या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
श्लोक भावार्थ (सरल भाषा में)
या देवी सर्वभूतेषु — जो देवी सभी प्राणियों में स्थित हैं
शक्तिरूपेण संस्थिता — शक्ति (बल, ऊर्जा) के रूप में निवास करती हैं
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः — उन देवी को बार-बार नमन
यह श्लोक माँ दुर्गा की सर्वव्यापी शक्ति को प्रणाम करता है। इसमें कहा गया है कि माँ हर प्राणी के भीतर शक्ति, साहस, क्षमता और ऊर्जा के रूप में उपस्थित हैं। हम तीन बार उन्हें नमन करते हैं, जिसका अर्थ है — शरीर, मन और आत्मा से पूर्ण समर्पण।
देवी श्लोक “या देवी सर्वभूतेषु…” देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) का अत्यंत प्रसिद्ध श्लोक है। यह श्लोक केवल एक स्तुति नहीं बल्कि एक दार्शनिक सत्य भी है। इसमें यह बताया गया है कि शक्ति कोई बाहरी वस्तु नहीं है, बल्कि देवी स्वयं हर जीव के भीतर ‘शक्ति’ बनकर विद्यमान हैं। ‘शक्ति’ का अर्थ मात्र physical strength नहीं, बल्कि प्रेरणा, साहस, संकल्प, जीवनी-शक्ति और चेतना भी है।
झूठे गुरु से कैसे बचें
दुर्गा का नाम ‘दुर्ग’ अर्थात कठिनाइयों को नष्ट करने वाली है। यह श्लोक बताता है कि जब-जब हम किसी कठिन परिस्थिति में खड़े होते हैं और भीतर से साहस मिलता है, वह देवी की ही शक्ति है। इसी तरह माता ‘विद्या रूपेण’, ‘बुद्धि रूपेण’, ‘लज्जा रूपेण’, ‘क्षान्ति रूपेण’ — अनेक रूपों में हमारे भीतर काम करती हैं। देवी सप्तशती में ऐसे अनेक श्लोक आते हैं, जैसे:
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता…
लज्जा रूपेण…
श्रद्धा रूपेण…
इनसे स्पष्ट होता है कि माँ केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हमारे भावों, गुणों, शक्ति और विवेक में भी उपस्थित हैं।
पुराणों में देवी को “आदि-शक्ति” कहा गया है। शिव को चेतन और शक्ति को ‘चेतना का संचालन’ कहा गया है। जैसे एक बल्ब में बिजली हो तभी प्रकाश होता है, वैसे ही संसार का संचालन सिर्फ ब्रह्म से नहीं, बल्कि शक्ति से होता है। इसीलिए कहते हैं — “शिवः शक्त्यायुक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं” यानी शिव भी शक्ति के बिना कार्य नहीं करते।
आध्यात्मिक सीख:
जब हम इस श्लोक का जाप करते हैं, तो हम देवी को अपने भीतर पहचानना शुरू करते हैं। हम अपने दुःख, भय और कमजोरी को त्यागकर यह अनुभव करते हैं कि “माँ शक्ति मेरे भीतर ही है”।
शास्त्र कहते हैं कि नवरात्रि में इस श्लोक का जाप करने से आत्मविश्वास, साहस और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
यह भी कहा जाता है कि यह तीन बार नमस्कार त्रिगुणात्मक प्रकृति की ओर संकेत करता है — सत, रज और तम। देवी इन तीनों गुणों को नियंत्रित करती हैं।
देवी के रूप और शक्तियाँ (संदर्भ सहित)
देवी दुर्गा को नौ रूपों में पूजा जाता है — शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री। इन नौ रूपों का सार यही श्लोक है, क्योंकि हर रूप किसी न किसी जीव के भीतर विशिष्ट शक्ति के रूप में स्थित होता है — जैसे धैर्य, मातृत्व, बल, समर्पण आदि।
🧘♂️ जीवन में व्यावहारिक महत्व
जब हम निराश होते हैं, तो यह श्लोक याद दिलाता है कि ‘मैं निर्बल नहीं हूँ’ – माँ मेरे अंदर शक्ति बनकर बैठी हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, जीवन संघर्ष, या मानसिक तनाव के समय यह श्लोक प्रेरणा देता है।
रोज सुबह या रात को इसका एक बार उच्चारण भी शक्तिशाली “positive affirmation” जैसा बन सकता है।
निष्कर्ष
“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता…” केवल देवी का स्तुति मंत्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागरण का श्लोक है। यह हमें बताता है कि स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध — हर किसी में देवी शक्तिरूप में विद्यमान हैं। जब हम बार-बार कहते हैं “नमस्तस्यै नमः” — हम केवल देवी को नहीं, बल्कि अपने भीतर मौजूद ऊर्जा को भी प्रणाम करते हैं। यह श्लोक हमें आत्म-बल, श्रद्धा और सम्मान की भावना देता है। जीवन में किसी भी प्रकार की चुनौतियों से लड़ने के लिए जिस आंतरिक शक्ति की जरूरत होती है, वही शक्ति दुर्गा कहलाती है।
राधे राधे!🙏🙏
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