कर्म बड़ा है या धर्म-Karma Bada hai ya Dharma
राधे राधे 🙏🙏
Karma Bada hai ya Dharma
धर्म से युक्त कर्म ही सच्चा कर्म है
जो कर्म धर्म के अनुसार किया जाता है, वही वास्तव में कर्म होता है। यदि कोई कार्य धर्म से रहित होता है, तो वह “कुकर्म” कहलाता है। लोग अक्सर यह भ्रम पाल लेते हैं कि वे कुछ कर रहे हैं इसलिए वह कर्म है, परंतु यदि उसमें धर्म नहीं है, तो वह पाप है, कुकर्म है।
उदाहरण के लिए, यदि पति-पत्नी के बीच संबंध है, तो वह धर्मानुकूल है, इसलिए वह पाप नहीं है। लेकिन वही संबंध यदि किसी और की पत्नी के साथ हो जाए, तो वह कुकर्म हो जाएगा। कर्म तो वही है, लेकिन धर्म रहित होने के कारण वह पाप बन गया। इसीलिए कहा जाता है कि धर्म के बिना किया गया कोई भी कार्य कुकर्म होता है।

कर्म बड़ा है या धर्म
धर्म का निर्धारण कौन करता है?
धर्म का निर्णय शास्त्र करते हैं। हमारे संत-महात्मा और शास्त्र यही सिखाते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। जैसे भगवद्गीता में कहा गया है – “तस्मात् शास्त्रं प्रमाणं ते”, अर्थात जो शास्त्र कहें वही प्रमाण है। जब तक व्यक्ति सत्संग नहीं सुनेगा, शास्त्रों का स्वाध्याय नहीं करेगा, तब तक उसे यह पता नहीं चलेगा कि कौन सा कर्म धर्म युक्त है और कौन सा अधर्म।
हृदय में विराजमान परमात्मा का संकेत
हर व्यक्ति के हृदय में परमात्मा निवास करते हैं। जब कोई गलत कार्य करने जाता है, तो भीतर से एक आवाज आती है कि “ये पाप है, मत कर।” यदि उस आवाज को अनसुना कर दिया जाए और मनमानी की जाए, तो फिर वह पाप में बदल जाता है। इसीलिए सत्संग, ध्यान और शास्त्रों का अध्ययन आवश्यक है।

धर्म की सरल परिभाषा – जैसे को तैसा
यदि कोई हमारी बहन या बेटी को गलत नजर से देखे, तो हमें बुरा लगता है। तो हमें भी किसी की बहन-बेटी की ओर गंदी नजर नहीं डालनी चाहिए। जैसे हमें पसंद नहीं कि कोई हमारा अपमान करे, झूठ बोले या धोखा दे, वैसे ही हमें भी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए। यह साधारण लेकिन मूल धर्म है — जैसा व्यवहार हम अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही दूसरों से करें।
कर्तव्यों का पालन ही धर्म है
आप एक पिता हैं, तो पुत्र का पालन-पोषण करना आपका धर्म है। आप पति हैं, तो पत्नी की देखभाल और सहयोग देना आपका धर्म है। माता-पिता की सेवा करना, उनकी देखभाल करना, यह भी धर्म है। परिवार के लिए मेहनत करके कमाना — चाहे वह खेती से हो, नौकरी से हो या व्यापार से — ये सब धर्म युक्त कर्म हैं।
धर्म पूजा-पाठ तक सीमित नहीं
धर्म केवल मंदिर जाना या पूजा-पाठ करना नहीं है। यह जीवन के हर रिश्ते में आपके आचरण से जुड़ा हुआ है। गीता में भी कहा गया है कि धर्म के मार्ग पर चलने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। धर्म और कर्म को अलग-अलग समझना गलत है। जो भी कर्म धर्म से युक्त है, वही सच्चा कर्म है। बाकी सब केवल भ्रम है और पाप की ओर ले जाने वाला कुकर्म।
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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।