समर्पण से आलस्य या प्रेरणा | Laziness or inspiration from dedication in Hindi | Maharaj ji Premanand

समर्पण से आलस्य या प्रेरणा-Laziness or inspiration from dedication

समर्पण से आलस्य या प्रेरणा | Laziness or inspiration from dedication

महाराज जी, मेरा प्रश्न है कि यदि हम अपने हर कार्य और उसके परिणाम को भगवान के चरणों में समर्पित कर दें, तो क्या ऐसा समर्पण हमें आलसी बना सकता है?

भगवान के चरणों में समर्पण कभी भी हमें आलस्य प्रदान नहीं कर सकता, बल्कि वीरता, उत्साह और कर्तव्य के प्रति समर्पण की भावना प्रदान करता है। हमें अंदर से भीतर से मजबूत बनाता है। ऐसा तो हो ही नहीं सकता के, भक्त भगवान के चरणों में अपने को समर्पित करें, प्रभु आपको आलसी बना दे। ऐसा कदापि नहीं हो सकता। यह तो बहुत शुभ है कि आप अपनी हर क्रिया को, अपनी दैनिक जीवन में किए हुए हर करम को भगवान को समर्पित करते हैं।

लेकिन हां यहां एक बात ध्यान रखने वाली है कि अगर आप यह सोचो कि भगवान सब कर देंगे, हम जो चाहे करते रहे, चाहे पाप करते रहे और भगवान को समर्पित करते हैं तो यह समर्पण नहीं बल्कि कायरता और धोखा है।

समर्पण का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हम गलत आचरण करें और सोचे कि भगवान हम पर कृपा बनाए रखेंगे। भगवान तो सब संभाल लेंगे तो यह गलत बात है। ऐसी सोच रखना, एक प्रकार का आध्यात्मिक अहंकार है। समर्पण तब होता है जब हम अच्छे कार्यों का संकल्प करें और प्रभु से प्रार्थना करें कि हे प्रभु:

भजन में मन क्यों नहीं लगता
                 भजन में मन क्यों नहीं लगता

मैं चलने योग्य नहीं हूं ना मैं इंद्रियों पर विजय पा सकता हूं ना कामनाओं से मुक्त हो, लेकिन मुझे विश्वास है कि आपकी कृपा मुझे मार्ग दिखाएगी। आप ही मेरी नैया पार लगाएंगे ।

हमें प्रभु से ऐसा प्रेम, ऐसी भक्ति और ऐसा सच्चा समर्पण रखना है। यही सच्चा समर्पण है।

हम अपनी ओर से संपूर्ण प्रयास करें और भगवान की कृपा से हमें सफलता प्राप्त हो यही सही मार्ग है और इसी मार्ग से भक्ति में स्थिरता आती है

भक्ति में स्थिरता, अहंकार से नहीं बल्कि विनम्रता और कृपा भाव से आती है।

राधे राधे!🙏🙏

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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।

 

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