पूर्व जन्म के कर्म
राधे राधे 🙏🙏
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Toggleपरिवार में दिव्यांग बच्चे का जन्म क्या हमारे कर्मों की वजह से हुआ है, या उसके अपने कर्मों के कारण?
पूर्व जन्म के कर्म
जी महाराज जी, आप कह रहे हैं कि आपने एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्म लिया, वह मैं अपने पूर्व का ही भाग्य मानता हूं। फिर कह रहे हैं कि इनकी बच्ची भी मेधावी थी, पर उनका एक छोटा बच्चा है, जो दो साल का है और दिव्यांग है। महाराज जी तो कह रहे हैं कि वो संत की एक आत्मा है, जो अपना काम पूरा करने आया है। महाराज जी, सवाल यह है कि क्या यह उसके पूर्व जन्म का फल है या मेरे पूर्व जन्म का फल है, क्योंकि कष्ट तो मन को होता ही है।
महाराज जी कहते हैं कि पूरा संयोग — माता-पिता, भाई-बहन, परिवार — पूरा कर्मों का जाल बिछा हुआ होता है। प्रधान कर्म उस जीव का होता है और सहयोगी कर्म उसके परिजनों के। अब जैसे आपका पुत्र है, और इस बात का आपको दुख है कि अगर वह स्वस्थ होता, सर्वांग पुष्ट होता, तो भगवान ने ऐसा क्यों किया? मां को भी दुख है, भाई को भी, बहन को भी, परिवार को भी और देखने वालों को भी।
भगवान ने उसको ऐसा कष्ट क्यों दिया? तो ये कर्मों का जाल है। अगर वही सुकृत (पुण्य) का जाल होता तो उसे देख कर सुख मिलता — मां को, पिता को, भाई को, परिवार को, समाज को। परंतु यह दुष्कृत (पाप) का जाल है, तो उसे वही लोग देख कर दुखी होंगे जिनको दुख पहुंचना है। कर्म जाल ऐसा है, इसलिए बहुत सावधानीपूर्वक कर्म करो जिससे उसका भी कल्याण हो जाए और आपका भी।

भगवान का नाम जप करते हुए, शास्त्रों का स्वाध्याय करते हुए, पवित्र आचरण करते हुए, पुण्य स्तोत्रों का पाठ करते हुए उसे भी स्वीकृत दान कीजिए। उस बालक को, जिसके अंग प्रत्यंग दुष्कृत प्रभाव से बिगड़े हैं, अपना कल्याण करने का अवसर मिलेगा। अगर हमारे अंदर ऐसी सामर्थ्य है कि हम नाम जप कर उसे दान करें, तो निश्चित ही उसे कल्याण की प्राप्ति होगी।
महाराज जी, शारीरिक कोई दोष नहीं है, ऑटिज़्म है — जो आजकल बहुत बच्चों में हो रहा है — ये स्वलीनता का विषय है। महाराज जी, इसका अर्थ यह नहीं है कि वो बौद्धिक रूप से दुर्बल है। अपने आप में लीन होना तो सिद्ध महापुरुषों का स्वरूप है, जो आत्मा में, आनंद में तृप्त रहते हैं।
लेकिन यहाँ वह अपने आप में लीन नहीं है, बल्कि बौद्धिक स्तर हीनता है। उसका बौद्धिक स्तर गिर चुका है जिससे उसका प्रकाश प्रकट नहीं हो पा रहा है। मनुष्य शरीर में रहते हुए भी जो विवेक, विद्वता और प्रवीणता होनी चाहिए, वह नहीं है। हां, तो उसे अबोध बच्चा ही कहेंगे, चाहे वह पूरा जीवन जी ले, उसे अबोध ही कहेंगे। इसलिए उसके लिए हमें नाम जप कर, उसे दान करना चाहिए, उसे देना चाहिए — ताकि उसका मंगल हो जाए।
अब ये सब कर्मों के अनुसार है। कर्मों का प्रधान होता है। जरा सा सिस्टम बिगड़ जाए तो सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। आज आदमी पागल हो जाता है, जरा सिस्टम बिगड़ा नहीं कि सोचने की शक्ति खो देता है। किसी की बुद्धि केवल इतनी होती है कि वो खा सकता है, पी सकता है, दिनचर्या कर सकता है, लेकिन विवेक नहीं होता। कुछ की तो इतनी भी नहीं होती कि वो अपनी दिनचर्या कर सके। ये सब पूर्व जन्मों के कर्मों का जाल है।

आप पवित्र कुल में प्रकट हुए, ये आपके पूर्व जन्मों के पुण्य कर्म हैं। वो बालक भी पवित्र कुल में प्रकट हुआ, लेकिन उसके कर्म बिगड़े हुए थे, इसलिए उसका बौद्धिक स्तर सूक्ष्म कर दिया गया और उसका विकास नहीं हो पा रहा है।
जी महाराज जी, क्या ऐसा होता है कि कोई संत अच्छे शरीर में रहा लेकिन उसकी यात्रा पूरी नहीं हुई, तो क्या वह फिर और अच्छे शरीर में आएगा? महाराज जी कहते हैं कि भगवान ने कहा है — मेरा भजन करने वाला अगर भ्रष्ट हो जाता है, जैसे कि योग में चला हुआ पुरुष — तो वह दो ही कारणों से भ्रष्ट होता है: कंचन (धन) और कामिनी (स्त्री)। तो उसको अगला जन्म ऐसा दिया जाएगा जिसमें शरीर स्वस्थ, सुंदर, सौंदर्यवान होगा, कामिनी और धन संपत्ति का भोग करेगा, और फिर वैराग्य प्राप्त कर के भक्ति में पुष्ट होगा। अंततः वह भगवान की प्राप्ति कर लेगा।
उसे योगभ्रष्ट पुरुष नहीं कह सकते। योगभ्रष्ट उसे कहते हैं जो भगवान का भजन करते-करते चूक जाए, परंतु भजन का प्रभाव इतना रहेगा कि भोग की बहुतायत से ही उसे वैराग्य होगा और अगले जन्म में वह जन्म से ही विज्ञानवान, ज्ञानवान, ब्रह्मचर्य, धैर्य और विद्वता से युक्त होगा।
अबोध स्थिति पूर्व के पाप कर्म का परिणाम होती है, यह भजन या पुण्य का परिणाम नहीं होती।
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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।