शास्त्र मर्यादा क्या है-गुरुवार को बाल क्यों नहीं कटवाते
राधे राधे!🙏🙏
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महाराज जी! सारे दिन भगवान के हैं तो ऐसा क्यों कहते हैं कि इस दिन बाल मत काटो ?
इसमें शास्त्र मर्यादा है। इसमें जो शास्त्र मर्यादा है उसका हमें पालन करना चाहिए। जैसे संध्या के समय भोजन नहीं करना, शयन नहीं करना — उस समय जप करना, भगवान का ध्यान करना। तो शास्त्र जो आज्ञा करता है, हम अगर उसका पालन करेंगे तो हमारी उन्नति होगी।
अब जैसे गुरुवार के दिन किसी भी स्थिति में बाल नहीं कटाना। द्वादशी के दिन किसी भी स्थिति में तुलसी जी को नहीं छूना। तो जो शास्त्र मर्यादा बनाई गई है, अब उसमें हम “क्यों?” नहीं कह सकते क्योंकि ये ब्रह्मऋषियों के द्वारा बनाई हुई मर्यादा है। बुधवार को और शुक्रवार को आप बाल कटवा सकते हैं, लेकिन अन्य दिनों में कटवाने से आपके पुण्य क्षय होंगे।
ब्रह्मऋषियों ने जो मर्यादा बना रखी है, अगर हम उससे चलेंगे तो हमें ज्यादा लाभ मिलेगा। अब रोज सुबह लोग बाल आदि तो हम कहते हैं, केवल बृहस्पतिवार को मत करवाओ। और ना मानो तो गुरुवार का दिन परम पवित्र, गुरु के लिए है। उस दिन आप छेदन कर्म ना करें। बिल्कुल निषेध है। नहीं तो उससे पुण्य नष्ट होते हैं। आयु नष्ट होती है। बुद्धि नष्ट होती है।

अब अगर आप नहीं मानोगे तो वैसे ही आपके आचरण होते चले जाएंगे। गिरते चले जाओगे। देखो, आप सब लोग यहां क्या देखने आए हो? हम आपको बता रहे हैं। आप यहां क्यों आए हो? हम दो बातें आपसे रखते हैं — आप क्या देखने आए हो और आप यहां क्यों आए हो? तो आप यहां देखने आए हो साधुता, भगवान के भक्त का दर्शन जो शास्त्र के अनुसार चलता है।
आप आए हो अध्यात्म को पाने के लिए। आप आए हो सुख-शांति के लिए। आए हो कि नहीं? अगर हम धर्म से ना चलते हो तो आप हमारे दर्शन करने आओगे क्या? हम भी तो एक मनुष्य हैं। हम भी तो आप जैसे ही हैं। अगर हमारे अंदर अध्यात्म ना हो तो आप क्या सुनने आए हो? तो आप सोचो, उन्हीं ब्रह्मऋषियों ने यह मर्यादा रखी। वैसे ही जब हम चलते हैं, तो हमारे अंदर तेज, हमारे अंदर शांति, हमारे वचनों का प्रभाव, हमारे दर्शन मात्र से तुम्हें सुख मिलेगा। तो क्या वो आप नहीं बन सकते?
आप विचार करो। तो जो शास्त्रों में लिखा है उस पर हम क्यों “क्यों” नहीं लगाते? उसका हम आचरण करते हैं। जैसे डॉक्टर कहता है कि आपको यह नहीं खाना, यह नहीं खाना, तो हम उनसे क्यों बोलते हैं — क्या दही नहीं खाना? अरे भाई, दही तो बहुत अच्छी चीज है। क्यों नहीं खाना? क्योंकि तुम्हारा रोग बढ़ जाएगा। जब तुम ठीक हो जाओगे तब तुम सब कुछ कर सकते हो। लेकिन जब तक ठीक नहीं होते तब तक तुम्हें दही नहीं खाना। ऐसा मना किया जाता है ना?

जब तक हमारा अज्ञान नष्ट नहीं हो जाता, तब तक ये सब बातें और अज्ञान नष्ट हो गया तो फिर कोई नियम नहीं। फिर वह सबके ऊपर पहुंच जाता है। जब स्वस्थ हो गया तो खूब दही खाओ, क्या परेशानी है? जब आप आत्मा स्वरूप में स्थित हो गए, देहभाव खत्म हो गया, तो बाल बनवाए या ना बनवाए क्या फर्क पड़ता है? तो हम अभी देहाभिमानी हैं, देह भाव से चलते हैं। तो हमें शास्त्र के नियमों का पालन करना चाहिए।
जो आज शास्त्र के नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो गिरते चले जाते हैं। अब ये शास्त्र आज्ञा करता है कि जिस दिन से गर्भ आ जाए, उस दिन से माता-पिता को ब्रह्मचर्य रहना चाहिए। क्यों? क्योंकि वही वीर्य शक्ति फिर उसके ऊपर जाएगी, तो उसके दिमाग पर, उसके अंगों पर वो कुप्रभाव पैदा करेगी। वो उसकी हानि पैदा करेगी और उसमें गलत संस्कार पड़ जाएंगे।
कौन मानता है? शास्त्र जो आज्ञा करता है, अगर उसके अनुसार चलो तो आज सब सुखी हो जाएं। पर शास्त्र की आज्ञा का कहां पालन हो रहा है? बोले, प्रातः काल उठना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर के गुरुजनों, माता-पिता के चरण छूने चाहिए। कौन मान रहा है?
“प्रातः काल उठ के रघुनाथा
मात-पिता गुरु नाव माथा”
“मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव” — कहां गया?
पहले लिखा होता था घरों में बड़े अक्षरों में — “अतिथि देवो भव”।
अब लिखा होता है — “कुत्ते से सावधान”।
तो हमारे जो शास्त्र कहते हैं, उस पर हम “क्यों” लगाने का अधिकार नहीं रखते। हम उनका पालन करते हैं। “क्यों” लगाने का मतलब है संशय करना, और पालन करने का मतलब श्रद्धा करना।
“श्रद्धावान लभते ज्ञानं” — श्रद्धावान ही ज्ञान को प्राप्त होता है। श्रद्धावान ही आनंद को प्राप्त होता है। श्रद्धावान ही परम शांति को प्राप्त होता है। इसलिए हमें लगता है, शास्त्रों की आज्ञा का पालन किया जाए, ना कि उसमें “क्यों” रखा जाए। बस समझना है — हर भाव को समझना है।
शास्त्र मर्यादा है। जैसे देखो, कहते हैं हम सब एक हैं। हम भी कहते हैं — सब एक हैं। अब एक पिता के दो पुत्र हैं। एक बड़ा है, एक छोटा है। अब छोटा वाला बड़े के पैर छूता है। छूता है ना? अब यह मर्यादा है। शास्त्र मर्यादा है। तो देखो, कितना अच्छा लगता है।
अगर छोटा वाला अकड़ के कर दे कि — जिस बाप से तुम पैदा हुए, उसी बाप से हम भी पैदा हुए, क्या कमी है जो हम तुम्हारे पैर छुएं? — उदंडता कही जाएगी कि नहीं? और जब “भैया” कहकर पैर छूता है तो हाथ तो यह जो हमारी एक मर्यादा बनी हुई है, जो हमारे शास्त्र आज्ञा बनी हुई है, उसका पालन करने से हमें आनंद मिलता है, हमें शांति मिलती है, हमारी उन्नति होती है। और जब हम शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, तो अशांति होती है, क्लेश होता है, और हम अवनति को प्राप्त होते हैं।
इसलिए हमें लगता है कि जो शास्त्रों में लिखा है, उसका अक्षरशः पालन करना चाहिए।
राधे राधे!🙏🙏
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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।