अर्जुन की प्रेरणादायक कहानी-Inspirational story of Arjun
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Toggleअर्जुन की प्रेरणादायक कहानी : कर्म की शक्ति और गीता का उपदेश
उत्तर भारत के एक छोटे-से गाँव में एक लड़का था — नाम था अर्जुन। नाम सुनते ही लगता है, जैसे कोई वीर योद्धा होगा, लेकिन असल में वो अंदर से बहुत टूटा हुआ और उलझा हुआ था। उसके पापा अब इस दुनिया में नहीं थे। माँ अकेले सिलाई कर-कर के उसे पालती रहीं। उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, लेकिन अर्जुन को हर दिन अपने अंदर एक खालीपन, एक डर खाता रहता था।
स्कूल की पढ़ाई तो पूरी कर ली थी, लेकिन जब ज़िंदगी में आगे बढ़ने का वक़्त आया — करियर, नौकरी, भविष्य — तो वो वहीं रुक गया। हर सुबह खेत की मेड़ पर बैठ जाता और चुपचाप खुद से पूछता,
“क्या मैं वाकई कुछ कर पाऊंगा?”
“इस तेज़ दौड़ में मेरे जैसे सीधे-साधे लोग कहां टिकेंगे?”
उसके पास ना पैसे थे, ना कोई पहचान, ना कोई ‘जुगाड़’।
और सबसे बड़ी बात — उसके पास खुद पर भरोसा नहीं था।
माँ हमेशा कहतीं —
“बेटा, भगवान पर भरोसा रख। हिम्मत मत हार।”
लेकिन अर्जुन के चेहरे पर एक ही जवाब होता — खालीपन।

गाँव में एक दिन एक साधु बाबा आए। उम्रदराज़, शांत, पर उनकी आँखों में कुछ था — जैसे अंदर बहुत कुछ देखा हो। चौपाल पर उन्होंने भगवद् गीता पढ़नी शुरू की। अर्जुन सबसे पीछे बैठा रहा, जैसे खुद से भी छुपता हो।
तभी एक वाक्य उसके कानों में पड़ा —
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(अर्थात: तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता मत कर।)
उस पल जैसे उसके भीतर कुछ टूट गया… या शायद कुछ जाग गया।
उसने पहली बार खुद से पूछा —
“मैंने अब तक क्या किया है? सिर्फ डर, चिंता, फल की उम्मीद… लेकिन कर्म?”
अर्जुन चौंक गया। पहली बार किसी वाक्य ने उसे भीतर तक हिला दिया। उसने सोचा, “मैं तो अब तक सिर्फ फल की चिंता करता रहा – नौकरी मिलेगी या नहीं, पैसा आएगा या नहीं। लेकिन कर्म ही कब किया?”
अब अर्जुन रोज़ गीता के उपदेश सुनने लगा। एक दिन साधु जी ने कहा, “गीता कोई किताब नहीं है, यह जीवन की आंख है। जो इसे समझ गया, वह डर, मोह और असमंजस से मुक्त हो जाता है।”

उस रात अर्जुन ने पहली बार खुद से एक निर्णय लिया। उसने घर में पड़ा एक पुराना कंप्यूटर ठीक किया, जो कभी मास्टर जी ने दिया था। इंटरनेट से डिजिटल ज्ञान की शुरुआत की। माँ ने थोड़े-बहुत पैसे जोड़े और अर्जुन को एक ऑनलाइन कोर्स के लिए भेजा। अब अर्जुन ने तय कर लिया था — “मैं अब कर्म करूंगा, फल की चिंता नहीं करूंगा।”
समय बीता। दो साल बाद वही अर्जुन अब गाँव के बच्चों को डिजिटल शिक्षा देता था, फ्रीलांसिंग करता था, और सबसे अहम बात – हर रविवार को गीता का एक श्लोक सुनाकर समझाता था।
एक दिन एक छोटा लड़का उसके पास आया और बोला, “भैया, मुझसे कुछ नहीं होगा। मैं बहुत कमजोर हूँ।” अर्जुन मुस्कराया और बोला –
“गीता में कहा गया है – ‘न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्’
(कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता)। तू कर्म कर, फल की चिंता मत कर। बाकी भगवान देख लेंगे।”*
लड़के की आँखों में आशा की चमक आ गई। अर्जुन ने मुस्कराते हुए कहा –
“मुझे देख। मैं भी एक डरा हुआ अर्जुन था। लेकिन गीता ने मुझे अर्जुन से ‘वीर अर्जुन’ बना दिया।”
निष्कर्ष:
गीता का उपदेश केवल युद्ध के मैदान के लिए नहीं है। यह जीवन की हर लड़ाई में हमें मार्ग दिखाता है — चाहे वो डर की हो, मोह की हो या असमंजस की। अर्जुन जैसे लाखों युवा आज इसी डर से जूझ रहे हैं। लेकिन अगर वे गीता को समझ लें, तो जीवन में कभी हार नहीं मानेंगे।
गीता सिर्फ एक ग्रंथ नहीं है।
ये एक आईना है — जो हमें दिखाती है कि डर और असमंजस सबके जीवन में होते हैं, लेकिन उससे बाहर आने का रास्ता भी हमारे अंदर ही होता है।
हर युवा अर्जुन हो सकता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग खुद को खोज लेते हैं, और कुछ आज भी खेत की मेड़ पर बैठे डर रहे हैं।
कर्म करते रहो।
फल आए या ना आए, लेकिन सुकून ज़रूर आएगा।
और शायद एक दिन तुम भी किसी और के लिए रौशनी बन जाओगे।
कर्म पर ध्यान दो, फल की चिंता छोड़ दो – यही गीता का सार है। और यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य भी।
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