बेटे की सीख / Bete ki Seekh

एक समय की बात है। एक गांव में एक बहुत नेक किसान रहता था। वह अपने खेतों में बहुत श्रम करता था। पर उसके पास ज्यादा खेत नहीं थे। इसलिए वह अमीर नहीं था। बस घर का खर्चा ठीक ठाक चल जाता था। उसके एक बेटा था। उसका नाम तामस था।

किसान उसे बहुत प्यार करता था। खुद कम खा कर भी उसे कमी ना होने देता। तामस दिन भर खेलता रहता था। किसान की पत्नी प्रायः अक्सर कहती-” देखो जी तामस बेटा तो किसान का ही है ना। उससे खेतों का काम करवाओ। काम सीखेगा। इस तरह तो वह नाकारा हो जाएगा। तुम कब तक अपने हाथ तोड़ते रहोगे बुढ़ापा आने लगा है तुम्हें।” पर किसान यह बात हंस कर टाल देता- ” भाग्यवान अपना एक ही तो बेटा है। खूब खेलने खाने दो वक्त आने पर अपने आप सुधर जाएगी।

अभी तो मेरे हाथ पैर चल रहे हैं। फिर तामस तो है ही बुढ़ापे में हम दोनों को कष्ट नहीं होने देगा। ” पत्नी कहती- “आजकल के बेटों का कोई भरोसा नहीं।”

तामस खेलते व मस्ती मारते जवान हुआ। खेतों पर जाकर खेती के काम में अपने पिता का हाथ बटाने की उसे कभी फिक्र ना हुई है। फिर बाप ने उसका विवाह भी कर दिया। किसान अब बूढ़ा हो चला था। अभी उसे ही सारा काम करना पड़ता। सारी गृहस्ती का बोझ वही उठाए था। बेटा तो अपनी बीवी के नाज-नखरो के सिवा और कुछ उठाता नहीं था। खुद निठल्ला बैठा बीवी से बतियाता रहता और बूढ़ा बाप मजदूर की तरह काम करता पर उसे लाज ना आती।

दिन रात काम करते करते किसान को दमा और खांसी की बीमारी हो गई। पत्नी ने उसे खटिए पर लिटा दिया। उसने अपने बेटे को खरी-खोटी सुनाकर खेती का काम संभालने को कहा था। मजबूरी को कोसता हुआ खेतों पर जाता। कुछ समय बाद बहू मां बन गई। एक बेटे को जन्म दिया। वह खुद तामस की ढील के कारण आलसी हो गई थी। बच्चे की देखभाल दादी-दादा को ही करनी पड़ती। बच्चा दोनों से बहुत हिल मिल गया किसान की पत्नी पहले से ही बिचारी अंदर से टूटी हुई थी।

एक दिन उसका अचानक निधन हो गया। बुढ़ा अपनी पत्नी के बिना बेसहारा हो गया। तामस कामचोर तो था ही खेती बहुत कम आने लगी तो घर में तंगी होने लगी। पति पत्नी उसका दोष बुड्ढे पर मढते, पर पोता अपने दादा पर जान छिड़कता था। हर समय उसी की खाट के आसपास मंडराता रहता खेलता। इससे बेटा बहू और चीढ जाते।

एक दिन तामस से बीवी ने कहा – “यह बुड्ढा तो हमारे घर का शनिचर बन गया है घर का राशन खराब कर रहा है ऊपर से रातभर खास खास कर हमें सोने नहीं देता। तुम्हें सोने को नहीं मिलेगा तो खेतों पर काम कैसे करोगे और हमारे बेटे को अपने से चिपकाए रहता है। उसे दमा या छह रोग लगा देगा। कुछ करके बुड्ढे की छुट्टी करो वरना मैं यहां नहीं रहूंगी। ” तामस बोला -“भागवान मैं खुद बुड्ढे से परेशान हूं कल ही इसको ठिकाने लगा दूंगा तू चिंता ना कर।”

दूसरे दिन तामस ने बैलगाड़ी उठाई उसमें खुदाई के औजार कुदाली ,फावड़ा व बेलचा रखा। फिर अपने बूढ़े बाप को लाकर गाड़ी पर लादा बेटे ने पूछा-” बापू बाबा को कहां ले जा रहे हो।” तामस ने उत्तर दिया -“शहर वहां बहुत बड़ा वैध रहता है बाबा का इलाज कराना पड़ेगा।” बेटा भी साथ चलने की जिद करने लगा उसे तामस और उसकी पत्नी ने समझाया पर वह नहीं माना और रोने लगा कहीं पड़ोसी बूढ़े को बैलगाड़ी में ले जाते ना देख ले इस डर से उसे साथ ले जाना पड़ा।

जब बैलगाड़ी एक जंगल के पास पहुंची तो तामस ने बैलों को रोक दिया। वह कुदाली,फावड़ा व बेलचा उठाकर चुपचाप पेड़ों के पीछे चला गया। काफी देर हो गई तो बेटा बैलगाड़ी से उतर कर अपने बाबू को देखने उसी और गया। तामस एक बहुत बड़ा गड्ढा खोद चुका था। वह उस समय वहां फावड़े से मिट्टी बाहर फेंक रहा था।

बेटे ने पूछा -“बापू क्या कर रहे हो?” तामस को बताना ही पड़ा-” यह गड्ढा बाबा के लिए है बाबा को दर्द बहुत होता है ना इस गड्ढे में वह आराम से सोते रहेंगे। बेटा सब समझ गया था। तामस सारी मिट्टी बाहर फेंक चुका तो स्वयं बाहर आ गया। बाहर उसने देखा कि उसका बेटा कुदाली लेकर एक दूसरा गड्ढा खोदने में लगा है। तामस ने पूछा -“बेटा यह गड्ढा क्यों खोद रहे हो?”

बेटे ने उत्तर दिया-” बापू या गड्ढा मैं तुम्हारे लिए खोज रहा हूं। तुम एक दिन बाबा की तरह बूढ़े हो जाओगे। बीमार होकर मेरे लिए बोझ बन जाओगे। तो मैं तुम्हें लाकर इस गड्ढे में डाल दूंगा। जैसे तुम बाबा को इस गड्ढे में डालने वाले हो। तुम्हें बैलगाड़ी में बैठाकर गड्ढा खोदने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। मैं भी इस परंपरा को निभाऊंगा।” बेटी की बात सुन तामस की आंखें खुल गई वह अपने बूढ़े बाप को वापस घर ले गया। उसने बाप का इलाज करवाया और उनकी सेवा करने लगा।

सीख:- दूसरों के साथ हमेशा ऐसा व्यवहार करो जैसा तुम दूसरों से स्वयं के लिए चाहते हो।

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