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तीन साधकों की प्रेरक कहानी –
दोस्तो! यह कहानी भारत की है, जहां तीन साधक अपनी सादगी और भक्ति के कारण पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गए थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वे सीधे भगवान से संवाद करते हैं। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गई कि लोग मंदिर जाना बंद कर चुके थे।
मंदिर के मुख्य पंडित जी को इससे बहुत जलन हुई। पंडित जी ने देखा कि लोग अब मंदिर में आने के बजाय उन साधकों के पास जा रहे थे। मंदिर खाली रहने लगा और दान भी कम हो गया। इससे पंडित जी को गहरा आघात पहुंचा। उन्होंने सोचा, “आखिर ये तीन कौन हैं जो संत बन गए हैं? मैं तो मुख्य पंडित हूं और मैं ही यह तय करता हूं कि कौन संत है और कौन नहीं।”
प्रेरणादायक कहानी छोटी सी | Inspired Small Story in Hindi | शिक्षाप्रद कहानी
एक दिन पंडित जी ने तय किया कि वह इन तीनों साधकों को सबक सिखाएंगे। उन्होंने अपनी पूरी पंडित की वेशभूषा पहनी – सोने का मुकुट, सुनहरी छड़ी और शानदार वस्त्र। फिर वह नाव लेकर उस झील की ओर चले, जिसके उस पार साधक रहते थे।
झील पार करके, पंडित जी ने देखा कि तीन साधक एक बड़े पेड़ के नीचे शांतिपूर्वक ध्यान में बैठे थे। वे साधारण कपड़े पहने हुए थे और उनके चेहरे पर दिव्यता झलक रही थी।
पंडित जी ने कठोर स्वर में पूछा, “क्या तुम वही तीन लोग हो जिन्हें लोग संत कह रहे हैं? क्या तुम्हारी वजह से लोग मंदिर आना बंद कर चुके हैं?”
साधकों ने सिर झुकाकर कहा, “पंडित जी? हम संत नहीं हैं। हम किस बात के संत, हम तो साधारण और अनपढ़ लोग हैं। संत तो हमें यहां के लोगों ने मान लिया है, पता नहीं लोगों ने हमें संत क्यों मान लिया।” पता नहीं यह झूठी अफवाह किसने फैला दी? जिसे सुनकर लोगों की भीड़ यहां आती है।
हम तो रोज इन्हें यहां आने से मना करते हैं और हम जितना मना करते हैं, लोग उतना ही ज्यादा आते हैं। हम इस भीड़ से परेशान हो चुके हैं। यह भीड़भाड़ हमें अच्छी नहीं लगते, हम तो एकांत में रहना चाहते हैं।
यह सुन पंडित जी खुशी से फूले नहीं समाए। और सोचने लगे यहां तो बड़े ही भोले लोग निकले। आज तो इन तीनों को सबक सिखा कर ही जाऊंगा।
पंडित जी ने अगला सवाल किया, “तुम लोग पूजा कैसे करते हो? क्या तुम्हारे पास गीता है?”
साधकों ने उत्तर दिया, “नहीं, हम अनपढ़ हैं। हमें गीता पढ़ना नहीं आता। हम गीता रखकर क्या करेंगे। हमने अपनी प्रार्थना खुद बनाई है।”
पंडित जी ने चकित होकर पूछा, “तुमने खुद प्रार्थना बनाई है? यह तो अनधिकृत है। प्रार्थना तो वही होनी चाहिए जो गीता में लिखी है। आखिर तुम क्या प्रार्थना करते हो?”
साधकों ने संकोच से कहा, “हमने सोचा कि ईश्वर के तीन रूप हैं – ब्रह्मा, विष्णु और महेश। इसलिए हमारी प्रार्थना है: ‘हम तीन, तुम भी तीन, हम पर दया करो।’”
यह सुनकर पंडित जी हंस पड़े। उन्होंने कहा, “यह कोई प्रार्थना नहीं है। मैं तुम्हें सही प्रार्थना सिखाऊंगा।”
पंडित जी ने साधकों को मंदिर की प्रार्थना सिखानी शुरू की। साधकों ने बार-बार कहा, “एक बार और दोहराइए, ताकि हम भूल न जाएं।” पंडित जी ने धैर्यपूर्वक प्रार्थना को बार-बार दोहराया और अंत में संतुष्ट होकर कहा, “अब तुम लोग यह प्रार्थना करना। अगर तुम कभी भूल जाओ तो मंदिर आ जाना।”
साधकों ने विनम्रता से कहा, “जैसा आप कहें। हम आपकी प्रार्थना याद रखेंगे।”
पंडित जी नाव में बैठकर लौटने लगे। जब उनकी नाव झील के बीच पहुंची, तो उन्होंने पीछे से आवाजें सुनीं। उन्होंने मुड़कर देखा तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
वो तीन साधक झील के पानी पर दौड़ते हुए आ रहे थे।
साधकों ने पास आकर कहा, “माफ करें, लेकिन हम आपकी सिखाई प्रार्थना भूल गए। कृपया एक बार और हमें सिखा दें।”
यह चमत्कार देखकर पंडित जी स्तब्ध रह गए। उनकी सुनहरी छड़ी हाथ से गिर पड़ी। उन्होंने महसूस किया कि उनकी सादगी और सच्चाई में वह शक्ति थी, जो किसी भी औपचारिक प्रार्थना से अधिक प्रभावशाली थी।
पंडित जी ने झुककर उनके पैर पकड़ लिए और कहा, “तुम्हारी प्रार्थना ही सबसे सच्ची है। मैंने ही गलती की। अब से मैं भी वही प्रार्थना करूंगा।”
साधकों ने फिर कहा, “नहीं, हमें आपकी प्रार्थना सिखा दें।” लेकिन पंडित जी ने चुपचाप सिर झुकाया और नाव में बैठकर वापस लौट गए।
कहानी की सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रार्थना शब्दों से नहीं, सच्चे दिल से की जाती है। सच्चाई और सादगी से किया गया काम किसी भी दिखावे से अधिक प्रभावी होता है। जब काम दिल से किया जाता है, तो उसमें ईश्वर की शक्ति समाहित होती है। प्रार्थना में शब्दों से अधिक, भावनाओं और समर्पण का महत्व होता है। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि दिखावा कभी भी सच्चे भक्ति भाव को नहीं हरा सकता।
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