह हो गया था। युवावस्था में ही उनका पति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया, जिससे उन्हें विधवा बनना पड़ा।

पति की असमय मृत्यु के बाद, ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु की पूजा में समय व्यतीत करना शुरू किया। उनकी प्रेम भरी भक्ति से प्रेरित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अपना दर्शन दिया और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर ब्राह्मणी ने अगले जन्म में भगवान विष्णु के अवतार, श्रीकृष्ण, की पत्नी बनने की इच्छा जताई।

इस तरह, भगवान विष्णु की कृपा से ब्राह्मणी को रुक्मिणी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिससे उन्होंने अपने पूर्व जन्म के अद्भूत कर्मों का फल प्राप्त हुआ।

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