कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने-Krishnay Vasudevay Haraye Paramatmane
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने | Krishnay Vasudevay Haraye Paramatmane
श्लोक
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
शाब्दिक अर्थ
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कृष्णाय → भगवान कृष्ण को
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वासुदेवाय → वसुदेव के पुत्र को
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हरये → हरि (जो पाप और दुःख हर लेते हैं)
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परमात्मने → परमात्मा, जो सबके हृदय में स्थित हैं
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प्रणतः → हम नतमस्तक हैं
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क्लेशनाशाय → क्लेश (दुःख, पीड़ा, कष्ट) का नाश करने वाले को
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गोविन्दाय → गो (गाय, इन्द्रियाँ, और वेदों) के स्वामी, रक्षक और पालनहार
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नमो नमः → बार-बार नमस्कार

भावार्थ
यह श्लोक भगवान कृष्ण को समर्पित एक स्तुति है, जिसमें भक्त कहता है:
“हे कृष्ण! वसुदेव के पुत्र! हे हरि! हे परमात्मा! मैं आपको प्रणाम करता हूँ, जो हमारे क्लेशों का नाश करते हैं और जो गोविन्द हैं। आपको बार-बार प्रणाम।”
यहाँ भगवान के विभिन्न नाम — कृष्ण, वासुदेव, हरि, परमात्मा, गोविन्द — उनकी विभिन्न लीलाओं और गुणों का वर्णन करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व
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भगवान के नामों का स्मरण
शास्त्रों में कहा गया है — नामस्मरण सबसे सरल साधना है। इस श्लोक में पाँच शक्तिशाली नाम हैं, जो अपने आप में मंत्र की तरह कार्य करते हैं। -
क्लेश नाशक प्रभाव
“क्लेशनाशाय” शब्द दर्शाता है कि भगवान का स्मरण मन, वाणी और कर्म में शुद्धता लाकर दुःखों को दूर करता है। -
भक्ति में समर्पण
“नमो नमः” दो बार आना समर्पण की गहराई को दर्शाता है — एक बार शरीर से, और दूसरी बार मन-हृदय से।

शास्त्रीय पृष्ठभूमि
यह श्लोक कई भक्तों की प्रार्थनाओं में आता है और विशेष रूप से भागवत पुराण तथा वैष्णव संप्रदाय के स्तोत्रों में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि यह श्लोक गाने मात्र से मन शांत हो जाता है और हृदय में भक्ति का संचार होता है।
कथा — एक वृद्ध ब्राह्मण और क्लेशमुक्ति
बहुत समय पहले, द्वारका नगरी में एक वृद्ध ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम था श्रीधर। वे साधारण जीवन जीते, परंतु उनका मन हमेशा भगवान कृष्ण के चरणों में रहता।
एक दिन, गाँव में भारी अकाल पड़ा। लोग भूखे रहने लगे। श्रीधर के पास भी अन्न का एक दाना तक न बचा। भूख और थकान से उनका शरीर कमजोर हो गया, लेकिन उनका विश्वास अडिग रहा।
श्रीधर प्रतिदिन भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने बैठकर यही श्लोक गाते —
“कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥”
उनका विश्वास था कि “क्लेशनाशाय” शब्द सुनते ही भगवान स्वयं उनके कष्ट हर लेंगे।
तीसरे दिन रात को, जब वे बेहद कमजोर होकर लेटे हुए थे, उन्होंने स्वप्न में देखा कि भगवान कृष्ण स्वयं उनके घर आए। पीताम्बरधारी, मुरलीधारी, मधुर मुस्कान से युक्त कृष्ण ने कहा —
“प्रिय श्रीधर! तुम्हारे इस श्लोक के स्मरण ने मुझे खींच लिया। तुम भूखे हो, लो अन्न ग्रहण करो।”
स्वप्न टूटते ही श्रीधर ने देखा कि उनके आँगन में एक बड़ा पात्र रखा है, जिसमें अन्न और फल भरे हैं। उस दिन से गाँव में धीरे-धीरे वर्षा हुई और अकाल समाप्त हो गया।
लोगों ने श्रीधर से पूछा —
“आपने यह कैसे किया?”
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा —
“भगवान के नामों में इतनी शक्ति है कि वे स्वयं आपके पास आते हैं, बस मन को पूर्ण समर्पित रखना चाहिए।”
जीवन में प्रयोग
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सुबह-शाम जप: इस श्लोक का 11, 21 या 108 बार जप करने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
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कठिन समय में: जब भी जीवन में क्लेश या चिंता हो, इसे बोलने से मनोबल बढ़ता है।
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पूजा या आरती में: इसे अंत में बोलने से भक्ति पूर्ण हो जाती है।
सार
यह श्लोक केवल स्तुति नहीं, बल्कि एक जीवन-मंत्र है। यह हमें सिखाता है कि भगवान के नामों में अनंत शक्ति है। यदि हम पूरी श्रद्धा और प्रेम से उन्हें पुकारें, तो वे हमारे जीवन के हर क्लेश को हर लेते हैं।
कृष्ण का “वासुदेव” रूप हमें उनकी पारिवारिक और मानवता से जुड़ी छवि दिखाता है, “हरि” रूप हमें पाप-नाशक रूप दिखाता है, और “गोविन्द” रूप हमें रक्षक और पालनहार रूप में प्रेरित करता है।
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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।