Buddha Inspirational story to never give up | जीवन में कभी हार नहीं मानना
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में लक्ष्य को निर्धारित करता है। जिससे वह अपनी योग्यता और प्रगति की परख करता है। यदि लक्ष्य हासिल नहीं होते हैं, तो वह अपनी कमियों को देखा है, और उसमें सुधार करता है, और फिर उस लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश करता है। कई लोग अपने लिए लक्ष्य को निर्धारित करने की कोशिश करते हैं, और उसको पाने के लिए रणनीति भी बनाते हैं। लेकिन वह असफल होते हैं। इस कहानी में आज, हम भगवान बुद्ध से जुड़ी एक प्रेरक घटना के बारे में बता रहे हैं। जिसमें आपके लिए एक संदेश है।
भगवान बुद्ध को जब ज्ञान की प्राप्ति हो गई तो वे संसार को उस ज्ञान से अलौकित करने निकल पड़े। भगवान बुद्ध किसी गांव में, जीवन के विभिन्न आयामो पर, प्रतिदिन व्याख्यान देते। उनके प्रवचनों में जीवन का सार छिपा रहता। उनकी बातों को लोग बहुत गौर से सुनते थे। एक व्यक्ति बिना नागा किए, उनकी व्याख्या सुनता। बहुत समय बीत जाने के बाद भी, उसने अपने अंदर कोई विशेष बदलाव नहीं पाया, इससे परेशान होकर, वह एक दिन बुद्ध के पास गया और बोला, कि वह लंबे समय से एक अच्छा इंसान बनने के लिए, उनके प्रवचनों को सुनता रहा है।
लेकिन इससे उसे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। वह एक अच्छा इंसान नहीं बन पाया। उसमें कोई बदलाव नहीं आया है। उसकी बातों को सुनकर बुद्ध मुस्कुराए। उन्होंने उसके सामने उसके गांव का नाम, वहां तक जाने की दूरी, वह अपने गांव कैसे जाता है, आदि जैसे प्रश्नों की झड़ी लगा दी। जब बुद्ध ने उससे कहा कि क्या वहां बैठे-बैठे अपने गांव पहुंच जाएगा, तो वह झुंझला गया। उसने कहा कि ऐसा तो बिल्कुल भी संभव नहीं। उसे वहां तक पहुंचाने के लिए पैदल चलकर जाना ही पड़ेगा। इस पर भगवान बुद्ध ने कहा कि अब आपको, अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
यदि आपको, अपने गांव का रास्ता पता है,तो इस जानकारी को व्यवहार में लाए बिना, वहां तक नहीं पहुंचा जा सकता। उसी प्रकार आपके पास ज्ञान है। आप इसको, अपने जीवन में, अमल में लाएं बिना, एक बढ़िया इंसान नहीं बन सकते। ज्ञान को अपने व्यवहार में लाना आवश्यक है। इसके लिए आपके दृढ़ निश्चय के साथ निरंतर प्रयास करना होगा।
तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचना है, तो हमें अपने ज्ञान का, सही तरह से उपयोग, करना होगा। केवल बैठे-बैठे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते। हमें उस पर काम करना ही होगा।
Motivational video | 3 मिनट की इस कहानी को सुनकर हमेशा के लिए सोच बदल जाएगी
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यह काम करें नजरे झुका कर दान : charity
दान दिए धन ना घटे कह गए दास कबीर। पैसे के तीन प्रयोग होते हैं पहला- भोग, दूसरा- दान ,तीसरा -नाश।
आज दूसरे प्रयोग के बारे में बात करेंगे -दान।
राजा हरिश्चंद्र एक बहुत ही बड़े दानवीर थे। उनकी एक खास बात थी कि जब वह दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ते थे, तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे। यह बात सभी को अजीब लगती थी, कि राजा कैसा दानवीर है, दान भी करता है और इन्हें शर्म भी आती है। यह बात जब गोस्वामी तुलसीदास जी तक पहुंची, उन्होंने राजा को चार पंक्तियां लिखकर भेजी जिसमें लिखा था-
।। ऐसी देनी देन जु, कित सीखे हो सेन
ज्यों ज्यों कर ऊचो करे, त्यों त्यों नीचे नैन ।।
इसका मतलब था, कि राजा तुम ऐसा दान देना कहां से सीखे हो? जैसे-जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे-वैसे तुम्हारी नैन (आंख) नीचे क्यों झुक जाते हैं। अद्भुत बात! राजा ने इसके बदले में जो जवाब दिया, वह जवाब इतना गजब था कि जिसने भी सुना, राजा का कायल हो गया। साथियों इतना प्यारा जवाब,आज तक किसी ने किसी को इस धरती पर नहीं दिया। राजा ने जवाब में लिखा-
।। देन हार कोई और है भेजत जो दिन रैन
लोग भ्रम हम पर करें तासो नीचे नैन ।।
मतलब देने वाला तो कोई और है, वह मालिक है, वह परमात्मा है। वह दिन रात भेज रहा है, परंतु लोग यह समझते हैं कि मैं दे रहा हूं। राजा दे रहा है। यह सोचकर मुझे शर्म आ जाती है, और मेरी आंखें नीचे झुक जाती है।
वही करता है, वही करवाता है। ए बंदे! तू क्यों इतना इतराता है। एक सांस भी नहीं तेरे बस में, वही सुलाता है, वही जगाता है। एक बार सोचिए कि, आपको दिया पहले है कि,आपने दिया पहले। भगवान ने आपको पहले दिया है, फिर आपने दिया है, तो किस बात का घमंड।
हरे कृष्णा!
हनुमान जी का मौत से हुआ आमना सामना | Management Skill from hanuman ji
हनुमान जी management गुरु है कपड़ा रावण का, तेल रावण का और लंका भी रावण की और जला भी उसी को आए minimum investment ,maximum return कुछ भी अपना नहीं, सारा सामान उसी का, कपड़ा भी उसी का लिया, तेल भी उसी का लिया और लंका भी उसी की जला दी। हनुमान जी से हमें सीखने की जरूरत है। अहंकार बिल्कुल भी नहीं है।
बहुत महत्वपूर्ण है सीता मां से आखरी में पूछते हैं। मां क्या मैं कुछ खा लूं? यह मैनेजमेंट स्किल की पराकाष्ठा है। यह सिर्फ एक घटना नहीं है, इस घटना में कई सारी घटनाएं हैं। जो हमें मैनेजमेंट स्किल को सिखाती है। जिसके लिए आज्ञा मिली थी सिर्फ इतना ही नहीं कर रहे हैं उससे भी एक कदम आगे जा रहे हैं। अरे ढूंढने तो सीता जी को आए थे, तो अब उन्हें ढूंढ लिया तो वापस जाओ, पर नहीं टारगेट लिया है। यह करने का, उसे तो पूरा ही करेंगे, साथ ही उसके ऊपर भी करके दिखाएंगे।
हनुमान जी ने सीता जी से आज्ञा ली की कुछ खा लूं, अब खाने का मतलब तो फल खाना ही था ना, लेकिन नहीं सारी की सारी अशोक वाटिका ही उजाड़ दी। पूरा उत्पात मचा कर, सारे पेड़ ही उखाड़ दिए। हाहाकार मच गया। रावण को जैसे ही खबर मिली कि एक बहुत बड़ा बंदर, उनकी लंका नगरी में घुस गया है तो उन्होंने अपने अक्षय कुमार को भेजा। जब अक्षय कुमार से भी बात नहीं बनी, तो रावण ने मेघनाथ को भेजा important lesson to understand in the management point of view हनुमान जी से लड़कर मेघनाथ हार गया। आखरी में हार कर मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र चलाया। हनुमान जी कहते हैं
कि अगर मैं ब्रह्मास्त्र का सम्मान नहीं करूंगा, तो ब्रह्मास्त्र की महिमा समाप्त हो जाएगी। लेकिन अगर कोई आम आदमी होता, तो शायद वह मर्यादा ही भूल जाता। लेकिन यह 100% मर्यादा में रहते हैं। हनुमान जी ने खुद को ब्रह्मास्त्र से बंधवा लिया और फिर उन्हें रावण के दरबार में ले जाया गया। रावण ने हनुमान को देखा, हनुमान जी ने रावण को देखा, रावण ने पूछा- तू कौन है हनुमान जी ने अपना परिचय दिया और रावण से कहा- बुद्धि से तो तुम बहुत ज्ञानी प्रतीत होते हो, बस अपना मन ठीक कर लो।
रावण ने पूछा- मन कैसे ठीक करूं? हनुमान जी बोले- बस प्रभु श्री राम की शरण में आ जाओ। चरण पकड़ लो। यह गुरु ने हमें सिखाया है, हम तुम्हें सिखाते हैं। दिए से दिया जलता है। रावण ने कहा- अब बंदर हमें सिखाएंगे।
बड़ा भारी बंदर गुरु बन रहा है। तू जानता है, हमारे यहां सीखाने का क्या फल मिलता है। हमारे यहां सीखने पर मृत्युदंड दिया जाता है। तुलसीदास जी लिखते हैं- कि रावण कहते हैं –
देख तेरे निकट मृत्यु खड़ी है। मृत्यु को रावण ने हनुमान जी के समीप ही खड़ा कर दिया। कि देख तेरे निकट मृत्यु खड़ी है। हनुमान जी मुस्कुरा रहे हैं। रावण ने कहा-मृत्यु तेरे निकट खड़ी है, तू हंस रहा है। हनुमान जी ने कहा- खड़ी मेरे निकट है, देख तुझे रही है।
रावण ने कहा- खड़ी तो तेरे पास है, तो देख मुझे क्यों रही है? हनुमान जी बोले हमसे तो पूछने आई है कि अभी मामला साफ कर दो या रुको, तो हमने रोक रखा है। आने से मान जाए तो ठीक, नहीं तो बाद में जो होगा, देखा जाएगा। बड़ा डिस्कशन हुआ, लेकिन सीखने की बात एक नहीं है , अनेकों चीजे आप सीख सकते हैं।
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