ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहें
सर, क्या आप अपने जीवन का कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जब आपने किसी बात को छोड़ दिया हो या ‘लेट गो’ किया हो, जिससे हमें भी कुछ सीखने को मिले?
ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहें
आज से सात-आठ साल पहले, मैं थोड़ा एंज़ायटी का शिकार हुआ। कई कारण थे, पर उसमें दो-चार लोग ऐसे थे जिन्होंने मेरा जीना मुश्किल कर दिया था। उस समय उन्होंने कर दिया और मैंने करवा भी लिया। अब तो मैं करवाता ही नहीं, तब मैंने करवा लिया था। अजीब किस्म के लोग थे, जो पीछे पड़कर रात-दिन, चौबीस घंटे तनाव देते रहते। वो भी बिना किसी बात के, बिना किसी वजह के।
ऐसी स्थिति में मैं बड़ा परेशान रहा। फिर बाद में परिस्थितियाँ बदलीं, मैं ठीक हो गया। मेरी स्थितियाँ बेहतर हो गईं। उन्हीं दिनों मैंने रहीम का एक दोहा पढ़ा, जो मेरे जीवन का उसूल बन गया। उस दोहे ने मुझे भीतर से बदल दिया। एक-दो बार मेरे मन में आया कि मैं भी दुश्मनी कर लूं, और दिखा दूं। और सच्चाई यह है कि मेरे पास ताकत उनसे ज्यादा थी,उस समय भी और आज भी है।

लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर मैं किसी के उकसाने पर, उनके जैसा हो गया, तो जीता तो वही! जब मैं, मैं ही नहीं रहा, तो फिर लड़ कौन रहा है? मैं तो रहा ही नहीं। तब वो जीत जाएगा। मेरी असली कशमकश यह थी कि बिना उसके जैसा हुए, उससे बाहर निकलना है।
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यह कुछ वैसा ही था जैसे आप सड़क पर जा रहे हैं और कीचड़ में एक सूअर लोट रहा है। उछल-उछल कर लोट रहा है। और आपके सफेद कमीज पर छींटा पड़ गया। अब आपके पास दो विकल्प हैं,या तो हिसाब बराबर करने के लिए आप भी उतर जाइए उसी कीचड़ में। लेकिन आप उसे कितना गंदा करेंगे? वो तो मस्त है उसी गंदगी में। उसका तो स्वभाव है वो। और आपके पास तो बस एक छींटा था, लेकिन जब आप वहाँ जाएंगे, तो पूरी कमीज गंदी हो जाएगी। इसलिए सबसे अच्छा यही है कि वहाँ से निकल जाइए। लेट गो कर दीजिए।
मैंने रहीम का एक दोहा अपने जीवन का सार बना लिया:-
रहीमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीति।
काटे चाटे स्वान सों, दहिबांति विपरीत॥
रहीम कहते हैं—ओछे किस्म के लोगों से न दुश्मनी अच्छी है, न दोस्ती। जैसे कुत्ता काटे तो भी परेशानी, चाटे तो भी। तो मेरा उसूल बन गया—इस तरह के लोगों से न दोस्ती, न दुश्मनी। न दिल में कोई बैर रखने हैं, न यह भावना कि मैं हिसाब बराबर कर दूँगा, या हरा दूँगा। रखना ही नहीं।

मेरी किसी से ठीक-ठाक दोस्ती भी है तो जब हम मिलते हैं, बड़े प्यार से मिलते हैं। मुझे किसी से कोई दिक्कत नहीं। नाराजगी भी नहीं। मुझे लगता है कि वह अपना धर्म निभा रहा था, और मैं अपना निभा रहा था।
और अगर मैं दुश्मनी पाल लेता, तो शायद बीपी बढ़ा लेता, डायबिटीज करवा लेता। मैंने पाला ही नहीं, ना तब, ना अब, और ना ही मैं पालता हूँ। कई ऐसे मौके आए, जहाँ दुश्मनी करने का पूरा स्कोप था। लेकिन मैं करता ही नहीं। मुझे शौक ही नहीं है दुश्मनी करने का।
दुनिया में मेरा एक भी दुश्मन नहीं है। हाँ, कई लोग मुझे अपना दुश्मन मानते होंगे, लेकिन मैं उन्हें दुश्मन नहीं मानता। वो मेरे लिए केवल “परिचित” हैं—जो मित्र हो सकते थे या बन सकते हैं। फिलहाल मित्र नहीं हैं, लेकिन दुश्मन भी नहीं हैं।
और अगर कभी दुश्मनी हो भी जाए, तो मैं हमेशा ध्यान रखता हूँ कि बाद में दोस्ती हो सके। बशीर बद्र ने बहुत सुंदर कहा है:
“दुश्मनी जमकर करो, लेकिन यह गुंजाइश रहे,
गर कभी हम दोस्त हो जाएं, तो शर्मिंदा न हों।”
मैं हमेशा यही ध्यान में रखता हूँ।
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