भगवान आखिरी बार कब प्रकट हुए थे | भगवान का अवतार कब हुआ | When did God last Appear in hindi

भगवान आखिरी बार कब प्रकट हुए थे- When did God last Appear in hindi

🙏🙏 हरे कृष्ण! इस विषय में वैदिक शास्त्रों में स्पष्ट विवरण प्राप्त होता है।

भगवान आखिरी बार कब प्रकट हुए थे

वर्तमान युग कलियुग के लिए जो अवतार वर्णित है, वह हैं भगवान चैतन्य महाप्रभु। किसी को अवतार के रूप में तभी स्वीकार किया जा सकता है जब उसके लक्षण और कार्यकलाप वैदिक शास्त्रों के अनुसार हों। आजकल यह एक फैशन बन गया है कि कोई भी व्यक्ति स्वयं को भगवान या किसी अवतार के रूप में प्रस्तुत कर देता है और कुछ भोले तथा मूर्ख लोग उसे सच मान लेते हैं। लेकिन ऐसा दृष्टिकोण शास्त्रसम्मत नहीं है।

अयोग्य व्यक्ति की सफलता का रहस्य
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वैदिक परंपरा में हम तभी किसी को अवतार स्वीकार करते हैं जब वह वेदों में वर्णित सभी लक्षणों और भविष्यवाणियों पर खरा उतरता है। प्रत्येक अवतार के लिए वेदों में यह बताया गया है कि वह किस स्थान पर, किस स्वरूप में और कैसे कार्य करेगा। यह है वैदिक प्रमाण का स्वरूप।

भगवान श्रीकृष्ण ने हमें भगवद गीता का उपदेश दिया ताकि हम उन्हें समझ सकें और उनके प्रति समर्पण कर सकें। लेकिन दुर्भाग्यवश बहुत से लोग उस अवसर को खो बैठे। इसलिए भगवान ने अपनी करुणा से प्रेरित होकर पुनः अवतार लिया — इस बार एक भक्त के रूप में — और हमें यह दिखाया कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पण करना है।

पूर्व जन्म के कर्म
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चैतन्य महाप्रभु स्वयं श्रीकृष्ण ही हैं, जो यह सिखाने आए कि किस प्रकार भगवान से प्रेम किया जाए। उन्होंने एक बहुत ही सरल मार्ग बताया — हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना। उन्होंने कहा कि इस युग में केवल हरिनाम संकीर्तन ही एकमात्र साधन है। “हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे।” — यह मंत्र जपने से ही भगवान की प्राप्ति संभव है। आज के युग में लोग विभिन्न साधनों से आत्मबोध प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन वे ध्यान, योग और यज्ञ जैसे विधियों को सही रूप से नहीं अपना सकते। इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने यह सरल उपाय दिया कि केवल हरिनाम का संकीर्तन ही पूर्ण आत्म-साक्षात्कार का माध्यम है।

चैतन्य महाप्रभु द्वारा दिया गया यह संकीर्तन मार्ग (Sankirtana) — जो प्रेम और भक्ति से भरा हुआ है — पूर्ण भक्ति का मार्ग है। “संकीर्तन” शब्द संस्कृत से आया है — “सम्” का अर्थ है पूर्ण, और “कीर्तन” का अर्थ है गुणगान। अतः संकीर्तन का अर्थ हुआ — परम पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान का संपूर्ण रूप से गुणगान करना

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