एक गांव में एक विधवा अपने पुत्र के साथ रहती थी। पुत्र का नाम नारायण था। मां बेटा दोनों बहुत मेहनती व ईमानदार थे। उनके घर के पास एक ही पेड़ था। नारायण का रोज एक अटूट नियम था। काम पर जाने से पहले वह पेड़ को एक-दो लोटे पानी अवश्य देता था। बचपन से ही उसे पेड़ों से बहुत लगाव था। एक बार नारायण बीमार पड़ा। कई दिन बीमारी नहीं टूटी बीमारी में भी उसने खाट से उठकर पेड़ को पानी देना ना छोड़ा।
एक दिन नारायण पेड़ को पानी देने लगा तो पेड़ ने कहा मैं तेरी सेवा से बहुत प्रसन्न हूं। तू कोई वर मांग। नारायण बोला हे वृक्ष! देव मैंने तो केवल अपना फर्ज ही निभाया है। हम तो पहले ही आपके उपकरणों से दबे पड़े हैं। मेरी मां ने मुझे एक ही तो शिक्षा दी है कि पेड़ ही मनुष्य के सच्चे साथी हैं। शुद्ध वायु छाया व फल तो देते ही हैं इनके अलावा मनुष्य के जीवन का आधार लकड़ी भी देते हैं। वृक्ष देव नहीं माने उन्होंने वर मांगने पर जोर दिया तो नारायण बोला आपकी यही इच्छा है तो मुझे नीचे गिरे अपने पत्ते ले जाने की आज्ञा दीजिए। सफाई भी हो जाया करेगी।
नारायण पेड़ के पत्ते इकट्ठे करके ले गया और अपने घर के एक कोने में उसने ढेर लगा दिया। उसने सोचा जब पत्ते काफी सारे इकट्ठा हो जाएंगे। और सूख जाएंगे तो बूढ़ी मां का बिछौना उस पर बिछा दूंगा। नरम रहेगा पर तब मां बेटे के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। जब उन्होंने पत्तों का रंग बदलते देखा सुबह तक भी पीली धातु में बदलकर चमक रहे थे।
नारायण बोला कि कहीं यहां सोने के तो नहीं बन गए। मां उन पत्तों को लेकर बनिए के पास गई। वह पत्ते देख कर चौका। जांचा तो उसने खरा सोना पाया। उसने बुढ़िया को ठगने के लिए कहा यह तो पीपल के पत्ते हैं। चाहो तो इसके बदले कुछ राशन ले जाओ। बुढ़िया क्या जाने छल वह बेचारी उन्हें पीतल के ही मान कर पूछ राशन ले आई।
अब रोज यही होने लगा नारायण पत्ते इकट्ठे कर लाता। वह सुबह तक सोने के पत्तों में बदल जाते हैं। और बुढ़िया मां जाकर उसे से राशन ले आती। एक दिन बनिए की दिल में आया कि देखना चाहिए की बुढ़िया के पास सोने के पत्ते कहां से आते हैं। उसने नारायण का पीछा किया। और सारा माजरा जान गया। दूसरे दिन जब नारायण का बुढ़िया कहां पर चले गए। तो उसने जा कर दो तीन उठा लिए पत्ते बाकी पत्ते तो नारायण पहले ही उठा चुका था।
बनिए ने पेड़ पर चढ़कर खूब पत्ते उखाड़े, कई पत्तियों से लगी टहनियां भी तोड़ डाली इस प्रकार वह बोरी भरकर ले गया। और अपने कमरे में ढेर लगाकर उनके सोने में बदलने का इंतजार करने लगा पर वे पत्तियां और टहनियां सोने की नहीं बनी। वो तो कुछ और ही रूप धारण करने लगी। पत्तियां बिच्छूओं में बदल गई। टहनियां काले सांपों में, बनिया भयभीत होकर बाहर भागा।
उसके पीछे भागी बिच्छू और सांपों की टोलियां, बनिया दौड़ता हुआ उसी पेड़ के पास पहुंचा और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा कर माफी मांगने लगा। वृक्ष देवता ने कहा दुष्ट यह सांप और बिच्छू तेरे पीछे तब तक लगे रहेंगे जब तक तू नारायण की मां से जितने सोने के पत्ते तूने लिए है। उनकी पूरी कीमत नहीं चुकाता बनिया दौड़ता ही लौटा उसने सोने के पत्ते बेचकर जितने पैसे कमाए थे। वह ले जाकर नारायण उसकी मां को सौंप दिए और अपने किए के लिए क्षमा मांगी।
नारायण ने उस धन से जमीन खरीदी। और उसमें पेड़ लगाए पेड़ों के घने वन में वह सुख से रहने लगा। उसका विवाह भी एक सुंदर कन्या से हो गया। कई वर्ष बाद पड़ोस की राज्य में सूखा पड़ा। पानी बरसा ही नहीं नारायण की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। वह लोगों से पहले ही कहा करता था। कि पेड़ नहीं होंगे तो सूखा रहेगा। पड़ोसी राजा ने नारायण को निमंत्रण देकर अपने यहां बुलाया और उससे सलाह मांगी।
नारायण ने राजा को परामर्श दिया। राजा आपके राज्य में पेड़ों को काटा गया है। वनों का सफाया कर दिया गया है। यही तो सूखे का कारण है। पेड़ ही तो बादलों से वर्षा करवाते हैं। फिर से पेड़ लगाइए याद रखिए कि पेड़ ही हमारे सच्चे साथी है। पेड़ ही जन्म से लेकर मृत्यु तक लकड़ी बनकर हमारी देखभाल करते हैं। बचपन में लकड़ी का पालना बनकर हमें सुनाता है। फिर गिल्ली डंडा बन हमें खिलाता है। लकड़ी की तख्ती बनकर हमें लिखना पढ़ना सिखाता है। विवाह मंडप की अग्नि बनकर फेरे डलवा कर गृहस्थ जीवन का आरंभ करवाता है। चकला बेलन हमें रोटी खिलाता है। बीमार पड़ने पर हमें खाट बनकर संभालता है।
बुढ़ापे में लाठी बनकर हमें सहारा देता है। मृत्यु होने पर दो डंडे बन लाद कर शमशान घाट ले जाता है और चिता बन कर हमारी अंतिम क्रिया करता है।
नारायण की बात सुन राजा की आंखें खुल गई। उसने अपने राज्य में पेड़ लगवाए। पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया। और फिर से एक वह देश एक सुखी राज्य हो गया।
सीख :- पेड़ों की रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है क्योंकि पेड़ ही हमारे सच्चे जीवन साथी है
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